2 Corinthians11 हम पौलुस, जे परमेश्वरक इच्छा सँ मसीह यीशुक एक मसीह-दूत छी, और भाइ तिमुथियुस सेहो, ई पत्र अहाँ सभ केँ लिखि रहल छी, जे सभ कोरिन्थ नगर मे परमेश्वरक मण्डली छी। आ संगहि समस्त अखाया प्रदेशक हुनकर सभ पवित्र लोक केँ सेहो लिखि रहल छी। 2 अपना सभक पिता परमेश्वर आ प्रभु यीशु मसीह अहाँ सभ पर कृपा करथि और अहाँ सभ केँ शान्ति देथि। 3 अपना सभक प्रभु यीशु मसीहक जे परमेश्वर आ पिता छथि, तिनकर स्तुति होनि, जे दया करऽ वला पिता छथि आ सभ प्रकारक सान्त्वना देबऽ वला परमेश्वर छथि। 4 ओ अपना सभ केँ सभ प्रकारक दुःख-तकलीफ मे सान्त्वना दैत छथि जाहि सँ अपनो सभ परमेश्वर सँ प्राप्त एहि सान्त्वना द्वारा सभ प्रकारक दुःख मे पड़ल लोक सभ केँ सान्त्वना दऽ सकिऐक। 5 किएक तँ जाहि तरहेँ मसीहक कष्ट प्रशस्त मात्रा मे अपना सभक जीवन मे अबैत रहैत अछि ताहि तरहेँ मसीह द्वारा सान्त्वना सेहो प्रशस्त मात्रा मे अबैत रहैत अछि। 6 जँ हमरा सभ केँ दुःख-कष्ट भोगऽ पड़ैत अछि तँ ई अहाँ सभक सान्त्वना आ उद्धारक लेल अछि। कारण, जखन हम सभ सान्त्वना पबैत छी तँ से एहि लेल जे हम सभ अहूँ सभ केँ सान्त्वना दऽ सकी, जाहि सँ अहाँ सभ धैर्यपूर्बक ओहि सभ कष्ट केँ सहबाक लेल साहस करी जकरा हमहूँ सभ सहैत छी। 7 अहाँ सभक विषय मे हमरा सभ केँ पूरा विश्वास अछि जे अहाँ सभ स्थिर रहब, किएक तँ हम सभ ई जनैत छी जे जहिना अहाँ सभ कष्ट मे सहभागी छी तहिना सान्त्वना मे सेहो सहभागी छी। 8 यौ भाइ लोकनि, हम सभ अहाँ सभ सँ ई नहि नुकाबऽ चाहैत छी जे आसिया प्रदेश मे हमरा सभ केँ केहन-केहन कष्ट उठाबऽ पड़ल। एहि कष्टक भार एतेक भारी छल जे ओ हमरा सभक सहनशक्तिक सीमा सँ बाहर छल, एतऽ तक जे हमरा सभ केँ जीवित बचबाक कोनो आशा नहि रहि गेल छल। 9 वास्तव मे हमरा सभ केँ एना बुझाइत छल जे आब हमरा सभक मृत्यु निश्चित अछि। ई सभ एहि लेल भेल जे हम सभ अपना पर नहि, बल्कि परमेश्वर पर भरोसा राखी, जे मरल सभ केँ जीवित कऽ दैत छथि। 10 ओ हमरा सभ केँ एहन मृत्युक संकट सँ बचौलनि आ एखनो बँचौताह। हुनका पर हम सभ आशा लगौने छी जे ओ हमरा सभ केँ आबऽ वला समय मे सेहो बचबैत रहताह। 11 एहि बात मे अहूँ सभ प्रार्थना द्वारा हमरा सभक सहायता करैत छी। एहि तरहेँ अनेक लोकक प्रार्थनाक उत्तर मे जे आशिष हमरा सभ केँ भेटत तकरा लेल बहुत लोक हमरा सभक कारणेँ परमेश्वर केँ धन्यवाद देतनि। 12 हमरा सभ केँ एकटा गर्वक बात अछि—हमरा सभक मोन एहि बातक गवाही दैत अछि जे संसार मे हमरा सभक आचरण, आ विशेष रूप सँ अहाँ सभक संग जे व्यवहार कयने छी, से ओहि पवित्रताक संग आ शुद्ध मोन सँ छल जे परमेश्वर सँ भेटैत अछि। हमरा सभक भरोसा सांसारिक बुद्धि पर नहि, बल्कि परमेश्वरक कृपा पर छल। 13 हम सभ तँ अहाँ सभ केँ कोनो एहन बात नहि लिखैत छी जकरा पढ़ला सँ अर्थ नहि बुझल जा सकैत अछि। हमरा आशा अछि जे अहाँ सभ जहिना एखन आंशिक रूप मे हमरा सभ केँ जनैत छी, 14 तहिना पूर्ण रूप सँ ई बात जानी जे जाहि तरहेँ हम सभ प्रभु यीशुक अयबाक दिन मे अहाँ सभ पर गर्व करब ताहि तरहेँ अहाँ सभ हमरो सभ पर गर्व कऽ सकब। 15 हमरा एहि बातक पूरा विश्वास अछि। एहि लेल हम अहाँ सभ केँ दू बेर आशिष पयबाक अवसर देबाक विचार कऽ कऽ पहिने अहीं सभ लग अयबाक निश्चय कयने छलहुँ। 16 हम अहाँ सभक ओतऽ होइत मकिदुनिया प्रदेश जाइ आ फेर मकिदुनिया सँ लौटैत काल अहाँ सभक ओतऽ आबी, से चाहैत छलहुँ, जाहि सँ अहाँ सभ हमरा लेल यहूदिया प्रदेशक यात्राक लेल प्रबन्ध कऽ सकी। 17 हमर निश्चय जँ यैह छल, तँ की हम बिनु कारणेँ अपन विचार बदलि लेलहुँ? की हम सांसारिक लोक सभ जकाँ बात नियारैत छी जे एके समय मे “हँ, हँ” सेहो आ “नहि, नहि” सेहो कही? 18 जाहि तरहेँ परमेश्वर विश्वसनीय छथि ताहि तरहेँ अहाँ सभक प्रति हमर वचन मे कखनो “हँ” आ कखनो “नहि” वला बात नहि अछि। 19 किएक तँ परमेश्वरक पुत्र यीशु मसीह, जिनकर प्रचार अहाँ सभक बीच हम सभ, अर्थात् सिलास, तिमुथियुस आ हम, कयलहुँ, तिनका मे कखनो “हँ” कखनो “नहि” वला बात नहि अछि, बल्कि हुनका मे सदा सँ “हँ” “हँ”ए रहल अछि। 20 परमेश्वर जतेक बात सभ करबाक लेल वचन देने छथि, से सभ बात मसीह मे पूरा होइत अछि, तेँ अपना सभ हुनका द्वारा परमेश्वरक बड़ाइ मे “आमीन, हँ, एहिना होअय” कहैत छी। 21 परमेश्वरे हमरो सभ केँ आ अहूँ सभ केँ मसीह मे स्थिर रखैत छथि। ओ अपना सभक अभिषेक कयने छथि, 22 अपना सभ पर अपन छाप लगौने छथि, बेनाक रूप मे अपन पवित्र आत्मा केँ अपना सभक हृदय मे वास करौने छथि। 23 हम परमेश्वर केँ साक्षी मानि कऽ कहैत छी जे हम एहि लेल दोहरा कऽ कोरिन्थ नगर नहि अयलहुँ जे अहाँ सभ केँ दुःख नहि पहुँचाबी। 24 हम सभ अहाँ सभक विश्वास पर अधिकार नहि जमाबऽ चाहैत छी, बल्कि अहाँ सभक आनन्दक लेल अहाँ सभक संगे-संग काज करऽ वला छी। अहाँ सभ तँ अपना विश्वास मे स्थिर छी।
1 तेँ हम ई निश्चय कऽ लेने छलहुँ जे हम आबि कऽ अहाँ सभ केँ फेर दुःख नहि दी। 2 किएक तँ जँ हम अहाँ सभ केँ दुखी करी तँ हमरा द्वारा दुखी कयल लोक केँ छोड़ि हमरा प्रसन्नता देबाक लेल के रहि जायत? 3 हम ओ पत्र एहि लेल लिखने छलहुँ जे हमरा अयला पर कतौ एना नहि होअय जे जाहि लोक सभ सँ हमरा आनन्द भेटबाक चाही से सभ हमरा दुखी बनाबय, किएक तँ अहाँ सभक विषय मे हमरा ई विश्वास अछि जे हमरा आनन्द मे अहाँ सभ सेहो आनन्दित रहैत छी। 4 हम दुःख सँ भरल मोन सँ भितरी हृदयक वेदना सहैत नोर बहा-बहा कऽ ओ पत्र लिखलहुँ। हम ओ पत्र अहाँ सभ केँ दुःख देबाक लेल नहि लिखलहुँ, बल्कि एहि लेल जे अहाँ सभ ई जानि ली जे हम अहाँ सभ सँ कतेक प्रेम करैत छी। 5 मुदा जँ केओ दुःख देने अछि तँ ओ हमरे नहि, बल्कि बढ़ा-चढ़ा कऽ जँ नहि कहल जाय, तँ किछु मात्रा मे अहाँ सभ गोटे केँ दुःख देने अछि। 6 मण्डली द्वारा ओकरा जे सजाय देल गेलैक सैह ओकरा लेल प्रशस्त अछि। 7 आब तकर बदला मे ओकरा क्षमा कऽ दिऔक आ हिम्मत बढ़बिऔक जाहि सँ एना नहि भऽ जाय जे ओ भारी शोक मे डुबि जाय। 8 एहि लेल हम अहाँ सभ सँ विनती करैत छी जे ओकरा अहाँ सभ अपन प्रेमक प्रत्यक्ष प्रमाण दिऔक। 9 हम एहू लेल अहाँ सभ केँ लिखने छलहुँ जाहि सँ हम जाँचि कऽ बुझि ली जे अहाँ सभ प्रत्येक बात मे आज्ञाकारी छी वा नहि। 10 जकरा अहाँ सभ क्षमा करैत छी तकरा हमहूँ क्षमा करैत छी। जे बात हम क्षमा कयने छी—जँ वास्तव मे कोनो बात क्षमा करबाक छल तँ—से हम अहाँ सभक हितक लेल आ मसीहक उपस्थिति मे कयने छी, 11 जाहि सँ शैतान अपना सभक स्थिति सँ लाभ नहि उठाबय। अपना सभ शैतानक चालि सँ अनजान नहि छी। 12 जखन हम मसीहक शुभ समाचार सुनयबाक लेल त्रोआस नगर अयलहुँ तँ से काज करबाक लेल प्रभु हमरा आगाँ द्वारि खोलि देने छलाह। 13 तैयो हमरा मोन मे चैन नहि छल, किएक तँ हमर भाय तीतुस ओतऽ नहि भेटलाह। तेँ हम ओहिठामक लोक सभ सँ विदा लऽ कऽ मकिदुनिया प्रदेश चल गेलहुँ। 14 मुदा परमेश्वरक धन्यवाद होनि! ओ हमरा सभ केँ मसीहक विजय-जुलूस मे सदत लऽ जाइत छथि आ सभ ठाम मसीहक ज्ञान सुगन्ध जकाँ हमरा सभक द्वारा फैलबैत छथि। 15 किएक तँ उद्धार पाबऽ वला सभक बीच आ नष्ट होमऽ वला सभक बीच हम सभ परमेश्वरक लेल मसीहक सुगन्ध छी। 16 नष्ट होमऽ वला सभक लेल एहन प्राण-घातक दुर्गन्ध छी जे मृत्युक दिस लऽ जाइत अछि, आ उद्धार पाबऽ वला सभक लेल एहन जीवनदायक सुगन्ध छी जे जीवनक दिस लऽ जाइत अछि। के अछि एहि बातक लेल सुयोग्य? 17 हम सभ ओहि अनेको लोक सभ जकाँ नहि छी जे सभ पाइ कमयबाक लेल परमेश्वरक वचनक व्यापार करैत अछि, बल्कि हम सभ परमेश्वर द्वारा पठाओल दूतक रूप मे परमेश्वर केँ उपस्थित मानि कऽ मसीहक सामर्थ्य द्वारा शुद्ध मोन सँ बजैत छी।
1 की हम सभ फेर अपने प्रशंसा करऽ लगलहुँ? की किछु आन लोक सभ जकाँ हमरो सभ केँ एहि बातक आवश्यकता अछि जे सिफारिश-पत्र अहाँ सभ केँ देखाबी अथवा अहाँ सभ सँ लिखाबी? 2 हमरा सभक पत्र तँ अहीं सभ छी जे हमरा सभक हृदय पर लिखल गेल छी आ जकरा सभ केओ देखि आ पढ़ि सकैत अछि। 3 ई स्पष्ट अछि जे अहाँ सभ मसीहक पत्र छी जकरा ओ हमरा सभ सँ लिखबौलनि। ई पत्र मोइस सँ नहि, बल्कि जीवित परमेश्वरक आत्मा सँ, पाथरक पाटी पर नहि, बल्कि मानव हृदयक पाटी पर लिखल गेल अछि। 4 एहन बात कहबाक साहस एहि लेल अछि जे हमरा सभ केँ मसीहक कारणेँ परमेश्वर पर भरोसा अछि। 5 ई नहि, जे हम सभ अपने एतेक योग्य छी जे अपने सँ किछु कऽ सकबाक दावा करी, बल्कि हमरा सभक योग्यता तँ परमेश्वरेक दिस सँ अबैत अछि। 6 वैह हमरा सभ केँ योग्य बनौने छथि, जाहि सँ हम सभ ओहि नव सम्बन्धक विषय मे सुना सकी जे परमेश्वर अपन वचन दऽ कऽ मनुष्यक संग स्थापित कयने छथि। ई नव सम्बन्ध अक्षर सँ लिखल विधान द्वारा स्थापित नहि भेल, बल्कि परमेश्वरक आत्मा द्वारा, किएक तँ अक्षर वला विधान मारैत अछि मुदा आत्मा जीवन दैत छथि। 7 आब सोचू। मूसा केँ देल गेल विधान जे पाथर पर खोधि कऽ लिखल छल से मृत्यु मे लऽ जाइत छल। तैयो ओ एहन महिमाक संग आयल जे मूसाक मुँह सेहो एतेक चमकैत छल जे इस्राएली सभ एकटक लगा कऽ हुनका मुँह दिस नहि देखि सकल, जखन कि ओ चमक तुरत फेर मन्द पड़ऽ लगैत छल। जँ मृत्यु दिआबऽ वला विधान एतेक महिमामय छल, 8 तँ की पवित्र आत्मा दिआबऽ वला विधान ओहि सँ आरो बेसी महिमामय नहि होयत? 9 जखन दोषी ठहराबऽ वला विधान एतेक महिमामय छल तँ की धार्मिक ठहराबऽ वला विधान ओहि सँ बहुत अधिक महिमामय नहि होयत? 10 वास्तव मे, ओ जे पहिने महिमामय छल, तकरा एहि सर्वश्रेष्ठ महिमाक सम्मुख आब कोनो महिमा नहि छैक। 11 किएक तँ जखन नहि टिकऽ वला विधान एतेक महिमामय छल तँ सदा अटल रहऽ वला विधान कतेक आरो महिमामय होयत! 12 हमरा सभक एहने आशा होयबाक कारणेँ हम सभ साहसपूर्बक बजैत छी। 13 हम सभ मूसा जकाँ नहि छी। मूसा तँ अपना मुँह पर परदा रखने रहैत छलाह जाहि सँ इस्राएली लोक सभ लुप्त होमऽ वला चमक पर अन्त तक नजरि नहि टिकौने रहय। 14 मुदा ओकरा सभक मोन कठोर कयल गेल छलैक। आइओ धरि जखन पुरान विधान पढ़ल जाइत अछि तँ वैह परदा लागल रहैत छैक। ओ हटाओल नहि गेल अछि किएक तँ ओकरा मात्र मसीह द्वारा हटाओल जाइत अछि। 15 हँ, आइओ जखन मूसाक धर्म-नियम पढ़ल जाइत अछि तँ ओकरा सभक मोन पर परदा टाँगल रहैत छैक। 16 मुदा जखने केओ प्रभु लग फिरैत अछि तँ ओ परदा हटा देल जाइत अछि। 17 जाहि प्रभु लग फिरबाक अछि, से नव विधानक ओ आत्मा छथि, आ जतऽ प्रभुक आत्मा छथि ततऽ स्वतन्त्रता अछि। 18 मुदा अपना सभक मुँह पर परदा नहि अछि आ जहिना अएना मे देखल जाइत अछि, तहिना अपना सभ प्रभुक महिमाक प्रतिबिम्ब देखैत छी। संगहि अपना सभ क्रमशः बढ़ैत मात्रा मे ओहि महिमामय रूप मे बदलल जाइत छी। ई रूपान्तर प्रभुक, अर्थात् पवित्र आत्माक, काज छनि।
1 एहि लेल, परमेश्वरक दया सँ हमरा सभ केँ ई सेवा-काज भेटबाक कारणेँ हम सभ कखनो साहस नहि छोड़ैत छी। 2 हम सभ ठोस निर्णय लेने छी जे कोनो नीचता वला गुप्त काज नहि करब। हम सभ ने तँ छल-कपट करैत छी आ ने परमेश्वरक वचन मे हेर-फेर करैत छी, बल्कि हम सभ स्पष्ट रूप सँ सत्य प्रस्तुत कऽ कऽ प्रचार करैत छी। एहि सँ प्रत्येक मनुष्य देखि सकैत अछि जे हम सभ परमेश्वर केँ उपस्थित मानि शुद्ध मोन सँ सत्यक प्रचार करैत छी। 3 जँ हमरा सभक सुसमाचार पर परदा पड़ल अछिओ तँ ई परदा तकरे सभक लेल पड़ल अछि जे सभ विनाशक मार्ग पर चलि रहल अछि। 4 शैतान, जे एहि संसारक ईश्वर अछि, से ओहि अविश्वासी सभक बुद्धि केँ आन्हर बना देने छैक जाहि सँ ओ सभ परमेश्वरक प्रतिरूप, जे मसीह छथि, तिनकर महिमाक इजोत जे सुसमाचार द्वारा प्रगट कयल गेल अछि, से नहि देखय। 5 कारण, हम सभ अपन नहि, बल्कि यीशु मसीहक प्रचार करैत छी जे ओ प्रभु छथि। हम सभ यीशुक सेवा मे अहाँ सभक सेवक छी, 6 किएक तँ जे परमेश्वर ई कहलनि जे, “अन्हार मे सँ इजोत चमकओ,” से हमरा सभक मोन मे इजोत चमकौने छथि जाहि सँ हम सभ परमेश्वरक ओ महिमा जानि जाइ जे मसीहक मुँह पर चमकैत छनि। 7 मुदा ई अमूल्य धन माटिक बर्तन सभ मे, अर्थात् हमरा सभ मे, राखल अछि जाहि सँ स्पष्ट होअय जे ई सर्वश्रेष्ठ सामर्थ्य हमरा सभक अपन नहि, बल्कि परमेश्वरक छनि। 8 हमरा सभ पर चारू दिस सँ कष्ट अबैत अछि मुदा हम सभ पिचाइत नहि छी, निरुपाय भऽ जाइत छी मुदा निराश नहि छी। 9 अत्याचार सभ सँ पीड़ित होइत रहैत छी मुदा अपना केँ परमेश्वर द्वारा त्यागल नहि बुझैत छी। खसाओल जाइत छी मुदा नष्ट नहि भऽ जाइत छी। 10 हम सभ सदिखन सभ ठाम अपना शरीर मे यीशुक मृत्यु वला दुःख-भोगक अनुभव करैत छी जाहि सँ यीशुक जीवन सेहो हमरा सभक शरीर मे प्रत्यक्ष होअय, 11 किएक तँ हम सभ जीवित रहितो यीशुक कारणेँ सदिखन मृत्युक हाथ मे सौंपल जाइत छी जाहि सँ हमरा सभक नाशवान शरीर मे यीशुक जीवन प्रगट होअय। 12 एहि तरहेँ हम सभ सदा मृत्युक सामना करैत छी, मुदा तकर परिणाम भेल अहाँ सभक लेल जीवन। 13 धर्मशास्त्र मे केओ कहने अछि, “हम विश्वास कयलहुँ, एहि लेल हम बजलहुँ।” विश्वासक वैह आत्मा हमरो सभ मे होयबाक कारणेँ हमहूँ सभ विश्वास करैत छी आ तेँ बजैत छी, 14 कारण, हम सभ ई जनैत छी जे, ओ जे प्रभु यीशु केँ मृत्यु सँ जिऔलनि, वैह हमरो सभ केँ यीशुक संग जिऔताह, आ अहाँ सभक संग हमरो सभ केँ अपना सम्मुख उपस्थित करताह। 15 ई सभ किछु अहाँ सभक हितक लेल भऽ रहल अछि जाहि सँ आरो-आरो लोकक बीच परमेश्वरक कृपा बढ़ल जयबाक कारणेँ, परमेश्वरक स्तुति मे धन्यवादक प्रार्थना अधिक सँ अधिक बढ़ैत जाय। 16 यैह कारण अछि जे हम सभ साहस नहि छोड़ैत छी। ओना तँ हमरा सभक बाहरी शारीरिक बल घटल जा रहल अछि तैयो हमरा सभक भितरी आत्मिक बल दिन प्रति दिन नव भेल जा रहल अछि। 17 किएक तँ हमरा सभक पल भरिक ई हल्लुक कष्ट हमरा सभक लेल अतुल्य और अनन्त कालीन महिमा तैयार कऽ रहल अछि। 18 तेँ हमरा सभक नजरि ओहि वस्तु सभ पर टिकल नहि अछि जे देखाइ दैत अछि, बल्कि ओहि वस्तु सभ पर जे आँखि सँ नहि देखल जा सकैत अछि, किएक तँ देखाइ पड़ऽ वला वस्तु सभ तँ कनेके काल टिकैत अछि, मुदा जे वस्तु सभ देखल नहि जा सकैत अछि, से अनन्त काल तक बनल रहैत अछि।
1 कारण, अपना सभ जनैत छी जे जँ अपना सभक ई देहरूपी तम्बू, पृथ्वी पर अपना सभक ई डेरा, नष्ट होयत तँ परमेश्वरक दिस सँ अपना सभ केँ स्वर्ग मे एक देहरूपी भवन अछि—अनन्त काल तक रहऽ वला एक एहन “घर” जे मनुष्यक बनाओल नहि अछि। 2 ताबत अपना सभ एहि “तम्बू” मे कुहरैत अपन स्वर्गिक “भवन” केँ वस्त्र जकाँ धारण करबाक लेल लालाइत छी, 3 किएक तँ ओहि “वस्त्र” केँ धारण कयला पर अपना सभ नाङट नहि पाओल जायब। 4 वास्तव मे जाबत धरि अपना सभ एहि “तम्बू” मे छी, अर्थात्, एहि भौतिक शरीर मे, तँ बोझ सँ दबायल कुहरैत छी। कारण, अपना सभ एहि तम्बू केँ उतारऽ चाहैत छी, से बात नहि अछि, मुदा ओहि स्वर्गिक शरीर केँ उपर सँ धारण करऽ चाहैत छी जाहि सँ एहि मरणशील शरीरक स्थान पर अनन्त काल तक जीवित रहऽ वला प्राप्त करी। 5 जे अपना सभक रचना एही अभिप्राय सँ कयलनि से परमेश्वरे छथि आ ओ बेनाक रूप मे अपना सभ मे अपन पवित्र आत्मा वास करौने छथि। 6 एहि लेल हम सभ सदत साहस रखैत छी। हम सभ ई बुझैत छी जे जाबत धरि ई देह हमरा सभक घर अछि ताबत धरि हम सभ प्रभुक लग वला “घर पर” नहि छी। 7 हम सभ तँ आँखि सँ देखल बातक आधार पर नहि, बल्कि विश्वास पर चलैत छी। 8 हँ, हम सभ साहस रखैत छी आ एहि देह सँ अलग भऽ कऽ प्रभुक लग वला “घर पर” रहनाइ केँ सभ सँ उत्तम मानैत छी। 9 तेँ हम सभ चाहे एहि देह मे रही वा एकरा सँ अलग, हमरा सभक एकमात्र लक्ष्य ई अछि जे हम सभ हुनकर प्रसन्नताक अनुसार चलैत रही। 10 किएक तँ अपना सभ गोटे केँ मसीहक न्यायासनक सामने उपस्थित होमऽ पड़त जाहि सँ प्रत्येक व्यक्ति केँ अपना देहधारी जीवन मे कयल नीक अथवा अधलाह काज सभक प्रतिफल भेटैक। 11 हम सभ प्रभुक भय मानैत छी, तेँ लोक सभ केँ समझबैत-बुझबैत रहैत छी। हम सभ की छी से परमेश्वर स्पष्ट रूप सँ जनैत छथि आ हमरा आशा अछि जे अहाँ सभक मोन मे सेहो स्पष्ट अछि। 12 हम सभ फेर अहाँ सभक सामने अपन प्रशंसा नहि कऽ रहल छी, बल्कि अहाँ सभ केँ हमरा सभ पर गर्व करबाक मौका दऽ रहल छी जाहि सँ अहाँ सभ ओहन लोक केँ उत्तर दऽ सकिऐक जे सभ हृदयक भावना पर नहि, बल्कि बाहरी बात सभ पर गर्व करैत अछि। 13 की हम सभ “पागल” छी? जँ छीहो तँ ई परमेश्वरक लेल अछि। जँ हमरा सभक होश ठीक अछि तँ ई अहाँ सभक कल्याणक लेल अछि। 14 मसीहक प्रेम हमरा सभ केँ बाध्य करैत अछि, किएक तँ हम सभ बुझि गेल छी जे जखन एक गोटे सभक लेल मरलाह तँ सभ केओ मरि गेल। 15 मसीह सभक लेल मरलाह जाहि सँ जे सभ जीवित अछि से सभ आब अपना लेल नहि, बल्कि तिनका लेल जीवन बिताबय जे ओकरा सभक लेल मरलाह आ जिआओल गेलाह। 16 एहि लेल आब हम सभ कोनो मनुष्य केँ सांसारिक दृष्टि सँ नहि देखैत छी। पहिने हम सभ मसीहो केँ सांसारिक दृष्टि सँ देखैत छलहुँ मुदा आब हम सभ हुनका तेना नहि देखैत छी। 17 एकर अर्थ अछि जे जँ केओ मसीह मे अछि तँ ओ एक नव सृष्टि अछि। पुरान बात सभ समाप्त भऽ गेल, आब सभ किछु नव बनि गेल अछि। 18 ई सभ परमेश्वरक दिस सँ भेल। ओ मसीह द्वारा अपना संग हमरा सभक मिलाप करौने छथि आ हमरा सभ केँ मिलाप करयबाक सेवा-काजक जिम्मा देने छथि। 19 एकर अर्थ ई अछि जे परमेश्वर मनुष्य सभक अपराधक लेखा नहि लऽ कऽ मसीह मे अपना संग संसारक मिलाप करा रहल छलाह, आ हमरा सभ केँ एहि मिलापक सुसमाचार सुनयबाक जिम्मा दऽ देने छथि। 20 एहि लेल हम सभ मसीहक राजदूत छी, मानू जेना हमरा सभक द्वारा परमेश्वर अहाँ सभ सँ अनुरोध कऽ रहल छथि। तेँ हम सभ मसीहक दिस सँ अहाँ सभ सँ यैह अनुरोध कऽ रहल छी जे अहाँ सभ परमेश्वरक मेल-मिलाप केँ स्वीकार करू। 21 मसीह, जिनका मे कोनो पाप नहि छलनि, तिनका परमेश्वर हमरा सभक लेल पाप ठहरौलथिन जाहि सँ हम सभ हुनका द्वारा परमेश्वरक धार्मिकता ठहरी।
1 परमेश्वरक सहकर्मी भऽ कऽ हम सभ अहाँ सभ सँ आग्रह करैत छी जे परमेश्वरक जे कृपा अहाँ सभ केँ भेटल अछि तकरा व्यर्थ नहि होमऽ दिअ। 2 किएक तँ परमेश्वर धर्मशास्त्र मे कहैत छथि जे, “हम अपन कृपादृष्टि रखबाक समय मे तोहर सुनलिअह, आ उद्धारक दिन मे हम तोहर सहायता कयलिअह।” देखू, एखने “कृपादृष्टिक समय” अछि। देखू, आइए “उद्धारक दिन” अछि। 3 हम सभ कोनो बात द्वारा ककरो ठोकरक कारण नहि बनैत छी, जाहि सँ ककरो हमरा सभक सेवा-काज पर दोष लगयबाक कोनो अवसर नहि भेटैक, 4 बल्कि परमेश्वरक सेवक भऽ हम सभ प्रत्येक परिस्थिति मे अपन योग्यता प्रमाणित करैत छी—हम सभ कठिनाइ, विपत्ति आ संकट सभ केँ धैर्यक संग सहन करैत छी। 5 हम सभ मारि खाइत छी, जहल मे राखल जाइत छी, उपद्रव मे पड़ैत छी। परिश्रम करैत छी, राति-राति भरि पलक नहि झपका कऽ जागल रहैत छी, भूखल रहैत छी। 6 हम सभ एहि सभ बातक सामना शुद्ध मोन सँ, ज्ञान सँ, और धैर्य आ दयालुताक संग करैत छी। हम सभ ई काज परमेश्वरक पवित्र आत्माक शक्ति सँ और निष्कपट प्रेम द्वारा करैत छी। 7 दहिना आ बामा हाथ मे धार्मिकताक हथियार धारण कयने सत्यक प्रचार करैत छी; परमेश्वरक सामर्थ्य पर भरोसा रखैत छी। 8 ककरो सँ आदर पबैत छी, तँ ककरो सँ निरादर, ककरो सँ जस आ ककरो सँ अपजस । सही रहितो हम सभ कपटी बुझल जाइत छी, 9 चिन्हल-जानल होइतो अनचिन्हार बुझल जाइत छी। मरऽ-मरऽ पर होइतो जीवित रहैत छी। सजाय पबैत छी मुदा जान सँ मारल नहि जाइत छी। 10 शोकित होइतो सदत् आनन्द मग्न रहैत छी, गरीब होइतो बहुतो केँ सम्पन्न बनबैत छी। हमरा सभ लग अपन किछु नहि होइतो, सभ किछु हमरा सभक अछि। 11 यौ कोरिन्थ निवासी सभ, हम सभ अहाँ सभ सँ खुलि कऽ बात कयने छी। हम सभ अहाँ सभक प्रति अपन हृदय खोलि कऽ राखि देने छी। 12 अहाँ सभक प्रति हमरा सभक हृदय मे कोनो संकीर्णता नहि अछि, बल्कि अहीं सभक हृदय मे संकीर्णता अछि। 13 हम अहाँ सभ केँ अपन बच्चा मानि कहैत छी जे हमरा सभक प्रेमक बदला मे अहूँ सभ हमरा सभक लेल अपन हृदय खोलि दिअ। 14 अहाँ सभ मसीह पर विश्वास नहि कयनिहार लोक सभक संग बेमेल जुआ मे नहि जोताउ। अधर्म सँ धार्मिकताक कोन मेल? अन्हार सँ इजोतक कोन मेल? 15 शैतान सँ मसीहक कोन संगति? अविश्वासीक संग विश्वासीक कोन सहभागिता? 16 मुरुत सभक संग परमेश्वरक मन्दिरक कोन समझौता? किएक तँ अपना सभ जीवित परमेश्वरक मन्दिर छी, जेना कि परमेश्वर कहने छथि जे, “हम ओकरा सभक संग वास करब 2 आ ओकरा सभक बीच चलब-फिरब। हम ओकरा सभक परमेश्वर होयबैक 2 आ ओ सभ हमर प्रजा होयत।” 17 एहि कारणेँ, “प्रभुक कथन इहो छनि जे, ‘अहाँ सभ ओकरा सभक बीच सँ बाहर आबि कऽ 2 अलग भऽ जाउ। अशुद्ध वस्तु सभ सँ हटल रहू, 2 तखन हम अहाँ सभ केँ ग्रहण करब।’” 18 “हम अहाँ सभक पिता होयब आ अहाँ सभ हमर बेटा-बेटी सभ होयब। ई सर्वशक्तिमान प्रभुक कथन अछि।”
1 यौ हमर प्रिय मित्र सभ, परमेश्वर जखन अपना सभ केँ ई बात सभ करबाक वचन देने छथि तँ अबैत जाउ, परमेश्वरक भय मानि कऽ पवित्रताक परिपूर्णता धरि बढ़ैत अपना केँ समस्त शारीरिक आ आत्मिक मलिनता सँ पवित्र करी। 2 अहाँ सभ हमरा सभ केँ अपना हृदय मे स्थान दिअ। हम सभ ककरो संग अन्याय नहि कयलहुँ, ककरो नहि बिगाड़लहुँ, ककरो सँ अनुचित लाभ नहि उठौलहुँ। 3 हम अहाँ सभ पर दोष नहि लगा रहल छी। हम पहिने कहि चुकल छी जे अहाँ सभ हमरा सभक हृदय मे बसल छी आ हम सभ अहाँ सभक संग जीबाक लेल आ मरबाक लेल तैयार छी। 4 अहाँ सभ पर हमरा पूरा भरोसा अछि। हम अहाँ सभ पर बहुत गर्व करैत छी। हम बहुत उत्साहित छी—अपन विभिन्न कष्टो सभ मे हमर आनन्दक कोनो सीमा नहि रहैत अछि। 5 मकिदुनिया पहुँचला पर सेहो हमरा सभ केँ कोनो आराम नहि भेटल। चारू दिस सँ हमरा सभ पर कष्ट आबि गेल छल—बाहर संघर्ष सभ आ भीतर चिन्ता सभ। 6 मुदा निराश लोक सभ केँ सान्त्वना देबऽ वला परमेश्वर तीतुसक अयला सँ हमरा सभ केँ सान्त्वना देलनि— 7 मात्र हुनका अयले सँ नहि, बल्कि ओहि उत्साह सँ सेहो जे अहाँ सभ सँ हुनका भेटल छलनि। हमरा देखबाक अहाँ सभक अभिलाषा, अहाँ सभक मानसिक पीड़ा आ हमरा लेल अहाँ सभक जे चिन्ता अछि तकरा सम्बन्ध मे ओ हमरा सभ केँ कहलनि आ से जानि हमर आनन्द आरो बढ़ल। 8 हम जनैत छी जे हम अहाँ सभ केँ ओहि पत्र द्वारा दुःख देलहुँ मुदा तैयो हमरा लिखबाक अफसोच नहि अछि। हमरा ई देखि कऽ अफसोच भेल छल जे ओ पत्र किछु समयक लेल अहाँ सभ केँ दुखी बना देने छल। 9 मुदा आब हमरा प्रसन्नता अछि। हमरा एहि लेल प्रसन्नता नहि अछि जे अहाँ सभ केँ दुःख भेल, बल्कि एहि लेल जे ओहि दुःखक परिणाम ई भेल जे अहाँ सभ अपना पापक लेल पश्चात्ताप कऽ कऽ हृदय-परिवर्तन कयलहुँ। अहाँ सभ परमेश्वरक श्रद्धा मानि हुनका सम्मुख दुखी भेलहुँ, तेँ ओहि पत्र द्वारा हमरा सभक दिस सँ अहाँ सभ केँ कोनो हानि नहि पहुँचाओल गेल। 10 किएक तँ परमेश्वरक सम्मुख जे श्रद्धापूर्ण दुःख होइत अछि से पापक लेल एहन पश्चात्ताप और हृदय-परिवर्तन उत्पन्न करबैत अछि, जकर परिणाम होइत अछि उद्धार, आ ओहि सँ लोक केँ पछताय नहि पड़ैत छैक, मुदा सांसारिक दुःखक परिणाम मृत्यु होइत अछि। 11 अहाँ सभ देखि सकैत छी जे परमेश्वरक सम्मुख अहाँ सभक ओ दुःख अहाँ सभ केँ कतेक गम्भीर बनौलक, अपन सफाइ देबाक लेल कतेक उत्सुक बनौलक आ अहाँ सभ मे कतेक क्रोध, कतेक भय, कतेक अभिलाषा आ कतेक धुन उत्पन्न कयलक, और न्याय होअय ताहि बातक लेल कतेक इच्छा बढ़ा देलक। एहि तरहेँ अहाँ सभ एहि विषयक हर-एक बात मे अपना केँ निर्दोष प्रमाणित कऽ सकलहुँ। 12 तेँ हम ओ पत्र जे अहाँ सभ केँ लिखलहुँ से ने तँ ओहि व्यक्तिक कारणेँ जे गलती कयलक, आ ने ओकरा कारणेँ जकरा संग गलत कयल गेल, बल्कि एहि कारणेँ लिखलहुँ जे परमेश्वरक सामने अहाँ सभ बुझि सकी जे हमरा सभक लेल अहाँ सभ केँ कतेक चिन्ता अछि। 13 एहि सँ हमरा सभ केँ प्रोत्साहन भेटल अछि। प्रोत्साहनक संग-संग हमरा सभ केँ तीतुसक आनन्द केँ देखि कऽ विशेष खुशी सेहो भेल अछि, किएक तँ हुनकर मोन अहाँ सभ गोटे द्वारा उत्साहित भेलनि। 14 हम तीतुसक सामने मे जे अहाँ सभ पर गर्व कयने छलहुँ, तकरा लेल हमरा लज्जित नहि होमऽ पड़ल। जहिना हम सभ जे किछु अहाँ सभ केँ कहियो कहने छलहुँ से सत्य छल तहिना तीतुसक सामने अहाँ सभक बारे मे हमर सभक गर्व कयनाइ सेहो सत्य प्रमाणित भेल। 15 जखन तीतुस केँ स्मरण होइत छनि जे अहाँ सभ कतेक आज्ञाकारी भेलहुँ आ कोन तरहेँ डेराइत-कँपैत हिनकर स्वागत कयलियनि तँ अहाँ सभक प्रति हिनकर स्नेह आओर बढ़ि जाइत छनि। 16 हम एहि बात सँ आनन्दित छी जे हम अहाँ सभ पर पूर्ण भरोसा राखि सकैत छी।
1 यौ भाइ लोकनि, हम अहाँ सभ केँ ओहि कृपाक विषय मे सुनाबऽ चाहैत छी जे मकिदुनिया प्रदेशक मण्डली सभ केँ परमेश्वरक दिस सँ प्राप्त भेल अछि— 2 संकटक अग्नि-परीक्षा मे रहितो हुनका सभ मेहक उमड़ैत आनन्द आ हुनका सभक घोर गरीबी हुनका सभक मोन केँ एहन बना देलकनि जे ओ सभ पूरा तन-मन-धन सँ बेसी सँ बेसी दान देबाक लेल तैयार छलाह। 3 हम गवाही दैत छी जे ओ सभ अपने इच्छा सँ अपन क्षमताक अनुसार आ क्षमतो सँ बेसी देलनि। 4 ओ सभ हमरा सभ सँ बेर-बेर विनती करैत जोर देलनि जे हम सभ हुनको सभ केँ प्रभुक लोक सभक सहायता करऽ मे सहभागी होयबाक अवसर दियनि। 5 ओ सभ एहि बात मे हमरा सभक आशा सँ बढ़ि कऽ निकललाह। ओ सभ परमेश्वरक इच्छाक अनुसार सभ सँ पहिने परमेश्वरक प्रति, तखन हमरा सभक प्रति, अपना केँ समर्पित कऽ देलनि। 6 तेँ हम सभ तीतुस केँ अनुरोध कयलहुँ जे ओ जखन पहिनहि सँ अहाँ सभक बीच ई दान देबऽ वला काज शुरू करौने छलाह, तँ आब ओकरा पूरा करऽ मे सेहो अहाँ सभक सहायता करथि। 7 जहिना अहाँ सभ प्रत्येक बात मे आगाँ बढ़ल छी, अर्थात् विश्वास मे, बाजऽ मे, ज्ञान मे, पूर्ण समर्पणता मे आ हमरा सभक प्रति प्रेम मे, तहिना अहाँ सभ खुशी मोन सँ दान देबऽ मे सेहो आगाँ रहू। 8 हम अहाँ सभ केँ आदेश नहि दऽ रहल छी, बल्कि एहि बातक चर्चा कऽ कऽ जे दोसर लोक सभ दान देबाक लेल कोना तत्पर रहैत अछि ई जाँचऽ चाहैत छी जे अहाँ सभक प्रेम कतेक पक्का अछि। 9 किएक तँ अहाँ सभ अपना सभक प्रभु यीशु मसीहक कृपा केँ जनैत छी जे धनिक होइतो ओ अहाँ सभक लेल गरीब बनि गेलाह, जाहि सँ अहाँ सभ हुनकर गरीब बनला सँ धनिक बनि जाइ। 10 आब एहि विषय मे अहाँ सभक लेल की नीक होयत ताहि सम्बन्ध मे हम अपन सल्लाह दऽ रहल छी—एक वर्ष पहिने अहीं सभ दान देबहे मे नहि, बल्कि दान देबाक इच्छा करऽ मे सेहो सभ सँ पहिल छलहुँ। 11 एहि दान वला काज केँ आब पूरा कऽ लिअ, जाहि सँ जहिना इच्छा करऽ मे तत्पर छलहुँ तहिना अपन सामर्थ्यक अनुसार दान दऽ कऽ एहि काज केँ पूरो करी। 12 किएक तँ जँ केओ देबाक लेल इच्छुक अछि तँ ओकरा लग जे किछु छैक तकरा अनुसार दान ग्रहणयोग्य ठहराओल जयतैक, नहि कि तकरा अनुसार जे ओकरा लग नहि छैक। 13 हमर कहबाक तात्पर्य ई नहि जे, अहाँ सभ दोसर लोक केँ कष्ट सँ बचा कऽ अपने कष्ट मे पड़ि जाइ, बल्कि ई जे, सभ मे समानता होअय। 14 एहि समय मे अहाँ सभक सम्पन्नता हुनका सभक अभावक पूर्ति करत जाहि सँ कहियो हुनका सभक सम्पन्नता अहाँ सभक अभावक पूर्ति करय आ एहि तरहेँ समानताक स्थिति रहि सकय। 15 धर्मशास्त्रक लेख सेहो अछि जे, “जे अपना लेल बहुत जमा कयलक तकरा लग फाजिल नहि भेलैक, आ जे अपना लेल कनेके जमा कयलक तकरा अभाव नहि रहलैक।” 16 परमेश्वर केँ धन्यवाद होनि जे ओ तीतुसक हृदय मे सेहो अहाँ सभक लेल एहने चिन्ता रखने छथिन जेहन हमरा हृदय मे अछि। 17 किएक तँ ओ हमरा सभक अनुरोध खुशी-खुशी स्वीकारे नहि कयलनि, बल्कि अहाँ सभ लग उत्साहपूर्बक आ अपन इच्छा सँ जा रहल छथि। 18 हम सभ हुनका संग ओहि भाय केँ सेहो पठा रहल छी जे सुसमाचार सम्बन्धी काज मे विश्वासयोग्य रहबाक कारणेँ सभ मण्डली मे प्रशंसाक पात्र छथि। 19 एतबे नहि, बल्कि मण्डली सभ सेहो हुनका चुनने छनि जे ओ जमा कयल दान केँ पहुँचयबाक लेल हमरा सभक संग जाथि। हम सभ ई सेवा-काज एहन तरीका सँ करैत छी जाहि सँ प्रभुक महिमा आ हमरा सभक परोपकार करबाक उत्सुकता देखाइ देअय। 20 हम सभ एहि लेल एहन सावधानी रखैत छी जाहि सँ एहि बड़का दानक प्रबन्ध मे केओ हमरा सभ पर दोष नहि लगाबऽ पाबय। 21 किएक तँ हम सभ मात्र प्रभुएक दृष्टि मे नहि, बल्कि मनुष्य सभक दृष्टि मे सेहो ठीक सँ काज करबाक ध्यान रखैत छी। 22 एहि दूनू गोटेक संग हम सभ अपन एकटा आरो भाय केँ सेहो पठा रहल छी, जे कतेको बेर आ बहुतो बात मे अपन उत्साह प्रमाणित कयने छथि। अहाँ सभ पर हिनका बहुत भरोसा छनि तेँ हिनकर उत्साह आरो बढ़ल छनि। 23 तीतुसक विषय मे हम ई कहब जे ओ हमर सहयोगी छथि आ अहाँ सभक सेवा करऽ मे हमरा संग काज करैत छथि, और एहि भाय सभक विषय मे ई, जे ई सभ मण्डली सभक पठाओल प्रतिनिधि छथि आ हिनका सभक जीवन सँ मसीह केँ सम्मान होइत छनि। 24 एहि लेल अहाँ सभ हिनका सभ केँ अपन प्रेमक प्रमाण दिअ आ एहि बातक प्रमाण सेहो दिअ जे हम सभ अहाँ सभ पर कोन कारणेँ गर्व करैत छी, जाहि सँ मण्डली सभ ई बात बुझत जे हमर सभक गर्व सही आधार पर कयल गेल अछि।
1 ई आवश्यक नहि अछि जे प्रभुक लोक सभक लेल जमा होमऽ वला एहि दानक विषय मे हम अहाँ सभ केँ एहि तरहेँ लिखी। 2 किएक तँ हम जनैत छी जे अहाँ सभ सहायता करबाक लेल तत्पर छी। हम मकिदुनिया प्रदेशक विश्वासी सभ लग एहि विषय मे अहाँ सभ पर गर्व करैत कहने छी जे अखाया प्रदेशक विश्वासी सभ एक साल सँ दान देबाक लेल तैयार छथि। अहाँ सभक तत्परता सँ हुनका सभ मे सँ बहुतो केँ जोस भेटल छनि। 3 मुदा हम एहि भाय सभ केँ अहाँ सभ लग एहि लेल पठा रहल छी जे हम एहि विषय मे अहाँ सभक जे बड़ाइ कयलहुँ से निरर्थक नहि ठहरय आ जाहि सँ जहिना हम कहैत आयल छी तहिना अहाँ सभ तैयार पाओल जाइ। 4 नहि तँ कतौ एना नहि होअय जे जँ किछु मकिदुनियाक विश्वासी हमरा संग अबथि आ अहाँ सभ केँ तैयार नहि पबथि तँ एहि भरोसा लेल जे अहाँ सभ पर कयने छी, हमरा सभ केँ लज्जित होमऽ पड़य आ हमरो सभ सँ बेसी अहीं सभ केँ होमऽ पड़य। 5 तेँ हमरा ई आवश्यक बुझायल जे हम एहि भाय सभ सँ अनुरोध करी जे ओ सभ हमरा सँ पहिने अहाँ सभक ओतऽ पहुँचथि आ एहन प्रबन्ध करथि जे अहाँ सभ जे दान देबाक लेल पहिने सँ वचन देने छी से तैयार रहय। मुदा ई दान जोर-जबरदस्ती सँ नहि, बल्कि स्वेच्छा सँ देल जाय। 6 मुदा एहि बातक ध्यान राखू जे, जे कम बीया बाउग करत से कम काटत आ जे प्रशस्त बाउग करत से बेसी काटत। 7 प्रत्येक व्यक्ति, जतबा ओ अपना मोन मे निश्चय कयने होअय ततबा देअय, दुखी भऽ कऽ वा जोर-जबरदस्तीक कारणेँ नहि, किएक तँ प्रसन्नतापूर्बक देबऽ वला सँ परमेश्वर प्रेम करैत छथिन। 8 परमेश्वर अपना कृपा सँ अहाँ सभ केँ प्रशस्त मात्रा मे सभ प्रकारक आशिष देबऽ मे समर्थ छथि जाहि सँ अहाँ सभ केँ जे किछु आवश्यक होअय, से सदिखन अहाँ सभ लग रहय, आ प्रत्येक भलाइक काजक लेल सेहो अहाँ सभ लग बहुत किछु बचि जाय। 9 धर्मशास्त्र मे एहन व्यक्तिक बारे मे लिखल अछि जे, “ओ प्रशस्त मात्रा मे गरीब सभ केँ दान देने अछि; ओकर धार्मिकता अनन्त काल तक बनल रहतैक।” 10 जे बाउग करऽ वला केँ बीया, आ भोजन करऽ वला केँ रोटी दैत छथिन सैह अहाँ सभक बीयाक भण्डार बढ़ौताह आ अहाँ सभक परोपकार रूपी फसिलक वृद्धि करताह। 11 अहाँ सभ प्रत्येक बात मे सम्पन्न बनाओल जायब जाहि सँ अहाँ सभ हमेशा बिनु कंजूसी कऽ खुशी-खुशी सँ दोसर केँ दऽ सकब। तखन हमरा सभक माध्यम सँ पठाओल अहाँ सभक दानक कारणेँ बहुत लोक परमेश्वर केँ धन्यवाद देतनि। 12 किएक तँ अहाँ सभक एहि दान वला सेवा-काजक द्वारा मात्र प्रभुक लोक सभक आवश्यकते सभ पूरा नहि होइत अछि, बल्कि ई बहुते लोकक मोन मे परमेश्वर केँ धन्यवाद देबाक कारण सेहो बनैत अछि। 13 अहाँ सभक एहि सेवा सँ प्रमाण लऽ कऽ लोक परमेश्वरक स्तुति करतनि जे अहाँ सभ मसीहक सुसमाचार पर विश्वास करबाक गवाही देबाक संग-संग तकरा अनुसार चलितो छी आ अपन सम्पत्ति मे सँ ओकरा सभ केँ और सभ केँ खुशी सँ दैत छी। 14 ओ सभ अहाँ सभ केँ परमेश्वर सँ प्राप्त कयल अपार कृपा केँ देखि हृदय खोलि कऽ अहाँ सभक लेल प्रार्थना करताह। 15 परमेश्वरक ओहि दानक लेल जे वर्णन सँ बाहर अछि हुनका धन्यवाद होनि!
1 हम पौलुस, जे किछु लोकक कथनक अनुसार अहाँ सभक सामने मे कायर छी मुदा अहाँ सभ सँ दूर रहला पर साहस देखबैत छी, से मसीहक नम्रता आ कोमलताक नाम पर अहाँ सभ सँ आग्रह करैत छी— 2 अहाँ सभ सँ ई विनती करैत छी जे जखन हम अहाँ सभ लग आबी तँ हमरा तेहन साहस नहि देखाबऽ पड़य जेहन हम तकरा सभक प्रति देखयबाक निश्चय कऽ लेने छी जे सभ हमरा सभक सम्बन्ध मे कहैत अछि जे, “ओ सभ सांसारिक विचारक अनुसार चलैत अछि।” 3 कारण, हम सभ संसार मे रहैत छी अवश्य, मुदा सांसारिक तरीका सँ युद्ध नहि लड़ैत छी। 4 किएक तँ हमरा सभक युद्धक हथियार सांसारिक नहि, बल्कि परमेश्वरक शक्तिशाली हथियार अछि जाहि द्वारा शक्ति-केन्द्र सभ केँ ध्वस्त कयल जाइत अछि। 5 हम सभ परमेश्वर सम्बन्धी सत्य ज्ञानक विरोध मे ठाढ़ होमऽ वला कल्पना सभ और प्रत्येक कुतर्क केँ नष्ट करैत छी आ प्रत्येक विचार केँ बन्दी बना कऽ मसीहक अधीनता मे लबैत छी। 6 अहाँ सभ जखन पूर्ण रूप सँ आज्ञाकारी होयब तखन हम सभ आज्ञा केँ तोड़नाइ वला प्रत्येक काज केँ दण्डित करबाक लेल तैयार रहब। 7 जे बात आँखिक सामने स्पष्ट अछि तकरा अहाँ सभ देखि लिअ। जँ केओ अपना सम्बन्ध मे निश्चिन्त अछि जे ओ मसीहक अछि तँ ओ एहि पर सेहो विचार करय जे जहिना ओ मसीहक अछि तहिना हमहूँ सभ मसीहक छी। 8 जँ हम प्रभु सँ भेटल अधिकार पर विशेष गर्व करबो करी, तँ हमरा एहि बात सँ कोनो लाज नहि होयत; ई अधिकार अहाँ सभक नोकसानक लेल नहि, बल्कि अहाँ सभक आत्मिक निर्माणक लेल अछि। 9 अहाँ सभ ई नहि बुझू जे हम अपन पत्र सभक द्वारा अहाँ सभ केँ डेराबऽ चाहैत छी। 10 किएक तँ किछु लोक सभक कथन अछि जे, “ओकर पत्र सभ गम्भीर आ प्रभावशाली तँ होइत अछि, मुदा जखन ओ स्वयं उपस्थित होइत अछि तँ ओ कमजोर लगैत अछि आ ओकर बजबाक तरीका सँ कोनो प्रभाव नहि पड़ैत अछि।” 11 एहन लोक सभ ई बुझओ जे हम सभ अपन अनुपस्थिति मे पत्र सभक माध्यम सँ जे कहैत छी, उपस्थित भेला पर सैह करबो करब। 12 जे लोक सभ अपन प्रशंसा करैत अछि, हम सभ अपना केँ तकरा सभ जकाँ मानबाक आ तकरा सभ सँ अपन तुलना करबाक साहस नहि करैत छी। ओ सभ अपने नाप सँ अपना केँ नपैत अछि आ अपने सँ अपना केँ तुलना करैत अछि। केहन मूर्खता वला बात! 13 मुदा हम सभ जे छी, से उचित सीमा केँ नाँघि कऽ गर्व नहि करब। परमेश्वर हमरा सभक लेल जे क्षेत्र निर्धारित कयने छथि से अहूँ सभ तक पहुँचैत अछि आ हम सभ तकरा भीतर मे रहि कऽ गर्व करब। 14 हम सभ अपन क्षेत्रक सीमाक उल्लंघन नहि करैत छी। जँ अहाँ सभ लग नहि पहुँचल रहितहुँ तँ हमरा सभ सँ सैह होइत, मुदा हम सभ मसीहक शुभ समाचार प्रचार करैत अहाँ सभ लग पहुँचल छी। 15 हम सभ अपन सीमाक उल्लंघन करैत दोसराक परिश्रम पर गर्व सेहो नहि करैत छी, बल्कि हमरा सभक आशा अछि जे जहिना-जहिना अहाँ सभक विश्वास बढ़ैत जायत, तहिना-तहिना हमरा सभक कार्यक्षेत्र सेहो अहाँ सभक सहायता सँ विस्तृत होइत जायत, 16 जाहि सँ हम सभ अहाँ सभ सँ आगाँक इलाका मे सुसमाचारक प्रचार कऽ सकी आ अनकर क्षेत्रक सीमाक भीतर भेल काज पर गर्व नहि करी। 17 बल्कि जेना कि धर्मशास्त्र मे लिखल अछि जे, “जे केओ घमण्ड करय से प्रभु पर घमण्ड करय।” 18 किएक तँ जे अपन प्रशंसा स्वयं करैत अछि से नहि, बल्कि जकर प्रशंसा प्रभु करैत छथिन, वैह योग्य ठहराओल जाइत अछि।
1 हम चाहैत छी जे अहाँ सभ हमर कनेक मूर्खता सहि लितहुँ, मुदा वास्तव मे अहाँ सभ तँ सहिओ रहल छी। 2 अहाँ सभक लेल हमरा मोन मे तेहन जरनि भरल अछि जेहन परमेश्वरक जरनि होइत अछि। किएक तँ हम अहाँ सभक विवाह एकमात्र वर, अर्थात् मसीहक संग, ठीक कयने छी आ हम अहाँ सभ केँ पवित्र कुमारि जकाँ हुनका अर्पण करऽ चाहैत छी। 3 मुदा हमरा डर होइत अछि जे जहिना साँप हव्वा केँ अपन कपट सँ बहका देलक तहिना अहाँ सभ मे मसीहक प्रति जे निष्कपट आ शुद्ध भक्ति अछि, ताहि सँ अहाँ सभक मोन बहका ने देल जाय। 4 किएक तँ जखन केओ अहाँ सभ लग कोनो एहन यीशुक प्रचार करऽ अबैत अछि जे हमरा सभक द्वारा प्रचारित यीशु सँ भिन्न अछि, वा जँ अहाँ सभ केँ कोनो ओहन आत्मा अथवा सुसमाचार भेटैत अछि जे अहाँ सभक द्वारा पहिने स्वीकार कयल गेल पवित्र आत्मा आ सुसमाचार सँ भिन्न अछि तँ अहाँ सभ आराम सँ ओकरा सहि लैत छी। 5 हम अपना केँ ओहि “महा मसीह-दूत सभ” सँ कनेको कम नहि बुझैत छी। 6 सम्भव अछि जे हम भाषण देबऽ मे निपुण नहि होइ, तैयो हमरा मे ज्ञानक अभाव नहि अछि। एहि बात केँ हम सभ हर प्रकारेँ सभ बात मे अहाँ सभक सम्मुख स्पष्ट कऽ देने छी। 7 अहाँ सभ केँ ऊपर उठयबाक लेल हम अपना केँ छोट बना लेलहुँ आ बिनु किछु लेनहि अहाँ सभक बीच परमेश्वरक सुसमाचारक प्रचार कयलहुँ, से की हम गलती कयलहुँ? 8 ई कहल जा सकैत जे हम दोसर मण्डली सभ सँ पारिश्रमिक लऽ कऽ अहाँ सभक सेवा करबाक लेल हुनका सभ केँ “लुटलहुँ”। 9 जहिया हम अहाँ सभक ओतऽ छलहुँ तँ अभाव मे रहला पर सेहो हम अहाँ सभक लेल भार नहि बनलहुँ, किएक तँ मकिदुनिया प्रदेश सँ आयल भाय सभ हमर आवश्यकता सभक पूर्ति कऽ देलनि। हम अपना केँ कोनो तरहेँ अहाँ सभ पर भार नहि बनऽ देलहुँ आ ने कहियो बनऽ देब। 10 जँ मसीहक सत्यता हमरा मे अछि तँ अखाया प्रदेश भरि मे केओ हमरा एहन गर्व करबाक हक सँ वंचित नहि करत। 11 एना किएक? की एहि लेल जे हम अहाँ सभ सँ प्रेम नहि करैत छी? परमेश्वर जनैत छथि जे हम अहाँ सभ सँ प्रेम करैत छी! 12 हम जे करैत आबि रहल छी सैह करैत रहब जाहि सँ अपन बड़ाइ करऽ वला ओहि “महा मसीह-दूत सभ” केँ एहि बात पर गर्व करबाक मौका नहि भेटैक जे ओ सभ प्रचारक काज मे हमरा सभक बराबरि अछि। 13 किएक तँ एहन लोक झुट्ठा मसीह-दूत अछि जे अपना काज द्वारा धोखा दैत अछि आ मसीहक दूत होमऽ सनक रूप मात्र धारण करैत अछि। 14 ई कोनो आश्चर्यक बात नहि अछि, किएक तँ शैतान स्वयं चमकैत स्वर्गदूतक रूप धारण कऽ लैत अछि। 15 तेँ जँ ओकर सेवक सभ सेहो धार्मिकताक सेवकक रूप धारण करैत अछि तँ एहि मे कोनो आश्चर्य नहि, मुदा जेहने ओकरा सभक काज अछि, तेहने ओकरा सभक अन्त होयतैक। 16 हम फेर कहैत छी जे, केओ हमरा मूर्ख नहि बुझय। मुदा, जँ अहाँ सभ हमरा एना बुझैत छी तँ हमरा मूर्खे बुझि कऽ स्वीकार करू जाहि सँ हमहूँ कनेक अपन बड़ाइ कऽ सकी। 17 हम एखन जे कहि रहल छी से प्रभुक स्वभावक अनुरूप नहि, बल्कि मूर्ख जकाँ निःसंकोच भऽ कऽ अपन बड़ाइ कऽ रहल छी। 18 जखन अनेक लोक सांसारिक भावना सँ अपन बड़ाइ करैत अछि तँ हमहूँ अपन बड़ाइ किएक ने करी? 19 अहाँ सभ एहन बुद्धिमान छी जे आनन्दपूर्बक मूर्ख सभक व्यवहार सहि लैत छी! 20 हँ, जखन केओ अहाँ सभ केँ गुलाम बना लैत अछि, अहाँ सभक धन-सम्पत्ति हड़पि लैत अछि, अहाँ सभ केँ ठकि लैत अछि, अहाँ सभ लग धाख जमबैत अछि वा अहाँ सभक मुँह पर थप्पड़ मारैत अछि तँ अहाँ सभ ओहन लोक सभक व्यवहार सहि लैत छी। 21 हम लाजक संग स्वीकार करैत छी जे अहाँ सभक संग एहि प्रकारक व्यवहार करबाक साहस हमरा सभ केँ नहि भेल! जाहि बात सभक विषय मे ओ सभ अपन बड़ाइ करबाक साहस करैत अछि, ताहि विषय मे हमरो अपन बड़ाइ करबाक साहस अछि—हम मूर्ख जकाँ बजैत छी। 22 की ओ सभ इब्रानी अछि? हमहूँ छी। की ओ सभ इस्राएली अछि? हमहूँ छी। की ओ सभ अब्राहमक वंशज अछि? हमहूँ छी। 23 की ओ सभ मसीहक सेवक अछि? हम पागल जकाँ बजैत छी!—हम ओकरा सभ सँ बढ़ि कऽ छी। हम ओकरा सभ सँ अधिक परिश्रम कयने छी, हम ओकरा सभ सँ बेसी बेर जहल मे पड़लहुँ, नहि जानि हम कतेक बेर पिटल गेलहुँ। कतेको बेर मरैत-मरैत बचलहुँ। 24 यहूदी सभ हमरा पाँच बेर एक-कम-चालिस कोड़ा लगबौलक। 25 हम तीन बेर बेंतक मारि सहलहुँ। एक बेर हमरा मारि देबाक लेल हमरा पर पथरबाहि कयल गेल। तीन बेर एना भेल जे, जाहि पानि जहाज पर हम यात्रा कऽ रहल छलहुँ से ध्वस्त भऽ गेल। एक बेर दिन-राति भरि हम समुद्र मे बहैत रहलहुँ। 26 हमरा बारम्बार यात्रा करऽ पड़ल, जाहि मे नदी सभक खतरा, डाकू सभक खतरा, सजाति यहूदी सभ सँ खतरा, आन जातिक लोक सभ सँ खतरा, नगर सभक खतरा, निर्जन प्रदेश सभक खतरा, समुद्रक खतरा आ झुट्ठा भाइ सभ सँ खतरा अबैत रहल। 27 हम खटि-खटि कऽ कठोर परिश्रम कयलहुँ आ बहुतो राति जागि कऽ बितौलहुँ। हमरा कतेको बेर भोजन नहि भेटल आ भूखल-पियासल रहलहुँ। वस्त्रक अभाव मे जाड़ सहैत रहलहुँ। 28 और एहि सभ बातक अलावे, सभ मण्डलीक चिन्ताक भार सेहो सभ दिन हमरा पर रहैत अछि। 29 जखन केओ दुर्बल अछि तँ की हम दुर्बलताक अनुभव नहि करैत छी? जखन केओ पाप मे फँसाओल जाइत अछि तँ की हमरा हृदय मे आगि नहि धधकैत अछि? 30 जँ हमरा अपन बड़ाइ करहे पड़ैत अछि तँ हम अपन दुर्बलता प्रगट करऽ वला बात सभक विषय मे बड़ाइ करब। 31 प्रभु यीशुक पिता आ परमेश्वर, जे सदा-सर्वदा धन्य छथि, जनैत छथि जे हम झूठ नहि बाजि रहल छी। 32 जखन हम दमिश्क नगर मे छलहुँ तँ राजा अरितासक राज्यपाल नगर पर पहरा बैसा कऽ हमरा पकड़ऽ चाहलक। 33 मुदा हमरा टोकरी मे बैसा कऽ नगरक छहरदेवालीक खिड़की बाटे नीचाँ उतारि देल गेल आ एहि तरहेँ हम ओकरा हाथ मे अबैत-अबैत बाँचि गेलहुँ।
1 हमरा अपन बड़ाइ करहे पड़ि रहल अछि, ओना तँ एहि सँ कोनो लाभ नहि होइत अछि। आब हम प्रभु सँ देल गेल दर्शन सभ आ प्रभुक द्वारा प्रगट कयल रहस्य सभक चर्चा करब। 2 हम मसीह मेहक एक व्यक्ति केँ जनैत छी जे चौदह वर्ष पहिने आकाश केँ पार कऽ कऽ स्वर्ग मे ऊपर उठाओल गेल—देहक संग वा बिना देहक, हम नहि जनैत छी, परमेश्वर जनैत छथि। 3 हम ओहि व्यक्तिक विषय मे जनैत छी जे ओ स्वर्गधाम मे उठाओल गेल—देहक संग वा बिना देहक, ई हम नहि जनैत छी, परमेश्वर जनैत छथि। ओ एहन बात सभ सुनलक जकरा वर्णनो नहि कयल जा सकैत अछि, जकरा कहबाक अनुमति मनुष्य केँ नहि देल गेल अछि। 5 हम एहन मनुष्यक बड़ाइ करब मुदा हम अपन दुर्बलता सभ केँ छोड़ि कऽ आन कोनो बात लऽ कऽ अपन बड़ाइ नहि करब। 6 जँ हम अपन बड़ाइ करहो चाहितहुँ तँ तैयो हम मूर्ख नहि होइतहुँ, किएक तँ हम सत्ये बजितहुँ। मुदा हम से नहि करब जाहि सँ प्रत्येक व्यक्ति हमरा जे करैत देखैत अछि वा कहैत सुनैत अछि, ताहि अनुसारेँ मात्र हमर मूल्यांकन करय, नहि कि ताहि सँ बढ़ि कऽ। 7 हमरा पर प्रगट कयल एहि बहुत अद्भुत रहस्य सभक कारणेँ हम घमण्ड नहि करऽ लागी, ताहि लेल हमरा शरीर मे एकटा काँट गरा देल गेल। अर्थात्, शैतानक एक “दूत” हमरा कष्ट देबाक लेल राखि देल गेल जाहि सँ हम घमण्डी नहि भऽ जाइ। 8 हम एकरा विषय मे प्रभु सँ तीन बेर नेहोरा-विनती कयलहुँ जे ई हमरा सँ दूर भऽ जाय। 9 मुदा ओ हमरा कहलनि, “हमर कृपा तोरा लेल प्रशस्त छह, किएक तँ~हमर सामर्थ्यक पूर्णता मनुष्यक दुर्बलता मे सिद्ध~होइत अछि।” एहि लेल हम खुशी सँ अपन दुर्बलता सभ पर गर्व करब, जाहि सँ ओहि दुर्बलता सभक द्वारा हमरा मे मसीहक सामर्थ्य क्रियाशील रहय। 10 तेँ मसीहक लेल हम अपन दुर्बलता सभ मे, अपमान सभ मे, कष्ट सभ मे, सतावट सभ मे आ विपत्ति सभ मे प्रसन्न रहैत छी, किएक तँ जखन हम दुर्बल छी तखने बलगर होइत छी। 11 हम एना बात कऽ कऽ मूर्ख बनि गेल छी मुदा अहीं सभ हमरा ताहि लेल विवश कयने छी। उचित तँ ई छल जे अहीं सभ हमरा योग्य ठहरबितहुँ, कारण, हम किछु नहि होइतो ओहि “महा मसीह-दूत सभ” सँ कोनो तरहेँ कम नहि छी। 12 अहाँ सभक बीच मसीह-दूतक असली लक्षण अटल धैर्यक संग हमरा द्वारा प्रदर्शित भेल, अर्थात् आश्चर्यपूर्ण चिन्ह, सामर्थ्यक काज आ चमत्कार सभ। 13 अहाँ सभ केँ किएक होइत अछि जे हम अहाँ सभ केँ दोसर मण्डली सभ सँ कम मानैत छी? की एहि लेल जे हम अहाँ सभ पर अपन खर्चक लेल भार नहि बनलहुँ? एहि अन्यायक लेल अहाँ सभ हमरा क्षमा करू! 14 आब हम अहाँ सभक ओतऽ तेसर बेर अयबाक लेल तैयार छी। हम अहाँ सभक लेल भार नहि बनब, किएक तँ हम अहाँ सभक सम्पत्ति नहि, अहीं सभ केँ चाहैत छी। बच्चा सभ केँ तँ अपन माय-बाबूक लेल धन जमा करबाक भार नहि होयबाक चाही, बल्कि अपन बच्चा सभक लेल माय-बाबू केँ। 15 हम अहाँ सभक लेल खुशी सँ अपन सभ किछु—अपना केँ सेहो—खर्च कऽ देब। जखन हम अहाँ सभ सँ एतेक प्रेम करैत छी तँ की अहाँ सभ हमरा सँ कम प्रेम करब? 16 जे होअय, हम अहाँ सभ पर भार नहि बनलहुँ। तखन की, हम चलाक भऽ कऽ अहाँ सभ केँ छल-कपट सँ फँसा लेलहुँ? 17 हम जाहि व्यक्ति सभ केँ अहाँ सभक ओतऽ पठौलहुँ, की ओहि मे सँ किनको द्वारा अहाँ सभ सँ लाभ उठौलहुँ? 18 हम तीतुस सँ अहाँ सभक ओतऽ जयबाक लेल जोर दैत निवेदन कयलहुँ आ हुनका संग ओहि भाय केँ पठौलहुँ। की तीतुस अहाँ सभ सँ कोनो अनुचित लाभ उठौलनि? की हम दूनू गोटे एके आत्मा सँ प्रेरित भऽ एके बाट पर नहि चललहुँ? 19 अहाँ सभ सोचैत होयब जे एखन तक हम सभ अहाँ सभक समक्ष अपन सफाइ दऽ रहल छी। यौ प्रिय भाइ लोकनि, बात से नहि अछि। हम सभ परमेश्वरक सम्मुख मसीह मे रहि कऽ ई सभ बात बाजि रहल छी आ सभ अहाँ सभक आत्मिक उन्नतिक लेल अछि। 20 हमरा डर अछि जे अहाँ सभक ओतऽ अयला पर हम अहाँ सभ केँ ओहन नहि पाबी जेहन पाबऽ चाहैत छी आ अहाँ सभ सेहो हमरा तेहन नहि पाबी जेहन पाबऽ चाहैत छी। कतौ एहन नहि होअय जे अहाँ सभक बीच झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, स्वार्थ, परनिन्दा, चुगलखोरी, अहंकार आ अव्यवस्था सभ पाबी। 21 हमरा डर अछि जे अहाँ सभक ओतऽ फेर अयला पर कतौ हमर परमेश्वर अहाँ सभ पर जे हमर गर्व अछि तकरा अहाँ सभक सम्मुख चूर-चूर ने करथि आ हम ओहन बहुतो लोक सभक कारणेँ दुखी भऽ जाइ जे सभ पहिने पाप कयने अछि आ अपन कयल अशुद्ध व्यवहार, अनैतिक शारीरिक सम्बन्ध आ भोग-विलासक लेल पश्चात्ताप नहि कयने अछि।
1 आब हम तेसर बेर अहाँ सभक ओतऽ आबि रहल छी। धर्मशास्त्रक नियमक अनुसार, “प्रत्येक बातक पुष्टि दू वा तीन गवाहक गवाही पर कयल जायत।” 2 हम जखन दोसर बेर अहाँ सभक ओतऽ छलहुँ तहिए अहाँ सभ केँ कहलहुँ आ आब जखन अहाँ सभ सँ दूर छी तँ ओहि सभ लोक केँ जे सभ पाप कयलक और आनो लोक सभ केँ फेर कहि दैत छी जे, हम जखन घूमि कऽ आयब तँ ककरो छोड़ब नहि। 3 अहाँ सभ तँ चाहितो छी जे हम एहि बातक प्रमाण दी जे मसीह हमरा द्वारा बजैत छथि। मसीह अहाँ सभक संग जे व्यवहार करैत छथि ताहि मे ओ दुर्बल नहि, बल्कि अहाँ सभक बीच सामर्थी छथि। 4 ई बात सत्य अछि जे दुर्बलता मे ओ क्रूस पर चढ़ा कऽ मारल गेलाह, मुदा परमेश्वरक सामर्थ्य सँ ओ आब जीवित छथि। तहिना हमहूँ सभ मसीह मे दुर्बल छी, तैयो अहाँ सभक संग जे हमरा सभक व्यवहार होयत ताहि सँ ई स्पष्ट होयत जे हम सभ मसीहक संग परमेश्वरक सामर्थ्य सँ जीबैत छी। 5 अहाँ सभ अपना केँ परखू जे अहाँ सभक विश्वास पकिया अछि वा नहि। अपना केँ जाँचू। की अहाँ सभ ई नहि जनैत छी जे मसीह यीशु अहाँ सभक बीच मे छथि ?—जँ अहाँ सभ कसौटी पर खोटा नहि निकललहुँ तँ। 6 हमर आशा अछि जे अहाँ सभ बुझि जायब जे हम सभ खोटा नहि निकललहुँ। 7 हम सभ परमेश्वर सँ प्रार्थना करैत छी जे अहाँ सभ कोनो गलती नहि करी। एहि लेल नहि, जे हम सभ पकिया प्रमाणित होइ, बल्कि एहि लेल जे अहाँ सभ सैह करी जे उचित अछि, भलेही हम सभ खोटा देखाइ दी। 8 कारण, हमरा सभ केँ सत्यक विरोध मे किछु करबाक कोनो अधिकार नहि अछि, हम सभ सत्यक समर्थने करैत छी। 9 किएक तँ जखन हम सभ दुर्बल आ अहाँ सभ सामर्थी होइत छी तखन हमरा सभ केँ आनन्द होइत अछि। हमरा सभक यैह प्रार्थना अछि जे अहाँ सभ मे पूर्ण सुधार होअय। 10 एहि कारणेँ हम अहाँ सभ सँ दूर रहितो एहि बात सभ केँ लिखि रहल छी जाहि सँ जखन हम अहाँ सभक ओतऽ आबी तँ हमरा प्रभु द्वारा देल अधिकारक अनुसार अहाँ सभक संग कठोर व्यवहार नहि करऽ पड़य। किएक तँ हमरा ई अधिकार अहाँ सभ केँ खसयबाक लेल नहि, बल्कि अहाँ सभक आत्मिक निर्माण करबाक लेल भेटल अछि। 11 यौ भाइ लोकनि, आब अन्त मे ई जे, आनन्दित रहू, अपना केँ सुधारू, हमर बात सभ पर ध्यान दिअ, आपस मे एक मोनक भऽ कऽ शान्तिपूर्बक रहू। तखन प्रेम आ शान्ति देबऽ वला परमेश्वर अहाँ सभक संग रहताह। 12 पवित्र मोन सँ एक-दोसर केँ सस्नेह नमस्कार करू। 13 परमेश्वरक सभ लोक अहाँ सभ केँ नमस्कार कहैत छथि। 14 प्रभु यीशु मसीहक कृपा, परमेश्वरक प्रेम आ पवित्र आत्माक संगति अहाँ सभ गोटेक संग बनल रहय।
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