Hebrews11 प्राचीन काल मे परमेश्वर अपना सभक पूर्वज लोकनि सँ विभिन्न समय मे आ विभिन्न प्रकार सँ अपन प्रवक्ता सभ द्वारा बात कयलनि, 2 मुदा आब एहि अन्तिम समय मे ओ अपना सभ सँ बात कयने छथि अपन पुत्र द्वारा, जिनका ओ सभ वस्तुक उत्तराधिकारी बनौलनि आ जिनका द्वारा सम्पूर्ण सृष्टिक रचना सेहो कयलनि। 3 पुत्र परमेश्वरक महिमाक चमक छथि, आ परमेश्वरक व्यक्तित्वक प्रतिरूप छथि। ओ मनुष्य केँ शुद्ध करबाक लेल पापक प्रायश्चित्त कऽ कऽ स्वर्ग मे सर्वशक्तिमान परमेश्वरक दहिना कात बैसलाह। 4 पुत्र स्वर्गदूत सभक अपेक्षा जतेक श्रेष्ठ नाम परमेश्वर सँ पौलनि ततेक ओ स्वर्गदूत सभ सँ पैघो ठहराओल गेल छथि। 5 कारण, परमेश्वर स्वर्गदूत सभ मे सँ किनको कहियो कहाँ ई बात कहलथिन, “अहाँ हमर पुत्र छी, 2 आइ हम अहाँ केँ उत्पन्न कयलहुँ,” आ ई जे, “हम ओकर पिता होयबैक 2 आ ओ हमर पुत्र होयत” ? 6 फेर, परमेश्वर अपन प्रथम सन्तान केँ संसार मे अनबाक समय मे कहैत छथि, “परमेश्वरक सभ स्वर्गदूत हुनका दण्डवत करथुन।” 7 स्वर्गदूत सभक विषय मे परमेश्वर धर्मशास्त्र मे कहैत छथि, “परमेश्वर अपन स्वर्गदूत सभ केँ बसात, हँ, अपन सेवक सभ केँ आगिक धधरा बनबैत छथि।” 8 मुदा अपन पुत्र केँ ई कहैत छथि जे, “हे परमेश्वर, अहाँक सिंहासन युगानुयुग स्थिर रहत, 2 अहाँ अपन राज्य न्याय सँ चलायब। 9 अहाँ धार्मिकता सँ प्रेम आ अधर्म सँ घृणा करैत छी। 2 तेँ परमेश्वर, अहाँक परमेश्वर, हर्ष रूपी तेल सँ अहाँक अभिषेक करैत 2 अहाँ केँ अपना संगी-साथी सभ सँ श्रेष्ठ ठहरौने छथि।” 10 परमेश्वर इहो कहैत छथिन जे, “हे प्रभु, आरम्भ मे अहीं पृथ्वीक न्यो रखलहुँ 2 आ आकाश अहींक हाथक कारीगरी अछि। 11 ओ सभ नष्ट भऽ जायत मुदा अहाँ अटल छी। 2 ओ सभ वस्त्र जकाँ पुरान भऽ जायत। 12 अहाँ ओकरा सभ केँ चद्दरि जकाँ समटब, 2 ओ सभ वस्त्र जकाँ बदलल जायत। मुदा अहाँ एके समान रहब, 2 अहाँक उमेरक कोनो अन्त नहि अछि।” 13 मुदा परमेश्वर स्वर्गदूत सभ मे सँ किनको कहियो कहाँ ई बात कहलथिन जे, “अहाँ हमर दहिना कात बैसू, 2 आ हम अहाँक शत्रु सभ केँ अहाँक पयरक तर मे कऽ देब” ? 14 स्वर्गदूत सभ तखन की छथि? ओ सभ परमेश्वरक सेवा-टहल करऽ वला आत्मा सभ छथि। हुनका सभ केँ ओहि लोक सभक सेवाक लेल पठाओल जाइत छनि जे सभ उद्धार पयबाक उत्तराधिकारी बनैत अछि।
1 तेँ ई आवश्यक अछि जे जाहि बात केँ अपना सभ सुनने छी ताहि पर आरो विशेष ध्यान दी जाहि सँ एना नहि होअय जे अपना सभ भटकि जाइ। 2 कारण, जँ स्वर्गदूतो सभ द्वारा सुनाओल सम्बाद अटल रहल और प्रत्येक अपराधक लेल आ आज्ञा उल्लंघनक लेल जँ उचित दण्ड भेटलैक, 3 तँ आब अपना सभ जँ एहन उत्तम उद्धार केँ तुच्छ मानी तँ कोना बाँचि सकब? एहि उद्धारक सम्बन्ध मे सभ सँ पहिने प्रभु अपने सुनौलनि और तकरबाद जे सभ हुनका सँ सुनलनि से सभ अपना सभक लेल एकर पुष्टि कयलनि। 4 परमेश्वर सेहो प्रमाणित कयलनि जे ई बात सत्य अछि—ओ विभिन्न प्रकारक चिन्ह, चमत्कार आ सामर्थ्यक काज सभ करैत और अपन इच्छाक अनुरूप पवित्र आत्माक वरदान सभ बँटैत एहि उद्धार केँ सत्य ठहरौलनि। 5 परमेश्वर आबऽ वला संसार केँ, जकर चर्चा हम सभ कऽ रहल छी तकरा स्वर्गदूत सभक अधीन नहि कयलनि। 6 बल्कि धर्मशास्त्र मे केओ एहि विषय मे साक्षी दैत ई कहैत छथि जे, “मनुष्य अछि की जकर ध्यान अहाँ राखी? 2 मनुष्यक पुत्र की अछि जकर चिन्ता अहाँ करी? 7 अहाँ ओकरा स्वर्गदूत सभ सँ कनेक छोट बनौलहुँ 2 ओकरा महिमा आ आदरक मुकुट पहिरौलहुँ 8 और सभ किछु ओकर पयरक नीचाँ ओकरा अधीन मे कयलहुँ।” परमेश्वर सभ किछु ओकर अधीन मे करबाक मतलब भेल जे कोनो वस्तु ओकरा अधीन सँ बाहर नहि अछि। तैयो सभ किछु ओकरा अधीन मे, से बात अपना सभ एखन तक नहि देखैत छी। 9 मुदा अपना सभ यीशु केँ देखैत छी जे स्वर्गदूत सभ सँ कनेक छोट बनाओल गेल छलाह जाहि सँ ओ परमेश्वरक कृपा सँ प्रत्येक मनुष्यक लेल मृत्युक अनुभव करथि। आब हुनका महिमा आ आदरक मुकुट पहिराओल गेलनि, से अपना सभ देखैत छी, कारण, ओ सभक लेल मृत्यु केँ भोगलनि। 10 परमेश्वर, जिनका लेल आ जिनका द्वारा सभ वस्तुक रचना कयल गेल, तिनका ई उचित छलनि जे बहुतो पुत्र सभ केँ अपन महिमाक राज्य मे अनबाक लेल ओ यीशु केँ, जे ओकरा सभक उद्धारक बाट बनौनिहार छथि, कष्ट भोगबा कऽ पूर्ण बनबथि। 11 पाप सँ शुद्ध कयनिहार यीशु, आ पाप सँ शुद्ध भेनिहार लोक सभ, दूनूक पिता एके छथि, तेँ यीशु ओकरा सभ केँ अपन भाय कहि कऽ सम्बोधन करऽ मे लाज नहि मानैत छथि। 12 जेना कि यीशु परमेश्वर केँ कहैत छथिन, “हम अपना भाय सभ केँ अहाँक विषय मे सुनायब, 2 आराधना-सभा मे हम अहाँक गुणगान गायब।” 13 फेर ई, “हमहूँ हुनका पर भरोसा राखब।” आ इहो जे, “देखह, हम आ ओ बच्चा सभ, जकरा परमेश्वर हमरा देलनि अछि।” 14 जहिना “ओ बच्चा सभ” रक्त-मांसक होइत अछि तहिना यीशु सेहो मनुष्य बनलाह। ओ एहि लेल मनुष्य बनलाह जाहि सँ मृत्यु केँ भोगि कऽ ओ तकर शक्ति तोड़ि देथि, जकरा हाथ मे मृत्युक शक्ति छैक, अर्थात् शैतान, 15 आ तकरा सभ केँ मुक्त करथि जे सभ जीवन भरि मृत्युक डर सँ बन्हन मे पड़ल छल। 16 कारण, ई स्पष्ट अछि जे यीशु स्वर्गदूत सभक नहि, बल्कि अब्राहमक वंशज सभक सहायता करैत छथि। 17 तेँ ई आवश्यक छल जे सभ बात मे ओ अपन भाय सभक तुल्य बनथि जाहि सँ ओ परमेश्वरक सेवा मे दयावान आ विश्वासयोग्य महापुरोहित बनथि आ लोक सभक पापक प्रायश्चित्त कऽ सकथि। 18 यीशु स्वयं कष्ट भोगलनि जखन शैतान द्वारा हुनका सँ परीक्षा लेल गेलनि आ तेँ ओ आब ओकरा सभक सहायता कऽ सकैत छथि जे सभ परीक्षा मे पड़ल अछि।
1 तेँ यौ पवित्र भाइ लोकनि जे सभ परमेश्वरक बजाओल लोक मे सम्मिलित छी, अहाँ सभ अपन ध्यान यीशु पर केन्द्रित करू, जिनका अपना सभ परमेश्वरक विशिष्ट दूत आ अपना सभक महापुरोहितक रूप मे खुलि कऽ स्वीकार करैत छी। 2 जहिना मूसा परमेश्वरक घरक लोकक बीच सभ काज मे विश्वासयोग्य बनल रहलाह तहिना यीशु अपन नियुक्त कयनिहारक, अर्थात् परमेश्वरक, प्रति विश्वासयोग्य बनल रहलाह। 3 जहिना घर सँ घरक बनौनिहारे बेसी आदरणीय होइत अछि तहिना यीशु मूसा सँ अधिक आदर पयबाक योग्य ठहराओल गेल छथि। 4 प्रत्येक घर तँ ककरो ने ककरो द्वारा बनाओल जाइत अछि, मुदा सभ वस्तु केँ बनाबऽ वला परमेश्वरे छथि। 5 मूसा भविष्य मे सुनाओल जाय वला बातक साक्षी दऽ कऽ परमेश्वरक घरक लोकक बीच सभ काज मे सेवकक रूप मे विश्वासयोग्य छलाह। 6 मुदा मसीह तँ पुत्रक रूप मे परमेश्वरक घरक अधिकारी भऽ विश्वासयोग्य छथि। जँ अपना सभ अपन साहस मे आ ओहि आशा मे जे अपना सभक गौरव अछि, अन्त तक स्थिर रहब तँ अपना सभ स्वयं परमेश्वरक घरक लोक छी। 7 तेँ जहिना पवित्र आत्मा धर्मशास्त्र मे कहैत छथि तहिना, “आइ जँ तोँ सभ परमेश्वरक आवाज सुनबह, 8 तँ अपन मोन ओना जिद्दी नहि बनाबह जेना तोहर सभक पुरखा सभ विद्रोह करैत निर्जन क्षेत्र मे परीक्षाक समय मे कयलकह। 9 ओतऽ ओ सभ कसौटी पर हमर जाँच कयलक जखन कि चालिस वर्ष धरि हमर काज सभ देखने छल। 10 ताहि सँ हम ओहि पीढ़ीक लोक पर क्रोधित भऽ कहलहुँ, एकरा सभक मोन सदत भटकैत रहैत छैक, और ई सभ हमर विचार-व्यवहार बुझऽ नहि चाहलक। 11 तेँ हम क्रोध मे सपत खाइत कहलहुँ जे, ‘ई सभ हमर विश्राम मे कहियो नहि प्रवेश कऽ पाओत।’” 12 यौ भाइ लोकनि, सावधान रहू, कहीं एना नहि होअय जे अहाँ सभ मे सँ ककरो मोन एहन दुष्ट आ अविश्वासी भऽ जाय जाहि सँ ओ जीवित परमेश्वर केँ छोड़ि दय। 13 मुदा जाहि सँ अहाँ सभ मे सँ केओ पापक छल मे पड़ि कऽ जिद्दी नहि भऽ जाइ ताहि लेल अहाँ सभ जाबत धरि “आइ”क दिन कहबैत अछि ताबत धरि प्रत्येक दिन एक-दोसर केँ उत्साहित करैत रहू। 14 अपना सभ जँ अन्त तक ओ भरोसा जकरा संग शुरू मे शुभ समाचार पर विश्वास कयलहुँ ताहि मे अटल रही, तँ अपना सभ मसीहक संग सहभागी भऽ गेल छी। 15 जेना कि ऊपरो कहल गेल अछि जे, “आइ जँ तोँ सभ परमेश्वरक आवाज सुनबह तँ अपन मोन ओना जिद्दी नहि बनाबह जेना तोहर सभक पुरखा सभ विद्रोह करैत कयलकह।” 16 परमेश्वरक आवाज सुनि कऽ के सभ विद्रोह कयलक? की ओ सभ वैह लोक नहि छल जकरा सभ केँ मूसा मिस्र देश सँ बाहर निकाललनि? 17 परमेश्वर ककरा सभ सँ चालिस वर्ष धरि क्रोधित रहलथिन? की ओकरे सभ सँ नहि जे सभ पाप कयलक आ जकरा सभक लासक ढेरी निर्जन क्षेत्र मे लागि गेल? 18 परमेश्वर सपत खाइत ककरा सम्बन्ध मे कहलनि जे, ई सभ हमर विश्राम मे प्रवेश नहि करऽ पाओत? की तकरे सभक सम्बन्ध मे नहि जे सभ हुनकर आज्ञा नहि मानलकनि? 19 एहि तरहेँ अपना सभ देखैत छी जे ओ सभ अविश्वासक कारणेँ ओहि स्थान मे नहि पहुँचि सकल जतऽ ओकरा सभ केँ विश्राम भेटितैक।
1 परमेश्वर अपना विश्राम मे प्रवेश करयबाक वचन जे अपना लोक केँ देलनि, से एखनो कायम अछि। तेँ अपना सभ सावधान रही, कहीं एना नहि होअय जे अहाँ सभ मे सँ केओ एहि सँ वंचित भऽ जाइ, 2 कारण, जहिना ओकरा सभ केँ शुभ समाचार सुनाओल गेल छलैक तहिना अपनो सभ केँ सुनाओल गेल अछि, मुदा ओहि सुनाओल वचन सँ ओकरा सभ केँ कोनो लाभ नहि भेलैक, कारण, ओ सभ सुनि कऽ तकरा विश्वासक संग स्वीकार नहि कयलक। 3 आब अपना सभ विश्वास करबाक कारणेँ एहि विश्राम मे प्रवेश कयनिहार छी। अविश्वासी पूर्वज सभक सम्बन्ध मे परमेश्वर ई कहलनि, “तेँ हम क्रोध मे सपत खाइत कहलहुँ जे, 2 ई सभ हमर विश्राम मे कहियो नहि प्रवेश कऽ पाओत,” ओना तँ विश्रामक व्यवस्था कयल गेल छल, कारण, सृष्टिक रचनाक समय सँ हुनकर काज समाप्त भऽ गेल छनि। 4 जेना कतौ धर्मशास्त्र मे सातम दिनक विषय मे हुनकर ई कथन छनि जे, “परमेश्वर सातम दिन अपन समस्त काज सँ विश्राम कयलनि।” 5 और फेर, जेना ऊपर लिखल अछि, ओ कहैत छथि, “ई सभ हमर विश्राम मे कहियो नहि प्रवेश कऽ पाओत।” 6 जे सभ पहिने शुभ समाचार सुनने छल से सभ एहि विश्राम मे प्रवेश नहि कऽ सकल, कारण ओ सभ आज्ञा नहि मानलक। मुदा ई निश्चित अछि जे किछु लोक एहि विश्राम मे सहभागी होयबे करत। 7 तेँ परमेश्वर अपना विश्राम मे सहभागी होयबाक एक आओर समय निश्चित कयलनि, जकरा ओ “आइ” कहैत छथि, कारण ओ बहुत वर्ष बितला पर राजा दाऊद द्वारा ई कहैत छथि, जकर चर्चा ऊपरो कयल गेल अछि, “आइ जँ तोँ सभ परमेश्वरक आवाज सुनबह तँ अपन मोन जिद्दी नहि बनाबह।” 8 कारण, जँ यहोशू द्वारा ओकरा सभ केँ विश्राम भेटल रहितैक तँ परमेश्वर तकरा बाद फेर राजा दाऊद द्वारा दोसर दिनक चर्चा नहि कयने रहितथि। 9 तेँ परमेश्वरक प्रजाक लेल परमेश्वरक सातम दिनक विश्राम जकाँ एकटा विशेष विश्राम एखनो बाँकी अछि। 10 कारण, जे केओ परमेश्वरक विश्राम मे प्रवेश कऽ लेने अछि सेहो अपन सभ काज सँ विश्राम करैत अछि जेना परमेश्वर अपन सभ काज सँ कयलनि। 11 तेँ अपनो सभ ओहि विश्राम मे सहभागी होयबाक लेल प्रयत्नशील रही जाहि सँ एना नहि होअय जे ओकरे सभ जकाँ आज्ञा नहि मानबाक कारणेँ ककरो पतन भऽ जाइक। 12 कारण, परमेश्वरक वचन जीवित आ फलदायक अछि आ कोनो दूधारी तरुआरिओ सँ तेज अछि। ओ प्राण आ आत्मा, जोड़-जोड़ आ हड्डीक भीतरका गुद्दी मे छेदि कऽ ओकरा अलग-अलग कऽ दैत अछि और मोनक विचार आ भावनाक जाँच करैत अछि। 13 सम्पूर्ण सृष्टि मे कोनो वस्तु परमेश्वरक दृष्टि सँ नुकायल नहि अछि। जिनका लग अपना सभ केँ अपन लेखा-जोखा देबाक अछि तिनका दृष्टि मे सभ वस्तु खुलल अछि, किछु झाँपल नहि अछि। 14 अपना सभ केँ जखन एतेक पैघ महापुरोहित छथि, अर्थात् परमेश्वरक पुत्र यीशु, जे आकाश केँ पार कऽ स्वर्ग मे गेल छथि, तँ अबैत जाउ, आ जाहि विश्वास केँ खुलि कऽ स्वीकार करैत छी, तकरा दृढ़ता सँ पकड़ने रही। 15 किएक तँ अपना सभक महापुरोहित एहन नहि छथि जे अपना सभक कमजोरी मे अपना सभक संग सहानुभूति नहि राखि सकथि। ओहो सभ बात मे अपने सभ जकाँ शैतान द्वारा जाँचल गेलाह, मुदा ओ पाप नहि कयलनि। 16 तेँ अपना सभ निर्भयतापूर्बक परमेश्वरक सिंहासन लग, जतऽ कृपा कयल जाइत अछि, ततऽ चलू, जाहि सँ अपना सभ पर दया कयल जाय आ अपना सभ ओ कृपा पाबी जे अपना सभक आवश्यकताक समय मे सहायता करत।
1 प्रत्येक महापुरोहित मनुष्ये सभ मे सँ चुनल जाइत छथि और परमेश्वरक सामने मनुष्य सभक प्रतिनिधि होयबाक लेल नियुक्त कयल जाइत छथि जाहि सँ ओ चढ़ौना आ पापक लेल प्रायश्चित्तक बलि सभ चढ़बथि। 2 ओ अज्ञानी आ भुलल-भटकल लोक सभक संग नम्र व्यवहार कऽ सकैत छथि कारण, ओ स्वयं कमजोरी सभ मे ओझरायल छथि। 3 हुनका तँ लोके सभक लेल नहि, बल्कि अपनो पापक लेल बलि चढ़ाबऽ पड़ैत छनि। 4 महापुरोहितक गौरवपूर्ण पद केओ अपने सँ नहि लऽ सकैत अछि। परमेश्वर जिनका नियुक्त करथिन तिनके ई सम्मान देल जाइत अछि, जेना हारूनो केँ परमेश्वरे महापुरोहितक पद पर नियुक्त कयने छलथिन। 5 एही तरहेँ मसीह सेहो महापुरोहितक पदक सम्मान अपने सँ नहि लऽ लेलनि, बल्कि परमेश्वर जे हुनका ई कहलथिन, “अहाँ हमर पुत्र छी, 2 आइ हम अहाँ केँ उत्पन्न कयलहुँ,” से हुनका एहि पद पर रखलथिन। 6 तहिना ओ एक दोसर ठाम कहैत छथि, “जाहि व्यवस्थाक अनुसार मलकीसेदेक पुरोहित भेलाह, 2 ताही व्यवस्थाक अनुसार अहाँ पुरोहित भऽ अनन्त समयक लेल पुरोहित छी।” 7 जखन यीशु एहि पृथ्वी पर रहैत छलाह तँ ओ जोर-जोर सँ आ नोर बहा-बहा कऽ तिनका सँ प्रार्थना आ विनती कयलथिन जे हुनका मृत्यु सँ बचा सकैत छलथिन। हुनकर श्रद्धा-भक्तिक कारणेँ हुनकर प्रार्थना सुनल गेलनि। 8 पुत्र होइतो दुःख-कष्ट भोगि-भोगि कऽ ओ आज्ञा माननाइ सिखलनि। 9 ओ पूर्ण रूप सँ सिद्ध बनि ओहि सभ लोकक लेल अनन्त कालीन मुक्तिक स्रोत बनलाह जे सभ हुनकर आज्ञाक पालन करैत अछि। 10 और परमेश्वर हुनका मलकीसेदेकक अनुरूप महापुरोहितक पद पर नियुक्त कयलथिन। 11 हमरा सभ केँ एहि विषय मे बहुत किछु कहबाक अछि, मुदा तकरा बुझौनाइ कठिन अछि, कारण, बुझऽ मे अहाँ सभ सुस्त छी। 12 समयक अनुसार तँ होयबाक चाहैत छल जे अहाँ सभ गुरु भेल रहितहुँ, मुदा एखन आवश्यकता ई देखैत छी जे अहाँ सभ केँ फेर परमेश्वरक वचनक शिक्षा शुरुए सँ सिखाओल जाय। अहाँ सभक लेल ठोस भोजनक नहि, बल्कि दूधक आवश्यकता अछि। 13 जे दूधे पिबैत अछि तकरा धार्मिकताक शिक्षाक ज्ञान नहि छैक, कारण ओ बच्चे अछि। 14 मुदा ठोस भोजन अछि पैघ लोकक लेल, जे सभ बुद्धि लगबैत अभ्यास द्वारा नीक-अधलाह केँ चिन्हऽ मे निपुण भऽ गेल अछि।
1 तेँ अपना सभ बचपना वला बात छोड़ि मसीहक विषय मे जे शुरू वला शिक्षा अछि ताहि सँ आगाँ बढ़ि कऽ आब गहींर शिक्षा बुझनिहार बनी। अपना सभ आब मृत्युक दिस लऽ जाय वला कर्म सभक लेल पश्चात्ताप आ हृदय-परिवर्तन कयनाइ, परमेश्वर पर विश्वास कयनाइ, 2 बपतिस्मा सभक सम्बन्ध मे शिक्षा, माथ पर हाथ राखऽ वला विधि, मुइल सभक जीबि उठनाइ, और अन्तिम न्याय—ई सभ शुरू वला शिक्षा फेर नहि दोहराबी। 3 आ जँ परमेश्वर होमऽ देताह तँ अपना सभ एहि सँ आगाँ बढ़बे करब। 4 कारण, जे केओ एक बेर इजोत प्राप्त कयने अछि, स्वर्गीय वरदानक स्वाद पौने अछि, परमेश्वरक पवित्र आत्मा मे सहभागी बनल अछि, 5 परमेश्वरक वचन कतेक उत्तम और आबऽ वला राज्य कतेक सामर्थी अछि ताहि बात सभक अनुभव कयने अछि— 6 जँ एहन लोक अपन विश्वास छोड़ि दय तँ ओकरा फेर हृदय-परिवर्तनक बाट पर लौनाइ असम्भव अछि, किएक तँ एहन लोक अपने अहित करैत परमेश्वरक पुत्र केँ फेर क्रूस पर चढ़बैत अछि आ खुल्लमखुल्ला हुनकर अपमान करैत छनि। 7 जे जमीन बेर-बेर वर्षाक पानि सोखैत अछि आ जोताइ-बोआइ कयनिहार किसानक लेल नीक अन्नक उपजा दैत अछि से जमीन परमेश्वरक आशिष पबैत अछि। 8 मुदा जे जमीन काँट-कुश उपजबैत अछि से जमीन बेकार अछि। ओ सरापित होमऽ पर अछि और अन्त मे जराओल जायत। 9 यौ प्रिय मित्र लोकनि, हम सभ एहन बात सभ तँ कहलहुँ मुदा तैयो हमरा सभ केँ अहाँ सभक विषय मे एहि सँ नीक बात, अर्थात् उद्धार सँ मिलऽ वला बातक विश्वास अछि। 10 किएक तँ परमेश्वर अन्यायी नहि छथि जे ओ अहाँ सभक काज आ हुनका प्रति अहाँ सभक ओहि प्रेम केँ बिसरि जाथि, जे प्रेम अहाँ सभ हुनकर लोक सभक सेवा करैत देखौने छी, जे सेवा एखनो कऽ रहल छी। 11 हमरा सभक हार्दिक इच्छा अछि जे अहाँ सभ मे सँ प्रत्येक गोटे एहिना प्रयत्नशील रही जाहि सँ अहाँ सभ पूरा विश्वासक संग अन्त तक अपना आशा मे स्थिर रही। 12 आलसी नहि होउ, बल्कि ओहन लोक सभ जकाँ बनू जे सभ विश्वास आ धैर्य द्वारा ओहि बात सभक उत्तराधिकारी बनैत अछि जाहि बात सभक विषय मे परमेश्वर वचन देलनि। 13 अब्राहमक उदाहरण लिअ—परमेश्वर अब्राहम केँ वचन दैत समय मे अपने नाम लऽ कऽ सपत खयलनि, कारण, हुनका सँ पैघ केओ नहि छल जकर नाम लऽ कऽ ओ सपत खइतथि। 14 ओ कहलथिन, “निश्चय हम तोरा आशिष देबह। आ तोरा वंश केँ बहुत बढ़यबह।” 15 अब्राहम धैर्यपूर्बक प्रतीक्षा कयलनि आ ओ बात प्राप्त कयलनि जाहि सम्बन्ध मे परमेश्वर वचन देने छलाह। 16 लोक तँ अपना सँ पैघ आदमीक नाम लऽ कऽ सपत खाइत अछि। सपत द्वारा कोनो बात पकिया बनाओल जाइत अछि आ सभ विवाद समाप्त कयल जाइत अछि। 17 तेँ जखन परमेश्वर अपन वचनक उत्तराधिकारी सभक लेल ई बात आरो स्पष्ट करऽ चाहलनि जे हुनकर उद्देश्य बदलि नहि सकैत अछि तँ ओ सपतो खयलनि। 18 परमेश्वर दूटा अटल प्रमाण देलनि, वचन आ सपत, जाहि मे हुनका झुट्ठा भेनाइ असम्भव अछि। ओ ई एहि लेल कयलनि जाहि सँ अपना सभ केँ मजगूत प्रोत्साहन भेटय, अर्थात्, अपना सभ केँ जे सभ सामने मे राखल आशाक प्राप्ति करबाक लेल हुनका शरण मे दौड़ैत आयल छी। 19 जहिना एक लंगर नाव केँ पानि मे स्थिर रखैत अछि तहिना ई आशा अपना सभक आत्मा केँ सुरक्षित आ स्थिर रखैत अछि। ई आशा अपना सभ केँ “परदाक भीतर”, स्वर्गिक परमपवित्र स्थान मे लऽ जाइत अछि, 20 जतऽ यीशु अपना सभक लेल अपना सभ सँ पहिने प्रवेश कयने छथि। ओ मलकीसेदेकक अनुरूप अनन्त कालक लेल महापुरोहित बनि गेल छथि।
1 ई मलकीसेदेक शालेम नगरक राजा आ सर्वोच्च परमेश्वरक पुरोहित छलाह। अब्राहम जखन चारिटा राजा सभ केँ पराजित कऽ कऽ आबि रहल छलाह तखन मलकीसेदेक हुनका सँ भेँट कऽ आशीर्वाद देलथिन 2 और अब्राहम राजा सभ सँ जे धन-सम्पत्ति जिति कऽ अनने छलाह ताहि मे सँ दसम अंश मलकीसेदेक केँ देलथिन। मलकीसेदेकक नामक अर्थ अछि “धार्मिकताक राजा”। फेर, शालेमक अर्थ अछि “शान्ति”, तेँ शालेमक राजा होयबाक कारणेँ हुनकर नामक अर्थ “शान्तिक राजा” सेहो भेलनि। 3 मलकीसेदेकक माय-बाबू आ पूर्वज सभक सम्बन्ध मे किनको कोनो चर्चा नहि अछि आ ने हुनकर जन्म आ मृत्युक चर्चा अछि। ओ परमेश्वरक पुत्र जकाँ अनन्त कालक लेल पुरोहित छथि। 4 मलकीसेदेक कतेक पैघ छलाह ताहि पर ध्यान करू—अपना सभक कुल-पिता अब्राहमो जिति कऽ आनल सम्पत्ति मे सँ हुनका दसम अंश देलथिन। 5 लेवीक सन्तान सभ मे सँ जे सभ पुरोहित बनैत अछि तकरा सभ केँ इस्राएली समाजक लोक, अर्थात् अपना भाय-बन्धु सभ सँ दसम अंश लेबाक आज्ञा धर्म-नियम मे देल गेल छैक, जखन कि सभ अब्राहमेक वंशज अछि। 6 मुदा मलकीसेदेक जे लेवी वंशक नहि छलाह से स्वयं अब्राहम सँ दसम अंश लेलनि आ अब्राहम केँ, जिनका परमेश्वर अपन वचन देने छलाह, आशीर्वाद देलथिन। 7 ई निर्विवाद बात अछि जे आशीर्वाद देबऽ वला व्यक्ति आशीर्वाद पाबऽ वला व्यक्ति सँ पैघ होइत अछि। 8 एक दिस मरऽ वला मनुष्य, ⌞अर्थात् लेवी वंशज सभ,⌟ दसम अंश पबैत अछि, मुदा दोसर दिस वैह दसम अंश पौलनि जिनका सम्बन्ध मे साक्षी देल गेल अछि जे ओ जीवित छथि, ⌞अर्थात् मलकीसेदेक⌟। 9 एहि सँ इहो कहल जा सकैत अछि जे लेवी, जकर सन्तान सभ दसम अंश पबैत अछि सेहो अपन पूर्वज अब्राहमक माध्यम सँ दसम अंश देलक। 10 कारण मलकीसेदेक आ अब्राहमक भेँट जहिया भेलनि, लेवी तहिओ अपन पूर्वज अब्राहमक शरीर मे उपस्थित छल। 11 इस्राएली समाज केँ देल गेल धर्म-नियम तँ लेवीक कुलक पुरोहित वला व्यवस्था पर आधारित छल। तेँ ओहि पुरोहित वला व्यवस्था द्वारा जँ लोक परमेश्वरक नजरि मे धार्मिक ठहराओल जा सकैत छल, तँ अन्य प्रकारक पुरोहित अयबाक आवश्यकता किएक होइत जे लेवीक कुलक हारूनक अनुरूप नहि, बल्कि मलकीसेदेकक अनुरूप छथि? 12 जखन पुरोहित वला व्यवस्था बदलि जाइत अछि तखन ई आवश्यक अछि जे धर्म-नियम केँ सेहो बदलल जाय। 13 अपना सभक प्रभु, जिनका विषय मे ई बात सभ कहल गेल, से एक दोसर कुलक छथि जाहि मे सँ कहियो केओ पुरोहितक रूप मे बलि-वेदी लग सेवा नहि कयलक। 14 कारण, ई स्पष्ट अछि जे हुनकर जन्म यहूदाक कुल मे भेलनि और मूसा जखन पुरोहितक पदक विषय मे लिखैत छलाह तँ एहि कुलक कोनो चर्चा नहि कयलनि। 15 ई बात आरो स्पष्ट भऽ जाइत अछि जखन अपना सभ देखैत छी जे मलकीसेदेकक अनुरूप दोसर पुरोहित ठाढ़ भेलाह 16 जे कोनो वंश-क्रम पर आधारित नियमक अनुसार नहि, बल्कि अविनाशी जीवनक सामर्थ्यक आधार पर पुरोहित बनल छथि। 17 कारण, हुनका विषय मे यैह गवाही देल गेल अछि जे, “जाहि व्यवस्थाक अनुसार मलकीसेदेक पुरोहित भेलाह, 2 ताही व्यवस्थाक अनुसार अहाँ पुरोहित भऽ अनन्त समयक लेल पुरोहित छी।” 18 एहि तरहेँ पहिलुका नियम निर्बल आ अनुपयोगी होयबाक कारणेँ रद्द कऽ देल गेल, 19 कारण, ओहि धर्म-नियम द्वारा केओ धार्मिक नहि भऽ सकैत छल। और आब ओकरा बदला मे ओहि सँ नीक बात देल गेल अछि, अर्थात्, ओ आशा जकरा द्वारा अपना सभ परमेश्वर लग अबैत छी। 20 परमेश्वर बिनु सपत खा कऽ पुरोहितक पद यीशु केँ नहि देलनि। आन पुरोहित सभ बिनु सपतक नियुक्त कयल गेल। 21 मुदा यीशु सपतक संग पुरोहित बनाओल गेलाह जखन परमेश्वर हुनका कहलथिन, “प्रभु सपत खयने छथि आ अपना विचार सँ ओ फिरताह नहि—अहाँ अनन्त समयक लेल पुरोहित छी।” 22 एहि सपत द्वारा यीशु परमेश्वर आ लोकक बीच एक एहन नव सम्बन्धक जमानत भेल छथि जे पहिल सम्बन्ध सँ श्रेष्ठ अछि। 23 एतबे नहि, ओहि पुरोहित सभक संख्या विशेष भेल, कारण मृत्यु ओकरा सभ केँ स्थायी नहि रहऽ देलक। 24 मुदा यीशु सदाकालक लेल जीवित छथि आ तेँ हुनकर पुरोहितक पद स्थायी छनि। 25 निष्कर्ष ई जे, जे सभ यीशु द्वारा परमेश्वर लग अबैत अछि तकरा सभक पूरा-पूरा उद्धार करऽ मे यीशु सामर्थी छथि, कारण, ओ ओकरा सभक पक्ष सँ निवेदन करबाक लेल सर्वदा जीवित छथि। 26 एहि तरहेँ अपना सभ केँ जाहि प्रकारक महापुरोहितक आवश्यकता अछि, यीशु ठीक ओहने महापुरोहित छथि। ओ पवित्र, निर्दोष, निष्कलंक छथि, पापी सभ सँ अलग कयल और सर्वोच्च स्वर्ग मे प्रतिष्ठित कयल गेल छथि। 27 आन महापुरोहित सभ जकाँ हुनका प्रतिदिन पहिने अपना पापक लेल तखन फेर लोक सभक पापक लेल बलि चढ़ाबऽ नहि पड़ैत छनि। ओ अपने केँ बलि चढ़ा कऽ एके बेर मे सदाकालक लेल बलि चढ़ौलनि। 28 धर्म-नियम द्वारा महापुरोहित सभ मनुष्ये सभ मे सँ नियुक्त कयल जाइत अछि, और मनुष्य निर्बल अछि, मुदा ओ सपत जे धर्म-नियमक बाद खायल गेल, ताहि सपत द्वारा परमेश्वरक पुत्र नियुक्त कयल गेलाह आ ओ सदाकालक लेल सिद्ध बनाओल गेल छथि।
1 हमरा सभक कहबाक अर्थ ई अछि जे अपना सभक एहन महापुरोहित छथि जे स्वर्ग मे महान् परमेश्वरक सिंहासनक दहिना कात बैसलाह। 2 ओ ओहि पवित्र स्थान मे, अर्थात् वास्तविक मिलाप-मण्डप मे, सेवा करैत छथि जकरा मनुष्य नहि, बल्कि प्रभु ठाढ़ कयलनि। 3 प्रत्येक महापुरोहित एहि लेल नियुक्त कयल जाइत छथि जे ओ चढ़ौना आ बलिदान सभ चढ़बथि। तेँ ई आवश्यक छल जे अपनो सभक एहि महापुरोहित लग चढ़यबाक लेल किछु होनि। 4 जँ ओ पृथ्वी पर रहितथि तँ ओ पुरोहित होयबे नहि करितथि, कारण, धर्म-नियमक अनुसार चढ़ौना चढ़यबाक लेल पुरोहित सभ छथिए। 5 ओ सभ एहन पवित्र स्थान मे सेवा करैत छथि जे स्वर्ग मेहक पवित्र स्थानक प्रतिरूप आ छाया मात्र अछि। कारण, मूसा जखन मिलाप-मण्डप बनयबाक लेल तैयार छलाह तखन परमेश्वर हुनका आज्ञा देलथिन जे, “सावधान रहह, हम जे किछु तोरा पहाड़ पर देखौने छिअह तोँ ताही नमूनाक अनुसार सभ किछु बनबिहह।” 6 जे सेवा-काज ओ पुरोहित सभ करैत छथि, ताहि सँ यीशुक सेवा-काज अधिक श्रेष्ठ अछि, जहिना ई नव सम्बन्ध जे परमेश्वर यीशुक माध्यम सँ अपना लोकक संग स्थापित कयने छथि से पुरान वला सँ श्रेष्ठ अछि, और श्रेष्ठ बात सभक विषय मे देल गेल वचन पर आधारित अछि। 7 पहिल सम्बन्ध मे जँ कोनो त्रुटी नहि रहैत तँ नव सम्बन्ध स्थापित करबाक आवश्यकते की होइत? 8 मुदा परमेश्वर अपन लोक पर दोष लगबैत ई कहलनि, “प्रभु कहैत छथि जे, देखह, ओ समय आबि रहल अछि 2 जहिया हम इस्राएलक और यहूदाक वंश केँ 2 वचन दऽ कऽ ओकरा सभक संग एक नव सम्बन्ध स्थापित करब। 9 प्रभु कहैत छथि जे, ई ओहि सम्बन्ध जकाँ नहि होयत 2 जे हम ओकरा सभक पूर्वज सभक संग 2 ओहि समय मे स्थापित कयलहुँ 2 जहिया हम ओकरा सभ केँ मिस्र देश सँ 2 हाथ पकड़ि कऽ निकालि अनने छलहुँ। ओ सभ ओहि सम्बन्ध केँ नहि मानि कऽ 2 हमरा संग विश्वासघात कयलक। तेँ हम ओकरा सभ सँ मुँह घुमा लेलहुँ।” 10 प्रभु आगाँ कहैत छथि, “आबऽ वला समय मे इस्राएलक वंशक संग 2 हम वचन दऽ कऽ जे विशेष सम्बन्ध स्थापित करब से ई अछि— हम अपन नियम सभ ओकरा सभक मोन मे राखि देबैक 2 आ ओकरा सभक हृदय पर लिखि देबैक। हम ओकरा सभक परमेश्वर रहबैक 2 आ ओ सभ हमर लोक रहत। 11 तखन एकर आवश्यकता नहि रहत जे केओ अपना पड़ोसी केँ सिखाबय वा अपना भाय केँ कहय जे, ‘प्रभु केँ चिन्हू,’ 2 किएक तँ छोट सँ पैघ धरि सभ केओ हमरा चिन्हत। 12 हम ओकरा सभक अपराध क्षमा कऽ देबैक 2 और ओकरा सभक पापक स्मरण फेर कहियो नहि करब।” 13 परमेश्वर एहि सम्बन्ध केँ “नव” कहि कऽ पहिलुका स्थापित सम्बन्ध केँ पुरान ठहरौलनि। और जे पुरान अछि आ काजक नहि रहल से लुप्त होमऽ-होमऽ पर अछि।
1 पहिलुका सम्बन्ध जे परमेश्वर अपना लोकक संग स्थापित कयने छलाह ताहि मे आराधनाक विषय मे नियम सभ छल और आराधनाक लेल पृथ्वी पर एक पवित्र स्थानो छल। 2 एक मण्डप बनाओल गेल छल जकर पहिल भाग मे लाबनि, टेबुल, आ परमेश्वर केँ चढ़ाओल रोटी रहैत छल। ई भाग “पवित्र स्थान” कहबैत छल। 3 मण्डपक ओ भाग जे दोसर परदाक पाछाँ छल से “परमपवित्र स्थान” कहबैत छल। 4 ओहि भागक सामान ई सभ छल—सोनक वेदी जाहि पर धूप जराओल जाइत छल आ “सम्बन्धक साक्षीक सन्दूक” जाहि पर चारू भाग सोनक पत्तर चढ़ाओल गेल छल। एहि सन्दूक मे सोनक बर्तन जाहि मे “मन्ना” वला रोटी छल, हारूनक लाठी जाहि मे एक बेर पात निकलि गेल छल आ पाथरक दूनू “सम्बन्धक साक्षीक पाटी” जाहि पर परमेश्वर सँ देल गेल दस आज्ञा अंकित छल, ई सभ वस्तु रहैत छल। 5 सन्दूक पर दूटा एहन स्वर्गदूतक प्रतिमा छल जाहि स्वर्गदूत केँ “करूब” कहल जाइत छनि जे परमेश्वरक महिमामय उपस्थितिक प्रतीक छथि। ओहि प्रतिमा सभक पाँखि सन्दूकक झाँप जकरा “प्रायश्चित्तक आसन” कहल जाइत छल तकरा उपर फलकल रहैत छल। मुदा एहि सभ बातक विस्तार सँ चर्चा कयनाइ एखन सम्भव नहि अछि। 6 ई सभ वस्तु एहि तरहेँ अपन-अपन जगह पर राखल गेल छल। ओहि समय सँ पुरोहित सभ अपन सेवा-काज करबाक लेल मण्डपक पहिल भाग मे नियमित रूप सँ जाइत छलाह। 7 मुदा मण्डपक भीतरका भाग मे महापुरोहितेटा एसगरे आ सेहो साल मे एके बेर प्रवेश करैत छलाह आ ओहो बिनु खून लऽ कऽ नहि जाइत छलाह जकरा ओ अपना लेल आ लोकक अनजान मे कयल गेल पापक प्रायश्चित्तक लेल चढ़बैत छलाह। 8 एहि सँ परमेश्वरक पवित्र आत्मा ई देखबैत छलाह जे जाबत तक मण्डपक पहिल भागक व्यवस्था कायम छल ताबत तक परमपवित्र स्थानक मार्ग नहि खुजि गेल छल। 9 ई एखुनका समयक लेल एकटा दृष्टान्त अछि जे स्पष्ट देखबैत अछि जे ई चढ़ौना आ पशु-बलि सभ जे चढ़ाओल जाइत अछि से आराधना कयनिहारक विवेकक दोष नहि हटा सकैत अछि। 10 कारण, ई सभ खयनाइ-पिनाइ और नहयनाइ-धोनाइक विभिन्न विधि सभ सँ सम्बन्धित मात्र शारीरिक नियम सभ अछि जे तहिये तक लागू छल जहिया तक परमेश्वर नव व्यवस्था स्थापित नहि करथि। 11 मुदा मसीह आबऽ वला नीक बात सभक महापुरोहित भऽ कऽ जहिया प्रगट भेलाह तहिया ओ एक एहन मण्डप दऽ कऽ गेलाह जे पुरनका सँ नीक आ पूर्ण अछि आ जे मनुष्यक बनाओल नहि अछि, अर्थात् एहि सृष्टिक नहि अछि। 12 एहि मण्डप बाटे जा कऽ ओ परमपवित्र स्थान मे प्रवेश कयलनि। ओ प्रवेश कयलनि छागर आ बाछाक खून लऽ कऽ नहि, बल्कि अपन खून लऽ कऽ। ओ अपना सभक लेल अनन्त कालीन छुटकारा प्राप्त कऽ सदाक लेल एके बेर प्रवेश कयलनि। 13 पुरान व्यवस्थाक अनुसार छागर आ साँढ़क खून आ जराओल बाछीक छाउर छिटला सँ अशुद्ध भेल आदमी शारीरिक रूप सँ शुद्ध भऽ जाइत छल। 14 जखन ओ बात अछि, तँ ओहि सँ कतेक बढ़ि कऽ मसीह, जे सनातन पवित्र आत्माक माध्यम सँ अपना केँ निष्कलंक बलिक रूप मे परमेश्वर केँ अर्पित कयलनि, तिनकर खून अपना सभक मोन केँ किएक नहि शुद्ध करत जाहि सँ मृत्यु मे लऽ जाय वला कर्म सभ सँ मुक्त भऽ कऽ अपना सभ जीवित परमेश्वरक सेवा करी! 15 एहि प्रकारेँ मसीह आब परमेश्वर आ हुनकर लोकक बीच एक नव सम्बन्ध स्थापित करैत छथि, जाहि सँ परमेश्वर द्वारा बजाओल गेल लोक सभ परमेश्वरक देल वचनक अनुसार अनन्त काल तक रहऽ वला बातक उत्तराधिकारी बनय। ई एहि आधार पर भेल जे पहिल सम्बन्धक समय मे कयल गेल लोकक अपराध सभक दण्ड भोगि कऽ मसीह ओकरा सभक छुटकाराक मूल्य मे अपन जान देलनि। 16 मृत्युक बाद अपन सम्पत्ति कोना बाँटल जाय से स्पष्ट करबाक लेल कतेक लोक वसीयतनामा लिखैत अछि। वसीयतनामा मे लिखल बात लागू करबाक लेल वसीयतनामा लिखऽ वला आदमीक मृत्यु प्रमाणित करब जरूरी अछि। 17 कारण, ओकर मृत्युक बादे, वसीयतनामा मान्य होइत छैक। जाबत तक वसीयतनामा लिखऽ वला जीवित अछि ताबत तक ओ लागू नहि होइत अछि। 18 तेँ परमेश्वर आ हुनकर लोकक बीच जे पहिलुका सम्बन्ध छल, सेहो बिनु खून बहौने स्थापित नहि भेल। 19 जखन मूसा सभ लोक केँ धर्म-नियमक सभ आज्ञा सुना चुकलाह तखन ओ एक जूफा गाछक झाड़ू आ लाल ऊन लऽ कऽ बाछा आ छागर सभक खून पानिक संग मिला कऽ धर्म-नियमक ग्रन्थ आ लोक सभ पर छिटि देलनि। 20 एना करैत ओ कहलथिन, “एहि खून द्वारा परमेश्वर अहाँ सभक संग विशेष सम्बन्ध स्थापित करैत छथि जाहि सम्बन्धक नियम सभ मानबाक आज्ञा देने छथि।” 21 एहि तरहेँ मूसा मिलाप-मण्डप आ ओहि मे धार्मिक विधिक लेल प्रयोग होमऽ वला सभ सामान पर खून छिटलनि। 22 धर्म-नियमक आज्ञाक अनुसार प्रायः सभ वस्तु खून द्वारा शुद्ध कयल जाइत अछि और बिनु खून बहौने पापक क्षमा अछिए नहि। 23 ई आवश्यक छल जे ओ सभ वस्तु जे स्वर्ग मेहक वस्तुक प्रतिरूप मात्र छल से एहन बलिदान द्वारा शुद्ध कयल जाय मुदा वास्तविक स्वर्गिक वस्तुक लेल एहि सँ उत्तम बलिदान जरूरी छल। 24 कारण, मसीह कोनो हाथक बनाओल पवित्र स्थान, जे वास्तविक पवित्र स्थानक प्रतिरूप मात्र अछि, ताहि मे प्रवेश नहि कयलनि। नहि, ओ स्वर्गे मे प्रवेश कयलनि जाहि सँ आब अपना सभक पक्ष सँ परमेश्वरक सामने उपस्थित होथि। 25 और ओ स्वर्ग मे एहि लेल प्रवेश नहि कयलनि जे बेर-बेर अपना केँ चढ़बथि जेना आन महापुरोहित सभ प्रति वर्ष अपन खून लऽ कऽ नहि, पशुक खून लऽ कऽ, परमपवित्र स्थान मे प्रवेश करैत छथि। 26 जँ एना रहैत तँ मसीह केँ सृष्टिक आरम्भ सँ लऽ कऽ एखन धरि बेर-बेर दुःख भोगऽ पड़ल रहितनि। मुदा से नहि, आब युगक अन्त होमऽ-होमऽ पर ओ एके बेर अयलाह जाहि सँ अपना केँ बलिदान कऽ कऽ लोकक पाप केँ मेटबथि। 27 जहिना ई निश्चित कयल गेल अछि जे मनुष्य एके बेर मरय आ तकरबाद ओकर न्याय कयल जाइक, 28 तहिना बहुतो लोकक पाप उठयबाक लेल मसीहो एके बेर बलिदान भऽ गेलाह। आब ओ दोसरो बेर औताह, मुदा पाप उठयबाक लेल नहि, बल्कि ताहि लोक सभक मुक्ति दिअयबाक लेल, जे सभ उत्सुकता सँ हुनकर बाट ताकि रहल अछि।
1 धर्म-नियम मे जे भेटैत अछि, से आबऽ वला नीक बात सभक वास्तविक स्वरूप नहि, बल्कि तकर छाया मात्र अछि। तेँ धर्म-नियमक व्यवस्था साले-साल चढ़ाओल जाय वला एके तरहक बलिदान सभ द्वारा आराधना करऽ वला सभ केँ सिद्ध नहि कऽ सकैत अछि। 2 जँ से बात होइत तँ की ओ बलिदान सभ बन्द नहि भऽ गेल रहैत? आराधना कयनिहार सभ एके बेर मे शुद्ध भऽ गेल रहैत आ ओकरा सभक विवेक फेर ओकरा सभ केँ दोषी नहि ठहरबैत रहितैक। 3 मुदा ठीक एकर विपरीत होइत अछि। एहि बलिदान सभ द्वारा प्रति वर्ष पाप सभक स्मरण दिआओल जाइत अछि। 4 किएक तँ ई असम्भव अछि जे साँढ़ आ छागरक खून पाप केँ मेटाबय। 5 तेँ मसीह संसार मे अयबाक समय मे परमेश्वर केँ कहलथिन, “अहाँ बलि आ चढ़ौना नहि चाहैत छलहुँ, 2 बल्कि अहाँ हमरा लेल एक शरीर तैयार कयलहुँ; 6 अहाँ होम-बलि आ पाप-बलि सँ प्रसन्न नहि छलहुँ। 7 तखन हम कहलहुँ जे, ‘हे परमेश्वर, जहिना धर्मशास्त्र मे हमरा सम्बन्ध मे लिखल अछि, 2 तहिना हम अहाँक इच्छा पूरा करबाक लेल आयल छी।’” 8 ऊपर कहल बात मे मसीहक कथन छनि जे, “अहाँ ने बलिदान, ने चढ़ौना, ने होम-बलि आ ने पाप-बलि चाहलहुँ और ने ओहि सभ सँ प्रसन्न छलहुँ,” जखन कि धर्म-नियमेक अनुसार ओ सभ चढ़ाओल जाइत छल। 9 ओ फेर आगाँ कहैत छथि जे, “देखू, हम अहाँक इच्छा पूरा करबाक लेल आयल छी।” एहि तरहेँ ओ पहिल व्यवस्था केँ समाप्त कयलनि जाहि सँ दोसर केँ स्थापित करथि। 10 और परमेश्वरक ओही इच्छा द्वारा अपना सभ यीशु मसीहक शरीरक बलिदान सँ, जे सदाकालक लेल एके बेर सम्पन्न भेल, पवित्र कयल गेल छी। 11 प्रत्येक पुरोहित दिन-प्रतिदिन ठाढ़ भऽ कऽ अपन सेवाक काज करैत छथि आ एके तरहक बलिदान बेर-बेर चढ़बैत छथि, जे बलिदान पाप केँ कहियो नहि मेटा सकैत अछि। 12 मुदा ई पुरोहित, अर्थात् मसीह, पापक वास्ते सदाक लेल एकेटा बलिदान चढ़ा कऽ परमेश्वरक दहिना कात बैसलाह। 13 ओ ओही समय सँ एहि बातक प्रतीक्षा कऽ रहल छथि जे हुनकर शत्रु सभ केँ हुनका पयरक नीचाँ राखि देल जानि। 14 कारण, ओ अपन एकमात्र बलिदान द्वारा तकरा सभ केँ सदाक लेल सिद्ध कऽ देलनि जे सभ पवित्र कयल जा रहल अछि। 15 परमेश्वरक पवित्र आत्मा सेहो एहि विषय मे धर्मशास्त्र मे अपना सभ केँ गवाही दैत पहिने ई कहैत छथि, 16 “प्रभु कहैत छथि जे, आबऽ वला समय मे ओकरा सभक संग हम वचन दऽ कऽ जे विशेष सम्बन्ध स्थापित करब से ई अछि— हम अपन नियम ओकरा सभक हृदय मे राखि देबैक 2 और ओकरा सभक मोन मे लिखि देबैक।” 17 फेर ओ आगाँ कहैत छथि जे, “हम ओकरा सभक पाप आ अपराध सभक 2 फेर स्मरण नहि करब।” 18 क्षमा जखन भऽ गेल अछि तखन पापक लेल बलि-प्रदानक आवश्यकता नहि रहल। 19 एहि कारणेँ, यौ भाइ लोकनि, यीशुक खून द्वारा अपना सभ केँ सोझे परमपवित्र स्थान मे निडर भऽ कऽ जयबाक साहस अछि। 20 कारण, ओ अपना शरीरक बलिदान द्वारा अपना सभक लेल ओहि परदा बाटे नव आ जीवित रस्ता खोलि देलनि। 21 संगहि अपना सभक एहन महान् पुरोहित छथि जे परमेश्वरक घरक अधिकारी छथि, 22 तेँ आउ, निष्कपट मोन सँ पूर्ण विश्वास आ भरोसाक संग परमेश्वर लग चली, ई जानि जे हृदय पर मसीहक खून छिटल गेला सँ अपना सभक भितरी मोन सभ दोष सँ शुद्ध भऽ गेल अछि आ शरीर शुद्ध पानि सँ साफ भऽ गेल अछि। 23 अपना सभ जाहि आशा पर खुलि कऽ विश्वास रखने छी ताहि आशा केँ दृढ़ता सँ पकड़ने रही, कारण, जे अपना सभ केँ वचन देने छथि से विश्वासयोग्य छथि। 24 प्रेम आ भलाइक काज करऽ मे अपना सभ एक-दोसर केँ कोना प्रेरित कऽ सकी ताहि पर ध्यान राखी। 25 अपना सभ एक संग जमा भेनाइ नहि छोड़ी जेना कि किछु लोकक आदत अछि, बल्कि एक-दोसर केँ प्रोत्साहित करैत रही, विशेष कऽ आब जखन देखैत छी जे ओ दिन लगचिआ गेल अछि जहिया यीशु फेर औताह। 26 कारण जँ अपना सभ सत्यक ज्ञान प्राप्त कयलाक बादो जानि-बुझि कऽ पाप करैत रहब तँ फेर पापक प्रायश्चित्तक लेल कोनो बलिदान बाँचल नहि रहल। 27 बल्कि एतबे बाँचल रहल जे अपना सभ भयभीत भऽ न्यायक प्रतीक्षा आ ओहि भीषण आगिक प्रतीक्षा करी जे परमेश्वरक विरोधी सभ केँ भस्म कऽ देत। 28 जे केओ मूसा द्वारा देल गेल धर्म-नियमक उल्लंघन करैत छल तकरा दू वा तीन लोकक गवाही सँ बिना कोनो दया देखौने मृत्युदण्ड दऽ देल जाइत छल। 29 आब सोचू, जे केओ परमेश्वरक पुत्रक अनादर कयने अछि, जे केओ ओहि खून केँ, जाहि द्वारा परमेश्वर आ हुनकर लोकक बीच नव सम्बन्ध स्थापित कयल गेल आ जाहि खून द्वारा ओ स्वयं पवित्र कयल गेल, तकरा तुच्छ बुझने अछि, आ जे केओ परमेश्वरक दयावान पवित्र आत्मा केँ अपमानित कयने अछि तकरा की होयतैक? एहन लोक आरो कतेक भयंकर दण्ड भोगबाक योग्य भेल! 30 कारण, अपना सभ तिनका चिन्हैत छियनि जे ई कहलनि, “बदला लेब हमरे काज अछि; हमहीं प्रतिफल देब।” और फेर इहो जे, “प्रभु अपन लोकक न्याय करताह।” 31 जीवित परमेश्वरक हाथ मे पड़नाइ भयंकर बात अछि। 32 बितल समयक स्मरण करू जहिया इजोत प्राप्त कयलाक बाद अहाँ सभ महा कष्टक संघर्ष मे स्थिर रहलहुँ। 33 कहियो-कहियो अहाँ सभ निन्दा आ अत्याचार द्वारा लोकक सम्मुख तमाशा बनलहुँ और कहियो-कहियो ओहने संकट मे पड़ल लोक केँ देखि अहाँ सभ स्वेच्छा सँ हुनका सभ केँ संग देलहुँ। 34 अहाँ सभ जहल मे राखल गेल लोकक संग सहानुभूति रखलहुँ, और अहाँ सभक धन-सम्पत्ति जखन लुटि लेल गेल तँ तकरा खुशी सँ बरदास्त कयलहुँ, कारण अहाँ सभ केँ बुझल छल जे अहाँ सभ लग एहि सँ नीक और टिकऽ वला सम्पत्ति अछि। 35 तेँ अपन साहस नहि छोड़ू, कारण एकर प्रतिफल बहुत पैघ होयत। 36 अहाँ सभ केँ स्थिर रहनाइ अति आवश्यक अछि जाहि सँ परमेश्वरक इच्छा पूरा कऽ कऽ अहाँ सभ ओ बात सभ प्राप्त करी जकरा बारे मे परमेश्वर वचन देने छथि। 37 कारण, जेना धर्मशास्त्र मे लिखल अछि, “आब किछुए समय मे ओ जे आबऽ वला छथि से औताह। ओ विलम्ब नहि करताह। 38 हमर धार्मिक लोक विश्वास करैत जीवित रहत मुदा जँ ओ पाछाँ हटि जाय 2 तँ हमर मोन ओकरा सँ प्रसन्न नहि होयत।” 39 पाछाँ हटि कऽ विनाश होमऽ वला सभ मे सँ अपना सभ नहि छी, बल्कि विश्वास करैत उद्धार पौनिहार सभ मे सँ छी।
1 विश्वास की अछि? विश्वास ओहि बात सभक पक्का आश्वासन अछि जकरा लेल आशा कयल जाइत अछि और ओहि वस्तु सभक अस्तित्वक विषय मे दृढ़ निश्चय अछि जे वस्तु सभ देखार नहि अछि। 2 विश्वासेक कारणेँ प्राचीन समयक भक्त सभ सँ परमेश्वर प्रसन्न भेलाह। 3 विश्वासे द्वारा अपना सभ बुझैत छी जे सम्पूर्ण विश्वक सृष्टि परमेश्वरक आज्ञा द्वारा भेल, आ देखाइ पड़ऽ वला वस्तु सभ कोनो आन देखाइ पड़ऽ वला वस्तु सँ नहि रचल गेल। 4 विश्वासेक कारणेँ हाबिल अपन भाय काइन सँ नीक बलिदान परमेश्वर केँ चढ़ौलनि। विश्वासेक कारणेँ हुनका एक धार्मिक पुरुषक रूप मे सम्मान भेटलनि जखन परमेश्वर हुनकर चढ़ौना स्वीकार कयलनि। हाबिल मरल होइतो अपन विश्वास द्वारा आइओ विश्वासक सम्बन्ध मे एक आवाज छथि। 5 विश्वासेक कारणेँ हनोक बिनु मृत्युक अनुभव कयने एहि पृथ्वी परक जीवन सँ सशरीर ऊपर उठा लेल गेलाह। ओ फेर देखाइ नहि पड़लाह कारण परमेश्वर हुनका ऊपर उठा लेने छलथिन। धर्मशास्त्र मे हनोकक सम्बन्ध मे चर्चा कयल गेल अछि जे हुनका उठाओल जयबा सँ पहिने परमेश्वर हुनका सँ प्रसन्न छलथिन। 6 विश्वासक बिना परमेश्वर केँ प्रसन्न कयनाइ असम्भव अछि कारण जे केओ हुनका लग आबऽ चाहैत अछि तकरा ई विश्वास कयनाइ आवश्यक छैक जे परमेश्वर छथि और ओ तकरा प्रतिफल दैत छथिन जे हुनकर खोज मे लगनशील अछि। 7 जे बात ओहि समय तक कहियो नहि देखल गेल छल, तेहन बातक सम्बन्ध मे नूह परमेश्वर सँ चेतावनी पौलनि। विश्वासेक कारणेँ ओ परमेश्वरक भय मानैत हुनकर आज्ञाक अनुसार अपना परिवार केँ बचयबाक लेल एकटा जहाज बनौलनि। ओ अपन विश्वास द्वारा संसार केँ दोषी ठहरौलनि और ओहि धार्मिकताक उत्तराधिकारी बनलाह जे विश्वास पर आधारित अछि। 8 विश्वासेक कारणेँ अब्राहम परमेश्वरक आज्ञा मानलनि जखन परमेश्वर हुनका ओहि देश मे जयबाक लेल बजौलथिन जे देश बाद मे हुनका उत्तराधिकार मे भेटऽ वला छलनि। ओ इहो नहि जानि जे हम कतऽ जा रहल छी विदा भऽ गेलाह। 9 जाहि देशक बारे मे परमेश्वर हुनका वचन देने छलाह, ताहि देश मे ओ विश्वासेक कारणेँ परदेशी भऽ कऽ वास कयलनि। ओ इसहाक आ याकूबक संग, जिनका सभ केँ परमेश्वर सेहो वैह वचन देलनि, तम्बू मे रहलाह। 10 कारण, ओ ओहि नगरक बाट तकैत छलाह जे कहियो नहि हटऽ वला अछि, जकर रचनिहार आ बनौनिहार परमेश्वर छथि। 11 विश्वासेक कारणेँ अब्राहमक स्त्री, सारा, अवस्था ढरि गेलाक बादो गर्भधारण करबाक सामर्थ्य पौलनि, कारण ओ मानलनि जे वचन देबऽ वला परमेश्वर विश्वासयोग्य छथि। 12 एहि तरहेँ एके पुरुष सँ जे मरणासन्न छलाह, अर्थात् अब्राहम सँ, आकाशक तरेगन जकाँ असंख्य और समुद्र-कातक बालु जकाँ अनगनित वंशज उत्पन्न भेल। 13 जाहि बात सभक बारे मे परमेश्वर वचन देने छलाह, से बात सभ बिनु पौने ई सभ लोक विश्वास करितहि मरलाह मुदा ओहि बात सभ केँ दूरे सँ देखि आनन्दित छलाह। ई सभ खुलि कऽ मानि लेलनि जे, “ई संसार हमरा सभक वास्तविक घर नहि अछि; हम सभ एतऽ परदेशी भऽ रहि रहल छी।” 14 जे केओ एहन बात कहैत अछि से स्पष्ट देखबैत अछि जे ओ एक एहन देशक बाट ताकि रहल अछि जे ओकर अपन होइक। 15 ओ सभ ओहि देशक सम्बन्ध मे नहि सोचैत छलाह जाहि देश सँ ओ सभ निकलल छलाह, कारण जँ से बात रहैत तँ ओतऽ घूमि कऽ फेर जा सकैत छलाह। 16 मुदा नहि। ओ सभ ताहि सँ उत्तम एक देश, अर्थात् “स्वर्ग-देश”, मे पहुँचबाक अभिलाषी छलाह। एहि कारणेँ परमेश्वर हुनका सभक परमेश्वर कहयबा मे कोनो संकोच नहि मानैत छथि। ओ तँ हुनका सभक लेल एक नगर तैयार कऽ लेने छथि। 17 परमेश्वर जखन अब्राहम सँ परीक्षा लेलनि तखन अब्राहम विश्वासेक कारणेँ परमेश्वरक आज्ञा मानि इसहाक केँ हुनका अर्पित कयलनि। परमेश्वर जिनका वचन देने छलाह से अपन एकमात्र पुत्र इसहाक केँ वेदी पर बलि चढ़यबाक लेल तैयार भेलाह, 18 जखन कि परमेश्वर हुनका ई कहने छलथिन जे, “इसहाके सँ उत्पन्न वंशज तोहर वंश मानल जयतह।” 19 अब्राहम ई मानैत छलाह जे परमेश्वर मृत्युओ मे सँ लोक केँ जीवित कऽ देबऽ मे सामर्थी छथि और एक अर्थे ओ इसहाक केँ मृत्यु मे सँ फेर पाबिओ लेलनि। 20 विश्वासेक कारणेँ इसहाक अपन पुत्र सभ याकूब आ एसाव केँ भविष्यक सम्बन्ध मे आशीर्वाद देलथिन। 21 विश्वासेक कारणेँ याकूब अपन अन्तिम समय मे यूसुफक दूनू पुत्र, अर्थात् अपन पोता सभ केँ एक-एक कऽ आशीर्वाद देलथिन और अपन लाठीक सहारा लैत झुकि कऽ परमेश्वरक आराधना कयलनि। 22 विश्वासेक कारणेँ यूसुफ अपन जीवनक अन्तिम समय मे इस्राएली समाजक जे मिस्र देश सँ भविष्य मे होमऽ वला प्रस्थानक बात छल तकर चर्चा कऽ ई आदेश देलनि जे “परमेश्वर अवश्य अहाँ सभ केँ बचौताह। तहिया अहाँ सभ निश्चित हमर शरीरक हड्डी एहि देश सँ अपना संग लऽ जायब।” 23 विश्वासेक कारणेँ जखन मूसाक जन्म भेलनि तखन हुनकर माय-बाबू ई देखि जे ई एक विशेष बच्चा अछि, राजाक आज्ञा सँ भयभीत नहि भऽ कऽ हुनका तीन मास धरि नुका कऽ रखलनि। 24 विश्वासेक कारणेँ मूसा नमहर भेला पर राजा फरओक नाति कहायब स्वीकार नहि कयलनि। 25 ओ पापक क्षणिक सुख भोगबाक बदला मे परमेश्वरक प्रजाक संग अत्याचार सहनाइ चुनलनि। 26 ओ मिस्र देशक सम्पूर्ण धन-सम्पत्तिक अपेक्षा आबऽ वला उद्धारकर्ता-मसीहक लेल निन्दा सहब अधिक बहुमूल्य बुझलनि, कारण हुनकर नजरि भविष्य मे भेटऽ वला इनाम पर टिकल रहनि। 27 राजाक क्रोध सँ भयभीत नहि भऽ ओ विश्वासेक कारणेँ मिस्र देश छोड़ि देलनि। जेना ओ अदृश्य परमेश्वर केँ देखैत होथि तेना दृढ़ बनल रहलाह। 28 विश्वासेक कारणेँ ओ फसह-पाबनि स्थापित कयलनि और केबाड़क चौकठि पर खून लगौलनि, जाहि सँ जेठ सन्तान केँ विनाश करऽ वला दूत इस्राएली सभ पर अपन हाथ नहि बढ़बथि। 29 विश्वासेक कारणेँ इस्राएली सभ लाल सागर केँ तेना पार कयलक जेना ओ सुखल भूमि होइक, मुदा जखन मिस्री लोक ओहिना करऽ चाहलक तँ ओ सभ लाल सागरक पानि मे डुबि कऽ मरि गेल। 30 विश्वासेक कारणेँ यरीहो नगर केँ चारू कात सँ घेरऽ वला देवाल ढहि गेल जखन इस्राएली लोक सभ सात दिन धरि ओकर परिक्रमा कयलक। 31 विश्वासेक कारणेँ राहाब नामक वेश्या परमेश्वरक आज्ञा नहि मानऽ वला यरीहो नगरक अन्य लोक सभक संग नष्ट नहि कयल गेलीह, कारण ओ इस्राएली भेदिया सभ केँ दुश्मन नहि मानि स्वागत-सत्कार कयलनि। 32 एहि सँ बेसी हम आओर की कहू? गिदोन, बाराक, शिमशोन, यिप्ताह, दाऊद, शमूएल आ परमेश्वरक प्रवक्ता सभक चर्चा करबाक एखन समय नहि अछि। 33 ई सभ विश्वासे द्वारा राज्य सभ केँ अपन अधीन कयलनि, न्यायक संग शासन कयलनि, ओ बात सभ प्राप्त कयलनि जाहि बातक सम्बन्ध मे परमेश्वर वचन देने छलाह। ई सभ सिंह सभक मुँह बन्द कऽ, 34 धधकैत आगि केँ मिझा कऽ आ तरुआरिक धार सँ बाँचि कऽ सुरक्षित रहलाह। ई सभ निर्बलता मे बलवन्त कयल गेलाह और युद्ध मे सामर्थी भऽ आन-आन देशक सेना सभ केँ भगौलनि। 35 स्त्रीगण सभ अपन प्रिय लोक केँ मृत्यु सँ फेर जीवित पौलनि। किछु लोक बचाओल जयबाक बात अस्वीकार कऽ यातनापूर्ण मृत्यु सहब चुनलनि जाहि सँ एहि पृथ्वी परक जीवन सँ उत्तम जीवनक लेल जिआओल जाइ। 36 परीक्षा सहैत किछु लोक केँ उपहासक पात्र बनऽ पड़ल, कोड़ाक मारि खाय पड़ल, और जंजीर सँ बन्हा कऽ जहल मे रहऽ पड़ल। 37 किछु लोक केँ पथरबाहि कऽ कऽ मारल गेलनि। किछु केँ आरी सँ चीरि कऽ दू फाँक कऽ देल गेलनि। किछु लोक केँ तरुआरि सँ वध कयल गेलनि। किछु लोक गरीबी, अत्याचार आ दुर्व्यवहार सहैत भेँड़ा और बकरीक छाल ओढ़ने घुमैत छलाह। 38 संसार हुनका सभक जोगरक नहि छल। हुनका सभ केँ निर्जन क्षेत्र मे, पहाड़ पर, गुफा मे और खधिया मे शरण लेबऽ पड़लनि। 39 विश्वासेक कारणेँ एहि सभ लोक सँ परमेश्वर प्रसन्न भेलाह, मुदा तैयो हिनका सभ केँ ओ बात सभ नहि भेटलनि जाहि सम्बन्ध मे परमेश्वर वचन देने छलथिन। 40 कारण, परमेश्वर अपना सभक लेल एहि सँ उत्तम एक योजना बनौने छलाह, आ से ई अछि जे, मात्र अपना सभक संग हुनका सभ केँ पूर्ण सिद्धता भेटतनि।
1 तेँ जखन गवाही देबऽ वला सभक एहन विशाल समूह सँ अपना सभ घेरल छी तँ अबैत जाउ, अपना सभ प्रत्येक विघ्न-वाधा उतारि कऽ फेकि दी, आ पापो, जे अपना सभ केँ तुरत्ते ओझरबैत अछि, आ ई दौड़, जाहि मे अपना सभ केँ दौड़बाक अछि, नहि छोड़ि धैर्यपूर्बक अन्त तक दौड़ी। 2 अपन नजरि अपना सभक विश्वास केँ शुरुआत आ सिद्ध कयनिहार यीशु पर राखी जे सामने राखल आनन्दक कारणेँ क्रूसक कलंक पर ध्यान नहि दऽ तकर दुःख सहलनि आ आब परमेश्वरक सिंहासनक दहिना कात बैसल छथि। 3 ओ जे पापी सभक हाथ सँ कतेक घोर विरोध सहलनि तिनका पर ध्यान दिअ, जाहि सँ एना नहि होअय जे अहाँ सभ थाकि कऽ हिम्मत हारी। 4 पाप सँ संघर्ष करैत अहाँ सभ केँ एखन तक अपन खून नहि बहाबऽ पड़ल अछि। 5 की अहाँ सभ धर्मशास्त्रक ई उपदेश बिसरि गेलहुँ जाहि मे अहाँ सभ केँ पुत्र कहि कऽ सम्बोधन कयल गेल अछि?— “हे हमर पुत्र, प्रभुक सजाय केँ तुच्छ नहि मानह, और जखन ओ तोरा कोनो गलती देखा कऽ डँटैत छथुन 2 तँ हिम्मत नहि हारह। 6 कारण, जकरा सँ प्रभु प्रेम करैत छथि तकरा ओ सजाय दऽ कऽ सुधारैत छथिन, 2 जकरा ओ पुत्र मानैत छथि तकरा ओ कोड़ा लगबैत छथिन।” 7 कष्ट केँ ई बुझि कऽ सहि लिअ जे परमेश्वर एहि द्वारा हमरा सुधारि रहल छथि। कारण ओ अहाँ केँ पुत्र मानि अहाँक संग पिता जकाँ व्यवहार कऽ रहल छथि। की कोनो एहन पुत्र अछि जकर पिता ओकरा सजाय दऽ कऽ नहि सुधारैत होइक? 8 जँ अहाँ सभ केँ सुधारल नहि जाइत अछि जखन की सभ बेटा केँ सुधारल जाइत छैक तँ अहाँ सभ पारिवारिक-पुत्र नहि, अनजनुआ-जन्मल पुत्र सभ छी। 9 एतबे नहि, जखन शारीरिक पिता अपना सभ केँ सजाय दैत छलाह आ ताहि लेल अपना सभ हुनका सभक आदर करैत छलहुँ तँ ओहि सँ बढ़ि कऽ अपन आत्मिक पिताक अधीन मे रहनाइ अपना सभ किएक नहि स्वीकार करी जाहि सँ जीवन पाबी? 10 ओ सभ सीमित समयक लेल जहिना अपना बुद्धिक अनुसार ठीक बुझैत छलाह, तहिना अपना सभ केँ सजाय देलनि, मुदा परमेश्वर ई जानि जे अपना सभक कल्याणक लेल केहन सजाय ठीक होयत अपना सभ केँ सुधारैत छथि जाहि सँ ओ जहिना पवित्र छथि, तहिना अपनो सभ पवित्र बनी। 11 जखन कोनो तरहक सजाय ककरो भेटि रहल छैक तँ ताहि समय मे ओ ओकरा सुखदायक नहि, दुःखदायक लगैत छैक, मुदा बाद मे, तकरा द्वारा सुधारल गेलाक बाद, ओकर परिणाम एक धार्मिक आ शान्तिपूर्ण जीवन होइत अछि। 12 तेँ थाकल हाथ आ कमजोर ठेहुन केँ मजगूत बनाउ। 13 और “अपना लेल सोझ रस्ता बनाउ” जाहि सँ नाङड़क पयर उखड़ैक नहि, बल्कि स्वस्थ भऽ जाइक। 14 सभक संग मेल-मिलाप सँ रहबाक लेल आ पवित्र जीवन बितयबाक लेल पूरा मोन सँ प्रयत्न करू, कारण, पवित्रताक बिना केओ परमेश्वर केँ नहि देखऽ पाओत। 15 सावधान रहू जाहि सँ अहाँ सभ मे सँ केओ परमेश्वरक कृपा सँ वंचित नहि रही, और जाहि सँ एना नहि होअय जे ककरो मोन मे ईर्ष्याक बीया जनमि कऽ कष्टक कारण बनय आ ओकर विष बहुतो केँ दुषित करय। 16 अहाँ सभ मे सँ केओ ककरो संग अनैतिक शारीरिक सम्बन्ध नहि राखू आ ने एसाव जकाँ परमेश्वरक डर नहि मानऽ वला होउ जे एक साँझक भोजनक बदला मे अपन जेठ सन्तान वला अधिकार बेचि देलनि। 17 अहाँ सभ जनैत छी जे बाद मे जखन ओ अपन पिताक आशीर्वाद प्राप्त करऽ चाहैत छलाह तँ हुनका अस्वीकार कयल गेलनि। नोरो बहा-बहा कऽ विनती कयलनि मुदा हुनका अपन पहिल निर्णय बदलबाक अवसर नहि भेटलनि। 18 अहाँ सभ पूर्वज सभ जकाँ ओहि सीनय पहाड़ लग नहि आयल छी जकरा छुअल जा सकैत अछि, जाहिठाम धधकैत आगि, कारी मेघ, घोर अन्हार, भयंकर अन्हड़-बिहारि, 19 आ धुतहूक आवाज छल, आ जाहिठाम एक स्वर एहन बात कहैत सुनाइ दैत छल जकरा सुनि लोक सभ विनती करऽ लागल जे ओ फेर ओकरा सभ केँ नहि सुनाइ दैक। 20 कारण, ओकरा सभ केँ ओहि स्वरक ई आज्ञा बरदास्त नहि भेलैक जे, “जँ मालो-जाल पहाड़ मे भिड़त तँ ओकरा पथरबाहि कऽ कऽ मारि देल जाय।” 21 ओ दृश्य ततेक भयानक छल जे मूसो कहलनि, “हम डर सँ थर-थर कँपैत छी।” 22 अहाँ सभ ओतऽ नहि, बल्कि सियोन नामक पहाड़ जे स्वर्गिक यरूशलेम अछि, अर्थात् जीवित परमेश्वरक नगर लग आयल छी, जतऽ खुशीक उत्सव मनाबऽ वला लाखो-लाख स्वर्गदूतक सम्मेलन अछि। 23 जतऽ ओ मण्डली अछि, जकर प्रत्येक सदस्य जेठ सन्तान मानल जाइत अछि आ जकरा सभक नाम स्वर्ग मे लिखल गेल अछि ततऽ आयल छी। जतऽ सभक न्यायाधीश परमेश्वर छथि आ जतऽ सिद्ध कयल गेल धार्मिक लोक सभक आत्मा अछि ततऽ आयल छी। 24 अहाँ सभ यीशु लग आयल छी, जे परमेश्वर आ हुनकर लोकक बीच नव सम्बन्धक मध्यस्थ छथि, जिनकर छिटल गेल खून हाबिलक खूनक अपेक्षा कतेक उत्तम बात कहैत अछि। 25 सावधान रहू! जे बाजि रहल छथि तिनकर आज्ञा केँ अस्वीकार नहि करू। कारण, जे लोक सभ पृथ्वी पर सँ चेतावनी देनिहारक बात नहि सुनलक से जखन नहि बाँचि सकल, तखन अपना सभ जँ स्वर्ग सँ चेतावनी देनिहारक बात नहि सुनब तँ कोना बाँचब? 26 ओहि समय हुनकर स्वर पृथ्वी केँ डोला देलक मुदा आब ओ ई वचन देलनि जे, “हम एक बेर आरो पृथ्विए नहि, बल्कि आकाशो डोला देब।” 27 हुनकर “एक बेर आरो” कहला सँ ई स्पष्ट कयल गेल जे डोलऽ वला वस्तु, अर्थात् सृष्टि कयल वस्तु, हटाओल जायत जाहि सँ जे नहि डोलाओल जा सकैत अछि सैहटा रहि जायत। 28 तेँ जखन अपना सभ केँ एहन राज्य भेटि रहल अछि जे अटल अछि तँ अबैत जाउ, अपना सभ परमेश्वरक धन्यवाद करैत श्रद्धा आ भयक संग हुनकर एहन आराधना करी जे हुनका ग्रहणयोग्य होनि। 29 कारण, “अपना सभक परमेश्वर भस्म करऽ वला आगि छथि।”
1 अहाँ सभ एक-दोसर केँ अपन लोक मानि प्रेम करैत रहू। 2 अनचिन्हारो सभक अतिथि-सत्कार कयनाइ नहि बिसरू, कारण, एहि तरहेँ किछु लोक बिनु जनने स्वर्गदूत सभक सेवा-सत्कार कयने छथि। 3 जहल मे राखल लोक सभक ओहिना सुधि लिअ जेना अहाँ अपने ओकरा संग जहल मे राखल होइ। जे सभ सताओल जाइत अछि तकरो सभ पर ध्यान दिअ कारण, अहूँ सभ ओकरे सभ जकाँ हाड़-माँसुक छी। 4 सभ केओ विवाह-बन्धन केँ आदरक दृष्टि सँ देखथि। वैवाहिक सम्बन्ध दुषित नहि कयल जाय कारण, जे अनैतिक सम्बन्ध रखैत अछि, चाहे ओ विवाहित होअय वा अविवाहित, परमेश्वर तकरा दण्ड देताह। 5 अहाँ सभ धनक लोभ सँ मुक्त रहू। जे किछु अहाँ लग अछि ताहि सँ सन्तुष्ट रहू, कारण परमेश्वर कहने छथि, “हम तोहर संग कहियो नहि छोड़बह 2 कहियो तोरा नहि त्यागबह।” 6 तेँ अपना सभ साहसक संग कहैत छी, “प्रभु हमर सहायता कयनिहार छथि, हम कोनो बात सँ नहि डेरायब। 2 मनुष्य हमरा करत की?” 7 अहाँ सभ अगुआ सभक ओहि पहिल समूहक स्मरण करू जे सभ अहाँ सभ केँ परमेश्वरक वचन सुनौलनि। हुनका सभक जीवन-शैली आ तकर परिणाम की भेल ताहि पर विचार करू। जाहि तरहेँ ओ सभ परमेश्वर पर भरोसा रखलनि, ताही तरहेँ अहूँ सभ हुनका पर भरोसा राखू। 8 यीशु मसीह काल्हि, आइ आ अनन्त काल तक एक समान छथि। 9 अनेक प्रकारक विचित्र शिक्षाक फेरी मे नहि पड़ू। नीक ई अछि जे अपना सभ अपन हृदय केँ परमेश्वरक कृपा सँ बलगर बनाबी, नहि कि खान-पान सम्बन्धी नियम सभ सँ, किएक तँ ओहन नियम मानऽ वला लोक सभ केँ कहियो ओहि सँ कोनो लाभ नहि होइत छैक। 10 अपना सभ केँ एक वेदी अछि जाहि पर एहन बलि चढ़ाओल गेल छथि जाहि मे भाग लेबाक अधिकार तकरा सभ केँ नहि छैक जे सभ एखनो मूसाक धर्म-नियम मानि मिलाप-मण्डप मे सेवा-काज करैत अछि। 11 महापुरोहित बलिपशु सभक खून पापक प्रायश्चित्तक लेल परमपवित्र स्थान मे लऽ जाइत छथि, मुदा ओहि पशु सभक लास बस्ती सँ बाहर जराओल जाइत अछि। 12 तहिना यीशु सेहो अपना खून द्वारा लोक सभ केँ पवित्र करबाक लेल नगरक छहरदेवाली सँ बाहरे दुःख भोगलनि। 13 तेँ अपनो सभ हुनका संग कयल गेल अपमान अपना पर स्वीकार कऽ कऽ हुनका लग, मानू बस्ती सँ बाहर, चली। 14 कारण, एहि पृथ्वी पर अपना सभक कोनो स्थायी नगर नहि अछि, बल्कि अपना सभ ओहि नगरक बाट तकैत छी जे भविष्य मे आबऽ वला अछि। 15 तेँ अपना सभ यीशुक माध्यम सँ परमेश्वर केँ स्तुति-बलिदान सदत चढ़बैत रही, अर्थात् मुँह सँ हुनकर नामक गुणगान रूपी चढ़ौना। 16 आ तकरा संग अहाँ सभ भलाइक काज कयनाइ आ अपन चीज-वस्तु सँ दोसराक सहायता कयनाइ नहि बिसरू, कारण एहन बलिदान सँ परमेश्वर प्रसन्न होइत छथि। 17 अहाँ सभ अपन अगुआ सभक आज्ञा मानू आ हुनका सभक अधीन मे रहू। कारण, अहाँ सभक लेल लेखा देबऽ पड़तनि से जानि हुनका सभ केँ दिन-राति अहाँ सभक आत्मिक कल्याणक चिन्ता रहैत छनि। हुनका सभक अधीन मे रहू, जाहि सँ ओ सभ अपन कर्तव्य आनन्दक संग पूरा कऽ सकथि, नहि कि दुःखक संग, किएक तँ ओहि सँ अहाँ सभ केँ कोनो लाभ नहि होइत। 18 हमरा सभक लेल प्रार्थना करैत रहू, कारण, हम सभ अपन मोन शुद्ध बुझैत छी। हम सभ हर बात मे वैह करऽ चाहैत छी जे सही अछि। 19 हम जल्दिए अहाँ सभक बीच फेर आबि सकी, ताहि लेल प्रार्थना करबाक लेल हम विशेष रूप सँ आग्रह करैत छी। 20 शान्ति देबऽ वला परमेश्वर अहाँ सभ केँ सभ प्रकारक नीक गुण सँ सम्पन्न करथि जाहि सँ अहाँ सभ हुनकर इच्छा पूरा कऽ सकियनि। ओ तँ वैह छथि जे भेँड़ा सभक ओहि महान् चरबाह केँ, अर्थात् अपना सभक प्रभु यीशु केँ, हुनकर बहाओल खूनक आधार पर मृत्यु सँ फेर जिऔलथिन और ओहि खून द्वारा अपना लोकक संग अनन्त कालीन विशेष सम्बन्ध स्थापित कयलनि। जाहि काज सँ हुनका प्रसन्नता भेटैत छनि तकरा ओ यीशु मसीहक माध्यम सँ अपना सभ मे सम्पन्न करथि। यीशु मसीहक गुणगान अनन्त काल धरि होनि! आमीन। 22 यौ भाइ लोकनि, अहाँ सभ हमर एहि उपदेश पर धैर्यपूर्बक ध्यान दिअ, से हमर आग्रह अछि, कारण, हम अहाँ सभ केँ एक छोटेटा पत्र लिखलहुँ। 23 एकटा ई समाचार सुनबैत छी जे अपना सभक भाय तिमुथियुस केँ जहल सँ छोड़ि देल गेलनि। ओ जँ जल्दी एतऽ पहुँचताह तँ हम हुनका संग लऽ कऽ अहाँ सभ सँ भेँट करबाक लेल आयब। 24 अहाँ सभ अपन अगुआ लोकनि आ प्रभुक सभ लोक केँ हमरा सभक नमस्कार कहिऔन। इटली देशक भाय सभ सेहो अहाँ सभ केँ अपन नमस्कार पठबैत छथि। 25 अहाँ सभ गोटे पर परमेश्वरक कृपा बनल रहय। आमीन।
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