Romans11 ई पत्र मसीह यीशुक सेवक पौलुसक दिस सँ अछि, जे मसीह-दूत होयबाक लेल बजाओल गेलहुँ आ परमेश्वरक ओहि शुभ समाचारक प्रचार करबाक लेल अलग कयल गेल छी, 2 जाहि शुभ समाचारक सम्बन्ध मे परमेश्वर पहिनहि सँ अपन प्रवक्ता सभक माध्यम सँ पवित्र धर्मशास्त्र मे वचन देने छथि। 3 ई शुभ समाचार परमेश्वरक पुत्रक विषय मे अछि, जे मानवीय वंशावलीक अनुसार दाऊदक वंशज छलाह, 4 आ मुइल सभ मे सँ जीबि उठबाक कारणेँ परमेश्वरक पवित्र आत्मा द्वारा सामर्थ्यक संग परमेश्वरक पुत्र प्रमाणित भेलाह। ओ छथि अपना सभक प्रभु, यीशु मसीह। 5 हुनका द्वारा आ हुनकर नामक सम्मानक लेल हमरा सभ केँ मसीह-दूत बनबाक वरदान भेटल अछि जाहि सँ सभ जातिक लोकक बीच हम सभ हुनकर प्रचार करी आ ओ सभ विश्वास कऽ कऽ हुनकर अधीनता स्वीकार करनि। 6 ओहि लोक सभ मे अहूँ सभ छी, अहाँ सभ जे सभ यीशु मसीहक अपन लोक होयबाक लेल बजाओल गेल छी। 7 अहाँ सभ जे रोम शहर मे परमेश्वरक प्रिय लोक छी आ पवित्र होयबाक लेल बजाओल गेल छी, अहाँ सभ गोटे केँ हम ई पत्र लिखि रहल छी। अपना सभक पिता परमेश्वर आ प्रभु यीशु मसीह अहाँ सभ पर कृपा करथि आ अहाँ सभ केँ शान्ति देथि। 8 सर्वप्रथम हम यीशु मसीहक माध्यम सँ अहाँ सभक लेल अपना परमेश्वर केँ धन्यवाद दैत छिऐन, किएक तँ अहाँ सभक विश्वासक चर्चा समस्त संसार मे पसरि रहल अछि। 9 जाहि परमेश्वरक सेवा हम हुनकर पुत्रक शुभ समाचारक प्रचार कऽ कऽ अपन सम्पूर्ण हृदय सँ करैत छी, सैह हमर साक्षी छथि जे हम प्रार्थना सभ मे निरन्तर अहाँ सभ केँ स्मरण करैत रहैत छी, 10 आ सदिखन ई विनती करैत छिऐन जे, जँ हुनकर इच्छा छनि, तँ ओ अन्त मे हमरा लेल अहाँ सभ लग अयबाक कोनो ने कोनो उपाय करताह। 11 किएक तँ हमरा अहाँ सभ सँ भेँट करबाक बड्ड इच्छा अछि, जाहि सँ अहाँ सभ केँ विश्वास मे दृढ़ बनयबाक लेल, हम आत्मिक रूप सँ अहाँ सभक मदति कऽ सकी। 12 वा एकरा एहि तरहेँ कहू—हम चाहैत छी जे अपना सभ एक संग रहि कऽ एक-दोसराक विश्वास द्वारा प्रोत्साहित होइ—अहाँ सभ हमरा विश्वास द्वारा आ हम अहाँ सभक विश्वास द्वारा। 13 यौ भाइ लोकनि, हम नहि चाहैत छी जे अहाँ सभ एहि बात सँ अनजान रहू जे कतेको बेर हम अहाँ सभक लग अयबाक योजना बनौने छलहुँ, जाहि सँ जहिना दोसर गैर-यहूदी सभक बीच हम फलदायक काज कऽ सकलहुँ, तहिना अहूँ सभक बीच कऽ सकी, मुदा एखन तक ओहि योजना मे कोनो ने कोनो बाधा अबैत रहल अछि। 14 हमरा यूनानी आ गैर-यूनानी सभक प्रति, और ज्ञानी आ अज्ञानी सभक प्रति एक दायित्व निर्वाह करबाक अछि। 15 एहि लेल हम रोम मे सेहो अहाँ सभक बीच यीशु मसीहक शुभ समाचारक प्रचार करबाक लेल उत्सुक छी। 16 हम ई शुभ समाचार सुनाबऽ सँ लज्जित नहि होइत छी, किएक तँ ई शुभ समाचार ओ माध्यम अछि जाहि द्वारा परमेश्वर अपना सामर्थ्य सँ प्रत्येक विश्वास कयनिहार लोकक उद्धार करैत छथि, पहिने यहूदी सभक आ फेर आन जातिक लोक सभक। 17 एहि शुभ समाचार मे परमेश्वरक ओ योजना प्रगट होइत अछि जाहि योजना द्वारा ओ अपना नजरि मे लोक केँ धार्मिक ठहरबैत छथि, आ ई धार्मिकता शुरू सँ अन्त तक विश्वास पर आधारित अछि, जेना धर्मशास्त्र मे लिखल अछि जे, “जे विश्वास द्वारा धार्मिक ठहराओल गेल अछि, से जीवन प्राप्त करत। “ 18 परमेश्वरक क्रोध ओहन लोक सभक सभ प्रकारक अधर्म आ दुष्टता पर स्वर्ग सँ प्रगट भऽ रहल अछि जे सभ अपना दुष्टता द्वारा सत्य केँ झाँपि कऽ रखने अछि। 19 कारण, परमेश्वरक सम्बन्ध मे जे किछु जानल जा सकैत अछि से ओकरा सभ पर स्पष्ट रूप सँ प्रगट भेल अछि। परमेश्वर अपने ओकरा सभ पर एहि बात केँ प्रगट कऽ देने छथिन। 20 किएक तँ परमेश्वरक अदृश्य गुण, अर्थात् हुनकर अनन्त कालीन शक्ति आ ईश्वरीय स्वभाव, संसारक सृष्टिएक समय सँ हुनका रचना मे साफ-साफ देखाइ दैत अछि। तेँ ओकरा सभ केँ अपन आचरणक सफाइ देबाक कोनो बहाना नहि चलतैक। 21 किएक तँ ओ सभ परमेश्वर केँ जनितो ने हुनका परमेश्वर मानि कऽ समुचित आदर कयलकनि आ ने हुनका धन्यवाद देलकनि। ओ सभ निरर्थक कल्पना सभ मे पड़ि गेल आ ओकरा सभक विवेकहीन मोन अन्हार सँ भरि गेलैक। 22 ओ सभ अपना केँ बुद्धिमान बुझलक मुदा मूर्ख बनि गेल। 23 ओ सभ अविनाशी परमेश्वरक वैभव आ महानताक स्थान पर नाशवान मनुष्य, चिड़ै-चुनमुन, चौपाया जानबर आ साँपक आकार मे बनाओल मूर्ति सभ केँ परमेश्वरक समतुल्य मानि अपनौलक। 24 एहि लेल परमेश्वर ओकरा सभ केँ ओकर अपन हृदयक काम-वासनाक अशुद्धता मे छोड़ि देलथिन जाहि सँ आपस मे ओ सभ अपना शरीर केँ अपवित्र करऽ लागल। 25 ओ सभ परमेश्वरक सत्यक बदला झूठ केँ अपनौलक आ सृष्टि कयल वस्तु सभक पूजा आ सेवा कयलक—नहि कि ओहि सृष्टिकर्ताक, जे सर्वदा धन्य छथि। आमीन। 26 यैह कारण अछि जे परमेश्वर ओकरा सभ केँ नीच वासना सभ मे छोड़ि देलथिन। ओकरा सभक स्त्रिओ स्वभाविक सम्बन्धक स्थान पर अस्वभाविक सम्बन्ध राखऽ लागलि। 27 एही तरहेँ पुरुष सभ सेहो स्त्रीक संग होमऽ वला स्वभाविक सम्बन्ध केँ छोड़ि पुरुषक संग वला काम-वासनाक लेल उत्तेजित होमऽ लागल। पुरुष पुरुषेक संग निर्लज्ज कर्म कऽ अपने व्यक्तित्व मे अपन दुराचरणक उचित फल पौलक। 28 एहि तरहेँ ओ सभ जखन परमेश्वरक सत्य-ज्ञान केँ रखनाइ महत्वपूर्ण नहि बुझलक तँ परमेश्वर ओकरा सभ केँ भ्रष्ट मोनक वश मे छोड़ि देलथिन जाहि सँ ओ सभ अनुचित काज करय, 29 और तेँ ओ सभ हर प्रकारक अधर्म, दुष्टता, लोभ, द्वेष आ ईर्ष्या, हत्या, झगड़ा, छल-कपट आ डाह सँ भरि गेल अछि। ओ सभ चुगली लगौनिहार, निन्दा कयनिहार, परमेश्वर सँ घृणा कयनिहार, जिद्दी, घमण्डी और अहंकारी अछि। ओ सभ अधलाह काज करबाक नव-नव तरीका सभ गढ़ैत रहैत अछि, माय-बाबूक आज्ञाक उल्लंघन करैत अछि, 31 ओ सभ विवेकहीन, विश्वासघाती, प्रेम-शुन्य और निर्दयी भऽ गेल अछि। 32 ओ सभ परमेश्वरक ई उचित फैसला जनैत अछि जे एहन काज कयनिहार मृत्युदण्ड पयबाक जोगरक अछि, तैयो ओ सभ मात्र अपने नहि एहन काज करैत अछि, बल्कि एहन काज कयनिहार लोक सभक समर्थन सेहो करैत अछि।
1 तेँ यौ दोष लगौनिहार, अहाँ जे केओ होइ, निरुत्तर छी, किएक तँ जाहि बात मे अहाँ अनका पर दोष लगबैत छी ताही मे अहाँ अपने केँ दोषी ठहरबैत छी, कारण, जे दोष अहाँ अनका पर लगबैत छी सैह काज अपनो करैत छी। 2 और अपना सभ जनैत छी जे एहन अधलाह काज कयनिहार लोक सभ पर परमेश्वरक दिस सँ दण्डक आज्ञा उचिते होइत अछि। 3 यौ जी, अहाँ दोसर पर जे एहन काज करबाक दोष लगबैत छी आ स्वयं वैह काज करैत छी, तँ की अहाँ सोचैत छी जे अहाँ परमेश्वरक दण्डक आज्ञा सँ बाँचि जायब? 4 वा की अहाँ परमेश्वरक असीम कृपा, सहनशीलता आ धैर्य केँ तुच्छ मानैत छी आ ई नहि जनैत छी जे परमेश्वर अपना कृपा द्वारा अहाँ केँ अपना पापक लेल पश्चात्ताप कऽ कऽ हृदय-परिवर्तन करबाक अवसर दऽ रहल छथि? 5 मुदा अपन जिद्दीपन आ अपरिवर्तित हृदयक कारणेँ अहाँ अपना लेल परमेश्वरक प्रकोप केँ ओहि दिनक लेल संचित कऽ रहल छी जहिया परमेश्वरक प्रकोप आ उचित न्याय प्रगट होयत। 6 परमेश्वर “प्रत्येक मनुष्य केँ ओकर काजक अनुरूप फल देथिन।” 7 जे लोक सभ धैर्यपूर्बक सत्कर्म करैत रहि कऽ परमेश्वर सँ देल सम्मान, आदर और अमरत्वक खोज मे लागल रहैत अछि तकरा परमेश्वर अनन्त जीवन देथिन। 8 मुदा जे केओ स्वार्थी लालसा सभक वश मे रहैत अछि आ सत्य केँ स्वीकार नहि करैत अछि, बल्कि अधर्म पर चलैत अछि, तकरा पर परमेश्वरक दण्ड आ क्रोध बरसत। 9 दुष्कर्म कयनिहार प्रत्येक मनुष्य पर कष्ट आ संकट आओत, पहिने यहूदी पर आ फेर आन जातिक लोक पर। 10 मुदा सत्कर्म कयनिहार प्रत्येक मनुष्य केँ सम्मान, आदर आ शान्ति भेटतैक, पहिने यहूदी केँ आ फेर आन जातिक लोक केँ। 11 किएक तँ परमेश्वर ककरो संग पक्षपात नहि करैत छथि। 12 ओ लोक, जकरा लग मूसा द्वारा देल गेल धर्म-नियम नहि छलैक आ ओहि अवस्था मे पाप कयलक से सभ बिनु धर्म-नियमक आधार पर नाश होयत, और ओ लोक, जकरा लग धर्म-नियम छलैक आ पाप कयलक तकर न्याय धर्म-नियमक अनुरूप कयल जयतैक। 13 किएक तँ परमेश्वरक समक्ष ओ सभ धार्मिक नहि ठहरत जे सभ धर्म-नियमक सुननिहार अछि, बल्कि वैह सभ धार्मिक ठहराओल जायत जे सभ धर्म-नियमक पालन कयनिहार अछि। 14 जखन गैर-यहूदी लोक, जकरा सभ केँ धर्म-नियम नहि भेटलैक, से सभ स्वभाव सँ धर्म-नियमक बात सभ पर चलैत अछि तखन ई बात प्रमाणित होइत अछि जे, ओना तँ मूसा केँ देल गेल धर्म-नियम ओकरा सभ लग नहि अछि, तैयो ओकरा सभक भीतर एकटा नियम अछि— 15 ओकरा सभक आचरण सँ ई स्पष्ट देखाइ दैत अछि जे, धर्म-नियमक आदेश ओकरा सभक हृदय पर लिखल छैक। ओकर सभक भितरी मोन ओकरा सभ केँ कखनो दोषी तँ कखनो निर्दोष ठहरा कऽ एहि बातक गवाही सेहो दैत अछि। 16 ई बात सभ ओहि दिन स्पष्ट होयत जहिया हमर एहि शुभ समाचारक कथन अनुसार परमेश्वर यीशु मसीहक द्वारा लोक सभक गुप्त बात सभक न्याय करताह। 17 अहाँ सभ, जे सभ यहूदी कहबैत छी, धर्म-नियम पर भरोसा रखैत छी आ परमेश्वरक लोक होयबाक घमण्ड करैत छी। 18 परमेश्वरक इच्छाक ज्ञान अहाँ सभ केँ अछि और धर्म-नियमक शिक्षा पयबाक कारणेँ उत्तम बातक मोल जनैत छी। 19 अहाँ सभक धारणा अछि जे, अहाँ सभ आन्हर सभक लेल बाट देखौनिहार, अन्हार मे रहनिहार सभक लेल इजोत, 20 मूर्ख सभ केँ बुझौनिहार, और अज्ञानी सभक गुरु छी, किएक तँ अहाँ सभ केँ धर्म-नियमक द्वारा सम्पूर्ण ज्ञान आ सत्य प्राप्त भऽ गेल अछि। 21 मुदा एकटा बात, अहाँ सभ जे अनका शिक्षा दैत छिऐक, की अपनो केँ शिक्षा दैत छी? अहाँ सभ उपदेश दैत छी जे चोरी नहि करू, की अपने चोरी करैत छी? 22 अहाँ जे कहैत छी जे, परस्त्रीगमन नहि करू, की अहाँ करैत छी? अहाँ सभ मूर्ति सभ सँ घृणा करैत छी, की अहाँ सभ मन्दिर सभक धन केँ लुटैत छी? 23 अहाँ सभ धर्म-नियम पर घमण्ड करैत छी, की अहाँ सभ धर्म-नियमक उल्लंघन कऽ कऽ परमेश्वरक अपमान करैत छियनि? 24 जेना कि धर्मशास्त्र मे लिखल अछि, “तोरा सभक कारणेँ अन्य जातिक बीच मे परमेश्वरक नामक निन्दा भऽ रहल अछि।” 25 धर्म-नियमक अनुरूप कयल जाय वला विधि, खतना, सँ तखने लाभ होइत अछि जखन अहाँ धर्म-नियमक पालन करैत छी। जँ अहाँ धर्म-नियमक उल्लंघन करैत छी तँ अहाँक खतना करौनाइ बेकार अछि। 26 एही तरहेँ, जँ बिनु खतना कराओल कोनो व्यक्ति धर्म-नियमक पालन करैत अछि, तँ की ओ तैयो खतना कराओल व्यक्ति नहि मानल जायत? 27 एतबे नहि—ओहन मनुष्य जकरा शारीरिक रूप मे खतना नहि कयल गेल छैक, जँ धर्म-नियम पर चलैत अछि तँ ओ अहाँ केँ, जे लिखित रूप मे धर्म-नियम पाबि कऽ और खतना कराइओ कऽ धर्म-नियमक उल्लंघन करैत छी, दोषी ठहराओत। 28 असल यहूदी ओ नहि, जे मात्र बाहरी रूप सँ यहूदी देखाइ दैत अछि। तहिना असल खतना ओ नहि, जे मात्र शरीर मे बाहरी चेन्ह अछि। 29 असल यहूदी तँ ओ अछि जे मोन सँ यहूदी अछि, और असल खतना वैह अछि जे हृदय पर कयल गेल अछि। एहन खतना लिखित धर्म-नियम पर निर्भर नहि रहैत अछि, बल्कि पवित्र आत्मा द्वारा कयल जाइत अछि। एहन लोकक प्रशंसा मनुष्यक दिस सँ नहि, बल्कि परमेश्वरक दिस सँ होइत अछि।
1 तखन यहूदी भेला सँ की लाभ? वा खतना करौला सँ की लाभ? 2 हर तरहेँ बहुत लाभ! पहिल बात तँ ई जे, परमेश्वरक वचन यहूदी सभ केँ जिम्मा देल गेलैक। 3 जँ ओकरा सभ मे सँ किछु लोक विश्वास नहि कयलक तँ तकर मतलब की भेल? की ओकरा सभक अविश्वास कयनाइ परमेश्वरक विश्वासयोग्यता केँ व्यर्थ ठहराओत? 4 किन्नहुँ नहि! चाहे प्रत्येक मनुष्य झुट्ठा निकलय, मुदा परमेश्वर सत्य प्रमाणित होयताह, जेना कि धर्मशास्त्र मे लिखल अछि, “...जाहि सँ अहाँ अपना बात मे सत्य प्रमाणित होयब आ अहाँक फैसलाक जाँच भेला पर विजयी होयब।” 5 मुदा जँ हमरा सभक दुष्टता परमेश्वरक धार्मिकता केँ प्रदर्शित करैत अछि, तँ एना मे हम सभ की ई कही जे परमेश्वर जखन हमरा सभ पर क्रोध प्रगट करैत छथि तँ ओ अन्याय करैत छथि? ई बात हम मानवीय सोचक अनुरूप कहि रहल छी। 6 ओ किन्नहुँ नहि अन्याय करैत छथि! जँ ओ अन्यायी होइतथि तँ संसारक न्याय कोना करितथि? 7 केओ शायद ई कहत जे, जँ हमरा झूठ सँ परमेश्वरक सत्यता आरो स्पष्ट रूप सँ देखाइ पड़ैत अछि आ एहि कारणेँ हुनकर गुणगान बढ़ैत छनि तँ पापी जकाँ हम किएक दण्डक योग्य ठहराओल जा रहल छी? 8 ई तँ तेहने बात कहनाइ जकाँ भेल जे हम सभ अधलाहे किएक ने करी जाहि सँ नीक उत्पन्न होअय? किछु लोक हमरा सभक निन्दा करैत आरोप लगबैत अछि जे हम सभ एहने बात सभ सिखबैत छी। एहन लोक सभ केँ दण्ड भेटनाइ उचित अछि। 9 तखन एहि बातक मतलब की भेल? की हम सभ, जे यहूदी छी, आन लोकक अपेक्षा श्रेष्ठ छी? बिलकुल नहि! हम पहिनहि यहूदी आ आन जातिक लोक, दूनू पर दोष लगा चुकल छी जे ओ सभ केओ पापक अधीन अछि। 10 जेना कि धर्मशास्त्र मे लिखल अछि जे, “कोनो मनुष्य धार्मिक नहि अछि, एको गोटे नहि। 11 कोनो मनुष्य बुझनिहार नहि अछि। एको गोटे तेहन नहि अछि जे परमेश्वर केँ खोजैत होअय। 12 सभ केओ भटकि गेल अछि, सभ केओ भ्रष्ट भऽ गेल अछि। केओ नीक काज नहि करैत अछि, एको गोटे नहि।” 13 “ओकर सभक कण्ठ खुजल कबर जकाँ छैक, ओकरा सभक मुँह मे छल-कपट छैक” आ “ठोर मे साँपक विष भरल छैक।” 14 “ओकर सभक मुँह सराप आ कटुता सँ भरल छैक।” 15 “ओकर सभक पयर खून करबाक लेल दौड़ैत छैक। 16 ओ सभ जतऽ-कतौ जाइत अछि ततऽ विनाश आ दुःख लऽ जाइत अछि। 17 ओ सभ शान्तिक बाट सँ अपरिचित अछि।” 18 “ओकरा सभक मोन मे परमेश्वरक डर-भय नहि छैक।” 19 अपना सभ जनैत छी जे, धर्म-नियम जे बात कहैत अछि से ओकरे सभ केँ कहैत अछि जकरा सभ केँ धर्म-नियम देल गेल अछि। एहि तरहेँ सभक मुँह बन्द भऽ गेल अछि आ परमेश्वरक सम्मुख सम्पूर्ण संसार दण्डक योग्य ठहरि गेल अछि। 20 किएक तँ धर्म-नियमक पालन कयला सँ कोनो मनुष्य परमेश्वरक नजरि मे धार्मिक नहि ठहरत, बल्कि धर्म-नियमक माध्यम सँ मनुष्य केँ अपन पापक ज्ञान होइत छैक। 21 मुदा आब परमेश्वर अपना दिस सँ एकटा तेहन धार्मिकता प्रगट कयने छथि जे धर्म-नियम पर निर्भर नहि अछि, आ जाहि सम्बन्ध मे धर्म-नियम आ परमेश्वरक प्रवक्ता सभक लेख गवाही सेहो देने अछि। 22 प्रगट भेल धार्मिकता ई अछि जे परमेश्वर विश्वासक आधार पर तकरा सभ गोटे केँ धार्मिक ठहरबैत छथि जे सभ यीशु मसीह पर विश्वास करैत अछि। ककरो मे कोनो भेद नहि— 23 सभ केओ पाप कयने अछि आ परमेश्वरक महिमा तक पहुँचऽ मे चुकि जाइत अछि। 24 मुदा परमेश्वर अपना खुशी सँ दानक रूप मे विश्वास कयनिहार सभ केँ ओहि छुटकाराक माध्यम सँ धार्मिक ठहरबैत छथि जे छुटकारा ओ मसीह यीशु द्वारा पूरा कयलनि। 25 परमेश्वर यीशु मसीह केँ मनुष्यक पापक प्रायश्चित्त करऽ वला बलिदानक रूप मे संसार मे प्रस्तुत कयलनि, जाहि बलिदानक बहाओल खून पर विश्वास कयला सँ मनुष्य केँ पाप सँ मुक्ति भेटैत छैक। एहि तरहेँ परमेश्वर अपन उचित न्याय केँ प्रमाणित कयलनि, किएक तँ ओ अपन सहनशीलताक अनुरूप पूर्व समय मे कयल गेल पाप सभ केँ दण्डित नहि कऽ ओहिना छोड़ने छलाह। 26 वर्तमान समय मे परमेश्वर अपन उचित न्याय प्रमाणित कऽ ई बात प्रगट कयलनि जे ओ स्वयं न्यायी छथि आ ओहि सभ लोक केँ धार्मिक ठहरबैत छथि जे सभ यीशु मसीह पर विश्वास करैत अछि। 27 तखन घमण्ड करऽ वला बात कतऽ रहल? ओकर तँ कोनो स्थाने नहि अछि। कोन कारणेँ? की एहि कारणेँ जे धर्म-नियम केँ पालन नहि कऽ सकलहुँ? नहि, बल्कि एहि कारणेँ जे सभ बात आब विश्वासे पर निर्भर अछि। 28 तेँ हम सभ ई कहैत छी जे मनुष्य धर्म-नियमक पालन कयला सँ नहि, बल्कि विश्वासक कारणेँ धार्मिक ठहरैत अछि। 29 की परमेश्वर मात्र यहूदी सभक परमेश्वर छथि? की ओ आन जाति सभक परमेश्वर नहि छथि? हँ, ओ आन जाति सभक परमेश्वर सेहो छथि। 30 किएक तँ परमेश्वर एके छथि। ओ यहूदी सभ केँ ओकरा सभक विश्वासक आधार पर, आ अन्य जातिक लोक सभ केँ ओकरा सभक विश्वासक आधार पर धार्मिक ठहरौताह। 31 तखन की, हम सभ विश्वास पर जोर दऽ कऽ धर्म-नियम केँ आब बेकार ठहरबैत छी? किन्नहुँ नहि! बल्कि धर्म-नियम केँ समर्थन करैत छी।
1 आब हम सभ अपन पूर्वज अब्राहमक विषय मे की कही? धार्मिक ठहराओल जयबाक सम्बन्ध मे हुनका की अनुभव भेलनि? 2 जँ अब्राहम अपन कर्म द्वारा धार्मिक ठहराओल गेलाह तँ ओ अपना पर घमण्ड कऽ सकैत छलाह, मुदा परमेश्वरक सम्मुख हुनका घमण्ड करबाक कोनो आधार नहि छलनि, 3 किएक तँ धर्मशास्त्र मे ई लिखल अछि जे, “अब्राहम परमेश्वरक बातक विश्वास कयलनि आ ई विश्वास हुनका लेल धार्मिकता मानल गेलनि।” 4 काज कयनिहार केँ जखन मजदूरी देल जाइत अछि, तँ ई नहि मानल जाइत अछि जे ओकरा पर कृपा कयल गेलैक, बल्कि ई ओकर अधिकार छलैक। 5 मुदा जे व्यक्ति अपना काज पर भरोसा नहि रखैत अछि, बल्कि ओहि परमेश्वर पर विश्वास करैत अछि जे पापी सभ केँ धार्मिक ठहरबैत छथि, ताहि व्यक्ति केँ विश्वासक आधार पर परमेश्वर ओकरा धार्मिक मानैत छथि ⌞आ ई कृपाक बात अछि⌟। 6 एही तरहेँ धर्मशास्त्र मे दाऊद ओहन मनुष्य केँ धन्य कहैत छथि जकरा परमेश्वर बिनु कर्मक आधार पर धार्मिक मानैत छथिन— 7 “धन्य अछि ओ सभ जकर सभक अपराध क्षमा भऽ गेल 2 आ जकर सभक पाप झाँपि देल गेलैक। 8 धन्य अछि ओ मनुष्य जकर पापक लेखा प्रभु नहि लेथिन।” 9 की ई आशिष खतना कराओल लोक सभक लेल मात्र अछि वा तकरो सभक लेल जकरा सभक खतना नहि भेल अछि? हम सभ तँ कहैत आयल छी जे, “अब्राहमक विश्वास हुनका लेल धार्मिकता मानल गेलनि।” 10 तँ हुनकर विश्वास कोन स्थिति मे धार्मिकता मानल गेलनि—हुनकर खतना होमऽ सँ पहिने वा भेलाक बाद? खतना भेलाक बाद नहि, बल्कि पहिने! 11 हुनकर खतना जखन नहि भेल छलनि, ताहि समय मे विश्वास द्वारा जे धार्मिकता प्राप्त भेल छलनि ताहि पर छाप स्वरूप खतनाक चिन्ह बाद मे लगाओल गेलनि। एहि तरहेँ ओ ओहू लोक सभक पिता भेलाह जे सभ बिनु खतना करौने विश्वास करैत अछि, जाहि सँ ओकरो सभक विश्वास ओकरा सभक लेल धार्मिकता मानल जाइक। 12 अब्राहम ओहि खतना करौनिहार लोक सभक पिता सेहो छथि जे सभ मात्र खतने नहि करौने अछि, बल्कि हमरा सभक पिता अब्राहमक ओही विश्वासक पद-चिन्ह पर सेहो चलैत अछि, जे विश्वास खतना होमऽ सँ पहिने हुनका मे छलनि। 13 अब्राहम आ हुनका वंश केँ जे वचन देल गेल छल जे ओ पृथ्वीक उत्तराधिकारी होयताह, से वचन हुनका एहि लेल नहि देल गेल जे ओ धर्म-नियमक पालन कयलनि, बल्कि एहि लेल जे ओ विश्वास कयलनि आ परमेश्वर हुनका धार्मिक मानलथिन। 14 जँ वैह सभ उत्तराधिकारी बनैत अछि जे सभ धर्म-नियमक अधीन रहैत अछि, तँ विश्वास कयनाइ बेकार अछि आ परमेश्वर जे वचन देलनि से निरर्थक भऽ जाइत अछि, 15 किएक तँ धर्म-नियम परमेश्वरक प्रकोपे उत्पन्न करैत अछि, आ जतऽ नियम अछिए नहि, मात्र ततहि आज्ञाक उल्लंघन नहि पाओल जाइत अछि। 16 एहि कारणेँ परमेश्वरक वचनक पूर्तिक आधार अछि मनुष्यक विश्वास, जाहि सँ सम्पूर्ण बात परमेश्वरक दिस सँ कृपाक रूप मे रहय आ हुनकर वचन अब्राहमक सभ वंशजक लेल अटल होअय—मात्र तकरे सभक लेल नहि, जकरा सभ केँ धर्म-नियम भेटल छैक, बल्कि ओहि सभ लोकक लेल, जे सभ अब्राहम सनक विश्वास रखैत अछि। अब्राहम अपना सभ गोटेक पिता छथि, 17 जेना कि लिखल अछि जे, “हम तोरा बहुतो जाति सभक पिता बनौने छिअह।” परमेश्वरक दृष्टि मे अब्राहम अपना सभक पिता छथि। ओ ओहि परमेश्वर पर विश्वास कयलनि जे मुइल सभ केँ जिअबैत छथि और जे वस्तु अस्तित्व मे अछिए नहि तकरा अस्तित्व मे अनैत छथि। 18 जाहि परिस्थिति मे कोनो आशा नहि राखल जा सकैत छल, ताहू मे अब्राहम आशा राखि विश्वास कयलनि और तहिना बहुतो जातिक पिता बनि गेलाह, जेना कि हुनका कहल गेल छलनि जे, “तोहर वंशज असंख्य होयतह।” 19 हुनकर उमेर लगभग एक सय वर्षक भऽ गेल छलनि आ ओ जनैत छलाह जे हमर शरीर सँ आब किछु नहि होयत आ ओ इहो जनैत छलाह जे सारा केँ बच्चा होयब असम्भवे छनि। 20 तैयो ओ परमेश्वरक वचन पर कनेको सन्देह नहि कयलनि, बल्कि विश्वास मे आओर दृढ़ भऽ कऽ परमेश्वरक स्तुति कयलनि। 21 हुनका पक्का विश्वास छलनि जे जाहि बातक वचन परमेश्वर देने छथि तकरा पूरा करऽ मे ओ सामर्थ्यवान छथि। 22 एही विश्वासक कारणेँ ओ धार्मिक मानल गेलाह। 23 धर्मशास्त्रक ई शब्द जे, “विश्वासक आधार पर ओ धार्मिक मानल गेलाह,” मात्र अब्राहमेक लेल नहि, बल्कि अपनो सभक लेल लिखल गेल अछि। अपनो सभ केँ परमेश्वर धार्मिक मानताह—अपना सभ केँ, जे सभ ओहि परमेश्वर पर विश्वास करैत छी जे अपना सभक प्रभु, यीशु केँ, मुइल सभ मे सँ जीवित कयलथिन। 25 यीशु मसीह केँ अपना सभक पापक कारणेँ मृत्युदण्ड देल गेल छलनि आ अपना सभ केँ धार्मिक ठहरयबाक लेल जिआओल गेलनि।
1 एहि तरहेँ विश्वास सँ धार्मिक ठहराओल जयबाक कारणेँ प्रभु यीशु मसीहक द्वारा परमेश्वर सँ अपना सभक मेल भेल अछि। 2 यैह यीशु मसीह अपना सभ केँ परमेश्वरक संग एहि नव सम्बन्ध मे अनने छथि जे सम्बन्ध हुनका कृपा पर आधारित अछि आ जाहि सम्बन्ध मे अपना सभ स्थिर छी। और परमेश्वरक महिमा मे सहभागी होयबाक आशा मे आनन्दित छी। 3 एतबे नहि, बल्कि कष्टक समय सभ मे सेहो आनन्दित होइत छी, किएक तँ अपना सभ जनैत छी जे कष्ट सँ धैर्य उत्पन्न होइत अछि, 4 धैर्य सँ सच्चरित्रता आ सच्चरित्रता सँ आशा उत्पन्न होइत अछि। 5 और ई आशा अपना सभ केँ निराश नहि होमऽ दैत अछि, किएक तँ परमेश्वर अपन पवित्र आत्मा जे अपना सभ केँ देने छथि, तिनका द्वारा अपन प्रेम अपना सभक हृदय मे भरि देने छथि। 6 सोचू! अपना सभ जखन असहाये छलहुँ तहिए निर्धारित समय पर मसीह अधर्मी सभक लेल मरलाह। 7 दुर्लभ बात अछि जे कोनो धार्मिको मनुष्यक लेल केओ अपन प्राण दिअय। हँ, कोनो नीक मनुष्यक लेल केओ मरबाक साहस कैओ लिअय। 8 मुदा परमेश्वर अपना प्रेम केँ अपना सभक प्रति एहि तरहेँ देखबैत छथि जे, जखन अपना सभ पापिए छलहुँ तखने मसीह अपना सभक लेल मरलाह। 9 तेँ जखन अपना सभ मसीहक खून द्वारा एखन धार्मिक ठहराओल गेलहुँ तँ निश्चय अपना सभ हुनका द्वारा परमेश्वरक दण्ड सँ सेहो बँचाओल जायब। 10 किएक तँ जखन शत्रुताक अवस्था मे परमेश्वरक संग मेल-मिलाप हुनका पुत्रक मृत्यु द्वारा भऽ गेल, तखन मेल-मिलाप भऽ गेला पर हुनका पुत्रक जीवन द्वारा अपना सभक उद्धार किएक नहि होयत? 11 एतबे नहि! अपना प्रभु यीशु मसीहक कारणेँ अपना सभ परमेश्वर मे आनन्दित सेहो छी, किएक तँ हुनके द्वारा आब परमेश्वर सँ मेल-मिलाप भऽ गेल अछि। 12 एके मनुष्यक द्वारा संसार मे पापक प्रवेश भेल आ पाप द्वारा मृत्युक। एहि तरहेँ मृत्यु सभ मनुष्य मे पसरि गेल, कारण, सभ केओ पाप कयने अछि। 13 धर्म-नियम जे मूसा केँ देल गेल ताहि सँ पहिने सेहो संसार मे पाप छल, मुदा जतऽ नियम नहि होइत अछि ततऽ “नियम-उल्लंघन”क लेखा नहि राखल जाइत अछि। 14 तैयो मृत्यु आदमक समय सँ लऽ कऽ मूसाक समय धरि ओहू लोक सभ पर शासन कयलक जे सभ परमेश्वरक आज्ञाक उल्लंघन करबाक द्वारा पाप नहि कयने छल, जेना आदम कयलक। आदम तिनकर प्रतीक छल जे आबऽ वला छलाह। 15 मुदा आदमक अपराध आ परमेश्वरक वरदान मे कोनो समानता नहि। कारण, जँ एके मनुष्यक अपराध सँ अनेको मनुष्य मरल, तँ एहि सँ कतेक बढ़ि कऽ एके मनुष्यक, अर्थात् यीशु मसीहक, वरदान द्वारा अनेको मनुष्य पर परमेश्वरक कृपा बरसल। 16 कहाँ ओ एक व्यक्तिक पापक परिणाम आ कहाँ ई परमेश्वरक वरदान!—एहि मे कोनो समानता नहि, किएक तँ एक अपराधक फलस्वरूप न्याय कयल गेल आ मनुष्य केँ दण्ड-आज्ञा भेटलैक, मुदा बहुतो अपराधक बाद जे वरदान देल गेलैक, ताहि द्वारा दोष सँ छुटकारा भेटलैक। 17 जँ एके मनुष्यक पापक कारणेँ ओहि मनुष्य द्वारा मृत्यु राज्य कयलक, तँ एहि सँ कतेक बढ़ि कऽ जकरा सभ केँ परमेश्वरक प्रशस्त कृपा आ धार्मिकताक दान भेटल छैक, से सभ एके मनुष्य, अर्थात् यीशु मसीह, द्वारा जीवन मे राज्य करत। 18 एहि तरहेँ अपना सभ देखैत छी जे, जहिना एके अपराधक फलस्वरूप सभ मनुष्य केँ दण्ड-आज्ञा भेटलैक, तहिना एके नीक काजक फलस्वरूप सभ मनुष्यक लेल दोष सँ छुटकारा आ जीवनक प्रबन्ध कयल गेल। 19 किएक तँ जाहि तरहेँ एक मनुष्यक आज्ञा-उल्लंघन सँ अनेको मनुष्य पापी भेल, ओही तरहेँ एक मनुष्यक आज्ञा-पालन सँ अनेको मनुष्य धार्मिक ठहराओल जायत। 20 बीच मे धर्म-नियम आबि गेला सँ पापक वृद्धि भेल, मुदा जतऽ पाप बढ़ल ततऽ परमेश्वरक कृपा आरो बढ़ल, 21 जाहि सँ जहिना पाप मनुष्य केँ मृत्यु दऽ कऽ शासन करैत छल, तहिना परमेश्वरक कृपा मनुष्य केँ धार्मिक ठहरा कऽ शासन करय, जकर फल अपना सभक प्रभु यीशु मसीह द्वारा अनन्त जीवन अछि।
1 तखन की, अपना सभ आओर पाप करैत रही जाहि सँ परमेश्वर आओर कृपा करथि? 2 किन्नहुँ नहि! अपना सभ जे पापक लेखेँ मरि गेल छी, आब पाप मे जीवन कोना व्यतीत करब? 3 की अहाँ सभ ई नहि जनैत छी जे, अपना सभ गोटे जे बपतिस्मा लऽ कऽ मसीह यीशु मे सहभागी भेलहुँ से हुनका मृत्यु मे सेहो सहभागी भेलहुँ? 4 तेँ अपना सभ बपतिस्मा द्वारा हुनका मृत्यु मे सहभागी भऽ हुनका संग गाड़ल सेहो गेल छी जाहि सँ जहिना यीशु मसीह पिता परमेश्वरक महिमा द्वारा मुइल सभ मे सँ जिआओल गेलाह तहिना अपनो सभ एक नव जीवन जीबी। 5 जँ हुनका मृत्यु मे अपना सभ हुनका सँ संयुक्त भऽ गेल छी, तँ निश्चय हुनका जीबि उठनाइ मे सेहो अपना सभ हुनका सँ संयुक्त भऽ जायब। 6 अपना सभ केँ ई कखनो नहि बिसरबाक चाही जे अपना सभक पहिलुका स्वभाव हुनके संग क्रूस पर चढ़ा देल गेल, जाहि सँ अपना सभ मेहक पापपूर्ण “हम” मरि जाय आ अपना सभ फेर पापक दास नहि बनी, 7 किएक तँ मरल आदमी पर पाप केँ कोनो शक्ति नहि रहि जाइत छैक। 8 आब जँ अपना सभ मसीहक संग मरलहुँ तँ अपना सभ विश्वास करैत छी जे हुनका संग जीवित सेहो रहब। 9 किएक तँ अपना सभ जनैत छी जे मसीह मुइल सभ मे सँ जिआओल गेलाक बाद फेर कहियो नहि मरताह। आब मृत्यु केँ हुनका पर कोनो अधिकार नहि रहल। 10 ओ जखन मरलाह तँ पाप केँ पराजित करबाक लेल सदाक लेल एके बेर मरलाह, आ जीबि उठि कऽ ओ आब परमेश्वरेक लेल जीबैत छथि। 11 एही तरहेँ अहाँ सभ सेहो अपना केँ पापक लेखेँ मुइल आ मसीह यीशु मे परमेश्वरक लेल जीवित बुझू। 12 एहि लेल आब अहाँ सभ अपन नश्वर शरीर मे पाप केँ राज्य नहि करऽ दिअ जे ओकर अभिलाषा सभक अनुसार जीवन व्यतीत करी। 13 अहाँ सभ अपना शरीरक अंग सभ केँ दुष्टताक साधनक रूप मे पाप करबाक लेल समर्पित नहि करू। बल्कि मृत्यु सँ जीवन मे लाओल लोक सभ जकाँ अपना केँ परमेश्वर केँ समर्पित कऽ दिअ आ शरीरक अंग सभ केँ नीक काज करबाक साधनक रूप मे परमेश्वर केँ अर्पित करू। 14 तखन पाप अहाँ सभ पर राज्य नहि कऽ पाओत, किएक तँ अहाँ सभ धर्म-नियमक अधीन नहि, बल्कि परमेश्वरक कृपाक अधीन छी। 15 तखन की? की अपना सभ जँ धर्म-नियमक अधीन नहि, बल्कि परमेश्वरक कृपाक अधीन छी, तँ एहि कारणेँ पाप करी? किन्नहुँ नहि! 16 की अहाँ सभ नहि जनैत छी जे जकर आज्ञा मानबाक लेल अहाँ सभ अपना केँ दासक रूप मे समर्पित करैत छी, अहाँ सभ तकरे दास छी?—ओ चाहे पापक होइ, जकर परिणाम मृत्यु अछि, चाहे आज्ञाकारिताक, जकर परिणाम धार्मिकता अछि। 17 परमेश्वर केँ धन्यवाद जे अहाँ सभ, जे सभ एक समय मे पापक दास छलहुँ, आब पूरा मोन सँ ओहि शिक्षाक आज्ञाकारी भऽ गेल छी जाहि मे अहाँ सभ सौंपल गेलहुँ। 18 अहाँ सभ पाप सँ मुक्त कयल गेलहुँ और आब धार्मिकताक दास भऽ गेल छी। 19 हम ई साधारण मानव जीवनक उदाहरण, अर्थात् दास आ मालिकक उदाहरण, एहि लेल प्रयोग कऽ रहल छी जे अहाँ सभक मानवीय दुर्बलताक कारणेँ बात बुझनाइ अहाँ सभक लेल कठिन अछि। अहाँ सभ जहिना पहिने अपना शरीरक अंग केँ अशुद्धता आ अधर्मक अधीन कयने छलहुँ, जाहि सँ दुराचार बढ़ल, तहिना आब अपना शरीरक अंग केँ धार्मिकताक अधीन करू, जाहि सँ अहाँ सभ पवित्र बनी। 20 किएक तँ जखन अहाँ सभ पापक दास छलहुँ तँ धार्मिकताक नियन्त्रण सँ अहाँ सभ स्वतन्त्र छलहुँ। 21 ओहि समय मे अहाँ सभ केँ ओहि कर्म सँ की लाभ भेल? आब ओहि बात सँ लज्जित होइत छी, कारण, ओकर परिणाम मृत्यु अछि। 22 मुदा आब अहाँ सभ पाप सँ छुटकारा पाबि परमेश्वरक दास बनि गेल छी, जकर फल अछि पवित्रता आ जकर परिणाम अछि अनन्त जीवन। 23 किएक तँ पापक मजदूरी अछि मृत्यु, मुदा परमेश्वरक वरदान अछि अनन्त जीवन जे अपना सभक प्रभु, मसीह यीशुक माध्यम सँ प्राप्त होइत अछि।
1 यौ भाइ लोकनि, अहाँ सभ तँ नियम-कानून केँ जननिहार लोक छी—की अहाँ सभ नहि जनैत छी जे तहिए तक कोनो मनुष्य पर कानूनक अधिकार रहैत छैक जहिया तक ओ मनुष्य जीवित अछि? 2 उदाहरणक लेल, विवाहित स्त्री तहिया धरि कानून द्वारा अपन पुरुषक बन्हन मे रहैत अछि जहिया धरि ओकर पुरुष जीवित छैक। जँ पुरुष मरि जाइत छैक तँ ओ विवाह-कानूनक बन्हन सँ मुक्त भऽ जाइत अछि। 3 एहि लेल, जँ ओ पतिक जीवन काल मे कोनो दोसर पुरुष सँ विवाह करैत अछि तँ ओ परपुरुषगमन करऽ वाली कहबैत अछि, मुदा जँ ओकर पति मरि जाइत छैक तँ ओ ओहि विवाह सम्बन्ध सँ मुक्त भऽ जाइत अछि और कोनो दोसर पुरुषक स्त्री बनिओ कऽ परपुरुषगमन करऽ वाली नहि होइत अछि। 4 एहि लेल, यौ हमर भाइ लोकनि, अहूँ सभ मसीहक शारीरिक मृत्यु मे सहभागी भऽ धर्म-नियमक दृष्टिकोण सँ मरि गेल छी, जाहि सँ कोनो दोसराक, अर्थात् यीशु मसीहक, जे मृत्यु मे सँ जिआओल गेलाह, तिनकर भऽ जाइ आ परमेश्वरक लेल फलदायक सेवा करी। 5 जखन अपना सभ अपन पापी स्वभावक अनुसार आचरण करैत छलहुँ, तँ पापमय लालसा सभ धर्म-नियम द्वारा प्रेरणा पाबि कऽ अपना सभक शरीरक अंग सभ मे काज करैत छल, जाहि सँ तेहन जीवन बितबैत छलहुँ जकर परिणाम मृत्यु अछि। 6 मुदा आब तकरा लेखेँ मरि कऽ जे एक समय मे अपना सभ केँ अपना वश मे बान्हि कऽ रखने छल, अर्थात् धर्म-नियम, अपना सभ ओहि सँ मुक्त भऽ गेल छी। आब पुरान तरीका सँ लिखित नियमक दास भऽ कऽ नहि, बल्कि नव तरीका सँ, जे पवित्र आत्माक तरीका छनि, परमेश्वरक सेवा करबाक लेल स्वतन्त्र भऽ गेल छी। 7 तखन, जँ पापमय लालसा सभ धर्म-नियम द्वारा प्रेरणा पबैत अछि, तँ की अपना सभ ई कही जे धर्म-नियम आ पाप दूनू एके चीज अछि? एकदम नहि! बात ई अछि जे, धर्म-नियमक अभाव मे हम पाप केँ चिन्हने नहि रहितहुँ। जँ धर्म-नियम नहि कहने रहैत जे, “लोभ नहि करह” तँ हम ई नहि जनितहुँ जे, लोभ अछि की। 8 एहि आज्ञा सँ मौका पाबि पाप हमरा मे सभ प्रकारक लोभ उत्पन्न कऽ देलक, कारण, नियमक अभाव मे पाप निर्जीव अछि। 9 एक समय छल जहिया धर्म-नियम नहि छल आ हम जीवित छलहुँ, मुदा जखन आज्ञा आबि गेल तँ पाप जीवित भऽ गेल आ हम मरि गेलहुँ। 10 और एहि तरहेँ जाहि आज्ञाक उद्देश्य छल जीवन देनाइ, से आज्ञा हमरा लेल मृत्युक कारण बनि गेल। 11 किएक तँ पाप आज्ञाक उपस्थिति सँ अवसर पाबि हमरा धोखा देलक आ ओही आज्ञा सँ हमरा मारि देलक। 12 एहि तरहेँ अपना सभ देखैत छी जे धर्म-नियम अपने पवित्र अछि और आज्ञा सेहो पवित्र, उचित आ कल्याणकारी अछि। 13 तखन की, जे बात कल्याणकारी छल, सैह हमरा लेल मृत्युक कारण बनि गेल? कदापि नहि! बल्कि जे वस्तु कल्याणकारी छल, तकरा प्रयोग कऽ कऽ पाप हमरा लेल मृत्युक कारण बनि गेल। एहि तरहेँ पापक वास्तविक स्वरूप प्रगट भऽ गेल आ आज्ञाक माध्यम सँ पाप आओर अधिक पापमय प्रमाणित भेल। 14 अपना सभ जनैत छी जे धर्म-नियम आत्मा सँ सम्बन्ध रखैत अछि, मुदा हम मानवीय स्वभावक प्रभाव मे छी आ पापक हाथेँ बिका गेल छी। 15 हम की करैत छी, से नहि बुझि पबैत छी, किएक तँ हम जे करऽ चाहैत छी से नहि करैत छी, बल्कि जाहि बात सँ हम घृणा करैत छी सैह करैत छी। 16 आब हम जे करैत छी, जँ से करबाक इच्छा हमरा नहि अछि, तँ एहि सँ स्पष्ट होइत अछि जे हम वास्तव मे मानैत छी जे धर्म-नियम उचित अछि। 17 तखन एहन अवस्था मे करऽ वला हम नहि रहलहुँ, बल्कि करऽ वला ओ पाप अछि जे हमरा मे वास कऽ रहल अछि। 18 किएक तँ हम जनैत छी जे हमरा मे कोनो नीक वस्तुक वास नहि अछि, अर्थात् हमर मानवीय स्वभाव मे। नीक काज करबाक इच्छा तँ हमरा होइत अछि, मुदा हम ओकरा कऽ नहि पबैत छी। 19 कारण, जाहि नीक काज केँ हम करऽ चाहैत छी तकरा नहि करैत छी, आ जाहि अधलाह काज केँ करऽ नहि चाहैत छी तकरे करैत रहैत छी। 20 जँ हम जे नहि करऽ चाहैत छी सैह करैत छी, तँ ओ करऽ वला हम नहि, बल्कि पाप अछि, जे हमरा मे वास करैत अछि। 21 एहि तरहेँ हम अपना मे ई नियम पबैत छी जे, जखन हम नीक काज करबाक इच्छा करैत छी तँ अधलाहे काज हमरा सँ होइत अछि। 22 हम अपना अन्तरात्मा मे परमेश्वरक धर्म-नियम केँ तँ सहर्ष स्वीकार करैत छी, 23 मुदा हमरा अपना शरीर मे एक दोसरे नियम काज करैत देखाइ दैत अछि, जे ताहि नियम सँ संघर्ष करैत अछि जे हमर बुद्धि स्वीकार करैत अछि। हमरा शरीरक अंग मे क्रियाशील ओ नियम पाप-नियम अछि और ओ हमरा अपन बन्दी बना लैत अछि। 24 हम कतेक अभागल मनुष्य छी! एहि मृत्युक अधीन रहऽ वला शरीर सँ हमरा के छुटकारा दियाओत? 25 परमेश्वरक धन्यवाद होनि! वैह अपना सभक प्रभु यीशु मसीहक द्वारा हमरा छुटकारा दिऔताह। अतः एक दिस तँ हम अपना बुद्धि सँ परमेश्वरक नियमक दास छी, मुदा दोसर दिस अपना मानवीय पाप-स्वभाव सँ पाप-नियमक दास छी।
1 एहि लेल, आब जे सभ मसीह यीशु मे अछि, तकरा सभक लेल कोनो दण्डक आज्ञा नहि अछि। 2 किएक तँ परमेश्वरक जीवनदायक आत्माक नियम मसीह यीशु द्वारा पाप आ मृत्युक नियम सँ हमरा स्वतन्त्र कऽ देने अछि। 3 धर्म-नियम मानवीय पाप-स्वभावक कारणेँ कमजोर भऽ कऽ जे काज करऽ मे असमर्थ छल, से काज परमेश्वर कऽ देलनि। ओ पापक प्रायश्चित्तक लेल अपने पुत्र केँ पठौलनि, जे पापी मनुष्यक समान मानव शरीर धारण कयलनि। एहि तरहेँ परमेश्वर मानव शरीर मे पाप केँ दण्डित कयलनि, 4 जाहि सँ अपना सभ मे, जे सभ मानवीय पाप-स्वभावक अनुसार नहि, बल्कि पवित्र आत्माक इच्छाक अनुसार आचरण करैत छी, धर्म-नियमक उचित माँग पूरा भऽ जाय। 5 कारण, मानवीय पाप-स्वभावक अनुसार चलनिहार लोक सभ ताहि बात सभ पर मोन लगबैत अछि जाहि बातक लेल पाप-स्वभाव इच्छा रखैत अछि, मुदा पवित्र आत्माक अनुसार चलनिहार लोक सभ ताहि बात सभ पर जे पवित्र आत्मा चाहैत छथि। 6 मानवीय पाप-स्वभावक इच्छा सभ पर मोन लगौनाइक परिणाम अछि मृत्यु, मुदा पवित्र आत्माक इच्छा पर मोन लगौनाइक परिणाम अछि जीवन आ शान्ति, 7 किएक तँ मानवीय पाप-स्वभावक सोच-विचार परमेश्वरक विरोधी अछि। मानवीय स्वभाव तँ परमेश्वरक नियमक अधीन नहि अछि आ ने ओकर अधीन भऽ सकैत अछि। 8 जे केओ मानवीय स्वभावक इच्छाक अनुसार आचरण करैत अछि, से परमेश्वर केँ प्रसन्न नहि कऽ सकैत अछि। 9 मुदा अहाँ सभ मानवीय स्वभावक अनुसार नहि, बल्कि परमेश्वरक आत्माक अनुसार जीबैत छी, किएक तँ अहाँ सभ मे परमेश्वरक आत्मा वास करैत छथि। और जँ ककरो मे मसीहक आत्मा वास नहि करैत छथि तँ ओ मसीहक नहि अछि। 10 मुदा जँ मसीह अहाँ सभ मे वास करैत छथि, तँ पापक कारणेँ अहाँ सभक शरीर मृत्युक अधीन मे होइतो, अहाँ सभ केँ धार्मिक ठहराओल जयबाक कारणेँ अहाँ सभक आत्मा जीवित अछि। 11 और जँ तिनकर आत्मा जे यीशु मसीह केँ मुइल सभ मे सँ जीवित कयलथिन, अहाँ सभ मे वास करैत छथि, तँ जे मसीह केँ मुइल सभ मे सँ जीवित कयलथिन से अपना आत्मा द्वारा, जिनकर वास अहाँ सभ मे अछि, अहाँ सभक नश्वर शरीर केँ सेहो जीवन प्रदान करताह। 12 एहि लेल यौ भाइ लोकनि, अपना सभ ऋणी छी, मुदा मानवीय पाप-स्वभावक नहि, जे ओकर इच्छाक अनुसार जीबी। 13 कारण, जँ अहाँ सभ मानवीय स्वभावक अनुरूप जीब तँ अवश्य मरब, मुदा जँ पवित्र आत्माक शक्ति द्वारा ताहि अधलाह काज सभक अन्त करब जे शरीर सँ कयल जाइत अछि तँ जीवन प्राप्त करब, 14 किएक तँ जे सभ परमेश्वरक आत्मा द्वारा संचालित कयल जाइत अछि, सैह सभ परमेश्वरक सन्तान अछि। 15 अहाँ सभ केँ जे आत्मा देल गेल छथि, से अहाँ सभ केँ फेर डेराय वला गुलाम नहि बनबैत छथि, बल्कि परमेश्वरक पुत्र बनौने छथि। ओहि आत्माक द्वारा अपना सभ हुनका पुकारि उठैत छियनि जे, “हे बाबूजी! हे पिता!” 16 पवित्र आत्मा स्वयं अपना सभक आत्मा केँ गवाही दैत छथि जे अपना सभ परमेश्वरक सन्तान छी। 17 जँ अपना सभ हुनकर सन्तान छी तँ उत्तराधिकारी सेहो छी—परमेश्वरक उत्तराधिकारी आ मसीहक संग सह-उत्तराधिकारी। कारण, जँ अपना सभ यीशु मसीहक संग दुःख सहब तँ हुनका संग महिमा मे सेहो सहभागी होयब। 18 हम ई मानैत छी जे, जे महिमा अपना सभ मे प्रगट होमऽ वला अछि तकरा तुलना मे वर्तमान समयक कष्ट किछु नहि अछि। 19 ई सृष्टि बहुत जिज्ञासाक संग ओहि समयक प्रतीक्षा कऽ रहल अछि जहिया परमेश्वरक सन्तान सभ केँ प्रगट कयल जायत। 20 ई सृष्टि तँ व्यर्थताक अधीन कऽ देल गेल, मुदा से अपन इच्छा सँ नहि, बल्कि हुनकर इच्छा सँ जे एकरा अधीन कऽ देलथिन, मुदा ई आशा बनल रहल जे, 21 एक दिन आओत जहिया सृष्टि सरनाइ आ मरनाइक बन्हन सँ मुक्त भऽ ओहि महिमामय स्वतन्त्रता मे सहभागी बनत जे परमेश्वरक सन्तान सभक होयतैक। 22 हम सभ जनैत छी जे सम्पूर्ण सृष्टि मिलि कऽ आइ तक ओहि प्रकारक कष्ट सँ कुहरैत आयल अछि जेना प्रसव-पीड़ाक कष्ट होइत अछि। 23 मात्र वैह नहि, बल्कि अपनो सभ, जकरा सभ केँ परमेश्वरक वचनक पूर्तिक पहिल भागक रूप मे पवित्र आत्मा भेटल छथि, भीतरे-भीतर कुहरैत छी और एहि बातक प्रतीक्षा करैत छी जे अपना सभ पूर्ण रूप सँ परमेश्वरक पोषपुत्र बनाओल जायब आ शरीर सरनाइ आ मरनाइक बन्हन सँ छुटकारा पाबि नव कयल जायत। 24 जहिया सँ अपना सभक उद्धार भेल, तहिया सँ अपना सभ मे ई आशा बनल रहल अछि। मुदा जँ अपना सभ ओहि वस्तु केँ प्राप्त कैए लेने छी जकर आशा रखैत छी, तँ ओकरा “आशा” नहि कहल जाइत अछि। जकरा कोनो वस्तु प्राप्त भऽ गेल छैक, से तकर आशा किएक करत? 25 मुदा अपना सभ ओहि वस्तुक आशा करैत छी जे देखैत नहि छी, आ तेँ धैर्यपूर्बक ओकर प्रतीक्षा करैत छी। 26 एही तरहेँ पवित्र आत्मा सेहो अपना सभक दुर्बलता मे सहायता करैत छथि, किएक तँ अपना सभ नहि जनैत छी जे अपना सभ केँ प्रार्थना कोन तरहेँ करबाक चाही, मुदा आत्मा अपने कुहरि-कुहरि कऽ अपना सभक लेल विनती करैत छथि, जकरा शब्द मे व्यक्त नहि कयल जा सकैत अछि। 27 और परमेश्वर, जे अपना सभक हृदयक भेद केँ जनैत छथि, से जनैत छथि जे आत्माक अभिप्राय की छनि, कारण, आत्मा परमेश्वरक इच्छाक अनुसार हुनकर लोक सभक लेल विनती करैत छथि। 28 अपना सभ जनैत छी जे परमेश्वर सँ प्रेम कयनिहार लोक, अर्थात् हुनका उद्देश्यक अनुरूप बजाओल गेल लोक सभक लेल प्रत्येक परिस्थिति मे परमेश्वर भलाइ उत्पन्न करैत छथि। 29 परमेश्वर अपना लोक केँ शुरुए सँ चिन्हैत छलाह, आ ओकरा सभक लेल ओ ई निश्चित कयलनि जे ओ सभ हुनकर पुत्रक समरूप बनय, जाहि सँ यीशु मसीह बहुतो भाय सभक जेठ भाय ठहरथि। 30 जकरा सभक लेल ओ ई निश्चित कयलनि जे ओ सभ हुनकर पुत्रक समरूप बनय, तकरा सभ केँ ओ बजौलनि सेहो, आ जकरा सभ केँ बजौलनि तकरा सभ केँ धार्मिक सेहो ठहरौलनि। जकरा सभ केँ ओ धार्मिक ठहरौलनि, तकरा सभ केँ ओ अपन महिमा मे सहभागी सेहो बनौलनि। 31 एहि बात सभक सम्बन्ध मे आब अपना सभ की कही? जँ परमेश्वर अपना सभक पक्ष मे छथि तँ अपना सभक विरोध मे के भऽ सकत? 32 परमेश्वर अपन निज पुत्र केँ जँ बँचा कऽ नहि रखलनि, बल्कि अपना सभ गोटेक लेल दऽ देलनि, तखन की ओ खुशी सँ अपना पुत्रक संग सभ किछु अपना सभ केँ नहि देताह? 33 परमेश्वरक चुनल लोक सभ पर के दोष लगाओत? परमेश्वर स्वयं अपना सभ केँ धार्मिक ठहरा रहल छथि, 34 तँ फेर अपना सभ केँ दण्डक आज्ञा के दऽ सकत? मसीह यीशु तँ स्वयं अपना सभक लेल मरलाह—एतबे नहि, ओ जिआओल सेहो गेलाह आ परमेश्वरक दहिना कात विराजमान भऽ अपना सभक पक्ष मे विनती करैत छथि। 35 अपना सभ केँ मसीहक प्रेम सँ के अलग कऽ सकैत अछि? की कष्ट, वा संकट, वा अत्याचार, वा अकाल, वा गरीबी, वा खतरा, वा तरुआरि? 36 जेना कि धर्मशास्त्र मे लिखल अछि, “अहाँक लेल दिन भरि हम सभ वध कयल जाइत छी। वध होमऽ वला भेँड़ा सभ जकाँ हम सभ मानल गेल छी।” 37 नहि! अपना सभ सँ जे प्रेम कयने छथि तिनका द्वारा अपना सभ एहि सभ बात मे पूर्ण विजय पबैत छी। 38 किएक तँ हमरा पूर्ण विश्वास अछि जे, ने मृत्यु आ ने जीवन, ने स्वर्गदूत आ ने नरकदूत, ने वर्तमान आ ने भविष्य, ने कोनो तरहक शक्ति, 39 ने आकाश आ ने पाताल, और ने सौंसे सृष्टि मे आरो कोनो वस्तु अपना सभ केँ परमेश्वरक ओहि प्रेम सँ अलग कऽ सकत जे ओ अपना सभक प्रभु, मसीह यीशु, द्वारा प्रगट कयलनि।
1 हम मसीहक उपस्थिति मे सत्य कहैत छी, हम झूठ नहि बजैत छी; हमर विवेक सेहो परमेश्वरक पवित्र आत्माक अधीन रहि कऽ एहि बातक गवाही दऽ रहल अछि जे, 2 हम अत्यन्त दुखी छी आ हमर हृदय अटूट वेदना सँ भरल रहैत अछि— 3 एतऽ तक जे हम एहू लेल तैयार छी जे, जँ एहि द्वारा हमर अपन सजाति वला भाइ-बन्धु सभ मसीह पर विश्वास कऽ उद्धार पबितथि, तँ हम अपने सरापित भऽ मसीह सँ अलग भऽ जइतहुँ। 4 ओ सभ इस्राएली छथि, हुनका सभ केँ परमेश्वर अपन पुत्र मानलथिन, अपन महिमाक दर्शन देलथिन, हुनका सभक संग विशेष सम्बन्ध स्थापित कयलनि। हुनका सभ केँ धर्म-नियम और परमेश्वरक सेवाक विधान देल गेलनि। हुनका सभ केँ परमेश्वर अनेको बातक विषय मे वचन देलनि। 5 ओ सभ महान् पूर्वजक सन्तान छथि, आ मसीह सेहो शारीरिक दृष्टिकोण सँ हुनके सभक वंशज छथि—यीशु मसीह जे सर्वोच्च परमेश्वर छथि। युग-युग तक हुनकर स्तुति होनि! आमीन। 6 मुदा इस्राएली सभक अविश्वासक अर्थ ई नहि, जे हुनका सभ केँ देल गेल परमेश्वरक वचन असफल भऽ गेल, किएक तँ ई बात नहि अछि जे इस्राएलक वंश मे जन्म लेनिहार सभ लोक इस्राएली अछि। 7 आ ने अब्राहमक वंशज होयबाक कारणेँ सभ हुनकर सन्तान मानल जाइत अछि। कारण, धर्मशास्त्र मे लिखल अछि जे परमेश्वर अब्राहम केँ कहने छलथिन जे, “इसहाके सँ उत्पन्न वंशज तोहर वंश मानल जयतह।” 8 एकर अर्थ ई भेल जे, अब्राहमक वंश मे जे सभ प्राकृतिक तरीका सँ जन्म लेलक, सैह सभ परमेश्वरक सन्तान नहि मानल जाइत अछि, बल्कि जे सभ परमेश्वरक देल वचनक अनुसार जन्म लेलक, वैह सभ वास्तविक वंशज मानल जाइत अछि। 9 किएक तँ वचनक शब्द ई छल, “हम निर्धारित समय पर फेर आयब आ तहिया सारा केँ एकटा बेटा होयत।” 10 एतबे नहि, बल्कि रिबका केँ सेहो, जिनकर दूनू बच्चाक पिता हमरा सभक पूर्वज इसहाक छलाह, तिनको एक वचन देल गेल छलनि। 11 जाहि समय मे हुनकर ओ दूनू जौंआ जन्मो नहि लेने छल, आ ने ओ सभ कोनो नीक वा अधलाह काज कयने छल, ताहि समय मे हुनका कहल गेलनि जे, “जेठ बेटा छोटकाक सेवा करत।” ई एहि लेल भेल जे परमेश्वरक निर्णयक उद्देश्य पूरा होनि, और से निर्णय मनुष्यक कर्म पर नहि, बल्कि बजौनिहारक स्वतन्त्र चुनाव पर निर्भर अछि। 13 तहिना एहि दूनू भायक सम्बन्ध मे धर्मशास्त्र मे परमेश्वरक ई कथन सेहो लिखल अछि जे, “हम याकूब सँ प्रेम कयलहुँ मुदा एसाव केँ तुच्छ बुझलहुँ।” 14 तँ एहि बात सभक सम्बन्ध मे अपना सभ की कही? की परमेश्वर अन्यायी छथि? एकदम नहि! 15 किएक तँ परमेश्वर मूसा केँ कहलथिन, “हम जकरा पर चाहब तकरा पर कृपा करब, आ जकरा पर चाहब तकरा पर दया करब।” 16 तेँ परमेश्वरक निर्णय मनुष्यक इच्छा वा ओकर परिश्रम पर नहि, बल्कि हुनकर अपन कृपा पर निर्भर अछि। 17 किएक तँ धर्मशास्त्र मे फरओ केँ कहल गेल बात लिखल अछि जे, “हम तोरा एहि लेल राजा नियुक्त कयने छिअह जे तोरा जीवन मे हम अपन सामर्थ्य देखाबी जाहि सँ हमर नामक प्रचार समस्त पृथ्वी पर कयल जाय।” 18 तेँ निष्कर्ष ई जे परमेश्वर जकरा पर कृपा करऽ चाहथि, तकरा पर कृपा करैत छथि, आ जकरा जिद्दी बनाबऽ चाहथि, तकरा जिद्दी बना दैत छथिन। 19 भऽ सकैत अछि जे अहाँ सभ मे सँ केओ हमरा कहब, “जँ एहन बात अछि तँ परमेश्वर हमरा सभ केँ दोषी किएक मानैत छथि? हुनकर इच्छाक विरोध के कऽ सकैत अछि?” 20 ऐ मनुष्य! अहाँ छी के जे परमेश्वर सँ मुँह लगबैत छी? की कोनो गढ़ल गेल वस्तु अपन गढ़ऽ वला सँ ई कहत जे, “अहाँ हमरा एहन किएक बनौलहुँ?” 21 की कुम्हार केँ ई अधिकार नहि अछि जे ओ माटिक एके थुम्मा सँ कोनो बर्तन विशेष काजक लेल बनाबय आ कोनो बर्तन साधारण काजक लेल? 22 जँ परमेश्वर अपन क्रोध देखयबाक और अपन सामर्थ्य प्रगट करबाक इच्छा रखितो कोप मे पड़ऽ वला ओहि लोक सभ केँ अधिक समय धरि सहन कयलनि जे सभ विनाशक लेल तैयार कयल गेल छल, तँ की, हुनकर से अधिकार नहि छलनि? 23 ओ एहि लेल एना कयलनि जे ओ जाहि लोक सभ पर दया कयने छथि तकरा सभ पर अपन महान् महिमा प्रगट करऽ चाहलनि। ओकरा सभ केँ आरम्भहि सँ ओ अपन महिमा पयबाक लेल तैयार कयने छलाह। 24 हुनकर ओ दया पौनिहार लोक अपना सभ छी जकरा सभ केँ ओ मात्र यहूदीए सभ मे सँ नहि, बल्कि आन जाति सभ मे सँ सेहो बजौने छथि। 25 जेना कि ओ धर्मशास्त्र मे होशेक किताब मे कहनहुँ छथि जे, “जे लोक हमर प्रजा नहि छल, 2 तकरा सभ केँ हम अपन प्रजा कहब, आ जे हमर प्रिय नहि छल, 2 तकरा हम ‘अपन प्रिय’ कहब।” 26 और, “जतऽ ओकरा सभ केँ ई कहल गेल छलैक, ‘तोँ सभ हमर प्रजा नहि छह,’ 2 ततऽ ओ सभ ‘जीवित परमेश्वरक सन्तान’ कहाओत।” 27 धर्मशास्त्र मे इहो लिखल अछि जे, इस्राएलक सम्बन्ध मे यशायाह घोषणा करैत छथि जे, “इस्राएलक सन्तानक संख्या समुद्रक बालु जकाँ असंख्य किएक ने होअय, तैयो ओकरा सभ मे सँ किछुए लोक बचाओल जायत। 28 किएक तँ प्रभु पृथ्वी पर अपन दण्ड-आज्ञाक वचन जल्दी आ पूर्ण रूप सँ पूरा करताह।” 29 जहिना परमेश्वरक प्रवक्ता यशायाह पहिने कहने छलाह, तहिना भयबो कयल जे, “जँ सर्वशक्तिमान प्रभु हमरा सभक लेल किछु वंशज केँ नहि छोड़ि देने रहितथि, तँ हम सभ सदोम आ गमोरा नगर जकाँ नष्ट भऽ गेल रहितहुँ।” 30 तँ ई सभ कहबाक अर्थ की अछि? ओकर अर्थ ई अछि जे, गैर-यहूदी सभ, जे सभ धार्मिकताक खोजो नहि करैत छल, से सभ ओकरा पौलक, अर्थात्, वैह धार्मिकता जे विश्वास सँ प्राप्त होइत अछि, 31 मुदा इस्राएली सभ, जे सभ धर्म-नियम पालन करबाक माध्यम सँ धार्मिकता पयबाक लेल प्रयत्नशील रहल, से सभ ओकरा प्राप्त नहि कऽ सकल। 32 किएक नहि कऽ सकल? तकर कारण ई जे, ओ सभ तकरा विश्वास द्वारा नहि, बल्कि कर्म द्वारा पयबाक कोशिश करैत छल। एहि तरहेँ “ठेस लागऽ वला पाथर” मे ओकरा सभ केँ ठेस लागिए गेलैक। 33 जेना कि धर्मशास्त्र मे लिखल अछि, “देखू, हम सियोन मे ओहन पाथर रखैत छी 2 जाहि मे लोक केँ ठेस लगतैक, ओहन चट्टान रखैत छी 2 जाहि पर लोक खसत। जे केओ हुनका पर भरोसा राखत 2 तकरा कहियो लज्जित नहि होमऽ पड़तैक।”
1 यौ भाइ लोकनि, हमर हार्दिक इच्छा आ परमेश्वर सँ प्रार्थना अछि जे इस्राएली सभ उद्धार पबथि। 2 हम हुनका सभक सम्बन्ध मे ई गवाही दऽ सकैत छी जे, हुनका सभ केँ परमेश्वरक प्रति जोस छनि, मुदा ई जोस सत्यक ज्ञान पर आधारित नहि छनि। 3 कारण, ओ सभ धार्मिक ठहरबाक ओहि माध्यम पर ध्यान नहि देलनि जे परमेश्वर स्थापित कयलनि, बल्कि अपन माध्यम स्थापित करबाक प्रयत्न कयलनि। एहि तरहेँ ओ सभ परमेश्वर द्वारा देल जाय वला धार्मिकताक अधीन भेनाइ अस्वीकार कयलनि। 4 मसीह धार्मिकता प्राप्त करबाक ओहि माध्यम केँ अन्त करैत छथि जे धर्म-नियम पर निर्भर रहैत अछि, जाहि सँ जे केओ विश्वास करैत अछि से धार्मिक ठहराओल जाय। 5 मूसा धर्म-नियम पर आधारित धार्मिकताक विषय मे ई लिखने छथि जे, “जे व्यक्ति धर्म-नियमक पालन करैत अछि से ओहि द्वारा जीवन पाओत।” 6 मुदा जे धार्मिकता विश्वास पर आधारित अछि, ताहि सम्बन्ध मे ई लिखल अछि, “अपना मोन मे ई नहि कहू जे, ‘स्वर्ग पर के चढ़त?’” अर्थात्, मसीह केँ नीचाँ लयबाक लेल। 7 “वा ‘पाताल मे के उतरत?’” अर्थात्, मुइल सभ मे सँ मसीह केँ जिआ कऽ ऊपर अनबाक लेल। 8 विश्वास पर आधारित धार्मिकताक सम्बन्ध मे यैह लिखल अछि जे, “वचन अहाँ सभक लगे मे अछि, ओ अहाँक मुँह मे आ अहाँक हृदय मे अछि,” अर्थात्, ई विश्वासक वचन, जकर हम सभ प्रचार करैत छी जे, 9 जँ अहाँ अपना मुँह सँ खुलि कऽ स्वीकार करी जे, “यीशु प्रभु छथि,” आ हृदय सँ विश्वास करी जे, “परमेश्वर हुनका मुइल सभ मे सँ जिऔलथिन” तँ अहाँ उद्धार पायब। 10 किएक तँ हृदय सँ विश्वास कऽ मनुष्य धार्मिक ठहरैत अछि; मुँह सँ स्वीकार कऽ उद्धार पबैत अछि। 11 धर्मशास्त्र सेहो कहैत अछि जे, “जे केओ हुनका पर भरोसा राखत, तकरा कहियो लज्जित नहि होमऽ पड़तैक।” 12 यहूदी आ आन जाति मे कोनो भेद नहि अछि—एके प्रभु सभक प्रभु छथि, आ जे सभ हुनका सँ प्रार्थना करैत अछि, ताहि सभ लोक पर ओ खुशीपूर्बक अपन आशिष बरसबैत छथि। 13 कारण, लिखल अछि, “जे केओ प्रभु सँ विनती करत तकर उद्धार होयतैक।” 14 मुदा लोक तिनका सँ विनती कोना करत जिनका पर विश्वास नहि कयने अछि? आ तिनका पर विश्वास कोना करत जिनका विषय मे सुनने नहि अछि? आ सुनत कोना जाबत धरि केओ हुनका सम्बन्ध मे प्रचार नहि करत? 15 और लोक प्रचार कोना करत जाबत धरि पठाओल नहि जायत? धर्मशास्त्र मे लिखल अछि जे, “खुस खबरी सुनौनिहारक पयरक आगमन कतेक सुखद अछि।” 16 मुदा सभ इस्राएली एहि शुभ समाचार केँ मानलनि नहि। जेना कि यशायाह कहैत छथि जे, “यौ प्रभु, हमरा सभक द्वारा सुनाओल गेल उपदेशक बात पर के विश्वास कयने अछि?” 17 एहि तरहेँ अपना सभ देखैत छी जे, सुनलाक बादे केओ विश्वास कऽ सकैत अछि, आ जे सुनबाक अछि, से अछि मसीहक वचन। 18 मुदा आब हम पुछैत छी जे, “की ओ सभ नहि सुनने छथि?” हँ, ओ सभ अवश्य सुनने छथि, जेना कि धर्मशास्त्र कहैत अछि जे, “सम्बाद सुनाबऽ वला सभक स्वर समस्त पृथ्वी पर पसरि गेल अछि आ हुनकर सभक वचन संसारक कोना-कोना मे पहुँचि गेल अछि।” 19 हम फेर पुछैत छी, “की इस्राएली सभ ओ शुभ समाचार नहि बुझि पौलनि?” हँ, अवश्य बुझलनि, कारण, पहिने मूसा कहलनि जे, प्रभु कहैत छथि— “जे सभ कोनो जातिए नहि अछि, तकरा सभक द्वारा हम तोरा सभ मे डाह उत्पन्न करबह, आ जाहि जातिक लोक सभ किछु बुझैत नहि अछि, तकरा सभक द्वारा हम तोरा सभ मे क्रोध उत्पन्न करबह।” 20 तखन यशायाह एकदम खुलि कऽ कहलनि जे, प्रभु कहैत छथि— “जे सभ हमरा तकैत नहि छल, से सभ हमरा पाबि लेलक, आ जे सभ हमरा सम्बन्ध मे पुछितो नहि छल, तकरा सभ पर हम अपना केँ प्रगट कऽ देलिऐक।” 21 मुदा इस्राएली सभक सम्बन्ध मे ओ ई कहैत छथि, “आज्ञा नहि मानऽ वला आ जिद्दी अपन प्रजा सभक दिस हम भरि दिन अपन बाँहि पसारने रहलहुँ।”
1 आब ई प्रश्न उठैत अछि जे, की परमेश्वर अपन प्रजा इस्राएली सभक परित्याग कऽ देने छथि? किन्नहुँ नहि! हम अपने इस्राएली छी, अब्राहमक वंशज आ बिन्यामीनक कुलक छी। 2 परमेश्वर अपन ओहि प्रजा केँ जकरा ओ शुरुए सँ चिन्हैत छलाह, परित्याग नहि कयने छथि। की अहाँ सभ नहि जनैत छी जे धर्मशास्त्रक ओहि भाग मे की लिखल अछि, जतऽ कहल गेल अछि जे एलियाह कोना परमेश्वर सँ इस्राएली सभक विरोध मे सिकायत कयलनि? ओ कहलनि, 3 “यौ प्रभु, ओ सभ अहाँक प्रवक्ता सभक हत्या कऽ देने अछि आ अहाँक बलि-वेदी सभ केँ नष्ट कऽ देने अछि। हम असगरे अहाँ केँ मानऽ वला बाँचि गेल छी आ ओ सभ हमरो प्राण लेबऽ चाहैत अछि।” 4 तँ परमेश्वर हुनका की उत्तर देलथिन? ई जे, “हम अपना लेल सात हजार लोक केँ बँचा कऽ रखने छी, जे सभ बाअल देवताक मुरुतक समक्ष दण्डवत नहि कयने अछि।” 5 ठीक एही प्रकारेँ वर्तमान समय मे सेहो परमेश्वर अपना प्रजा मे सँ अपना लेल एक छोट भाग बचा कऽ रखने छथि जकरा ओ अपना कृपा सँ चुनलनि। 6 और ई जँ परमेश्वरक कृपाक परिणाम अछि, तँ मनुष्यक कर्मक फल आब नहि भेल, नहि तँ परमेश्वरक कृपा कृपे नहि रहैत। 7 तँ एकर मतलब की भेल? ई जे, इस्राएली सभ जाहि बातक खोज मे छलाह, से हुनका सभ गोटे केँ नहि भेटलनि, मुदा तिनका सभ केँ भेटलनि जे सभ चुनल गेल छलाह। बाँकी लोक सभ जिद्दी बनि गेलैक, 8 जेना धर्मशास्त्र मे लिखलो अछि, “परमेश्वर ओकरा सभक मोन सुस्त बना देलथिन, एहन आँखि देलथिन जे देखि नहि सकैत छल आ एहन कान देलथिन जे सुनि नहि सकैत छल, और आइ धरि ओकरा सभक दशा एहने बनल छैक।” 9 तहिना दाऊद कहैत छथि जे, “ओकर सभक भोजन ओकरा सभक लेल जाल आ फाँस बनि जाइक, ओकरा सभक पतन आ दण्डक कारण बनैक। 10 ओकरा सभक आँखिक आगाँ अन्हार पसरि जाइक जाहि सँ ओ सभ देखि नहि सकय आ ओकरा सभक पीठ सभ दिनक लेल बोझ सँ झुकल रहैक।” 11 ई प्रश्न आब उठि सकैत अछि जे, की इस्राएली सभ एहन ठोकर खयलनि जे आब हुनका सभक लेल कोनो उपाये नहि अछि? किन्नहुँ नहि! बल्कि हुनका सभक अपराधक कारणेँ गैर-यहूदी लोक सभ केँ उद्धार भेटल अछि, जाहि सँ से देखि कऽ इस्राएलिओ सभ मे उद्धार पयबाक उत्सुकता जागि उठनि। 12 आब जखन इस्राएली सभक अपराध आ पतन सँ संसार केँ, अर्थात् आन जाति सभ केँ, एतेक लाभ भेलैक, तँ सोचू जे तखन कतेक लाभ होयत जखन ओ सभ इस्राएली, जतेक केँ परमेश्वर चुनने छथि, से अपन पूर्ण संख्या मे विश्वास कऽ कऽ मसीह लग आबि जयताह! 13 आब अहाँ सभ केँ, जे सभ गैर-यहूदी लोक छी, हम ई कहैत छी। हम तँ गैर-यहूदी लोक मे प्रचार करबाक लेल मसीह-दूतक रूप मे चुनल गेल छी, आ हम अपन एहि काज केँ विशेष महत्व दैत छी, 14 जाहि सँ अहाँ सभ केँ जे किछु भेटल अछि, से प्राप्त करबाक उत्सुकता हम अपन सजातिक लोक सभ मे उत्पन्न कऽ कोनो तरहेँ हुनका सभ मे सँ किछु लोक केँ बचा सकी। 15 किएक तँ जँ हुनका सभ केँ परित्यागक फलस्वरूप परमेश्वरक संग संसारक मेल-मिलाप भेल अछि तँ हुनका सभ केँ स्वीकारक परिणाम हुनका सभक लेल मरल स्थिति मे सँ जिआओल जयबाक बात छोड़ि आओर की होयत? 16 जँ सानल आँटाक ओ भाग पवित्र अछि जे “प्रथम फलक” रूप मे अर्पण कयल गेल, तँ सम्पूर्ण सानल आँटा पवित्र अछि। जँ गाछक जड़ि पवित्र अछि तँ गाछक ठाढ़ि सेहो पवित्र अछि। 17 मुदा जँ गाछक किछु ठाढ़ि काटि कऽ अलग कयल गेल अछि आ अहाँ सभ, जे सभ जंगली जैतूनक ठाढ़ि छी, से सभ ओहि नीक जैतून मे कलम लगाओल गेलहुँ आ ओकर जड़ि आ रस-भण्डार मे सहभागी भेलहुँ, 18 तँ ओहि काटल ठाढ़ि सभक सम्मुख अहंकार नहि करू। जँ अहाँ सभ अहंकार करी तँ मोन राखू जे जड़ि अहाँ सभ पर नहि, बल्कि अहाँ सभ जड़ि पर आश्रित छी। 19 आब अहाँ सभ कहब जे, “ठाढ़ि सभ केँ एहि लेल काटल गेल जे हमरा सभ केँ कलम लगाओल जाय।” 20 मानलहुँ। मुदा हुनका सभ केँ अविश्वासेक कारणेँ काटि कऽ अलग कयल गेलनि, आ अहाँ सभ विश्वासक कारण अपन स्थान पर स्थिर छी। तेँ अहंकार नहि करू, बल्कि भय मानू। 21 किएक तँ जखन परमेश्वर मूल ठाढ़ि केँ नहि छोड़लनि तँ ओ अहूँ सभ केँ नहि छोड़ताह। 22 तेँ परमेश्वरक दया आ कठोरता, दूनू पर ध्यान राखू—कठोरता तकरा सभ पर अछि जकरा सभक पतन भऽ गेल छैक, मुदा अहाँ सभक लेल हुनकर दया अछि, लेकिन से तखने जखन अहाँ सभ हुनकर दयाक शरण मे रहब; नहि तँ अहूँ सभ काटि कऽ अलग कऽ देल जायब। 23 एही तरहेँ जँ ओहो सभ अपन अविश्वास मे जिद्दी बनल नहि रहताह तँ हुनको सभ केँ कलम लगाओल जयतनि। किएक तँ परमेश्वर सामर्थ्यवान छथि जे हुनका सभ केँ फेर कलम लगा लेथि। 24 कारण, जखन अहाँ सभ जंगली जैतूनक गाछ सँ काटल जा कऽ प्रकृतिक विपरीत एक नीक गाछ मे कलम लगाओल गेलहुँ, तँ जे नीक जैतूनक असली ठाढ़ि अछि से किएक नहि अपन गाछ मे आसानी सँ कलम लगाओल जायत? 25 यौ भाइ लोकनि, कतौ एहन नहि होअय जे अहाँ सभ अपना केँ बहुत बुद्धिमान बुझी। तेँ हम अहाँ सभ केँ ई सत्य, जे पहिने गुप्त छल, से बुझाबऽ चाहैत छी जे, इस्राएलक अधिकांश लोक जे जिद्दी बनल अछि, से बात सभ दिन तक नहि रहत, बल्कि तहिये तक जहिया तक परमेश्वरक चुनल गैर-यहूदी लोकक पूर्ण संख्याक प्रवेश नहि भऽ जाइत अछि। 26 और एहि तरहेँ सम्पूर्ण इस्राएलक उद्धार होयत, जेना कि धर्मशास्त्र मे लिखल अछि, “सियोन सँ मुक्तिदाता औताह। ओ याकूबक वंश सँ अधर्म हटौताह। 27 प्रभु-परमेश्वर कहैत छथि जे, हम जखन ओकरा सभक पाप हरि लेब, तँ हम ओकरा सभ केँ देल अपन एहि वचन केँ पूरा करब।” 28 शुभ समाचार केँ अस्वीकार करबाक कारणेँ यहूदी सभ परमेश्वरक शत्रु ठहरि गेल छथि, जे अहाँ सभक लेल हितक बात भेल, मुदा परमेश्वर हुनका सभक पूर्वज लोकनि केँ चुनने छलाह, आ तेँ पूर्वज सभ केँ देल वचनक कारणेँ ओ सभ परमेश्वरक प्रिय प्रजा छथि। 29 कारण, परमेश्वर जखन ककरो बजयबाक वा किछु देबाक निर्णय करैत छथि तँ ओ अपन निर्णय बदलैत नहि छथि। 30 जहिना पहिने अहाँ सभ परमेश्वरक अनाज्ञाकारी छलहुँ मुदा आब यहूदी सभ केँ अनाज्ञाकारी होयबाक कारणेँ अहाँ सभ पर दया कयल गेल अछि, 31 तहिना यहूदी सभ एखन अनाज्ञाकारी छथि जाहि सँ ओहि दयाक कारणेँ जे अहाँ सभ पर कयल गेल, हुनको सभ पर आब दया कयल जानि। 32 किएक तँ परमेश्वर सभ केँ अनाज्ञाकारिताक बन्हन मे बान्हि लेने छथि जाहि सँ सभ पर ओ कृपा करथि। 33 अहा! परमेश्वरक वैभव, बुद्धि आ ज्ञान केहन अपरम्पार छनि! हुनकर निर्णयक गहिंराइ आ हुनकर काज करबाक तरीका 2 के बुझि सकैत अछि? 34 जेना कि धर्मशास्त्र मे लिखल अछि, “प्रभुक मोन के जनलक अछि? हुनकर सल्लाहकार के भऽ सकल अछि?” 35 “परमेश्वर केँ के कहियो किछु देने अछि जे ओ बदला मे किछु पयबाक दावा कऽ सकय?” 36 सभ किछु तँ हुनका सँ, हुनका द्वारा आ हुनका लेल अछि। हुनकर स्तुति युगानुयुग होइत रहनि! आमीन।
1 तेँ यौ भाइ लोकनि, हम अहाँ सभ सँ आग्रह करैत छी जे, परमेश्वरक अपार दयाक कारणेँ जे ओ अपना सभ पर कयने छथि, अहाँ सभ अपना शरीर केँ जीवित, पवित्र आ परमेश्वर द्वारा ग्रहणयोग्य बलिदानक रूप मे हुनका अर्पित करू। यैह भेल अहाँ सभक लेल परमेश्वरक असली आत्मिक आराधना कयनाइ। 2 अहाँ सभ एहि संसारक अनुरूप आचरण नहि करू, बल्कि परमेश्वर केँ अहाँक सोच-विचार केँ नव बनाबऽ दिऔन आ तहिना अहाँ केँ पूर्ण रूप सँ बदलि देबऽ दिऔन। एहि तरहेँ परमेश्वर अहाँ सभ सँ की चाहैत छथि, अर्थात् हुनका नजरि मे की नीक अछि, की ग्रहणयोग्य अछि आ की सर्वोत्तम अछि, तकरा अहाँ सभ अनुभव सँ जानि जायब। 3 हम ओहि वरदानक अधिकार सँ जे प्रभु अपना कृपा सँ हमरा देलनि, अहाँ सभ मे सँ प्रत्येक केँ ई कहैत छी जे, केओ अपना केँ जतेक बुझक चाही, ताहि सँ बेसी महत्वपूर्ण नहि बुझू, बल्कि परमेश्वर सँ देल गेल विश्वासक नाप सँ प्रत्येक व्यक्ति अपन सन्तुलित मूल्यांकन करू। 4 किएक तँ जहिना अपना सभ गोटे केँ एकटा शरीर अछि जाहि मे अनेक अंग होइत अछि आ सभ अंगक काज एक समान नहि होइत अछि, 5 तहिना अपनो सभ अनेक होइतो मसीह मे एके शरीर छी आ सभ अंग एक-दोसराक अछि। 6 अपना सभ पर कयल गेल कृपाक अनुसार अपना सभ केँ भेटल वरदान सेहो भिन्न-भिन्न अछि। जँ किनको परमेश्वर सँ सम्बाद पाबि सुनयबाक वरदान भेटल होनि तँ ओ अपना विश्वासक अनुरूप तकर ठीक-ठीक उपयोग करथु, 7 जँ सेवा करबाक तँ सेवाक काज मे लागल रहथु। जँ किनको शिक्षा देबाक वरदान भेटल होनि तँ शिक्षा देबाक काज मे लागल रहथु, 8 आ जँ दोसर केँ विश्वास मे उत्साहित करबाक वरदान भेटल होनि, तँ उत्साह दैत रहथु। दान देबऽ वला हृदय खोलि कऽ देथु। अगुआ सभ कर्मठ भऽ कऽ अगुआइ करथु, आ दया करऽ वला सभ खुशी मोन सँ उपकार करथु। 9 अहाँ सभक प्रेम निष्कपट होअय। जे किछु अधलाह अछि, ताहि सँ घृणा करू; जे किछु नीक अछि, ताहि सँ प्रेम करू। 10 एक-दोसर सँ भाय-बहिन वला प्रेम राखि एक-दोसराक लेल समर्पित रहू। आपस मे एक-दोसर केँ आदरक संग अपना सँ श्रेष्ठ मानू। 11 आलस नहि करू, बल्कि आत्मिक उत्साह सँ परिपूर्ण भऽ प्रभुक सेवा करैत रहू। 12 आशा राखि आनन्दित रहू, विपत्ति मे धैर्य राखू, प्रार्थना मे लागल रहू। 13 परमेश्वरक लोक सभ केँ जाहि बातक आवश्यकता होनि ताहि मे हुनकर सहायता करिऔन। अतिथि-सत्कार करऽ मे तत्पर रहू। 14 अहाँ सभ पर जे अत्याचार करय तकरा आशीर्वाद दिअ; हँ, आशीर्वाद दिअ, सराप नहि। 15 जे केओ आनन्दित अछि, तकरा संग आनन्द मनाउ, आ जे केओ शोकित अछि तकरा संग शोक। 16 आपस मे मेल-मिलापक भावना राखू। घमण्डी नहि बनू, बल्कि दीन-हीन सभक संगति करू। अपना केँ बड़का बुद्धिआर नहि बुझऽ लागू। 17 केओ जँ अहाँक संग अधलाह व्यवहार कयलक, तँ बदला मे अहाँ ओकरा संग अधलाह व्यवहार नहि करू। सभक नजरि मे जे बात उचित अछि, सैह करबाक चेष्टा करू। 18 जहाँ तक भऽ सकय, और जहाँ तक अहाँक वश मे होअय, सभ लोकक संग मेल सँ रहू। 19 प्रिय भाइ लोकनि, अहाँ सभ स्वयं ककरो सँ बदला नहि लिअ, बल्कि तकरा परमेश्वरक क्रोध पर छोड़ि दिअ, कारण, धर्मशास्त्र मे लिखल अछि जे, “प्रभु कहैत छथि जे, बदला लेबाक काज हमर अछि, हमहीं बदला लेब।” 20 बरु, जेना लिखल अछि, “जँ अहाँक शत्रु भूखल अछि तँ ओकरा भोजन करबिऔक, जँ पियासल अछि तँ ओकरा पानि पिअबिऔक। कारण, एहि प्रकारेँ अहाँक प्रेमपूर्ण व्यवहार सँ ओ लाजे गलि जायत।” 21 अहाँ सभ दुष्टता सँ हारि नहि मानू, बल्कि भलाइ द्वारा दुष्टता पर विजयी होउ।
1 प्रत्येक व्यक्ति शासन कयनिहार अधिकारी सभक अधीन रहओ। किएक तँ कोनो अधिकार एहन नहि अछि जे परमेश्वर द्वारा स्थापित नहि कयल गेल होअय—जे सभ शासन कऽ रहल छथि, तिनकर सभक अधिकार परमेश्वर सँ भेटल छनि। 2 एहि लेल, जे केओ शासनक विरोध करैत अछि से तकर विरोध करैत अछि जे परमेश्वर स्थापित कयने छथि, आ अपना पर दण्डक आज्ञा केँ बजबैत अछि। 3 कारण, अधिकारी सभ उचित काज कयनिहार सभक लेल नहि, बल्कि गलत काज कयनिहार सभक लेल भय उत्पन्न करैत छथि। की अहाँ अधिकारी सँ निर्भय रहऽ चाहैत छी? तखन उचित काज करैत रहू आ ओ अहाँक प्रशंसा करताह। 4 किएक तँ ओ अहाँक कल्याण करबाक लेल परमेश्वरक सेवक छथि। मुदा जँ अहाँ गलत काज करैत छी तँ हुनका सँ अवश्य भयभीत होउ, कारण, दण्ड देबाक अधिकार हुनका व्यर्थे नहि छनि। ओ परमेश्वरक सेवक छथि आ गलत काज कयनिहार लोक केँ परमेश्वरक इच्छाक अनुसार दण्ड दैत छथि। 5 तेँ अधिकारी सभक अधीन रहनाइ आवश्यक अछि—मात्र दण्ड सँ बचबाक लेल नहि, बल्कि अपना विवेकक समक्ष निर्दोष रहबाक लेल सेहो। 6 एही कारण सँ अहाँ सभ राजकर सेहो चुकबैत छी, किएक तँ अधिकारी सभ परमेश्वरक सेवक छथि आ अपन कर्तव्य पूरा करऽ मे लागल रहैत छथि। 7 अहाँ सभ सेहो सभक प्रति अपन कर्तव्य पूरा करू—जिनका राजकर देबाक अछि, तिनका राजकर दिऔन; जिनका सीमा-कर देबाक अछि, तिनका सीमा-कर दिऔन; जिनकर भय मानबाक अछि तिनकर भय मानू आ जिनकर आदर करबाक अछि तिनकर आदर करू। 8 एक-दोसराक लेल प्रेमक ऋण केँ छोड़ि अन्य कोनो बात मे ककरो ऋणी बनल नहि रहू, किएक तँ जे अपन पड़ोसी सँ प्रेम करैत अछि से पूरा धर्म-नियमक पालन कयने अछि। 9 कारण, “परस्त्रीगमन नहि करह, हत्या नहि करह, चोरी नहि करह, लोभ नहि करह,” आ एकर बादो आओर जे कोनो आज्ञा सभ अछि, तकर सभक सारांश एहि कथन मे पाओल जाइत अछि जे, “अपना पड़ोसी सँ अपने जकाँ प्रेम करह।” 10 प्रेम पड़ोसीक संग अन्याय नहि करैत अछि, तेँ प्रेम कयनाइ भेल धर्म-नियमक सम्पूर्ण बातक पालन कयनाइ। 11 अपना सभ कतेक महत्वपूर्ण समय मे रहि रहल छी, से बुझि, एहि बात सभ पर ध्यान दिअ। निन्न सँ जागि कऽ उठबाक समय आबि गेल अछि, कारण, अपना सभ जाहि समय मे विश्वास मे अयलहुँ, तकर अपेक्षा आब अपना सभक उद्धार पूर्ण होयबाक समय बेसी लग अछि। 12 राति समाप्त होमऽ-होमऽ पर अछि आ दिन होमऽ वला अछि। तेँ अपना सभ अन्हारक दुष्कर्म केँ त्यागि कऽ प्रकाशक अस्त्र केँ धारण करी। 13 अपना सभ उचित आचरण करी, जे दिनक समय मे शोभनीय होइत अछि। अपना सभ भोग-विलास आ नशेबाजी सँ, गलत शारीरिक सम्बन्ध आ निर्लज्जता सँ, झगड़ा आ ईर्ष्याक बात सभ सँ दूरे रही। 14 प्रभु यीशु मसीह केँ धारण करू, आ अपन पापी स्वभावक इच्छा सभ केँ तृप्त करबाक विचार छोड़ि दिअ।
1 जे व्यक्ति विश्वास मे कमजोर अछि, तकरा स्वीकार करू और व्यक्तिगत विचारधाराक कारण ओकरा सँ वाद-विवाद नहि करू। 2 केओ विश्वास करैत अछि जे सभ प्रकारक भोजन कयनाइ उचित अछि। दोसर, जकर विश्वास कमजोर अछि, से मात्र साग-पात खाइत अछि। 3 जे व्यक्ति सभ चीज खाइत अछि, से शाकाहारी केँ हेय दृष्टि सँ नहि देखय, आ ने शाकाहारी तकरा पर दोष लगाबय, जे सभ चीज खाइत अछि, कारण, परमेश्वर ओकरा स्वीकार कयने छथि। 4 अहाँ के छी जे दोसराक नोकर पर दोष लगबैत छी? ओ ठीक करैत अछि वा नहि, से ओकर अपन मालिक कहताह, आ ओ अवश्य ठीक ठहरत, कारण प्रभु ओकरा ठीक करबाक सामर्थ्य देथिन। 5 केओ एक दिन केँ दोसर दिन सँ नीक मानैत अछि आ दोसर व्यक्ति सभ दिन केँ बराबरि बुझैत अछि। एहन विषय सभक सम्बन्ध मे प्रत्येक व्यक्ति अपना मोन मे निश्चय करओ। 6 जे व्यक्ति कोनो दिन केँ विशेष मानैत अछि से ओकरा प्रभुक आदरक लेल विशेष मानैत अछि। जे माँसु खाइत अछि से प्रभुक आदरक लेल खाइत अछि, कारण, ओ तकरा लेल प्रभु केँ धन्यवाद दैत अछि। आ जे परहेज करैत अछि से प्रभुक आदरक लेल परहेज करैत अछि और ओहो प्रभु केँ धन्यवाद दैत अछि। 7 अपना सभ मे सँ केओ ने तँ अपना लेल जीबैत छी आ ने अपना लेल मरैत छी। 8 जँ जीवित रहैत छी तँ प्रभुक लेल आ जँ मरैत छी तँ प्रभुक लेल। तेँ अपना सभ जीबी वा मरी, प्रभुएक छी। 9 एही लेल मसीह मरलाह आ जीवित भऽ उठलाह जाहि सँ ओ मरल सभ आ जीवित सभ, दूनूक प्रभु होथि। 10 तखन अहाँ अपना भाय पर किएक दोष लगबैत छी? और एम्हर, अहाँ जे छी, अहाँ अपना भाय केँ हेय दृष्टि सँ किएक देखैत छी? कारण, अपना सभ गोटे केँ तँ परमेश्वरक न्याय-सिंहासनक सम्मुख ठाढ़ होयबाक अछि, 11 किएक तँ धर्मशास्त्र मे लिखल अछि जे, “प्रभु कहैत छथि जे, हमर जीवनक सपत प्रत्येक व्यक्ति हमरा समक्ष ठेहुनिया देत, आ प्रत्येक व्यक्ति अपना मुँह सँ स्वीकार करत जे हमहीं परमेश्वर छी।” 12 एहि सँ ई स्पष्ट अछि जे अपना सभ मे सँ प्रत्येक गोटे केँ अपन जीवनक लेखा परमेश्वर केँ देबऽ पड़त। 13 तेँ आब सँ अपना सभ एक-दोसर पर दोष लगौनाइ छोड़ि दी। निश्चय कऽ लिअ जे अपन भायक बाट पर रोड़ा नहि अटकायब वा जाल नहि ओछायब। 14 हम प्रभु यीशुक लोक होयबाक कारणेँ जनैत छी, हमरा एहि बातक पूर्ण निश्चय अछि, जे कोनो भोजन अपने मे अशुद्ध नहि अछि। मुदा जँ कोनो व्यक्ति ओकरा अशुद्ध मानैत अछि तँ ओ वस्तु ओकरा लेल अशुद्ध अछि। 15 अहाँ जे वस्तु खाइत छी ताहि कारणेँ जँ अहाँक भाय केँ चोट लगैत छैक तँ अहाँ अपना भायक संग प्रेमपूर्ण आचरण नहि कऽ रहल छी। ओहि भायक लेल मसीह अपन प्राण देलनि, तँ अहाँ अपन भोजन द्वारा ओकर विनाशक कारण नहि बनू। 16 जे बात अहाँ नीक मानैत छी तकरा निन्दाक विषय नहि बनऽ दिअ। 17 कारण, परमेश्वरक राज्य खयनाइ-पिनाइक बात नहि अछि, बल्कि परमेश्वरक पवित्र आत्मा सँ प्राप्त धार्मिकता, शान्ति आ आनन्दक बात अछि। 18 जे केओ एहि तरहेँ मसीहक सेवा करैत अछि, तकरा सँ परमेश्वर प्रसन्न रहैत छथिन आ ओकरा लोको सभ नीक मानैत छैक। 19 तेँ अपना सभ एही प्रयत्न मे रही जे ओहने बात सभ करी जाहि बात सभ सँ मेल-मिलापक वृद्धि होइत अछि आ जाहि द्वारा अपना सभ एक-दोसराक आत्मिक उन्नति कऽ सकब। 20 परमेश्वर जे काज कऽ रहल छथि तकरा भोजनक कारणेँ नहि बिगाड़ू। ई सत्य अछि जे सभ भोजन अपने मे शुद्ध अछि मुदा जँ कोनो वस्तु खयबाक कारणेँ दोसर व्यक्ति ओ खयबाक लेल प्रेरित भऽ जाइत अछि जे ओ गलत मानैत अछि, तँ खयनिहारक लेल ओ वस्तु खयनाइ गलत भऽ जाइत अछि। 21 जँ अहाँक माँसु-मदिराक सेवन सँ वा अहाँक आन कोनो काज कयनाइ अहाँक भायक लेल पाप करबाक कारण बनत, तँ उचित ई होयत जे अहाँ तकर परहेज करब। 22 एहि बात सभक सम्बन्ध मे अहाँक जे धारणा होअय, तकरा परमेश्वरक सम्मुख अपना धरि सीमित राखू। धन्य अछि ओ मनुष्य जे जाहि बात केँ ओ ठीक बुझैत अछि, ताहि कारणेँ अपना केँ दोषी नहि पबैत अछि। 23 मुदा जे व्यक्ति सन्देह कऽ कऽ खाइत अछि, से दोषी ठहरैत अछि, कारण, ओ विश्वास सँ नहि खाइत अछि; आ जे किछु एहि विश्वास सँ नहि कयल जाइत अछि जे ई ठीक अछि, से पाप अछि।
1 अपना सभ, जे सभ विश्वास मे मजगूत छी, अपना सभ केँ चाही जे, विश्वास मे कमजोर भाय सभक कमजोरी सभ मे धैर्य राखि कऽ मदति करी, नहि कि मात्र अपन खुशीक ध्यान राखी। 2 अपना सभ मे सँ प्रत्येक गोटे केँ अपना भायक कल्याणक लेल आ हुनका विश्वास मे मजगूत बनयबाक लेल हुनकर खुशीक ध्यान रखबाक चाही। 3 किएक तँ मसीह सेहो अपन खुशीक ध्यान नहि रखलनि। जेना धर्मशास्त्र मे लिखल अछि जे, “हे परमेश्वर, अहाँक निन्दा करऽ वला सभक निन्दा हमरा पर पड़ल।” 4 धर्मशास्त्र मे जतेक बात पहिने सँ लिखल गेल अछि से सभ अपना सभक शिक्षाक लेल लिखल गेल अछि, जाहि सँ अपना सभ ओहि धर्मशास्त्रक द्वारा धैर्य आ प्रोत्साहन पाबि अपन आशा केँ मजगूत राखि सकी। 5 धैर्य आ प्रोत्साहन देबऽ वला परमेश्वर अहाँ सभ केँ एहन वरदान देथि जे अहाँ सभ मसीह यीशुक शिक्षाक अनुसार आपस मे मेल-मिलापक भावना रखने रही, 6 जाहि सँ अहाँ सभ एक मोनक भऽ एक स्वर सँ अपना सभक प्रभु यीशु मसीहक परमेश्वर आ पिताक स्तुति करैत रहियनि। 7 जहिना मसीह अहाँ सभ केँ स्वीकार कयलनि, तहिना अहूँ सभ एक-दोसर केँ स्वीकार करू, जाहि सँ परमेश्वरक स्तुति होनि। 8 हम चाहैत छी जे अहाँ सभ मोन राखी जे मसीह यहूदी सभक सेवक एहि लेल बनलाह जाहि सँ ओ परमेश्वरक विश्वासयोग्यता केँ प्रमाणित करैत, यहूदी सभक पूर्वज सभ केँ जे वचन परमेश्वर देने छलाह, ताहि वचन सभ केँ पूरा करथि, 9 और जाहि सँ आन जातिक लोक सेहो परमेश्वरक कृपा पाबि कऽ हुनकर स्तुति करनि। जेना कि धर्मशास्त्र मे लिखल अछि जे, “एहि लेल गैर-यहूदी सभक बीच हम अहाँक प्रशंसा करब, आ अहाँक नामक स्तुति गायब।” 10 धर्मशास्त्र आगाँ कहैत अछि, “यौ अन्यजातिक लोक सभ, 2 परमेश्वरक प्रजाक संग आनन्द मनाउ।” 11 धर्मशास्त्र इहो कहैत अछि जे, “यौ सभ गैर-यहूदी लोक, 2 प्रभुक स्तुति करू, सभ जातिक लोक सभ, 2 प्रभुक प्रशंसा करिऔन!” 12 परमेश्वरक प्रवक्ता यशायाह कहैत छथि जे, “यिशयक वंश मे एक गोटे प्रगट होयताह; सभ जातिक लोक पर ओ शासन करताह, गैर-यहूदी लोक सभ हुनका पर आशा राखत।” 13 परमेश्वर, जे आशाक स्रोत छथि, अहाँ सभ केँ परमेश्वर परक भरोसाक कारणेँ अत्यन्त आनन्द आ शान्ति सँ भरि देथि, जाहि सँ पवित्र आत्माक सामर्थ्य सँ अहाँ सभक मोन आशा सँ भरल रहय। 14 यौ हमर भाइ लोकनि, हमरा दृढ़ विश्वास अछि जे अहाँ सभ सदभाव आ हर प्रकारक ज्ञान सँ परिपूर्ण भऽ एक-दोसर केँ परामर्श देबऽ मे समर्थ छी। 15 तैयो किछु बात सभक स्मरण करयबाक लेल हम अहाँ सभ केँ ओहि बात सभक विषय मे साफ-साफ लिखलहुँ। कारण, परमेश्वरक कृपा सँ हमरा एहि बातक वरदान भेटल अछि जे, 16 हम गैर-यहूदी सभक बीच मसीह यीशुक सेवक बनी आ परमेश्वरक शुभ समाचार सुनयबाक सेवा करी, जाहि सँ गैर-यहूदी सभ परमेश्वरक पवित्र आत्मा द्वारा पवित्र कयल जाय आ परमेश्वर केँ ग्रहणयोग्य चढ़ौना बनय। 17 एहि लेल हम परमेश्वरक जे सेवा कऽ रहल छी ताहि पर मसीह यीशु द्वारा हमरा गर्व अछि। 18 हम आन बातक विषय मे नहि बाजब—हम खाली ओही बात सभक चर्चा करबाक साहस करब जे मसीह गैर-यहूदी सभ केँ परमेश्वरक बात माननिहार बनयबाक लेल हमरा द्वारा की सभ कयने छथि, अर्थात्, हमर शब्द आ काजक माध्यम सँ, 19 चमत्कारपूर्ण चिन्ह सभक सामर्थ्य द्वारा आ पवित्र आत्माक सामर्थ्य द्वारा। एहि क्रम मे हम यरूशलेम आ ओकर लग-पासक प्रदेश सँ लऽ कऽ इल्लुरिकुम धरि मसीहक शुभ समाचार-प्रचार करबाक अपन काज पूरा कयलहुँ। 20 हमर मोनक आकांक्षा यैह रहल जे जतऽ मसीहक नाम नहि पहुँचल अछि ततऽ शुभ समाचार सुनाबी, जाहि सँ अनका न्यो पर हम घर नहि बनाबी। 21 बल्कि, जेना धर्मशास्त्र मे लिखल अछि, “जकरा सभ केँ हुनका सम्बन्ध मे कहियो नहि कहल गेल छलैक, से सभ देखत, जे सभ हुनका सम्बन्ध मे कहियो नहि सुनने छल, से सभ बुझत।” 22 एहि काज मे लागल रहबाक कारणेँ हमरा एखन तक अहाँ सभक ओतऽ पहुँचबाक कार्यक्रम मे बेर-बेर बाधा पड़ल। 23 मुदा आब एहि प्रान्त सभ मे हमर कोनो कार्यक्षेत्र बाँकी नहि रहल, आ हम कतेक वर्ष सँ अहाँ सभ सँ भेँट करबाक इच्छा रखने छी। 24 तेँ हमर आशा अछि जे स्पेन जाइत समय मे अहाँ सभक ओतऽ होइत जायब। हमरा आशा अछि जे हम ओहि यात्रा मे अहाँ सभ सँ भेँट कऽ सकब आ किछु समय धरि अहाँ सभक संगतिक आनन्द उठौलाक बाद अहाँ सभक सहायता सँ स्पेनक यात्रा मे आगाँ बढ़ि सकब। 25 मुदा एखन परमेश्वरक लोक केँ किछु सहायता पहुँचयबाक लेल हम यरूशलेम जा रहल छी। 26 कारण, मकिदुनिया आ अखाया प्रदेशक मण्डलीक लोक सभ यरूशलेमक मण्डलीक गरीब लोकक लेल किछु आर्थिक सहायता पठयबाक निश्चय कयने छथि। 27 ई सभ ई काज खुशी सँ कयलनि, आ वास्तव मे ई सभ हुनका सभक ऋणी सेहो छथि, कारण, जखन गैर-यहूदी सभ आत्मिक सम्पत्ति मे हुनका सभक हिस्सेदार भेलनि तखन ई उचिते अछि जे इहो सभ अपन आर्थिक सम्पत्ति द्वारा हुनका सभक सहायता करनि। 28 तेँ ई काज समाप्त भेला पर, अर्थात् ई दान सुरक्षित तरीका सँ यरूशलेमक मण्डलीक लोक सभक जिम्मा मे देलाक बाद, हम अहाँ सभक ओतऽ होइत स्पेन जायब। 29 हमरा विश्वास अछि जे जखन हम अहाँ सभक ओतऽ आयब तँ मसीहक आशिषक परिपूर्णताक संग आयब। 30 आब यौ भाइ लोकनि, अपना सभक प्रभु यीशु मसीहक नाम सँ आ पवित्र आत्माक प्रेमक आधार पर हम अहाँ सभ सँ विनती करैत छी जे हमरा लेल परमेश्वर सँ प्रार्थना कऽ कऽ हमरा संघर्ष मे अहाँ सभ संग दिअ। 31 परमेश्वर सँ ई प्रार्थना करू जे हम यहूदिया प्रदेशक अविश्वासी सभ सँ बाँचि सकी, और जे सहायता पहुँचयबाक लेल हम यरूशलेम जा रहल छी तकरा ओहिठामक परमेश्वरक लोक सभ खुशी सँ स्वीकार करथि। 32 एहि तरहेँ परमेश्वरक इच्छा जँ होयतनि तँ हम आनन्दपूर्बक अहाँ सभक ओतऽ आयब, आ अहाँ सभक संगति मे आराम करब। 33 शान्तिदाता परमेश्वर अहाँ सभ गोटेक संग रहथि। आमीन।
1 एहि पत्र द्वारा किंख्रिया शहरक मण्डली-सेविका, अपना सभक बहिन फीबेक परिचय दैत 2 हम अहाँ सभ सँ निवेदन करैत छी जे, जाहि तरहेँ परमेश्वरक लोक केँ एक-दोसराक स्वागत करबाक चाही तहिना अहाँ सभ प्रभु मे हुनकर स्वागत करिऔन, आ जँ हुनका कोनो बात मे अहाँ सभक सहायताक आवश्यकता होनि तँ अहाँ सभ हुनकर सहायता करिऔन, कारण, ओ बहुतो लोकक, आ हमरो, बड्ड सहायता कयने छथि। 3 मसीह यीशुक काज मे हमर सहकर्मी प्रिस्किला आ अक्विला केँ हमर नमस्कार। 4 ओ सभ हमर प्राण बचयबाक लेल अपन जीवन संकट मे कऽ लेने छलाह। मात्र हमहीं नहि, बल्कि गैर-यहूदी लोकक सभ मण्डली अपना केँ हुनका सभक आभारी मानैत छथि। 5 हुनका सभक घर मे जमा होमऽ वला मण्डली केँ सेहो नमस्कार। हमर प्रिय मित्र इपैनितुस केँ, जे आसिया प्रदेश मे पहिल व्यक्ति छथि जे मसीहक विश्वासी भेलाह, तिनका हमर नमस्कार कहिऔन। 6 मरियम केँ सेहो हमर नमस्कार अछि, जे अहाँ सभक लेल बहुत परिश्रम कयने छथि। 7 अन्द्रोनिकुस आ यूनियास, जे हमर जाति-भाय सभ छथि और हमरा संग जहल मे छलाह, तिनका सभ केँ हमर नमस्कार कहू। ई सभ मसीह-दूत सभ मे प्रतिष्ठित लोक छथि आ हमरा सँ पहिने मसीहक विश्वासी भेलाह। 8 अम्पलियातुस केँ, जे प्रभु मे हमर प्रिय मित्र छथि, तिनका हमर नमस्कार। 9 मसीहक काज मे अपना सभक सहकर्मी उरबानुस आ हमर प्रिय मित्र इस्तखुस केँ हमर नमस्कार कहू। 10 अपिलेस केँ, जे परीक्षा मे स्थिर रहि मसीहक दृष्टि मे सुयोग्य सेवक निकललाह, हमर नमस्कार। अरिस्तुबुलुस आ हुनकर परिवारक लोक केँ हमर नमस्कार। 11 हमर जाति-भाय हेरोदियोन केँ, आ नरकिस्सुसक परिवार मे जे सभ प्रभुक लोक छथि, तिनका सभ केँ हमर नमस्कार कहू। 12 प्रभुक सेवा मे परिश्रम करऽ वाली त्रुफेना आ त्रुफोसा केँ हमर नमस्कार। प्रिय बहिन परसिस केँ, जे प्रभुक सेवा मे बहुत परिश्रम कयने छथि, हुनका हमर नमस्कार कहू। 13 प्रभुक कृपापात्र रूफुस आ हुनकर माय केँ, जे हमरो माये छथि, तिनका सभ केँ हमर नमस्कार अछि। 14 असुंक्रितुस, फिलेगोन, हिरमेस, पत्रुबास, हिर्मास आ हुनका सभक संग जे आओर भाय सभ छथि, तिनका सभ केँ हमर नमस्कार कहू। 15 फिलोलोगुस आ यूलिया, नेरियुस आ हुनकर बहिन, उलुम्पास और प्रभुक आरो सभ लोक जे हुनका सभक संग छथि, तिनका सभ केँ हमर नमस्कार। 16 पवित्र मोन सँ एक-दोसर केँ सस्नेह नमस्कार करू। मसीहक सभ मण्डलीक लोक अहाँ सभ केँ नमस्कार कहैत छथि। 17 यौ भाइ लोकनि, हम अहाँ सभ सँ आग्रहपूर्बक विनती करैत छी जे अहाँ सभ ओहन लोक सभ सँ सावधान रहू जे सभ अहाँ सभ जे शिक्षा पौने छी तकरा विरुद्ध बात सिखा कऽ अहाँ सभ मे फूट करबैत अछि आ अहाँ सभक विश्वास केँ बिगाड़बाक कोशिश करैत अछि। अहाँ सभ ओहन लोक सभ सँ दूरे रहू। 18 ओ सभ अपना सभक प्रभु मसीहक सेवा नहि, बल्कि अपन पेटक पूजा करैत अछि। ओ सभ फुसलाबऽ वला मिठगर-मिठगर बात कऽ कऽ सोझगर लोक सभ केँ भटका दैत अछि। 19 अहाँ सभक आज्ञा-पालनक चर्चा सभ ठाम पसरि गेल अछि। तेँ अहाँ सभक कारणेँ हमरा बहुत आनन्द अछि। मुदा तैयो हम चाहैत छी जे अहाँ सभ नीक काज करऽ मे बुद्धिमान बनू आ अधलाह काज सभ सँ दूर रहू। 20 शान्तिदाता परमेश्वर बहुत जल्दी शैतान केँ अहाँ सभक पयरक तर मे थुरबौताह। अपना सभक प्रभु यीशुक कृपा अहाँ सभ पर बनल रहय। 21 हमर सहकर्मी तिमुथियुस, आ जाति-भाय सभ लूकियुस, यासोन आ सोसिपात्रस अहाँ सभ केँ नमस्कार कहि रहल छथि। 22 हम, तेरतियुस, जे एहि पत्र केँ लिखबाक काज कयलहुँ, अहाँ सभ केँ प्रभु मे नमस्कार कऽ रहल छी। 23 गयुसक दिस सँ नमस्कार जे एहिठामक सम्पूर्ण मण्डलीक और हमरो अतिथि-सत्कार कयनिहार छथि। एहि नगरक कोषाध्यक्ष इरास्तुस आ अपना सभक भाय क्वारतुस सेहो अहाँ सभ केँ अपन नमस्कार पठा रहल छथि। 24 [अपना सभक प्रभु यीशु मसीहक कृपा अहाँ सभ पर बनल रहय। आमीन।] 25 आब ओहि परमेश्वरक स्तुति होनि जे अहाँ सभ केँ यीशु मसीहक शुभ समाचार द्वारा, अर्थात् जे शुभ समाचार हम सुनबैत छी, ताहि शुभ समाचार द्वारा स्थिर राखऽ मे समर्थ छथि। ई शुभ समाचार ओहि रहस्यक उद्घाटन अछि जे युग-युग सँ गुप्त राखल गेल छल, 26 मुदा आब प्रगट भऽ गेल अछि। और आब युगानुयुग तक रहनिहार परमेश्वरक आदेशानुसार हुनकर प्रवक्ता सभक लेख सभक प्रचार द्वारा ई शुभ समाचार सुनाओल जा रहल अछि, जाहि सँ सभ जातिक लोक विश्वास कऽ हुनकर आज्ञाकारी बननि। 27 ओही एकमात्र ज्ञानमय परमेश्वरक स्तुति यीशु मसीहक द्वारा युगानुयुग होइत रहनि! आमीन।
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