Ephesians11 हम पौलुस, जे परमेश्वरक इच्छा सँ मसीह यीशुक एक मसीह-दूत छी, अहाँ सभ केँ ई पत्र लिखि रहल छी जे सभ इफिसुस नगर मे परमेश्वरक पवित्र लोक छी, अर्थात्, अहाँ विश्वासी सभ केँ जे मसीह यीशु मे छी। 2 अपना सभक पिता परमेश्वर आ प्रभु यीशु मसीह अहाँ सभ पर कृपा करथि और अहाँ सभ केँ शान्ति देथि। 3 अपना सभक प्रभु यीशु मसीहक जे परमेश्वर आ पिता छथि, तिनकर स्तुति होनि! कारण, मसीह द्वारा ओ अपना सभ केँ स्वर्गीय क्षेत्रक प्रत्येक आत्मिक आशिष प्रदान कयने छथि। 4 ओ तँ संसारक सृष्टिओ सँ पहिने मसीह मे अपना सभ केँ चुनलनि, जाहि सँ अपना सभ मसीह मे संयुक्त भऽ कऽ हुनका नजरि मे पवित्र आ निष्कलंक होइ। 5 अपन प्रेमक कारणेँ ओ अपना खुशीक लेल और अपना इच्छानुसार शुरुए मे निश्चय कयलनि जे ओ अपना सभ केँ यीशु मसीह द्वारा अपन पोषपुत्र बनबथि, 6 जाहि सँ हुनकर ओ अनमोल कृपाक प्रशंसा होनि, जे ओ अपन प्रिय पुत्र द्वारा अपना सभ पर कयने छथि, जकरा पाबऽ जोगरक अपना सभ छलहुँ नहि। 7 किएक तँ मसीहक कारणेँ आ माध्यम सँ, अपना सभ केँ हुनकर बहाओल खून द्वारा छुटकारा भेटल अछि, अर्थात्, पापक क्षमा। ई सभ परमेश्वरक ओहि अपार कृपाक परिणाम भेल, 8 जे कृपा ओ अति खुशी मोन सँ अपना सभ पर बरसौलनि। अपन असीमित बुद्धि और ज्ञान सँ 9 ओ अपना सभ केँ अपन ओहि गुप्त योजना केँ बुझऽ देलनि जे ओ शुरुए मे अपना खुशीक लेल निर्धारित कयने छलाह, आ मसीह द्वारा पूरा करबाक निश्चय कयने छलाह। 10 हुनकर ओ योजना ई अछि जे, समय पूरा भेला पर ओ सभ वस्तु, अर्थात् जे किछु स्वर्ग मे अछि आ जे किछु पृथ्वी पर—सभ किछु केँ मसीहे द्वारा एकता मे आनि हुनकर अधीन करताह। 11 परमेश्वर अपना सभ केँ मसीहे मे अपन निज लोक होयबाक लेल चुनलनि। ई निर्णय हुनकर पहिने सँ बनाओल योजनाक भीतर छल; ओ तँ सभ बात मे अपन इच्छा और योजना पूरा करैत छथि। 12 हुनकर एहि निर्णयक उद्देश्य ई छलनि जे, हम सभ जे मसीह पर सभ सँ पहिने आशा रखनिहार छलहुँ—हमरा सभक कारणेँ आ हमरा सभक द्वारा हुनकर महिमाक गुणगान होनि। 13 तहिना अहूँ सभ जखन सत्यक सम्बाद सुनलहुँ, अपन उद्धारक शुभ समाचार सुनलहुँ, तँ विश्वासो कयलहुँ। आ जखन विश्वास कयलहुँ, तँ मसीह मे संयुक्त भऽ कऽ, परमेश्वरक देल वचनक अनुसार अहूँ सभ केँ हुनकर पवित्र आत्मा देल गेलाह, जे स्वयं अहाँ सभ पर लगाओल गेल एहि बातक छाप छथि जे अहाँ सभ हुनकर छिऐन। 14 परमेश्वरक पवित्र आत्मा बेनाक रूप मे एहि बात केँ पक्का करबाक लेल अपना सभ केँ देल गेलाह जे, जहिया परमेश्वर अपन निज लोकक छुटकारा पूरा करताह, तहिया अपना सभ केँ जे किछु उत्तराधिकार मे भेटऽ वला अछि, से सभ भेटि जायत। और एहि सभ बातक उद्देश्य ई अछि जे, हुनकर महिमाक प्रशंसा होनि। 15 एहि कारणेँ, प्रभु यीशु पर अहाँ सभक जे विश्वास अछि आ परमेश्वरक सभ लोकक लेल जे प्रेम अछि, ताहि विषय मे हम जहिया सँ सुनलहुँ, 16 तहिया सँ अहाँ सभक लेल सदिखन परमेश्वर केँ धन्यवाद दैत छिऐन, और अपना प्रार्थना मे अहाँ सभ केँ स्मरण करैत रहैत छी। 17 अपना सभक प्रभु यीशु मसीहक परमेश्वर जे महिमामय पिता छथि, तिनका सँ हम ई प्रार्थना करैत छी जे ओ अपन आत्मा द्वारा अहाँ सभ केँ बुद्धि देथि और आत्मिक बात सभ बुझबाक लेल प्रकाश प्रदान करथि, जाहि सँ हुनका आओर नीक जकाँ जानि सकियनि। 18 हम इहो प्रार्थना करैत छी जे ओ अहाँ सभक भितरी आँखि खोलि देथि, जाहि सँ अहाँ सभ जानि ली जे हुनका द्वारा बजाओल जयबाक कारणेँ अहाँ सभक आशा कतेक महान् अछि, और ई जानि ली जे हुनकर लोक हुनका लेल केहन अद्भुत आ अनमोल उत्तराधिकार छनि । 19 हुनका सँ हमर ई प्रार्थना अछि जे अहाँ सभ इहो जानि ली जे अपना सभ जे विश्वास कयनिहार छी तकरा सभक कल्याणक लेल सक्रिय रहऽ वला परमेश्वरक सामर्थ्य कतेक अपार अछि। ई सामर्थ्य वैह महान् शक्ति अछि जे ओ मसीह मे प्रगट कयलनि, जखन ओ हुनका मृत्यु सँ जिऔलनि आ स्वर्गीय क्षेत्र मे अपन दहिना कात बैसौलनि। 21 ओ हुनका ओहन स्थान देलथिन जे आरो सभ प्रकारक शासन और अधिकार, शक्ति और प्रभुता, और हर प्रकारक पद सँ उपर अछि जे ने मात्र एहि युग मे देल जा सकैत अछि, बल्कि आबऽ वला युग मे सेहो। 22 परमेश्वर सभ किछु हुनका अधीन मे कऽ देलथिन, और हुनका सभ बात पर सर्वोच्च प्रभु बना कऽ मण्डली केँ दऽ देलथिन। 23 मण्डली मसीहक देह अछि, आ तिनका सँ परिपूर्ण अछि जे सभ किछु केँ सभ तरहेँ परिपूर्णता धरि लऽ जाइत छथि।
1 अहाँ सभ जे छी, से अपन अपराध और पापक कारणेँ मरल छलहुँ। 2 ओहि समय मे अहाँ सभ पापक रस्ता पर चलैत एहि संसारक रीतिक अनुसार जीवन व्यतीत करैत छलहुँ। शैतान, जे एहि धरतीक उपरक आध्यात्मिक शक्ति सभक स्वामी अछि, तकर बात मानैत छलहुँ। ओ आत्मा एखनो परमेश्वरक बात नहि मानऽ वला लोक सभ मे क्रियाशील अछि। 3 अपना सभ केओ पहिने परमेश्वरक बात नहि माननिहार लोक सभ मे सम्मिलित छलहुँ। अपन शरीर आ मोनक इच्छा सभ केँ तृप्त करैत अपना सभ अपन पापी स्वभावक अभिलाषाक अनुसार जीवन व्यतीत करैत छलहुँ। आन सभ लोक जकाँ अपना सभ सेहो अपन पाप-स्वभावक कारणेँ परमेश्वरक क्रोध भोगऽ जोगरक छलहुँ। 4 मुदा अपार दया करऽ वला परमेश्वर अपना सभक प्रति महान् प्रेम रखबाक कारणेँ, 5 अपना सभ केँ मसीहक संग-संग जीवित कऽ देलनि—सेहो तहिया, जहिया अपना सभ अपराधक कारणेँ मरल छलहुँ! हुनकर कृपे सँ अहाँ सभक उद्धार भेल अछि। 6 ओ अपना सभ केँ मसीह यीशुक संग-संग जिऔलनि आ हुनका संग स्वर्गीय क्षेत्र मे बैसौलनि। 7 ओ ई एहि लेल कयलनि जे आबऽ वला युग सभ मे ओ अपन ओहि अतुलनीय कृपाक महान्ता केँ प्रदर्शित कऽ सकथि, जकरा ओ मसीह यीशु द्वारा अपना सभ पर दया कऽ कऽ प्रगट कयलनि अछि। 8 कारण, विश्वास द्वारा, हुनकर कृपे सँ, अहाँ सभक उद्धार भेल अछि—ई अहाँ सभक कोनो पुण्यक फल नहि, बल्कि परमेश्वर द्वारा देल गेल दान अछि। 9 ई ककरो द्वारा कयल कोनो कर्मक परिणाम नहि छैक, जे एहि पर केओ घमण्ड करय। 10 किएक तँ अपना सभ परमेश्वरेक हाथक कारीगरी छी—ओ अपना सभ केँ मसीह यीशु मे संयुक्त कऽ कऽ अपना सभक नव सृष्टि कयलनि, आ से एहि लेल जे अपना सभ ओ नीक काज सभ करी, जे काज ओ अपना सभक लेल पहिने सँ तैयार कयने छथि। 11 एहि लेल मोन पाड़ू, अहाँ सभ जे जन्म सँ यहूदी नहि, गैर-यहूदी छी, अहाँ सभक स्थिति पहिने केहन छल। यहूदी सभ, जे सभ अपना केँ “खतना कराओल लोक” कहैत अछि—ओना तँ ओकरा सभक खतना मात्र शरीर मे आ मनुष्ये द्वारा कयल गेल अछि—से सभ अहाँ सभ केँ “बिनु खतना वला लोक सभ” कहैत अछि। 12 मोन पाड़ू जे ओहि समय मे अहाँ सभ केँ मसीह सँ कोनो सम्बन्ध नहि छल। अहाँ सभ इस्राएलक नागरिकताक अधिकार सँ वंचित छलहुँ। परमेश्वर अपना वचन पर आधारित जे विशेष सम्बन्ध अपना लोकक संग स्थापित कयलनि, ताहि मे अहाँ सभ सहभागी नहि छलहुँ। अहाँ सभ केँ एहि संसार मे ने कोनो आशा छल आ ने अहाँ सभ लग परमेश्वर छलाह। 13 मुदा आब मसीह यीशु मे संयुक्त भऽ कऽ, अहाँ सभ जे पहिने दूर छलहुँ, आब मसीहक बहाओल खून द्वारा लग आनल गेल छी। 14 कारण, मसीह स्वयं अपना सभक मिलापक साधन छथि। ओ अपना सभ केँ—गैर-यहूदी आ यहूदी, दूनू केँ—एक बना देलनि। अपना सभक बीच जे दुश्मनी छल, जे दूनू केँ देवाल जकाँ एक-दोसर सँ अलग रखैत छल, तकरा ओ नष्ट कऽ देलनि। 15 ओ अपना मृत्यु द्वारा विधि-विधानक धर्म-नियम केँ रद्द कऽ देलनि। एना करऽ मे हुनकर उद्देश्य ई छलनि जे दूनू समूह सँ एक नव मानवताक सृष्टि करब जे हुनका मे संयुक्त होअय, आ एहि तरहेँ दूनू मे मेल करायब। 16 संगहि हुनकर इहो उद्देश्य रहनि जे, क्रूसक मृत्यु द्वारा दूनू केँ एहि नव मानवता मे जोड़ि कऽ परमेश्वर सँ मेल करायब और एहि तरहेँ ओ दुश्मनी जे परमेश्वर आ मनुष्यक बीच छल, तकरा समाप्त करायब। 17 तकरबाद ओ आबि कऽ अहाँ सभ केँ, जे दूर छलहुँ, और ओकरा सभ केँ, जे लग छल, दूनू केँ मेल-मिलापक सम्बाद सुनौलनि। 18 कारण, हुनका द्वारा अपना सभ केँ, अर्थात् गैर-यहूदी आ यहूदी दूनू केँ, एके पवित्र आत्माक माध्यम सँ पिता तक पहुँच अछि। 19 फलस्वरूप, अहाँ सभ आब परदेशी वा प्रवासी नहि रहलहुँ, बल्कि परमेश्वरक लोक मे मिलि कऽ हुनका सभक संग नागरिक छी। परमेश्वरक परिवारक सदस्य छी। 20 अहाँ सभ परमेश्वरक ओहि “भवन”क भाग छी, जाहि भवनक न्यो मसीह-दूत आ परमेश्वरक प्रवक्ता सभ छथि आ जकर मुख्य पाथर मसीह यीशु अपने छथि। 21 हिनके मे पूरा भवन एक संग जुटल रहि कऽ प्रभुक लेल एक पवित्र मन्दिर बनैत जा रहल अछि। 22 हिनके मे संयुक्त भऽ कऽ अहूँ सभ आओर लोक सभक संग परमेश्वरक वास-स्थान बनाओल जा रहल छी, जाहि मे ओ अपन आत्मा द्वारा वास करैत छथि।
1 एहि कारणेँ हम, पौलुस, जे अहाँ गैर-यहूदी सभक लेल आ मसीह यीशुक कारणेँ जहल मे बन्दी छी, अहाँ सभक लेल प्रार्थना करैत छी । 2 परमेश्वर अपना कृपा सँ अहाँ सभक भलाइक लेल हमरा एक विशेष काज सौंपि देने छथि, ताहि विषय मे अहाँ सभ अवश्य सुनने होयब। 3 एहि सम्बन्ध मे परमेश्वर स्वयं अपन गुप्त योजना हमरा पर प्रगट कयलनि, जाहि विषय मे हम ऊपर किछु चर्चा कयने छी। 4 अहाँ सभ जखन ओकरा पढ़ब तँ मसीहक सम्बन्ध मे परमेश्वरक गुप्त योजनाक ज्ञान हमरा की भेटल अछि से अहाँ सभ बुझि जायब। 5 ई योजना एहि सँ पहिलुका पीढ़ीक लोक सभ केँ एहि रूप मे नहि कहल गेल छल, जाहि रूप मे एखन परमेश्वरक आत्मा द्वारा हुनकर पवित्र मसीह-दूत आ हुनकर प्रवक्ता सभ पर प्रगट कयल गेल अछि। 6 ओ बात जे पहिने गुप्त छल, से ई अछि जे, शुभ समाचार द्वारा यहूदी सभक संग-संग गैर-यहूदी सभ सेहो उत्तराधिकारी अछि, संग-संग एके शरीरक अंग अछि आ मसीह मे पूरा कयल गेल परमेश्वरक वचन सभ मे संग-संग सहभागी अछि। 7 परमेश्वरक सामर्थ्यक प्रभाव द्वारा हुनका कृपा सँ हमरा ई वरदान देल गेल जे हम एहि शुभ समाचारक प्रचार करैत हुनकर सेवा करी। 8 हमरा पर, जे परमेश्वरक लोक मे छोटो सँ छोट छी, परमेश्वर ई कृपा कयलनि—ओ हमरा गैर-यहूदी सभ केँ मसीहक अथाह धनक शुभ समाचार सुनयबाक शुभ काज सौंपि देलनि। 9 सभ लोकक लेल हमरा ई स्पष्ट करबाक अछि जे परमेश्वरक गुप्त योजना की अछि। ई योजना परमेश्वर, जे सभ वस्तुक सृष्टिकर्ता छथि, से बितल युग सभ मे अपना लग गुप्त रखने छलाह। 10 हुनकर उद्देश्य ई छलनि जे, एखन, वर्तमाने समय मे, स्वर्गीय क्षेत्र मे शासन करऽ वला सभ और अधिकारी सभ मसीही मण्डली केँ देखि कऽ परमेश्वरक विभिन्न प्रकारक बुद्धि केँ जानि सकय। 11 ई परमेश्वरक ओहि योजनाक अनुसार अछि जे अनन्त काल सँ हुनका मोन मे छलनि आ जकरा ओ अपना सभक प्रभु, मसीह यीशु, द्वारा पूरा कयलनि। 12 एही मसीह यीशु द्वारा आ हुनका पर विश्वास करबाक कारणेँ, अपना सभ निर्भय भऽ कऽ पूर्ण भरोसाक संग परमेश्वर लग आबि सकैत छी। 13 तेँ अहाँ सभ सँ हमर ई विनती अछि जे, अहाँ सभक लेल जे कष्ट हम सहि रहल छी, ताहि कारणेँ अहाँ सभ हिम्मत नहि हारू, किएक तँ ई अहाँ सभक लेल गौरवक बात अछि। 14 एहि कारणेँ हम पिताक सामने ठेहुनिया रोपि कऽ प्रार्थना करैत छी— 15 ओही पिताक सामने जिनका नाम पर स्वर्ग मेहक और पृथ्वी परक हुनकर पूरा परिवारक नाम राखल गेल अछि। 16 हम ई प्रार्थना करैत छी जे ओ अपन अपार महिमाक अनुरूप अपन सामर्थ्यक भण्डार सँ अपना आत्मा द्वारा अहाँ सभ केँ सामर्थ्य देथि जाहि सँ अहाँ सभक भितरी मोन आओर मजगूत होअय, 17 आ अहाँ सभक विश्वास द्वारा मसीह अहाँ सभक मोन मे वास करथि। हम इहो प्रार्थना करैत छी जे मसीहक प्रेम मे अहाँ सभक जड़ि गहिंराइ धरि जा कऽ और हुनका प्रेम पर अहाँ सभक न्यो मजगूत भऽ कऽ, 18 अहाँ सभ केँ परमेश्वरक सभ लोकक संग ई बुझबाक क्षमता होअय जे मसीहक प्रेमक लम्बाइ, चौड़ाइ, उँचाइ और गहिंराइ कतेक अछि, 19 और एहि प्रेम केँ जानी जकरा पूर्ण रूप सँ जानल नहि जा सकैत अछि। एहि प्रकारेँ अहाँ सभ बढ़ि कऽ परमेश्वरक समस्त परिपूर्णता सँ भरि जायब। 20 आब ओ जे अपन सामर्थ्य अपना सभक भीतर क्रियाशील राखि कऽ अपना सभक सभ विनती आ कल्पनो सँ बढ़ि कऽ एतेक कऽ सकैत छथि जाहि बातक पार नहि पाबि सकैत छी 21 तिनकर महिमा पुस्त-पुस्तानि तक युगानुयुग मण्डली मे और मसीह यीशु मे प्रगट होइत रहनि। आमीन!
1 एहि सभ बातक कारणेँ हम, जे प्रभुक लेल कैदी छी, अहाँ सभ सँ अनुरोध करैत छी जे, जाहि उद्देश्य सँ परमेश्वर अहाँ सभ केँ हुनकर लोक होयबाक लेल बजौलनि, ताहि उद्देश्यक अनुरूप जीवन व्यतीत करू। 2 पूर्ण रूप सँ विनम्र भऽ कऽ कोमलताक संग एक-दोसराक संग धैर्य राखू। प्रेम सँ एक-दोसराक संग सहनशील होउ। 3 एक-दोसराक संग मेल सँ रहि कऽ ओहि एकता केँ कायम रखबाक प्रयत्न करैत रहू जे पवित्र आत्मा प्रदान करैत छथि। 4 मसीहक शरीर एके होइत अछि, और परमेश्वरक आत्मा सेहो एके छथि—जहिना अहाँ सभ जखन बजाओल गेलहुँ तँ एके आशा मे सहभागी होयबाक लेल बजाओल गेलहुँ। 5 एके प्रभु छथि, एके विश्वास अछि, और एके बपतिस्मा। 6 एकेटा छथि जे अपना सभ गोटेक परमेश्वर और पिता छथि, अपना सभ गोटेक उपर छथि, अपना सभ गोटेक माध्यम सँ काज करैत छथि, और अपना सभ गोटेक हृदय मे वास करैत छथि। 7 मुदा अपना सभ केँ भेटल वरदान अलग-अलग अछि—मसीह जाहि रूप मे बाँटऽ चाहलनि, ताहि अनुसारेँ अपना सभ मे सँ हर एक केँ कृपाक विशेष वरदान देल गेल अछि। 8 धर्मशास्त्र ई बात कहितो अछि, जेना लिखल अछि जे, “ओ जखन ऊँच स्थान पर चढ़लाह, तँ संग मे बन्दीक समूह लऽ गेलाह, आ लोक केँ उपहार देलनि।” 9 जखन लिखल अछि जे, “ओ चढ़लाह”, तँ तकर अर्थ की भेल? ओकर अर्थ ई अछि जे ओ पहिने नीचाँ, पृथ्वी पर उतरल छलाह। 10 जे नीचाँ उतरलाह, सैह छथि जे आब ऊपर चढ़लाह—समस्त आकाशो सँ बहुत उपर, जाहि सँ ओ सम्पूर्ण सृष्टि केँ परिपूर्णता धरि लऽ जा सकथि। 11 वैह विभिन्न वरदान बँटलनि—किछु लोक केँ मसीह-दूत होयबाक वरदान देलथिन, किछु लोक केँ परमेश्वरक प्रवक्ता होयबाक, किछु लोक केँ शुभ समाचारक प्रचार करऽ वला होयबाक, आ किछु लोक केँ मण्डलीक देख-रेख करऽ वला और शिक्षक होयबाक वरदान देलथिन। 12 ई वरदान सभ देबऽ मे मसीहक उद्देश्य ई छलनि जे एहि सभ द्वारा परमेश्वरक लोक केँ सेवा-काज सभ करबाक लेल तैयार कयल जाय जाहि सँ हुनकर देह मजगूत होनि। 13 एहि तरहेँ अपना सभ केओ संग-संग बढ़ि कऽ, विश्वास मे और परमेश्वरक पुत्रक ज्ञान मे एक भऽ जायब, और पूर्ण सिद्धता, अर्थात् मसीहक पूर्णता, धरि पहुँचब। 14 एहि प्रकारेँ अपना सभ छोट बच्चा नहि रहि जायब जे प्रत्येक शिक्षाक झोंक सँ एम्हर-ओम्हर फेकाइत रही आ धोखा देबऽ वला धूर्त लोकक छल-प्रपंच सँ बनाओल जाल मे फँसि कऽ बहकाओल जाइ। 15 बल्कि प्रेमक संग सत्य बजैत अपना सभ बढ़ि कऽ सभ बात मे तिनका जकाँ बनैत जायब जे शरीरक सिर छथि, अर्थात् मसीह। 16 हुनके द्वारा पूरा देह एक संग जुटल रहैत अछि, देहक सभ अलग-अलग अंग प्रत्येक जोड़क सहायता सँ एक-दोसर सँ संयुक्त रहैत अछि, और एहि तरहेँ जखन प्रत्येक अंग ठीक सँ अपन काज करैत अछि तँ पूरा देह बढ़ि कऽ प्रेम मे अपना केँ मजगूत करैत अछि। 17 तेँ अहाँ सभ केँ हम ई कहऽ चाहैत छी आ प्रभु केँ साक्षी राखि एहि बात पर जोर दैत छी जे, आब सँ तकरा सभ जकाँ आचरण नहि करू जे सभ परमेश्वर केँ नहि चिन्हऽ वला जाति सभक लोक अछि। ओकरा सभक सोच-विचार निरर्थक छैक, 18 ओकरा सभक बुद्धि अन्हार सँ भरल छैक और ओ सभ ओहि जीवन सँ वंचित अछि जे परमेश्वर प्रदान करैत छथि। एकर कारण ई अछि जे ओ सभ जिद्दी बनि कऽ अज्ञान भऽ गेल अछि। 19 ओकरा सभक विवेक सुन्न भऽ गेल छैक, ओकरा सभ केँ कोनो लाजे नहि छैक। ओ सभ जानि-बुझि कऽ शारीरिक इच्छाक दास बनल अछि, आ सभ तरहक गन्दा काज करैत, ओहने-ओहने आओर काज करबाक लेल लालायित रहैत अछि। 20 मुदा अहाँ सभ जखन मसीह केँ चिन्हलहुँ तँ हुनका सँ एहि प्रकारक जीवन बितयबाक बात नहि सिखलहुँ। 21 अहाँ सभ अवश्य हुनका विषय मे सुनने छी और हुनका सम्बन्ध मे शिक्षा पौने छी, जे शिक्षा ओहि सत्यक अनुसार अछि जे यीशु मे प्रगट भेल। 22 अहाँ सभ केँ ई सिखाओल गेल जे अपन पुरान स्वभाव, जे अहाँ सभक पहिलुका चालि-चलन सँ स्पष्ट होइत छल, तकरा अहाँ सभ केँ त्यागि देबाक अछि, किएक तँ ओ स्वभाव धोखा देबऽ वला अभिलाषा सभक कारणेँ बिगड़ैत जा रहल अछि। 23 अहाँ सभ केँ ई सिखाओल गेल जे पूर्ण रूप सँ आत्मा और विचार मे नव लोक बनबाक अछि, 24 और नवका स्वभाव धारण करबाक अछि। नवका स्वभाव परमेश्वरक स्वरूप मे रचल गेल अछि आ ओहि धार्मिकता और पवित्रता मे व्यक्त होइत अछि जे सत्य पर आधारित अछि। 25 एहि लेल, अहाँ सभ मे सँ प्रत्येक व्यक्ति झूठ बजनाइ छोड़ू, और एक-दोसर सँ सत्य बाजू, कारण, अपना सभ एके शरीरक अंग भऽ कऽ एक-दोसराक छी। 26 “जँ क्रोधित भऽ जाइ, तँ अपना क्रोध केँ पापक कारण नहि बनऽ दिअ” —सूर्य डुबऽ सँ पहिनहि अपना क्रोध सँ मुक्त होउ। 27 शैतान केँ अवसर नहि दिऔक! 28 जे चोरी करैत अछि, से आब चोरी नहि करओ, बल्कि अपना हाथ सँ इमानदारीपूर्बक परिश्रम करओ, जाहि सँ ओ आवश्यकता मे पड़ल लोक सभक मदति कऽ सकय। 29 अहाँ सभक मुँह सँ कोनो हानि पहुँचाबऽ वला बात नहि निकलय, बल्कि एहन बात जे दोसराक उन्नतिक लेल होअय और अवसरक अनुरूप होअय, जाहि सँ ओहि सँ सुननिहारक हित होयतैक। 30 परमेश्वरक पवित्र आत्मा केँ दुखी नहि करिऔन, किएक तँ पवित्र आत्मा स्वयं अहाँ सभ पर परमेश्वरक लगाओल छाप छथि जे एहि बात केँ पक्का करैत अछि जे छुटकाराक दिन मे अहूँ सभक छुटकारा होयत। 31 अहाँ सभ हर तरहक कटुता, क्रोध, तामस, चिकरनाइ, दोसराक निन्दा कयनाइ और दुष्ट भावना केँ अपना सँ दूर करू। 32 एक-दोसराक प्रति दयालु बनू, एक-दोसर केँ करुणा देखाउ, और जहिना परमेश्वर मसीहक कारणेँ अहाँ सभ केँ क्षमा कऽ देलनि तहिना अहूँ सभ एक-दोसर केँ क्षमा करू।
1 संक्षेप मे ई जे, परमेश्वर केँ नमूना मानि, अपन आचरण हुनका जकाँ राखू, कारण, अहाँ सभ हुनकर धिआ-पुता छी, और ओ अहाँ सभ सँ बहुत प्रेम करैत छथि। 2 और जाहि तरहेँ मसीह अपना सभ सँ प्रेम कयलनि और अपना सभक लेल सुगन्धित चढ़ौना आ बलिदानक रूप मे अपना केँ पिता लग अर्पित कयलनि, तहिना अहाँ सभ प्रेमक मार्ग पर चलू। 3 अहाँ सभ मे कोनो तरहक अनैतिक शारीरिक सम्बन्ध नहि होअय, कोनो प्रकारक अपवित्र विचार-व्यवहार नहि होअय, कोनो लोभ नहि होअय—एहि सभक चर्चो तक नहि। कारण, ई सभ बात परमेश्वरक पवित्र लोकक लेल उचित नहि अछि। 4 आ ने निर्लज्जता, मूर्खतापूर्ण बात-चीत वा अभद्र मजाक होअय—अहाँ सभ केँ एहन बात सभ शोभा नहि दैत अछि, बल्कि एहि सभक बदला मे प्रभु केँ धन्यवादे देबाक काज होयबाक चाही। 5 कारण, ई निश्चित रूप सँ जानि लिअ जे, कोनो अनैतिक वा अपवित्र काज करऽ वला, वा लोभी आदमी केँ मसीह आ परमेश्वरक राज्य मे कोनो हिस्सा नहि होयतैक। लोभ कयनाइ आ मूर्तिपूजा कयनाइ बराबरि बात अछि। 6 केओ निरर्थक तर्क द्वारा अहाँ सभ केँ धोखा नहि दओ—एही काज सभक कारणेँ आज्ञा नहि माननिहार सभ पर परमेश्वरक प्रकोप अबैत अछि। 7 तेँ ओहन काज करऽ वला सभक संग सहभागी नहि बनू। 8 अहाँ सभ पहिने अन्हार सँ भरल छलहुँ। आब प्रभुक लोक होयबाक कारणेँ इजोत सँ भरल छी। तेँ इजोतक सन्तान जकाँ आचरण करू, 9 किएक तँ इजोत जतऽ अछि, ततऽ ओ सभ बात उत्पन्न होइत अछि जे नीक, उचित और सत्य अछि। 10 ई सिखबाक कोशिश करैत रहू जे कोन-कोन बात सँ प्रभु प्रसन्न होइत छथि। 11 अन्हार द्वारा उत्पन्न व्यर्थक काज सभ मे भाग नहि लिअ, बल्कि ओकरा सभ केँ इजोत द्वारा देखार करू जे केहन काज अछि। 12 कारण, जे काज अनाज्ञाकारी लोक नुका कऽ करैत अछि तकर चर्चो कयनाइ लाजक बात अछि। 13 मुदा जे किछु इजोत मे लाओल जाइत अछि, से स्पष्ट रूप सँ देखाइ दैत अछि, और जे वस्तु एहि तरहेँ इजोत सँ प्रगट कयल जाइत अछि, से अपने इजोत बनि जाइत अछि। 14 एहि कारणेँ कहलो जाइत अछि जे, “हौ सुतनिहार, जागह! 2 मृत्यु मे सँ जीबि उठह, तँ मसीह तोरा पर अपन इजोत चमकौथुन।” 15 एहि लेल, अपन आचरणक पूरा-पूरा ध्यान राखू। निर्बुद्धि लोक जकाँ नहि, बल्कि बुद्धिमान जकाँ आचरण करू। 16 हर अवसरक पूरा सदुपयोग करू, कारण, ई वर्तमान समय खराब अछि। 17 तेँ एहन लोक नहि बनू जे बिनु सोचि-विचारि कऽ काज करैत अछि, बल्कि प्रभुक इच्छा की अछि, से बुझू। 18 दारू पिबि कऽ मतवाला नहि होउ, किएक तँ मतवालापन मात्र दुराचार वला मार्ग पर लऽ जाइत अछि, बल्कि परमेश्वरक आत्मा सँ परिपूर्ण होउ। 19 आपस मे भजन, स्तुति-गान और भक्तिक गीत गबैत रहू। अपना मोनो मे प्रभुक लेल गीत गबैत-बजबैत रहू, 20 और अपना सभक प्रभु यीशु मसीहक माध्यम सँ हरदम सभ बातक लेल परमेश्वर पिता केँ धन्यवाद दिऔन। 21 मसीहक लेल श्रद्धा-भय रखबाक कारणेँ एक-दोसराक अधीन रहू। 22 हे स्त्री सभ, अहाँ सभ जहिना प्रभुक अधीन मे रहैत छी, तहिना अपना-अपना पतिक अधीन मे रहू। 23 कारण, जाहि तरहेँ मसीह अपन शरीरक, अर्थात् मण्डलीक, सिर छथि और ओकर मुक्तिदाता छथि, तहिना पति अपन स्त्रीक उपर, अर्थात् ओकर सिर, अछि। 24 तँ जाहि तरहेँ मण्डली मसीहक अधीन रहैत अछि, ताहि तरहेँ स्त्री सभ केँ सभ बात मे अपना-अपना पतिक अधीन रहबाक छैक। 25 यौ पति लोकनि, ओहि तरहेँ अपना स्त्री सँ प्रेम करू जाहि तरहेँ मसीह मण्डली सँ कयलनि और ओकरा लेल अपना केँ अर्पित कऽ देलनि, 26 जाहि सँ ओ ओकरा जल सँ धो कऽ वचन द्वारा शुद्ध करैत ओकरा पवित्र कऽ सकथि। 27 ई बात ओ एहि लेल कयलनि जाहि सँ ओ अपना सामने मण्डली केँ एक एहन कनियाँक रूप मे प्रस्तुत कऽ सकथि जे अति सुन्नरि होअय, जकरा मे ने कोनो दाग, ने झुर्री आ ने कोनो आन दोष होइक, बल्कि जे पवित्र और निष्कलंक होअय। 28 तहिना, पतिओ लोकनि केँ अपना स्त्री सँ अपन शरीर जकाँ प्रेम करबाक छैक। जे केओ अपना स्त्री सँ प्रेम करैत अछि, से अपना सँ प्रेम करैत अछि। 29 केओ कहाँ अपना शरीर सँ घृणा करैत अछि? बरु, ओ ओकर पालन-पोषण करैत अछि, ओकर देख-रेख करैत अछि। मसीहो मण्डलीक संग एहिना करैत छथि, कारण, मण्डली हुनकर शरीर छनि, 30 आ अपना सभ ओहि शरीरक अंग छी। 31 धर्मशास्त्र मे लिखल अछि जे, “एहि कारणेँ पुरुष अपन माय-बाबू केँ छोड़ि कऽ अपन स्त्रीक संग रहत, और दूनू एक शरीर भऽ जायत।” 32 ई एकटा पैघ रहस्य अछि, मुदा हम एकरा एहि रूप मे बुझैत छी जे ई मसीह और हुनकर मण्डलीक सम्बन्धक दिस संकेत करैत अछि। 33 तैयो एकर व्यक्तिगत रूप मे सेहो अर्थ होइत अछि—अहाँ सभ मे सँ हर व्यक्ति जहिना अपना सँ प्रेम करैत छी तहिना अपना स्त्री सँ प्रेम करू, और स्त्री अपन पतिक आदर करथि।
1 हौ धिआ-पुता सभ! तोँ सभ प्रभुक लोक होयबाक कारणेँ अपन माय-बाबूक आज्ञा मानह, किएक तँ यैह उचित छह। 2 धर्मशास्त्र मे लिखल अछि, “अपन माय-बाबूक आदर करह”—ई पहिल आज्ञा अछि जकरा संग एक वचनो देल गेल अछि। 3 ओ वचन ई अछि जे, “...जाहि सँ तोहर कल्याण होअओ और तोँ बहुतो साल धरि पृथ्वी पर जीबैत रहह।” 4 यौ पिता लोकनि, अहाँ सभ अपन बच्चा सभक संग एहन व्यवहार नहि करू जाहि सँ ओ सभ तंग भऽ कऽ खिसिआयल रहि जाय, बल्कि ओकरा सभक पालन-पोषण प्रभुक शिक्षा आ निर्देशक अनुसार करिऔक। 5 यौ दास सभ! अहाँ सभ जहिना मसीहक सेवा करितहुँ तहिना निष्कपट मोन सँ भय आ आदरक संग तिनका सभक आज्ञा मानू जे सभ एहि संसार मे अहाँ सभक मालिक छथि। 6 मालिक केँ खुश करबाक उद्देश्य सँ, जखन ओ देखैत छथि तखने मात्र अपन काज नहि करू, बल्कि पूरा मोन सँ परमेश्वरक इच्छा पूरा करैत अपना केँ मसीहेक दास बुझि कऽ करू। 7 अपन सेवा-काज खुशी मोन सँ करू, ई बुझैत जे मनुष्यक लेल नहि, बल्कि प्रभुक लेल करैत छी, 8 कारण, अहाँ सभ तँ जनिते छी जे प्रत्येक व्यक्ति, ओ चाहे दास होअय वा स्वतन्त्र, ओ जे कोनो नीक काज करत, तकर प्रतिफल प्रभु सँ पाओत। 9 आब अहाँ सभ, जे मालिक छी, अहूँ सभ उचिते व्यवहार अपन दास सभक संग करू। डेरौनाइ-धमकौनाइ छोड़ि दिअ, एहि बातक मोन रखैत जे स्वर्ग मे ओकरा सभक आ अहाँ सभक एके मालिक छथि, और ओ ककरो संग पक्षपात नहि करैत छथि। 10 अन्त मे ई जे, प्रभुक असीम सामर्थ्य द्वारा हुनका मे बलवन्त होउ। 11 परमेश्वर सँ भेटल सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्र धारण करू जाहि सँ शैतानक छल-कपट वला चालि सभक सामना कऽ सकी। 12 कारण, अपना सभक संघर्ष मनुष्य सँ नहि अछि, बल्कि एहि अन्हार संसारक अदृश्य अधिपति सभ, अधिकारी सभ आ शासन करऽ वला सभ सँ अछि, आत्मिक क्षेत्र सभक दुष्ट शक्ति सभ सँ अछि। 13 एहि लेल, परमेश्वरक सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्र धारण करू, जाहि सँ दुष्ट वला दुर्दिन जखन आओत, तँ अहाँ सभ दुष्टताक सामना कऽ सकी, आ अन्त धरि लड़ि कऽ ठाढ़ रहि सकी। 14 तेँ डाँड़ मे सत्यक फाँड़ बान्हि कऽ, धार्मिकताक कवच धारण कऽ आ शान्तिक सुसमाचार सुनयबाक लेल उत्साहक जुत्ता पयर मे पहिरि दृढ़ भऽ कऽ ठाढ़ होउ। 16 संगहि विश्वासक ढाल हाथ मे लेने रहू, जकरा द्वारा अहाँ सभ दुष्ट शैतानक सभ अग्निवाण मिझा सकब। 17 उद्धारक टोप लगाउ आ पवित्र आत्माक तरुआरि, अर्थात् परमेश्वरक वचन, सेहो लऽ लिअ। 18 हर समय मे परमेश्वरक आत्माक सहायता सँ सभ प्रकारक प्रार्थना और विनती प्रभु सँ करैत रहू। प्रार्थना करऽ मे सदिखन सचेत आ लगनशील रहू। परमेश्वरक सभ लोकक लेल प्रार्थना कयनाइ नहि छोड़ू। 19 हमरो लेल प्रार्थना करू। प्रार्थना ई करू जे हमरा जखन बजबाक अवसर भेटय, तखन कहऽ वला शब्द हमरा देल जाय, जाहि सँ हम निडर भऽ कऽ लोक केँ शुभ समाचारक ओहि सत्य केँ सुना सकी, जे पहिने गुप्त छल मुदा आब प्रगट कयल गेल अछि। 20 हम ओही शुभ समाचारक लेल राजदूत छी, आ जहल मे कैदी छी । ई प्रार्थना करू जे, जहिना हमरा साहसक संग शुभ समाचार सुनयबाक चाही, तहिना हम सुना सेहो सकी। 21 प्रभुक विश्वस्त सेवक, हमर प्रिय भाय तुखिकुस अहाँ सभ केँ सभ बात सुनौताह, जाहि सँ अहूँ सभ बुझब जे हम कोना छी आ की कऽ रहल छी। 22 हम हुनका एही लेल अहाँ सभक ओतऽ पठा रहल छी, जे अहाँ सभ हमरा सभक सभ हाल-समाचार बुझी, आ ओ अहाँ सभक हिम्मत बढ़बथि। 23 पिता परमेश्वर आ प्रभु यीशु मसीहक दिस सँ सभ भाइ लोकनि केँ शान्ति आ विश्वासक संग प्रेम भेटैत रहय। 24 परमेश्वरक कृपा ओहि सभ लोक पर रहय, जे सभ अपना सभक प्रभु यीशु मसीह सँ ओहन प्रेम करैत अछि जे कहियो समाप्त नहि होयत।
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