James


1

1 परमेश्‍वरक आ प्रभु यीशु मसीहक सेवक याकूबक दिस सँ विश्‍व मे छिड़िया कऽ रहि रहल बारहो कुलक लोक केँ नमस्‍कार! 2 यौ हमर भाइ लोकनि, अहाँ सभ पर जखन अनेक प्रकारक आपत्ति-विपत्ति आबय तँ ओकरा महा आनन्‍दक बात बुझू। 3 कारण, अहाँ सभ जनैत छी जे अहाँ सभक विश्‍वासक जाँच भेला सँ धैर्य उत्‍पन्‍न होइत अछि। 4 मुदा धैर्य केँ ओकर अपन काज पूरा करऽ दिऔक, जाहि सँ अहाँ सभ आत्‍मिक रूप सँ बच्‍चा नहि रहि कऽ सभ तरहेँ पूर्ण भऽ जाइ आ अहाँ सभ मे कोनो बातक कमी नहि रहय। 5 जँ अहाँ सभ मे सँ किनको बुद्धिक अभाव होअय तँ परमेश्‍वर सँ माँगू। परमेश्‍वर अहाँ केँ बुद्धि देताह। कारण, ओ बिनु डँटने खुशी सँ सभ केँ दैत छथि। 6 मुदा जखन मँगैत छी, तँ विश्‍वासपूर्बक माँगू। शंका नहि राखू, कारण, शंका रखनिहार व्‍यक्‍ति समुद्रक हिलकोर जकाँ अछि जकरा हवा उठबैत आ खसबैत रहैत छैक। 7 एहन व्‍यक्‍ति ई आशा नहि राखय जे परमेश्‍वर सँ ओकरा किछु भेटतैक, 8 कारण, एहन मनुष्‍य दूमतिया अछि। सभ बात मे ओ अपन मोन आगाँ-पाछाँ करैत रहैत अछि। 9 दीन-दुखी विश्‍वासी भाय अपन वास्‍तविक ऊँच स्‍थान पर गर्व करथि। 10 मुदा धनवान अपन नीच स्‍थान पर गर्व करथि, किएक तँ ओ घासक फूल जकाँ समाप्‍त भऽ जयताह। 11 सूर्यक उदय होइते रौद बढ़ि जाइत अछि और घास केँ सुखा दैत छैक। ओकर फूल झरि जाइत अछि और ओकर सुन्‍दरता नष्‍ट भऽ जाइत छैक। तहिना धनवान मनुष्‍य सेहो धनक लेल परिश्रम करिते-करिते समाप्‍त भऽ जायत। 12 धन्‍य अछि ओ मनुष्‍य जे आपत्ति-विपत्ति केँ धैर्यपूर्बक सामना करैत अछि, किएक तँ परीक्षा मे स्‍थिर रहला पर ओकरा ओ जीवन-मुकुट भेटतैक जे परमेश्‍वर अपना सँ प्रेम करऽ वला सभ केँ देबाक वचन देने छथि। 13 प्रलोभन मे पड़ल कोनो व्‍यक्‍ति ई नहि कहय जे, “परमेश्‍वर हमरा प्रलोभन मे राखि देने छथि,” कारण, परमेश्‍वर अधलाह बात सभ सँ ने तँ स्‍वयं प्रलोभन मे पड़ि सकैत छथि आ ने अनका ककरो प्रलोभन मे रखैत छथि, 14 बल्‍कि जे प्रलोभन मे पड़ैत अछि से अपने खराब अभिलाषा सँ खिचल आ फँसाओल जाइत अछि। 15 तखन अभिलाषाक गर्भ सँ पापक जन्‍म होइत अछि और पाप बढ़ि कऽ मृत्‍यु केँ उत्‍पन्‍न करैत अछि। 16 यौ हमर प्रिय भाइ सभ, धोखा नहि खाउ। 17 प्रत्‍येक नीक आ उत्तम दान जे अछि, से ऊपर सँ अबैत अछि। सूर्य, चन्‍द्रमा आ तारा सभक रचनिहार, पिता, जे छाया जकाँ नहि बदलैत छथि, तिनके सँ ई दान सभ भेटैत अछि। 18 ओ अपना सभ केँ सत्‍य वचन द्वारा नव जन्‍म देबाक निर्णय कयलनि, जाहि सँ हुनकर समस्‍त सृष्‍टि मे अपना सभ हुनकर सभ सँ श्रेष्‍ठ रचना होइयनि । 19 यौ हमर प्रिय भाइ सभ, अहाँ सभ एहि बात केँ जानि राखू जे प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति केँ सुनबाक लेल तत्‍पर रहबाक चाही और बाजऽ आ क्रोध करऽ मे देरी करबाक चाही। 20 कारण, मनुष्‍यक क्रोध ओहि धार्मिक जीवन केँ उत्‍पन्‍न नहि करैत अछि जे परमेश्‍वर देखऽ चाहैत छथि। 21 तेँ सभ प्रकारक गन्‍दा आचार-व्‍यवहार आ सभ तरहक अधलाह बात केँ पूर्ण रूप मे अपना सँ दूर कऽ कऽ हृदय मे रोपल गेल परमेश्‍वरक ओहि वचन केँ नम्रतापूर्बक स्‍वीकार करू जे वचन अहाँ सभक उद्धार कऽ सकैत अछि। 22 अहाँ सभ वचनक पालन कयनिहार बनू, नहि कि मात्र सुननिहार। जँ सुननिहारे छी तँ अपना केँ धोखा दैत छी। 23 जे केओ वचन केँ सुनैत अछि मुदा तकर पालन नहि करैत अछि, से ओहन मनुष्‍य जकाँ अछि जे अपन मुँह अएना मे देखैत अछि, 24 तकरबाद चल जाइत अछि आ तुरत बिसरि जाइत अछि जे ओ छल केहन। 25 मुदा जे व्‍यक्‍ति परमेश्‍वरक ओ नियम जाहि मे कोनो त्रुटी नहि अछि और जे अपना सभ केँ स्‍वतन्‍त्र करैत अछि तकरा ध्‍यान सँ देखि ओहि मे बनल रहैत अछि, से व्‍यक्‍ति वचन सुनि कऽ बिसरऽ वला नहि, बल्‍कि तकर पालन करऽ वला बनैत अछि। एहन व्‍यक्‍ति अपन सभ काज मे आशिष पाओत। 26 जँ केओ अपना केँ धार्मिक बुझैत अछि मुदा अपन मुँह काबू मे नहि रखैत अछि तँ ओ अपना केँ धोखा दैत अछि और ओकर ओ धर्म बेकार छैक। 27 परमेश्‍वर पिताक दृष्‍टि मे शुद्ध आ असली धर्म यैह अछि—विपत्ति मे पड़ल अनाथ और विधवा सभक सहायता कयनाइ और अपना केँ संसारक अशुद्धता सँ बँचा कऽ रखनाइ।

James 2

1 यौ हमर भाइ लोकनि, जँ अपना सभक महिमामय प्रभु यीशु मसीह पर अहाँ सभक विश्‍वास अछि तँ ककरो संग पक्षपात नहि करू। 2 जँ अहाँ सभक आराधना सभा मे कोनो व्‍यक्‍ति सोनक औँठी आ किमती वस्‍त्र पहिरने आबय और एक गरीब व्‍यक्‍ति फाटल-पुरान वस्‍त्र पहिरने सेहो आबय, 3 और तखन अहाँ सभ ओहि किमती वस्‍त्र पहिरऽ वला पर विशेष ध्‍यान दैत कहिऐक जे, “अपने एहि नीक स्‍थान पर बैसल जाओ,” और ओहि गरीब केँ कहिऐक जे, “ओतऽ कात मे ठाढ़ भऽ जो,” वा “एतऽ हमरा पयर लग बैस,” 4 तँ की अहाँ सभ अपना बीच मे भेद-भावपूर्ण व्‍यवहार नहि कयलहुँ? की अहाँ सभ गलत विचारक अनुसार न्‍याय कयनिहार नहि ठहरलहुँ? 5 यौ हमर प्रिय भाइ सभ, सुनू! जे सभ संसारक दृष्‍टि सँ गरीब अछि, की तकरा सभ केँ परमेश्‍वर विश्‍वास मे धनिक होयबाक लेल आ ओहि राज्‍यक उत्तराधिकारी होयबाक लेल नहि चुनलथिन जे राज्‍य ओ अपन प्रेम कयनिहार सभ केँ देबाक वचन देने छथि? 6 मुदा अहाँ सभ तँ ओहि गरीब लोकक अपमान कऽ देलिऐक। की धनिके लोक सभ अहाँ सभक शोषण नहि करैत अछि, आ अहाँ सभ केँ अदालत मे घिसिअबैत नहि लऽ जाइत अछि? 7 वा, की यैह लोक सभ प्रभु यीशुक सर्वश्रेष्‍ठ नामक बदनामी नहि करैत अछि, जिनकर लोक अहाँ सभ छी? 8 धर्मशास्‍त्र कहैत अछि, “अपन पड़ोसी सँ अपने जकाँ प्रेम करह।” जँ अहाँ सभ वास्‍तव मे एहि राजकीय नियमक पालन करैत छी तँ ठीक करैत छी। 9 मुदा जँ अहाँ सभ पक्षपात करैत छी तँ पाप कऽ रहल छी आ धर्म-नियम अहाँ सभ केँ अपराधी ठहरबैत अछि। 10 कारण, जँ केओ सम्‍पूर्ण धर्म-नियमक पालन करैत अछि और एकोटा बात मे चुकि जाइत अछि तँ ओ धर्म-नियमक सभ बात मे दोषी ठहरैत अछि। 11 किएक तँ जे ई कहलनि, “परस्‍त्रीगमन नहि करह,” सैह इहो कहलनि जे, “हत्‍या नहि करह,” तेँ जँ अहाँ परस्‍त्रीगमन तँ नहि कयलहुँ मुदा हत्‍या कयलहुँ तँ अहाँ धर्म-नियमक उल्‍लंघन कयनिहार ठहरैत छी। 12 एहि लेल अहाँ सभक बात-चीत आ व्‍यवहार एहन लोक सभक जकाँ होअय जकर सभक न्‍याय ओहि नियमक अनुसार होयतैक जे स्‍वतन्‍त्र करैत अछि। 13 कारण, जे केओ दया नहि देखबैत अछि तकरो न्‍याय बिनु दये देखौने कयल जयतैक। दया न्‍याय पर विजयी होइत अछि। 14 यौ हमर भाइ लोकनि, केओ जँ कहैत अछि जे, “हम विश्‍वास करैत छी,” मुदा ओ ताहि अनुरूप काज नहि करैत अछि तँ ओहि सँ ओकरा लाभ की होयतैक? की एहन विश्‍वास ओकर उद्धार कऽ सकैत छैक? 15 जँ कोनो भाय वा कोनो बहिन केँ पहिरबाक लेल वस्‍त्र नहि छैक आ खयबाक लेल भोजनक वस्‍तु नहि छैक, 16 आ तकरा अहाँ सभ मे सँ केओ कहैत छिऐक जे, “कुशलपूर्बक जाउ, आराम सँ पहिरू-ओढू आ भरि पेट भोजन करू,” मुदा ओकरा जे शरीरक लेल आवश्‍यक छैक तकर पूर्ति जँ नहि करैत छिऐक तँ ओहि सँ लाभ की? 17 एहि तरहेँ विश्‍वास सेहो, जँ मात्र विश्‍वासे अछि आ तकरा संग काज नहि अछि तँ निर्जीव अछि। 18 मुदा एहन व्‍यक्‍ति केँ केओ कहि सकैत छैक जे, “अहाँ विश्‍वास करैत छी आ हम काज करैत छी; आब अहाँ अपन विश्‍वास बिनु काज सभक द्वारा देखाउ आ हम अपन काज सभक द्वारा देखायब जे हमरा विश्‍वासो अछि।” 19 अहाँक विश्‍वास अछि जे परमेश्‍वर एकेटा छथि। बड्ड बढ़ियाँ! दुष्‍टात्‍मा सभ सेहो यैह बात विश्‍वास करैत अछि आ थर-थर कँपैत अछि। 20 यौ मूर्ख, की अहाँ एहि बात केँ मानबाक लेल तैयार नहि छी जे बिनु काजक विश्‍वास बेकार अछि? 21 अपना सभक पूर्वज अब्राहम जहिया परमेश्‍वरक आज्ञा मानि अपन पुत्र इसहाक केँ परमेश्‍वर केँ चढ़यबाक लेल वेदी पर राखि देलनि, तहिया की ओ एहि काजेक द्वारा धार्मिक नहि ठहराओल गेलाह? 22 की देखाइ नहि दैत अछि जे विश्‍वास हुनका काज मे क्रियाशील छलनि आ काजेक द्वारा हुनकर विश्‍वास पूर्ण भेलनि? 23 और धर्मशास्‍त्रक ई लेख पूरा भेल जे, “अब्राहम परमेश्‍वरक बातक विश्‍वास कयलनि और ई विश्‍वास हुनका लेल धार्मिकता मानल गेलनि।” और ओ परमेश्‍वरक मित्र कहाओल गेलाह। 24 देखैत छी ने, मनुष्‍य मात्र विश्‍वासे सँ नहि, बल्‍कि काज सँ धार्मिक ठहराओल जाइत अछि। 25 तहिना की वेश्‍या राहाब सेहो अपन काजेक द्वारा धार्मिक नहि ठहराओल गेलि जखन ओ जासूस सभ केँ अपना घर मे सत्‍कारक संग रखलकैक आ दोसर बाट सँ पठा देलकैक? 26 तेँ जहिना शरीर आत्‍माक बिना निर्जीव अछि ठीक तहिना विश्‍वास सेहो काजक बिना निर्जीव अछि।

James 3

1 यौ हमर भाइ लोकनि, अहाँ सभ मे सँ बहुत केओ शिक्षक बनबाक लेल उत्‍सुक नहि होउ। अहाँ सभ ई बात निश्‍चय जानि लिअ जे, हम सभ जे शिक्षक छी, तकरा सभक न्‍याय आरो कठोरताक संग कयल जायत। 2 अपना सभ गोटे सँ कतेको बेर गलती होइत अछि। जँ केओ कहियो गलत बात नहि बजैत अछि, तँ ओ सिद्ध मनुष्‍य अछि आ ओ अपन सम्‍पूर्ण शरीर पर नियन्‍त्रण राखि सकैत अछि। 3 अपना सभ घोड़ा सभ केँ अपना वश मे करबाक लेल जँ ओकरा मुँह मे लगाम लगा दिऐक तँ ओकरा जेम्‍हर चाही तेम्‍हर घुमा-फिरा सकैत छी। 4 वा पानि जहाज केँ देखू—ओ कतेक पैघ होइत अछि और तेज हवाक बहाव सँ चलाओल जाइत अछि, तैयो एक छोट पतवार द्वारा नाविक ओकरा अपन इच्‍छाक अनुसार जेम्‍हर मोन होइत छैक तेम्‍हर मोड़ि लैत अछि। 5 तहिना जीह शरीरक एक छोटे अंग अछि, मुदा बात बहुत पैघ-पैघ बजैत घमण्‍ड करैत अछि। सोचू, नान्‍हिएटा आगिक लुत्ती कतेकटा वन मे आगि लगा दैत अछि। 6 जीह सेहो एक आगि अछि। अपना सभक शरीरक अंग सभ मे जीहे मे अधर्मक एक विशाल संसार भरल अछि। ई सम्‍पूर्ण शरीर केँ दुषित कऽ दैत अछि, आ नरकक आगि सँ पजरि कऽ अपना सभक सम्‍पूर्ण जीवनक गति मे आगि लगा दैत अछि। 7 सभ प्रकारक पशु-पक्षी, जमीन मे ससरऽ वला जीव-जन्‍तु, जल मे पाओल जाय वला जीव—सभ केँ मनुष्‍य द्वारा वश मे कयल जा सकैत अछि आ कयलो गेल अछि। 8 मुदा जीह केँ केओ वश मे नहि कऽ सकैत अछि। ई एक एहन अधलाह वस्‍तु अछि जे कखनो स्‍थिर नहि रहैत अछि। प्राण-घातक विष एकरा मे भरल छैक। 9 अपना सभ जीह द्वारा अपन प्रभु आ पिताक प्रशंसा करैत छियनि आ एही जीह द्वारा परमेश्‍वरक स्‍वरूप मे रचना कयल मनुष्‍य केँ सराप दैत छिऐक। 10 एके मुँह सँ प्रशंसा आ सराप दूनू निकलैत अछि। यौ हमर भाइ लोकनि, एना तँ होयबाक नहि चाही। 11 की पानिक झड़नाक एके मुँह सँ मिठाह पानि आ तिताह पानि, दूनू बहराइत अछि? 12 यौ हमर भाइ लोकनि, की अंजीरक गाछ पर जैतून फड़ि सकैत अछि वा अंगूरक लत्ती मे अंजीर? तहिना नूनियाह झड़नाक मुँह बाटे मिठाह पानि सेहो नहि बहरा सकैत अछि। 13 अहाँ सभ मे बुद्धिमान और ज्ञानी के छी? जे केओ एहन होइ से अपन नीक आचरण द्वारा और ओ विनम्रता जे बुद्धि सँ उत्‍पन्‍न होइत अछि ताहि विनम्रता सँ कयल अपन काज द्वारा अपन बुद्धि केँ प्रमाणित करू। 14 मुदा जँ अहाँ सभक हृदय कटुता, जरनि आ स्‍वार्थ सँ भरल होअय तँ अपन बुद्धि पर घमण्‍ड नहि करू। एना सत्‍य केँ झूठ सँ नहि झाँपू। 15 एहन “बुद्धि” ऊपर सँ नहि अबैत अछि, बल्‍कि संसार सँ, मानवीय स्‍वभाव सँ आ शैतान सँ अबैत अछि। 16 किएक तँ जतऽ डाह और स्‍वार्थ अछि ततऽ अशान्‍ति और सभ प्रकारक दुष्‍ट काज सभ होइत अछि। 17 मुदा जे बुद्धि ऊपर सँ अबैत अछि से सभ सँ पहिने पवित्र होइत अछि, तकरबाद ओ शान्‍तिप्रिय, नम्र, विचारशील, आ करुणा सँ भरल अछि आ नीक काज द्वारा प्रगट होइत अछि। ओहि मे कोनो पक्षपात वला बात वा छल-कपट नहि रहैत अछि। 18 शान्‍तिक बीया जे मेल-मिलाप करौनिहार व्‍यक्‍ति सभ बाउग करैत अछि, ताहि बीया सँ धार्मिक आचरण उपजैत अछि।

James 4

1 अहाँ सभक बीच होमऽ वला लड़ाइ-झगड़ा सभक कारण की अछि? की एकर कारण ओ भोग-विलासक अभिलाषा सभ नहि अछि जे अहाँ सभक भीतर मे संघर्ष करैत रहैत अछि? 2 अहाँ सभ कोनो बातक इच्‍छा करैत छी मुदा ओ पूरा नहि होइत अछि, तखन अहाँ सभ हत्‍या करैत छी। अहाँ सभ डाह करैत छी, मुदा अहाँ सभक लालसा पूरा नहि होइत अछि तँ लड़ैत-झगड़ैत छी। अहाँ सभ केँ एहि लेल नहि भेटैत अछि जे अहाँ सभ परमेश्‍वर सँ मँगैत नहि छियनि। 3 और जखन अहाँ सभ मँगितो छी तखन एहि लेल नहि भेटैत अछि जे अहाँ सभ गलत उद्देश्‍य सँ मँगैत छी जे, जे किछु भेटत तकरा द्वारा भोग-विलासक अभिलाषा सभ केँ तृप्‍त करी। 4 यौ बइमान लोक सभ, अहाँ सभ परमेश्‍वरक संग विश्‍वासघात कऽ रहल छी! की अहाँ सभ नहि जनैत छी जे संसार सँ दोस्‍ती कयनाइ परमेश्‍वर सँ दुश्‍मनी कयनाइ अछि? तेँ जे केओ संसारक दोस्‍त बनऽ चाहैत अछि से अपना केँ परमेश्‍वरक शत्रु बना लैत अछि। 5 वा की अहाँ सभक विचार मे धर्मशास्‍त्रक ई कथन निरर्थक अछि जे, परमेश्‍वर जाहि आत्‍मा केँ अपना सभ मे वास करौलनि तकरा ओ अपने लेल चाहैत छथि ? 6 नहि, ओ निरर्थक बात नहि अछि आ तेँ ओ प्रशस्‍त मात्रा मे कृपा कऽ कऽ अपना सभक सहायता करैत छथि। एहि कारणेँ धर्मशास्‍त्रक कथन अछि जे, “परमेश्‍वर घमण्‍डी सभक विरोध करैत छथि, 2 मुदा नम्र लोक सभ पर कृपा करैत छथि।” 7 तेँ अहाँ सभ परमेश्‍वरक अधीन होउ। शैतानक आक्रमण केँ सामना करिऔक तँ ओ अहाँ सभ लग सँ पड़ायत। 8 परमेश्‍वरक लग मे आउ तँ ओहो अहाँ सभक लग मे आबि जयताह। यौ पापी लोक सभ, अपन हाथ शुद्ध करू। यौ दूमतिया लोक सभ, अपन हृदय पवित्र करू। 9 शोक मनाउ, कानू आ विलाप करू। अपन हँसी केँ शोक मे आ अपन आनन्‍द केँ उदासी मे बदलि लिअ। 10 प्रभुक समक्ष विनम्र बनू और ओ अहाँ सभ केँ सम्‍मानित करताह। 11 यौ भाइ लोकनि, अहाँ सभ एक-दोसराक निन्‍दा नहि करू। जे केओ अपन भायक निन्‍दा करैत अछि वा अपना भाय पर दोष लगबैत अछि से धर्म-नियमक निन्‍दा करैत अछि और धर्म-नियम पर दोष लगबैत अछि। जँ अहाँ धर्म-नियम पर दोष लगबैत छी तँ अहाँ ओकर पालन कयनिहार नहि, बल्‍कि ओकर न्‍याय कयनिहार भऽ गेलहुँ। 12 धर्म-नियम देबऽ वला और न्‍याय करऽ वला तँ एकेटा छथि जिनका उद्धार करबाक अथवा नाश करबाक सामर्थ्‍य छनि। तखन फेर अहाँ के छी जे अपन पड़ोसीक न्‍याय करैत छी? 13 अहाँ सभ जे कहैत छी जे, “आइ वा काल्‍हि हम सभ फलना शहर जायब, ओतऽ एक वर्ष रहब आ व्‍यापार कऽ कऽ धन कमायब,” से सुनू हमर बात। 14 काल्‍हि की होयत से अहाँ सभ नहि जनैत छी। अहाँ सभक जीवन अछिए कतेक? अहाँ सभ मेघक धुइन छी जे कनेक काल देखाइ दैत अछि आ फेर लुप्‍त भऽ जाइत अछि। 15 अहाँ सभ केँ एकर बदला मे तँ ई कहबाक चाही जे, “जँ प्रभुक इच्‍छा होनि तँ हम सभ जीवित रहब आ ई वा ओ काज करब।” 16 मुदा ई केहन बात भेल जे अहाँ सभ अपन अहंकार सँ नियारल बात सभ पर घमण्‍ड करैत छी? एहन सभ घमण्‍ड कयनाइ अधलाह बात अछि। 17 एहि लेल, जे केओ ई जनैत अछि जे की कयनाइ उचित होइत मुदा करैत नहि अछि से पाप करैत अछि।

James 5

1 यौ धनिक लोक सभ, हमर बात सुनू। अहाँ सभ चिचिआ-चिचिआ कऽ विलाप करू किएक तँ अहाँ सभ पर विपत्ति सभ आबऽ वला अछि। 2 अहाँ सभक धन मे घून लागि गेल अछि, अहाँ सभक कपड़ा केँ कीड़ा खा लेने अछि। 3 अहाँ सभक सोन-चानी मे बीझ लागि गेल अछि। यैह बीझ अहाँ सभक विरोध मे गवाही देत और आगि जकाँ अहाँ सभक शरीर केँ खा जायत। युगक अन्‍तक समय अछि आ अहाँ सभ धनक ढेर लगा लेने छी। 4 देखू, जऽन-बोनिहार सभ अहाँ सभक खेतक फसिल कटलक आ अहाँ सभ ओकर बोनि नहि देलिऐक। ओ बोनि अहाँ सभक विरोध मे चिचिया रहल अछि और जऽन-बोनिहार सभक कानब सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वरक कान तक पहुँचि गेल अछि। 5 अहाँ सभ पृथ्‍वी पर सुख आ भोग-विलासक जीवन व्‍यतीत कयलहुँ और अपना केँ वध होयबाक दिनक लेल पोसि कऽ हृष्‍टपुष्‍ट कऽ लेने छी। 6 अहाँ सभ निर्दोष सभ केँ दोषी ठहरा-ठहरा कऽ मारि देलिऐक जखन कि ओ सभ अहाँ सभक कोनो विरोध नहि कयने छल। 7 एहि लेल यौ भाइ लोकनि, अहाँ सभ प्रभुक अयबाक समय धरि धैर्य राखू। देखू, गृहस्‍थ कोना जमीन सँ बहुमूल्‍य उपजनिक आशा मे पहिल और अन्‍तिम वर्षाक लेल धैर्य रखने रहैत अछि। 8 तहिना अहूँ सभ धैर्य राखू, हिम्‍मत नहि हारू, कारण, प्रभुक अयबाक समय लग आबि गेल अछि। 9 यौ भाइ लोकनि, अहाँ सभ एक-दोसर पर नहि कुड़बुड़ाउ जाहि सँ अहाँ सभ पर दोष नहि लगाओल जाय। देखू, न्‍याय कयनिहार घरक मुँहे पर ठाढ़ छथि! 10 यौ भाइ लोकनि, कष्‍टक समय मे धैर्य रखबाक उदाहरणक लेल परमेश्‍वरक प्रवक्‍ता सभ केँ देखू जे सभ परमेश्‍वरक नाम सँ बाजल छलाह। 11 स्‍मरण राखू जे, जे सभ कष्‍ट सहि कऽ स्‍थिर बनल रहलाह, तिनका सभ केँ अपना सभ धन्‍य कहैत छियनि। अहाँ सभ अय्‍यूबक धैर्यक बारे मे सुनने छी और अहाँ सभ केँ इहो बुझल अछि जे प्रभु अन्‍त मे हुनका लेल की कयलनि। प्रभु तँ बड्ड करुणामय आ दयालु छथि। 12 यौ भाइ लोकनि, सभ सँ पैघ बात ई जे अहाँ सभ सपत नहि खाउ, ने स्‍वर्गक नाम लऽ कऽ, ने पृथ्‍वीक आ ने कोनो आन वस्‍तुक, बल्‍कि अहाँ सभक “हँ” वास्‍तव मे “हँ” और “नहि” वास्‍तव मे “नहि” होअय, जाहि सँ अहाँ सभ दण्‍ड पयबा जोगरक नहि ठहरी। 13 की अहाँ सभ मे सँ केओ कष्‍ट मे अछि? तँ ओ प्रार्थना करओ। की केओ आनन्‍दित अछि? तँ ओ स्‍तुतिक गीत गाबओ। 14 की अहाँ सभ मे केओ बिमार अछि? तँ ओ मण्‍डलीक देख-रेख कयनिहार लोकनि केँ बजबनि और ओ सभ प्रभुक नाम सँ ओकरा पर तेल लगा कऽ ओकरा लेल प्रार्थना करथि। 15 विश्‍वासपूर्ण प्रार्थना बिमारी केँ स्‍वस्‍थ कऽ देतैक और प्रभु ओकरा ठीक कऽ देथिन। जँ ओ कोनो पाप कयने होअय तँ ओकर ओ पापो क्षमा कऽ देल जयतैक। 16 तेँ अहाँ सभ एक-दोसराक सम्‍मुख अपन-अपन पाप मानि लिअ और एक-दोसराक लेल प्रार्थना करू जाहि सँ अहाँ सभ स्‍वस्‍थ कयल जाइ। धार्मिक लोकक प्रार्थना सँ बहुत प्रभावशाली परिणाम होइत अछि। 17 एलियाह सेहो अपना सभ जकाँ मनुष्‍ये छलाह। ओ वर्षा नहि होयबाक लेल पूरा मोन सँ प्रार्थना कयलनि और साढ़े तीन वर्ष तक वर्षा नहि भेल। 18 तखन ओ फेर प्रार्थना कयलनि और आकाश सँ वर्षा भेल आ जमीन सँ फसिलक उपजनि भेल। 19 यौ भाइ लोकनि, जँ अहाँ सभ मे सँ केओ सत्‍यक बाट सँ भटकि जाय और केओ दोसर ओकरा घुमा कऽ लऽ अनैक, 20 तँ ओ ई जानि लओ जे, जे केओ एक पापी केँ ओकर कुमार्ग सँ घुमा अनैत अछि, से ओकरा नाश होमऽ सँ बचबैत अछि आ ओकर असंख्‍य पाप क्षमा भऽ जयबाक कारण बनैत अछि।



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