Colossians11 हम पौलुस, जे परमेश्वरक इच्छा सँ मसीह यीशुक एक मसीह-दूत छी, से अपना सभक भाय तिमुथियुसक संग ई पत्र अहाँ सभ केँ लिखि रहल छी, 2 जे सभ कुलुस्से नगर मे रहनिहार परमेश्वरक पवित्र लोक छी, अर्थात् अहाँ विश्वासी भाइ सभ केँ जे मसीह मे छी। अपना सभक पिता परमेश्वर अहाँ सभ पर कृपा करथि आ अहाँ सभ केँ शान्ति देथि। 3 हम सभ जखन-कखनो अहाँ सभक लेल प्रार्थना करैत छी, तँ अपना सभक प्रभु यीशु मसीहक पिता, परमेश्वर केँ धन्यवाद दैत छियनि, 4 किएक तँ मसीह यीशु पर अहाँ सभक जे विश्वास अछि आ परमेश्वरक सभ लोकक लेल जे प्रेम अछि, ताहि सम्बन्ध मे हम सभ सुनने छी। 5 अहाँ सभक ई विश्वास आ प्रेम अहाँ सभक आशा पर आधारित अछि, अर्थात् ओहि बात सभ केँ पयबाक आशा जे बात सभ अहाँ सभक लेल स्वर्ग मे सुरक्षित राखल अछि। एहि बात सभक विषय मे अहाँ सभ तखन सुनलहुँ जखन सत्यक सम्बाद, अर्थात्, सुसमाचार, अहाँ सभ केँ सुनाओल गेल। 6 जहिना ई सुसमाचार अहाँ सभक बीच मे ओहि दिन सँ परिवर्तन लबैत जा रहल अछि जहिया सँ अहाँ सभ एकरा सुनलहुँ आ परमेश्वरक कृपाक सत्यता केँ बुझलहुँ, तहिना ओ सौंसे संसार मे लोकक जीवन मे परिवर्तन लाबि रहल अछि आ बढ़ैत जा रहल अछि। 7 एहि बातक शिक्षा अहाँ सभ अपना सभक प्रिय भाय एपाफ्रास सँ पौलहुँ, जे हमरा सभक संग-संग सेवा करैत छथि आ हमरा सभक प्रतिनिधिक रूप मे मसीहक विश्वासयोग्य सेवक छथि। 8 ओ हमरा सभ केँ कहने छथि जे परमेश्वरक आत्मा अहाँ सभ मे कतेक प्रेम उत्पन्न कयने छथि। 9 एहि कारणेँ, जाहि दिन सँ हम सभ अहाँ सभक विषय मे सुनलहुँ, ताहि दिन सँ अहाँ सभक लेल परमेश्वर सँ प्रार्थना कयनाइ नहि छोड़ने छी। हुनका सँ ई विनती करैत छी जे, ओ अहाँ सभ केँ पूर्ण आत्मिक बुद्धि और बुझबाक क्षमता देथि जाहि सँ अहाँ सभ पूर्ण रूप सँ जानी जे हुनकर इच्छा की अछि। 10 हुनका सँ ई विनती एहि लेल करैत छी जाहि सँ अहाँ सभक आचरण प्रभुक योग्य होअय, जाहि सँ अहाँ सभ प्रभु केँ सभ बात मे प्रसन्न करी। हम प्रार्थना करैत छिऐन जे अहाँ सभ हर प्रकारक भलाइक काज करैत रही आ परमेश्वरक ज्ञान मे बढ़ैत रही। 11 परमेश्वर अपन अद्भुत सामर्थ्यक महान् शक्ति सँ अहाँ सभ केँ मजगूत बनबथि, जाहि सँ सभ बात केँ अहाँ सभ धैर्य आ सहनशीलताक संग सहि सकी, 12 आ आनन्दपूर्बक ओहि पिता केँ धन्यवाद दैत रही जे अहाँ सभ केँ इजोतक राज्य मे रहऽ वला हुनकर लोकक उत्तराधिकार मे सहभागी होयबा जोगरक बनौने छथि। 13 कारण, ओ अपना सभ केँ अन्हारक राज्य सँ मुक्त करा कऽ अपन प्रिय पुत्रक राज्य मे प्रवेश करौने छथि। 14 हुनका पुत्र द्वारा अपना सभ केँ छुटकारा भेटल अछि, पापक क्षमा प्राप्त भेल अछि। 15 यीशु मसीह अदृश्य परमेश्वरक प्रतिरूप छथि, ओ समस्त सृष्टिक उपर सर्वोच्च स्थान पर छथि। 16 किएक तँ हुनके माध्यम सँ सभ वस्तुक सृष्टि भेल, ओ चाहे स्वर्गक होअय वा पृथ्वीक, दृश्य होअय वा अदृश्य, सिंहासन होअय वा प्रभुता, शासन होअय वा अधिकार—सभ वस्तु हुनके द्वारा आ हुनके लेल रचल गेल अछि। 17 ओ सभ वस्तुक सृष्टि सँ पहिने सँ छथि आ समस्त सृष्टि हुनके मे स्थिर रहैत अछि। 18 ओ शरीरक, अर्थात् मण्डलीक, सिर छथि। वैह शुरुआत छथि, और पहिल छथि जे मरल सभ मे सँ जीबि उठलाह, जाहि सँ सभ बात मे हुनके प्रथम स्थान भेटनि। 19 किएक तँ परमेश्वरक इच्छा यैह भेलनि जे हुनकर समस्त परिपूर्णता मसीह मे निवास करनि, 20 आ क्रूस पर मसीह जे खून बहौलनि, तकरा मेल-मिलापक आधार बना कऽ हुनके द्वारा सभ वस्तुक, चाहे ओ पृथ्वी परक होअय वा स्वर्ग मेहक, अपना सँ मेल करा लेथि। 21 पहिने अहूँ सभ परमेश्वर सँ दूर छलहुँ। अहाँ सभ अपन अधलाह विचार-व्यवहारक कारणेँ अपना मोन मे परमेश्वर सँ शत्रुता कयने छलहुँ। 22 मुदा आब परमेश्वर मसीहक हाड़-माँसुक शरीरक मृत्यु द्वारा अपना संग अहाँ सभक मेल करौने छथि, जाहि सँ ओ अहाँ सभ केँ पवित्र, निर्दोष आ निष्कलंक बना कऽ अपना सम्मुख उपस्थित करबथि। 23 परन्तु ई तखने सम्भव अछि जखन अहाँ सभ अपना विश्वास मे दृढ़ भऽ कऽ स्थिर बनल रही आ ओहि आशा सँ विचलित नहि होइ जे अहाँ सभ केँ सुसमाचार द्वारा देल गेल अछि। ई वैह सुसमाचार अछि जे अहाँ सभ सुनलहुँ आ जे आकाशक नीचाँ समस्त सृष्टि मे सुनाओल गेल, और हम पौलुस परमेश्वरक सेवा मे ओकर प्रचार करबाक लेल पठाओल गेल छी। 24 आब हम अहाँ सभक लेल जे कष्ट भोगि रहल छी ताहि कारणेँ आनन्दित छी। एखनो मसीह केँ अपना शरीरक लेल, अर्थात् मण्डलीक लेल, दुःख भोगनाइ बाँकी छनि, और हम अपना देह मे दुःख भोगि कऽ तकरा पूरा करऽ मे सहभागी होइत छी। 25 परमेश्वर अहाँ सभक लाभक लेल एकटा काज हमरा जिम्मा मे दऽ कऽ मण्डलीक सेवक नियुक्त कयलनि, आ से ई अछि जे हम परमेश्वरक वचनक पूरा-पूरी प्रचार करी, 26 अर्थात् ओहि रहस्यक प्रचार, जे युग-युग सँ आ पीढ़ी-दर-पीढ़ी गुप्त छल, मुदा आब परमेश्वरक लोक सभक लेल प्रगट कयल गेल अछि। 27 परमेश्वर अपना लोकक लेल ई रहस्य प्रगट करबाक निश्चय कयलनि जाहि सँ ओ सभ जानथि जे हुनकर योजना, जे सभ जातिक लोकक लेल अछि, से कतेक अद्भुत आ वैभवपूर्ण अछि। ओ रहस्य ई अछि जे, मसीह अपने अहाँ सभ मे वास करैत छथि आ वैह एहि बातक आशाक आधार छथि जे अहाँ सभ परमेश्वरक महिमा मे सहभागी होयब। 28 हम सभ एही मसीहक प्रचार करैत छी। पूर्ण बुद्धि-ज्ञान प्रयोग कऽ कऽ प्रत्येक मनुष्य केँ चेतावनी दैत छी, प्रत्येक मनुष्य केँ शिक्षा दैत छी, जाहि सँ प्रत्येक मनुष्य केँ मसीह मे परिपूर्णता धरि पहुँचा कऽ हुनका सम्मुख प्रस्तुत कऽ सकी। 29 एहि उद्देश्यक पूर्तिक लेल हम हुनका सामर्थ्य सँ, जे हमरा मे प्रबल रूप सँ क्रियाशील अछि, कठिन परिश्रम करैत संघर्ष मे लागल रहैत छी।
1 हम चाहैत छी जे अहाँ सभ ई बात जानि ली जे हम अहाँ सभक लेल, लौदीकिया नगरक विश्वासी सभक लेल आ ओहि सभ लोकक लेल जे सभ हमरा व्यक्तिगत रूप सँ कहियो नहि देखने छथि, केहन संघर्ष करैत रहैत छी। 2 ई हम एहि लेल करैत छी जाहि सँ ओ सभ अपना मोन मे उत्साहित होथि, प्रेमक एकता मे बान्हल रहथि, ओहि आत्मिक धन केँ प्राप्त करथि जे ज्ञानक परिपूर्णता सँ भेटैत अछि, आ एहि तरहेँ परमेश्वरक रहस्य केँ, अर्थात्, मसीह केँ, पूर्ण रूप सँ चिन्हथि। 3 हुनके मे बुद्धि और ज्ञानक समस्त भण्डार नुकायल अछि। 4 ई हम एहि लेल कहि रहल छी जे, केओ अहाँ सभ केँ ओहन तर्क द्वारा बहकाबऽ नहि पाबओ, जे सुनऽ मे ठीक लगितो गलत अछि। 5 ओना तँ हम शारीरिक रूप सँ अहाँ सभ सँ दूर छी, तैयो हमर मोन अहाँ सभक संग अछि आ हमरा ई देखि कऽ आनन्द होइत अछि जे अहाँ सभक जीवन कतेक व्यवस्थित अछि आ मसीह मेहक अहाँ सभक विश्वास कतेक दृढ़ अछि। 6 एहि लेल जहिना अहाँ सभ मसीह यीशु केँ अपन प्रभु मानि कऽ ग्रहण कऽ लेने छी, तहिना हुनका मे रहि कऽ अपन जीवन व्यतीत करू। 7 हुनका मे अपन जड़ि मजगूत राखि कऽ हुनका मे बढ़ैत रहू आ बलवन्त बनैत जाउ। अहाँ सभ केँ जाहि विश्वासक शिक्षा प्राप्त भेल अछि, ताहि मे स्थिर रहि कऽ पूरा मोन सँ प्रभु केँ धन्यवाद दैत रहिऔन। 8 सावधान रहू, कतौ एना नहि होअय जे, केओ अहाँ सभ केँ छल-कपट सँ फुसियाहा तर्क-वितर्क द्वारा धोखा दऽ कऽ अपना जाल मे फँसाबय। ओहन लोकक तर्क-वितर्क मसीह पर नहि, बल्कि मनुष्यक परम्परा सभ पर आ एहि संसारक सिद्धान्त सभ पर आधारित अछि। 9 किएक तँ मसीह मे परमेश्वरक समस्त परिपूर्णता शारीरिक रूप मे वास करैत अछि, 10 आ मसीह मे संयुक्त भेला सँ अहूँ सभ पूर्ण भऽ गेल छी। प्रत्येक शक्ति आ अधिकार हुनके अधीन मे अछि। 11 मसीहे मे अहाँ सभक खतना सेहो भेल अछि—एहन खतना नहि, जे हाथ सँ कयल जाइत अछि ⌞जाहि मे शरीरक कनेक चमड़ा काटि कऽ हटाओल जाइत अछि⌟, बल्कि एहन, जे मसीह द्वारा कयल जाइत अछि आ जाहि द्वारा अहाँ सभक पाप-स्वभावक शक्ति अहाँ सभ मे सँ हटाओल गेल अछि। 12 अहाँ सभ तँ बपतिस्माक समय मे मसीहक संग गाड़ल गेलहुँ, आ हुनका संग फेर जीवित सेहो कयल गेलहुँ किएक तँ अहाँ सभ ओहि परमेश्वरक सामर्थ्य पर विश्वास कयलहुँ जे हुनका मृत्यु मे सँ फेर जीवित कयलथिन। 13 अहाँ सभ जे गैर-यहूदी जातिक लोक छी से एक समय मे अपना पाप सभक कारणेँ, आ पाप-स्वभावक खतना नहि कयल जयबाक कारणेँ, आत्मिक रूप सँ मरल छलहुँ, मुदा परमेश्वर अहाँ सभ केँ मसीहक संग फेर जीवित कयलनि। ओ अपना सभक सभ पाप केँ क्षमा कयलनि। 14 अपना सभक विरोध मे जे दोष-पत्र लिखल छल आ जे अपना सभ केँ दण्डक जोगरक प्रमाणित कयलक, तकरा ओ ओकर सम्पूर्ण नियम सभक संग रद्द कऽ देलनि, आ ओकरा क्रूस पर काँटी ठोकि कऽ अपना सभ सँ दूर कऽ देलनि। 15 ओ आत्मिक दुष्ट शक्ति सभक आ अधिकारी सभक सम्पूर्ण सामर्थ्य नष्ट कयलनि आ मसीहक क्रूस द्वारा ओकरा सभ केँ पराजित कऽ कऽ सभक सामने ओकरा सभ केँ तमाशा बना देलनि। 16 एहि लेल, मोन राखू जे ककरो ई अधिकार नहि अछि जे ओ अहाँ सभ पर एहि विषय मे दोष लगाबय जे, केहन वस्तु खाइत-पिबैत छी, अथवा पाबनि-तिहार, अमावस्या वा विश्राम-दिन किएक नहि मनबैत छी, 17 किएक तँ ई सभ ताहि बात सभक छाया मात्र अछि, जे बाद मे आबऽ वला छल। वास्तविकता मसीहे छथि। 18 मोन राखू जे अहाँ सभ केँ पुरस्कार पयबाक बात मे अयोग्य ठहरयबाक अधिकार ओहन लोक केँ नहि छैक जे सभ ईश्वरीय दर्शन देखबाक धाख जमबैत रहैत अछि, देखाबटी नम्रता प्रगट करैत अछि, आ कहैत अछि जे स्वर्गदूत सभक पूजा कयनाइ आवश्यक अछि। ओहन लोक अपन सांसारिक बुद्धिक कारणेँ बिनु आधारक घमण्ड सँ फुलि जाइत अछि, 19 आ एहि तरहेँ ओ सभ सिर, अर्थात् मसीह, सँ कोनो सम्बन्ध नहि रखैत अछि। मसीह शरीरक सिर छथि जे समस्त शरीर केँ पोषित करैत छथि, आ एहि तरहेँ शरीर, जोड़-जोड़ सभ आ नस सभक द्वारा संगठित भऽ कऽ, परमेश्वरक योजनाक अनुसार बढ़ैत अछि। 20 अहाँ सभ जँ मसीहक संग मरि कऽ संसारक सिद्धान्त सभ सँ मुक्त भऽ गेल छी, तँ अहाँ सभ ओकर आदेश सभक एना कऽ पालन किएक करैत छी, जेना अहाँ सभक जीवन एखनो धरि संसारक अधीन होअय? 21 संसारक आदेश एहन होइत अछि, “एकरा हाथ मे नहि लिअ, ई नहि खाउ, ओकरा नहि छुबू!”— 22 ई सभ मनुष्य सभक आदेश अछि, मानवीय सिद्धान्त सभ पर आधारित अछि, आ एहन वस्तु सभ सँ सम्बन्ध रखैत अछि जे प्रयोग मे अयला पर नष्ट भऽ जाइत अछि। 23 ई सभ, अर्थात्, अपना सँ बनाओल धार्मिक नियम केँ माननाइ, नम्रताक आडम्बर देखौनाइ, आ अपना शरीर केँ कष्ट देनाइ, ओहन बात अछि जाहि मे निःसन्देह बुद्धिक बात तँ बुझाइत अछि, मुदा शारीरिक अभिलाषा सभ केँ रोकऽ मे एहि सभ सँ कोनो लाभ नहि होइत अछि।
1 एहि लेल, जँ अहाँ सभ मसीहक संग जीवित कयल गेल छी, तँ ओहन बात सभ पर मोन लगाउ जे स्वर्ग सँ सम्बन्ध रखैत अछि, जतऽ मसीह परमेश्वरक दहिना कात मे विराजमान छथि। 2 अपन ध्यान पृथ्वी परक वस्तु सभ पर नहि, बल्कि स्वर्गीय वस्तु सभ पर लगाउ, 3 किएक तँ जहाँ तक अहाँ सभक पुरान जीवनक बात अछि, अहाँ सभ तँ मरि गेल छी आ अहाँ सभक नव जीवन आब मसीहक संग परमेश्वर मे नुकायल अछि। 4 मसीहे अहाँ सभक जीवन छथि, और ओ जहिया फेर औताह, तहिया अहूँ सभ हुनका महिमाक वैभव मे सहभागी होयब आ ई बात प्रगट होयत जे अहाँ सभ हुनके लोक छिऐन। 5 एहि लेल, अहाँ सभ मे जे किछु अहाँ सभक पापी मानवीय स्वभाव सँ सम्बन्ध रखैत अछि, तकरा नष्ट कऽ दिअ, अर्थात्, अनैतिक शारीरिक सम्बन्ध, अपवित्र विचार-व्यवहार, शारीरिक काम-वासना, अधलाह बातक लालसा, आ लोभ जे मूर्तिपूजाक बराबरि बात अछि। 6 एहि बात सभक कारणेँ परमेश्वरक प्रकोप अबैत अछि। 7 अहाँ सभ जखन पहिने एहि प्रकारक पापमय जीवन व्यतीत करैत छलहुँ, तँ अहूँ सभ यैह सभ करैत छलहुँ। 8 मुदा आब अहाँ सभ एहि बात सभ केँ, अर्थात् तामस, क्रोध, दुष्ट भावना, दोसराक निन्दा कयनाइ आ गारि बजनाइ, छोड़ि दिअ। 9 एक-दोसर सँ झूठ नहि बाजू, किएक तँ अहाँ सभ अपन पुरान स्वभाव केँ ओकर अधलाह आचरण समेत त्यागि देने छी, 10 आ नव स्वभाव केँ धारण कऽ लेने छी। ई नव स्वभाव जँ-जँ अपना सृष्टिकर्ताक स्वरूपक अनुसार नव बनैत जाइत अछि, तँ-तँ सत्य ज्ञान मे बढ़ैत जाइत अछि। 11 एहि मे कोनो भेद नहि रहि गेल अछि—एहि मे ने केओ यूनानी जातिक अछि आ ने यहूदी, ने केओ खतना कराओल अछि आ ने खतना नहि कराओल, ने केओ अशिक्षित वा जंगली जातिक अछि, ने केओ गुलाम अछि आ ने स्वतन्त्र। एतऽ मसीहे सभ किछु छथि आ अपन सभ लोक मे वास करैत छथि। 12 तेँ अहाँ सभ परमेश्वरक चुनल लोक, हुनकर पवित्र और प्रिय लोक सभ भऽ कऽ, दयालुता, करुणा, नम्रता, कोमलता आ सहनशीलता केँ धारण करू। 13 एक-दोसराक संग सहनशील होउ, आ जँ किनको ककरो सँ सिकायत होअय, तँ एक-दोसर केँ क्षमा करू। जहिना प्रभु अहाँ सभ केँ क्षमा कऽ देलनि, तहिना अहूँ सभ क्षमा करू। 14 आ सभ सँ पैघ बात ई अछि जे आपस मे प्रेम भाव बनौने रहू। प्रेम सभ केँ एकता मे बान्हि कऽ पूर्णता धरि पहुँचा दैत अछि। 15 मसीहक शान्ति अहाँ सभक हृदय मे राज्य करैत रहय, कारण, अहाँ सभ एक शरीरक अंग सभ भऽ कऽ मेल सँ रहबाक लेल बजाओल गेल छी। अहाँ सभ धन्यवाद देनिहार बनल रहू। 16 मसीहक वचन केँ अपन परिपूर्णताक संग अहाँ सभ अपना मे निवास करऽ दिअ। पूर्ण बुद्धि-ज्ञानक संग एक-दोसर केँ शिक्षा आ चेतावनी दैत रहू, आ परमेश्वरक प्रशंसा मे भजन, स्तुति-गान आ भक्तिक गीत पूरा मोन सँ धन्यवादक संग गबैत रहू। 17 अहाँ सभ जे किछु कही वा करी, से सभ प्रभु यीशुक नाम सँ करू आ हुनका द्वारा परमेश्वर पिता केँ धन्यवाद दैत रहू। 18 हे स्त्री सभ, जहिना प्रभु केँ मानऽ वाली सभक लेल उचित अछि, तहिना अपन-अपन पतिक अधीन रहू। 19 हे पति लोकनि, अपन-अपन स्त्री सँ प्रेम करू आ हुनका संग कठोर व्यवहार नहि करू। 20 हौ धिआ-पुता सभ, सभ बात मे अपन माय-बाबूक आज्ञा मानह, किएक तँ एहि सँ प्रभु प्रसन्न होइत छथि। 21 यौ पिता लोकनि, अपना बच्चा सभ केँ तंग नहि करिऔक; एना नहि होअय जे ओकरा सभक साहस टुटि जाइक। 22 यौ दास सभ, एहि संसार मे जे अहाँ सभक मालिक छथि, सभ बात मे तिनकर आज्ञा मानू। मालिक केँ खुश करबाक उद्देश्य सँ, जखन ओ देखिते छथि तखने मात्र नहि, बल्कि शुद्ध मोन सँ और प्रभु पर श्रद्धा राखि कऽ आज्ञा मानू। 23 अहाँ सभ जे किछु करी, मोन लगा कऽ करू, ई मानि कऽ जे मनुष्यक लेल नहि, बल्कि प्रभुक लेल कऽ रहल छी, 24 किएक तँ अहाँ सभ जनैत छी जे, एकर प्रतिफलक रूप मे अहाँ सभ प्रभु सँ उत्तराधिकार प्राप्त करब। अहाँ सभ तँ प्रभु मसीहेक सेवा कऽ रहल छी। 25 जे अन्याय करैत अछि, से अपन अन्यायक प्रतिफल पाओत। ककरो संग पक्षपात नहि कयल जयतैक।
1 यौ मालिक लोकनि, अहाँ सभ ई बात जनैत जे स्वर्ग मे अहूँ सभक एक मालिक छथि, अपन दास सभक संग न्यायपूर्ण आ उचित व्यवहार करू। 2 अहाँ सभ सचेत रहि प्रार्थना मे लागल रहू आ धन्यवाद देबाक मनोभावना रखने रहू। 3 आ हमरो सभक लेल प्रार्थना करू, जे परमेश्वर हमरा सभ केँ सुसमाचार सुनयबाक अवसर देथि, जाहि सँ मसीहक ओहि सत्य केँ लोक सभ केँ सुना सकिऐक, जे पहिने गुप्त छल, मुदा आब प्रगट कयल गेल अछि, आ जकरा लेल हम जहल मे बन्दी छी। 4 प्रार्थना करू जे हम एकरा तहिना स्पष्ट रूप सँ सुना सकी, जहिना हमरा सुनयबाक चाही। 5 प्रभु यीशु केँ नहि मानऽ वला लोक सभक संग विवेकपूर्ण व्यवहार करू। हर अवसरक पूरा सदुपयोग करू। 6 जखन ओकरा सभ सँ बात-चीत करैत छी, तँ नम्रता और विचारशीलता सँ करू, तखन अहाँ सभ प्रत्येक लोक केँ समुचित उत्तर देनाइ सिखब। 7 हमर प्रिय भाय तुखिकुस अहाँ सभ केँ हमरा सम्बन्ध मे सभ समाचार सुनौताह। ओ प्रभुक विश्वस्त दास छथि आ प्रभुक काज मे हमरा संग-संग सेवा करैत छथि। 8 हुनका हम एही अभिप्राय सँ अहाँ सभक ओतऽ पठा रहल छियनि जे ओ अहाँ सभ केँ हमरा सभक कुशल-समाचार सुनबथि आ अहाँ सभक मोन उत्साहित करथि। 9 हुनका संग विश्वस्त आ प्रिय भाय उनेसिमुस सेहो छथि जे अहीं सभक ओहिठामक लोक छथि। ई दूनू गोटे अहाँ सभ केँ एहिठामक सम्पूर्ण परिस्थिति सँ अवगत करौताह। 10 अरिस्तर्खुस, जे एतऽ हमरा संग जहल मे बन्दी छथि, आ मरकुस, जे बरनबासक भाय लगैत छथि, से सभ अहाँ सभ केँ नमस्कार कहैत छथि। मरकुसक विषय मे अहाँ सभ केँ आदेश देल गेल अछि; ई जँ अहाँ सभक ओतऽ पहुँचथि तँ अहाँ सभ हिनकर आदर-सत्कार करिऔन। 11 यीशु, जे यूस्तुस कहबैत छथि, सेहो अहाँ सभ केँ नमस्कार कहैत छथि। जे सभ एतऽ हमरा संग परमेश्वरक राज्यक लेल काज कऽ रहल छथि, ताहि मे यैह तीनू गोटे यहूदी समाजक छथि। हिनका सभ सँ हमरा बहुत सहायता आ उत्साह भेटल अछि। 12 अहाँ सभक अपन लोक एपाफ्रास अहाँ सभ केँ नमस्कार कहैत छथि। मसीह यीशुक ई सेवक सदिखन अहाँ सभक लेल प्रार्थना मे संघर्ष करैत छथि। ओ प्रार्थना करैत छथि जे अहाँ सभ अपना विश्वास मे स्थिर रहि आत्मिक परिपूर्णता धरि बढ़ैत जाइ आ प्रत्येक बात मे परमेश्वरक इच्छा पूरा करऽ मे सुदृढ़ बनल रही। 13 हम हिनका बारे मे गवाही दऽ सकैत छी जे ई अहाँ सभक लेल आ लौदीकिया और हियरापुलिस नगर सभक विश्वासी सभक लेल बहुत परिश्रम कऽ रहल छथि। 14 प्रिय वैद्य लूका, आ देमास अहाँ सभ केँ नमस्कार कहैत छथि। 15 लौदीकिया नगर मे रहनिहार भाय सभ और नुम्फास केँ आ हुनका घर मे जमा होमऽ वला मण्डली केँ हमर नमस्कार कहिऔन। 16 जखन ई पत्र अहाँ सभक बीच पढ़ि कऽ सुना देल जायत, तँ अहाँ सभ एहन व्यवस्था करू जे ई लौदीकिया नगरक मण्डली मे सेहो पढ़ल जाय आ लौदीकियाक नाम सँ पठाओल पत्र अहाँ सभ सेहो पढ़ि कऽ सुनू। 17 अरखिप्पुस केँ ई कहू जे, “प्रभुक सेवा मे जे काज अहाँक जिम्मा देल गेल अछि, तकरा अहाँ अवश्य पूरा करू।” 18 हम, पौलुस, अपने हाथ सँ ई नमस्कार लिखि रहल छी। हम एतऽ जहल मे छी, से नहि बिसरू। अहाँ सभ पर प्रभुक कृपा बनल रहय।
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