1 Peter11 हम पत्रुस, जे यीशु मसीहक एक मसीह-दूत छी, ई पत्र अहाँ सभ परमेश्वरक चुनल लोक सभ केँ लिखि रहल छी, जे सभ पुन्तुस, गलातिया, कप्पदुकिया, आसिया आ बितूनिया प्रदेश सभ मे छिड़िया कऽ रहि रहल छी आ संसार मे परदेशी छी। 2 अहाँ सभ पिता परमेश्वरक पूर्वज्ञानक अनुसार पहिनहि सँ चुनल गेल छी। परमेश्वर अहाँ सभ केँ एहि अभिप्राय सँ चुनने छथि जे अहाँ सभ हुनकर पवित्र आत्मा द्वारा पवित्र कयल जाइ, यीशु मसीहक आज्ञाक पालन करी आ हुनकर खून सँ शुद्ध कयल जाइ। प्रशस्त मात्रा मे अहाँ सभ पर कृपा कयल जाय आ अहाँ सभ केँ शान्ति भेटय। 3 अपना सभक प्रभु यीशु मसीहक जे परमेश्वर आ पिता छथि, तिनकर स्तुति होनि! ओ अपन अपार दया सँ अपना सभ केँ नव जन्म देने छथि जाहि सँ अपना सभ यीशु मसीहक मृत्यु मे सँ जीबि उठबाक द्वारा एक जीवन्त आशा प्राप्त करी। 4 परमेश्वर अहाँ सभ केँ ओहि धनक उत्तराधिकारी बना देने छथि जे कहियो नष्ट, दुषित वा पुरान नहि होयत, जे अहाँ सभक लेल स्वर्ग मे सुरक्षित राखल अछि। 5 अहाँ सभक विश्वासक माध्यम सँ परमेश्वरक सामर्थ्य अहाँ सभ केँ ओहि उद्धारक लेल सुरक्षित राखि रहल अछि जे समयक अन्त मे प्रगट होमऽ वला अछि। 6 ई अहाँ सभक लेल बड़का आनन्दक विषय अछि, ओना तँ भऽ सकैत अछि जे एखन किछु समयक लेल अहाँ सभ अनेक प्रकारक कष्ट मे पड़ि कऽ दुखी होइ। 7 ई कष्ट सभ एहि लेल अबैत अछि जाहि सँ अहाँ सभक विश्वास परीक्षा द्वारा असली प्रमाणित होअय। सोन, नष्ट होमऽ वला होइतो, आगि मे तपा कऽ शुद्ध कयल जाइत अछि, आ अहाँ सभक विश्वास तँ सोन सँ कतेक मूल्यवान अछि। तहिना अहाँ सभक विश्वास असली प्रमाणित भऽ कऽ यीशु मसीह जहिया फेर औताह, तहिया प्रशंसा, सम्मान आ आदरक कारण होयत। 8 अहाँ सभ यीशु मसीह केँ नहि देखने छिऐन, तैयो अहाँ सभ हुनका सँ प्रेम करैत छी। अहाँ सभ हुनका एखनो नहि देखैत छी, तैयो हुनका पर विश्वास करैत छी आ एहन अद्भुत आनन्द सँ आनन्दित छी जकर वर्णन नहि कयल जा सकैत अछि। 9 कारण, अहाँ सभ अपन विश्वासक परिणाम प्राप्त कऽ रहल छी, अर्थात्, अपन आत्माक उद्धार। 10 एही उद्धारक विषय मे परमेश्वरक प्रवक्ता सभ प्राचीन काल मे सावधानीपूर्बक खोजबीन आ जाँच-पड़ताल कयलनि। ओ सभ अहाँ सभ पर कयल जाय वला कृपाक बारे मे भविष्यवाणी कयलनि। 11 हुनका सभ मे जे मसीहक आत्मा रहैत छलाह से मसीहक दुःख-भोग आ तकरबाद होमऽ वला महिमाक बात सभक भविष्यवाणी कयलनि, आ ओ सभ ई जानऽ चाहैत छलाह जे एहि भविष्यवाणी सभ द्वारा मसीहक आत्मा कोन समय आ कोन परिस्थितिक दिस संकेत कऽ रहल छथि। 12 तखन हुनका सभ केँ ई स्पष्ट कयल गेलनि जे, जाहि बात सभक भविष्यवाणी ओ सभ सुना रहल छलाह, से हुनका सभक अपन हितक लेल नहि, बल्कि अहाँ सभक हितक लेल अछि। कारण, ओ सभ जाहि बात सभक भविष्यवाणी कयलनि, सैह बात सभ आब अहाँ सभ केँ सुनाओल गेल अछि। ओ अहाँ सभ केँ तिनका सभ द्वारा सुनाओल गेल जे सभ स्वर्ग सँ पठाओल पवित्र आत्माक प्रेरणा सँ अहाँ सभक बीच शुभ समाचारक प्रचार कयलनि। ई बात सभ बुझबाक लेल स्वर्गदूतो सभ लालायित रहैत छथि। 13 एहि लेल अहाँ सभ अपन बुद्धि केँ काज करबाक लेल तैयार करू। अपना पर नियन्त्रण राखू आ पूर्ण रूप सँ अपन आशा ओहि कृपा पर रखने रहू जे यीशु मसीह केँ फेर अयला पर अहाँ सभ पर कयल जायत। 14 अहाँ सभ आज्ञाकारी धिआ-पुता जकाँ अपन आचरण राखू, नहि कि पहिने जकाँ, जखन अहाँ सभ अज्ञानी छलहुँ आ अपन अधलाह इच्छा सभक अनुसार आचरण करैत छलहुँ। 15 परमेश्वर, जे अहाँ सभ केँ बजौने छथि, से पवित्र छथि। तहिना अहूँ सभ अपन सम्पूर्ण आचरण-व्यवहार मे पवित्र बनू। 16 कारण, ओ धर्मशास्त्र मे कहैत छथि जे, “अहाँ सभ पवित्र बनू, किएक तँ हम पवित्र छी।” 17 जँ अहाँ सभ तिनका सँ “पिता” कहि कऽ प्रार्थना करैत छियनि, जे बिनु पक्षपात कयने प्रत्येक मनुष्यक ओकर काजक अनुसार न्याय करैत छथि, तँ जाबत धरि अहाँ सभ एहि संसार मे परदेशी भऽ कऽ रहैत छी ताबत धरि हुनका पर श्रद्धा रखैत अपन जीवन व्यतीत करू। 18 अहाँ सभ तँ जनैत छी जे ओहि बेकारक जीवन-चर्या सँ जे अहाँ सभ केँ अपना पूर्वज सभ सँ प्राप्त भेल, ताहि सँ अहाँ सभ केँ मुक्त करबाक लेल एकटा दाम चुकाओल गेल, मुदा से दाम सोन-चानी जकाँ नष्ट होमऽ वला वस्तु सभ नहि छल, 19 बल्कि निर्दोष आ निष्कलंक बलि-भेँड़ाक बहुमूल्य खून, अर्थात् मसीहक बहाओल खून, छल। 20 मसीह संसारक सृष्टि सँ पहिनहि चुनल गेल छलाह, मुदा अहाँ सभक हितक लेल एहि अन्तिमे समय मे प्रगट कयल गेलाह। 21 हुनके द्वारा अहाँ सभ परमेश्वर पर विश्वास कयलहुँ, जे हुनका मृत्यु सँ जिऔलथिन आ महिमा प्रदान कयलथिन। आब अहाँ सभक विश्वास आ भरोसा परमेश्वर पर टिकल अछि। 22 आब अहाँ सभ जँ आज्ञाकारी बनि सत्य केँ स्वीकार कऽ कऽ अपन आत्मा केँ पवित्र कऽ लेने छी, जाहि सँ अपना भाय सभक लेल निष्कपट प्रेम-भाव रखैत छी, तँ एक-दोसर सँ पूरा मोन सँ प्रेम करैत रहबाक लक्ष्य बनाउ। 23 कारण, अहाँ सभ दोहरा कऽ जन्म लेने छी, आ अहाँ सभक ई नव जन्म नाश होमऽ वला बीया सँ नहि, बल्कि ओहन बीया सँ भेल अछि जे कहियो नाश नहि होयत—ई परमेश्वरक जीवित और अटल वचन द्वारा भेल अछि। 24 किएक तँ लिखल अछि जे, “सभ मनुष्य घास जकाँ अछि, और ओकरा सभक सम्पूर्ण सुन्दरता घासक फूल जकाँ छैक। घास सुखि जाइत अछि, आ फूल झरैत अछि, 25 मुदा प्रभुक वचन युगानुयुग स्थिर रहैत अछि।” और ई वचन ओ शुभ समाचार अछि जे अहाँ सभ केँ सुनाओल गेल अछि।
1 एहि लेल अहाँ सभ हर तरहक दुष्ट भावना, सभ प्रकारक छल-कपट, पाखण्ड, डाह आ निन्दा केँ छोड़ू। 2 अहाँ सभ तँ प्रभुक कृपाक स्वाद चिखि लेने छी, आब नव जन्मल बच्चा सभ जकाँ शुद्ध आत्मिक दूधक लेल लालायित रहू, जाहि सँ ओहि द्वारा अपन उद्धार मे पुष्ट भऽ सकब। 4 मसीह ओ जीवित पाथर छथि, जिनका लोक बेकार बुझि कऽ छाँटि देलकनि मुदा जे परमेश्वर द्वारा चुनल गेलाह आ हुनकर दृष्टि मे बहुमूल्य छथि। आब हुनका लग आबि कऽ 5 अहूँ सभ जीवित पाथर सभ जकाँ एक आत्मिक भवन बनैत जा रहल छी, जाहि सँ पुरोहितक एक पवित्र समाज बनि एहन आत्मिक बलिदान चढ़ा सकी जे यीशु मसीह द्वारा परमेश्वर केँ ग्रहणयोग्य होनि। 6 किएक तँ धर्मशास्त्र मे लिखल अछि जे, परमेश्वर कहैत छथि, “देखू, हम सियोन मे एक चुनल पाथर 2 राखि रहल छी, 2 हँ, भवनक कोन्ह परक एक बहुमूल्य पाथर, और जे केओ हुनका पर भरोसा रखैत अछि, 2 तकरा कहियो लज्जित नहि होमऽ पड़तैक।” 7 अहाँ सभक लेल, जे सभ विश्वास करैत छी, ई पाथर बहुमूल्य छथि। मुदा जे सभ विश्वास नहि करैत अछि, तकरा सभक लेल ई पाथर तेना छथि जेना धर्मशास्त्र मे लिखल अछि, “जाहि पाथर केँ राजमिस्तिरी सभ बेकार बुझि कऽ फेकि देने छल, 2 वैह भवनक सभ सँ मुख्य पाथर बनि गेल।” 8 और, “ओहन पाथर जाहि मे लोक केँ ठेस लगतैक, 2 आ ओहन चट्टान, जाहि पर लोक खसत।” ओ सभ एहि कारणेँ खसैत अछि जे ओ सभ प्रभुक वचन केँ नहि मानैत अछि, आ प्रभुक वचन केँ नहि मानऽ वला सभक लेल यैह ठहराओल गेल छैक। 9 मुदा अहाँ सभ परमेश्वरक चुनल वंश, राज-पुरोहितक समाज, पवित्र राष्ट्र आ परमेश्वरक अपन निज प्रजा छी, जाहि सँ अहाँ सभ तिनकर महान् गुण सभक बखान करियनि जे अहाँ सभ केँ अन्हार मे सँ निकालि कऽ अपन अद्भुत इजोत मे बजा अनने छथि। 10 पहिने अहाँ सभ “प्रजा” नहि छलहुँ, मुदा आब अहाँ सभ परमेश्वरक प्रजा छी। पहिने अहाँ सभ पर दया नहि कयल गेल छल, मुदा आब अहाँ सभ परमेश्वरक दया प्राप्त कयने छी। 11 यौ प्रिय भाइ लोकनि, हम अहाँ सभ सँ आग्रह करैत छी जे अहाँ सभ अपना केँ एहि संसार मे परदेशी आ यात्री बुझि कऽ मनुष्य-स्वभावक पापमय इच्छा सभ केँ अपना सँ दूर राखू। ओ इच्छा सभ अहाँ सभक आत्माक विरोध मे युद्ध करैत अछि। 12 अविश्वासी सभक बीच अपन चालि-चलन केँ एतेक नीक बना कऽ राखू जे, जे सभ एखन अहाँ सभ केँ अधलाह काज करऽ वला कहि कऽ निन्दा करैत अछि, से सभ अहाँ सभक नीक काज सभ देखि कऽ न्यायक दिन मे परमेश्वरक स्तुति करनि। 13 मनुष्यक बीच नियुक्त कयल प्रत्येक शासन करऽ वलाक अधीनता स्वीकार करू, किएक तँ प्रभु अहाँ सभ सँ यैह चाहैत छथि—चाहे ओ अधीनता राजाक होअय, जिनका लग सभ सँ पैघ अधिकार छनि, 14 अथवा राज्यपाल सभक होअय, जे सभ अपराध करऽ वला सभ केँ दण्ड देबाक लेल आ नीक काज करऽ वला सभक प्रशंसा करबाक लेल राजा द्वारा नियुक्त कयल जाइत छथि। 15 कारण, परमेश्वरक इच्छा छनि जे अहाँ सभ अपन नीक काज द्वारा अनर्गल बात सभ बजनिहार मूर्ख लोक सभक मुँह बन्द कऽ दी। 16 अहाँ सभ स्वतन्त्र लोक सभ जकाँ आचरण करू, मुदा स्वतन्त्रताक अऽढ़ मे अधलाह काज नहि करू, बल्कि परमेश्वरक दास सभ जकाँ आचरण करबाक लेल अपन स्वतन्त्रताक उपयोग करू। 17 सभ मनुष्यक आदर करू, विश्वासी भाय सभ सँ प्रेम राखू, परमेश्वरक भय मानू, आ राजाक सम्मान करू। 18 हे दास सभ, आदरपूर्बक अपन मालिक सभक अधीन रहू, मात्र तिनका सभक अधीन नहि, जे सभ दयालु आ नम्र छथि, बल्कि तिनको सभक, जे सभ कठोर छथि। 19 किएक तँ जँ केओ ई बात मोन मे रखने रहैत अछि जे, हमरा परमेश्वरक इच्छाक अनुसार अपन जीवन व्यतीत करबाक अछि, आ तखन दुःख उठबैत अन्याय केँ धैर्यपूर्बक सहैत अछि, तँ से प्रशंसा वला बात अछि। 20 मुदा जँ अहाँ सभ अपराध करबाक कारणेँ मारि खाइत छी, आ तखन धैर्यपूर्बक तकरा सहैत छी, तँ एहि मे प्रशंसाक कोन बात भेल? मुदा उचित काज करबाक कारणेँ जँ कष्ट सहैत छी आ धैर्य रखैत छी, तँ एहि सँ परमेश्वर प्रसन्न होइत छथि। 21 नीक काज करबाक कारणेँ कष्ट सहबाक लेल अहाँ सभ बजाओलो गेल छी, किएक तँ मसीह सेहो अहाँ सभक लेल दुःख सहि कऽ एक उदाहरण छोड़ि गेलाह, जाहि सँ अहाँ सभ हुनका पद-चिन्ह सभ पर चलियनि। 22 “ओ कोनो पाप नहि कयलनि, 2 आ ने हुनका मुँह सँ कोनो छल-कपटक बात निकलल।” 23 जखन हुनका अपशब्द कहल गेलनि, तँ ओ उत्तर मे अपशब्द नहि बजलाह। जखन ओ सताओल गेलाह, तँ ओ धमकी नहि देलथिन, बल्कि अपना केँ तिनका इच्छा पर छोड़ि देलनि जे उचित न्यायक अनुसार न्याय करैत छथि। 24 ओ क्रूस पर स्वयं अपने देह मे अपना सभक पाप सभ केँ लऽ लेलनि जाहि सँ अपना सभ पापक लेखेँ मरी आ धार्मिकताक लेल जीवन व्यतीत करी, किएक तँ हुनका घायल भेला सँ अहाँ सभ स्वस्थ भेल छी। 25 अहाँ सभ भटकल भेँड़ा सभ जकाँ छलहुँ, मुदा आब अपन आत्माक चरबाह आ रक्षक लग घूमि आयल छी।
1 एही तरहेँ, हे स्त्री सभ, अहाँ सभ अपन-अपन पतिक अधीन रहू, जाहि सँ जँ हुनका सभ मे सँ केओ प्रभुक वचन केँ नहि मानैत होथि, तँ अहाँ सभक पवित्र आ श्रद्धापूर्ण चालि-चलन केँ देखि कऽ हुनका सभक हृदय मे परिवर्तन भऽ जानि आ ओ सभ विश्वास मे अबथि—ककरो किछु कहबाक कारणेँ नहि, बल्कि अहाँ सभक व्यवहारक कारणेँ। 3 अहाँ सभक सुन्दरता बाहरी श्रृंगार सँ नहि आबय, जेना केशक गुहनाइ, वा सोनाक गहना-गुड़िया सभ आ बढ़ियाँ-बढ़ियाँ कपड़ा पहिरनाइ सँ, 4 बल्कि अहाँ सभक भितरी चरित्र सँ आबय, अर्थात् नम्र आ शान्त स्वभावक सुन्दरता होअय। एहन सुन्दरता टिकैत अछि, और परमेश्वरक नजरि मे बहुत मूल्यवान अछि। 5 किएक तँ प्राचीन काल मे परमेश्वर पर भरोसा राखऽ वाली आ अपना पतिक अधीन रहऽ वाली पवित्र स्त्रीगण सभ एही तरहेँ अपन श्रृंगार करैत छलीह। 6 उदाहरणक लेल, सारा अब्राहम केँ “स्वामी” कहि कऽ हुनकर आज्ञाकारी रहैत छलीह। अहूँ सभ जँ कोनो बात सँ भयभीत नहि भऽ कऽ वैह करी जे उचित अछि, तँ साराक बेटी सभ ठहरब। 7 तहिना यौ पति लोकनि, अहूँ सभ अपन स्त्रीक संग समझदारी सँ रहू। स्त्री केँ “अबला” मानि कऽ हुनकर आदर करू, आ मोन राखू जे ओहो अहाँ जकाँ अनन्त जीवनक वरदान मे सहभागी छथि। एना जँ नहि रहब, तँ अहाँ सभक प्रार्थना मे बाधा पड़ि जायत। 8 अन्त मे ई जे, अहाँ सभ गोटे एक मोनक होउ, एक-दोसराक लेल सहानुभूति राखू, एक-दोसर केँ भाइ मानि कऽ प्रेम करू, दयालु आ नम्र बनू। 9 अधलाह बातक बदला अधलाह बात सँ नहि दिअ, वा अपमानक बदला अपमान सँ नहि, बल्कि आशीर्वाद सँ दिअ। किएक तँ अहाँ सभ यैह करबाक लेल बजाओल गेल छी, जाहि सँ अहाँ सभ आशिष प्राप्त करब। 10 जेना धर्मशास्त्र कहैत अछि, “जे केओ जीवन मे आनन्द उठाबऽ चाहैत अछि 2 आ नीक दिन देखऽ चाहैत अछि, से अपना जीह केँ अधलाह बात सभ बाजऽ सँ 2 आ अपना ठोर केँ कपटपूर्ण बात सभ बाजऽ सँ रोकय। 11 ओ दुष्टता सँ दूर रहय आ भलाइक काज करय, ओ पूरा मोन सँ सभक संग शान्ति सँ रहबाक कोशिश करय। 12 किएक तँ प्रभुक कृपादृष्टि धार्मिक लोक सभ पर रहैत अछि, 2 आ हुनकर कान ओकरा सभक प्रार्थनाक दिस लागल रहैत अछि, मुदा जे सभ अधलाह काज करैत अछि, 2 तकरा सभक दिस सँ प्रभु मुँह फेरि लैत छथि।” 13 जँ अहाँ सभ वैह करबाक लेल उत्सुक छी जे उचित अछि तँ अहाँ सभक हानि के करत? 14 तैयो जँ अहाँ सभ केँ एहि लेल कष्ट सहऽ पड़य जे उचित काज करैत छी तँ ई अहाँ सभक लेल सौभाग्यक बात अछि। “लोकक धमकी सँ ने तँ भयभीत होउ आ ने घबड़ाउ।” 15 मसीह केँ प्रभु मानि कऽ अपना हृदय मे सभ सँ ऊँच स्थान दिऔन। अहाँ सभ केँ जे आशा अछि, ताहि विषय मे जे सभ अहाँ सभ सँ प्रश्न करैत अछि, तकरा सभ केँ उत्तर देबाक लेल सदिखन तत्पर रहू। मुदा से नम्रता आ आदरक संग करू, 16 एहन चालि-चलन राखि कऽ जकरा कारणेँ अहाँक विवेक अहाँ केँ दोषी नहि ठहराओत, जाहि सँ जे लोक सभ अहाँ सभ केँ बदनाम करैत अछि आ अहाँ सभक नीक मसीही आचरणक निन्दा करैत अछि, तकरा सभ केँ लज्जित होमऽ पड़ैक। 17 किएक तँ जँ परमेश्वरक इच्छा ई छनि जे अहाँ सभ दुःख उठाबी, तँ नीक यैह अछि जे अहाँ सभ उचित काज करबाक कारणेँ दुःख उठाउ, नहि कि अधलाह काज करबाक कारणेँ। 18 मसीह सेहो, धर्मी भऽ कऽ अधर्मी सभक लेल मरलाह, पापक प्रायश्चित्तक वास्ते सदाकालक लेल एक बेर मरलाह, जाहि सँ ओ अहाँ सभ केँ परमेश्वर लग लऽ अबथि। ओ शरीर सँ मारल गेलाह, मुदा आत्मा सँ जिआओल गेलाह। 19 और आत्मे मे जा कऽ ओ कैद मे पड़ल आत्मा सभक बीच प्रचार कयलनि। 20 ई आत्मा सभ प्राचीन काल मे आज्ञाक पालन नहि कयने छल जहिया नूहक समय मे जहाज बनैत काल परमेश्वर धैर्यपूर्बक प्रतीक्षा कऽ रहल छलाह। ओहि जहाज मे किछुए लोक, अर्थात् आठ गोटे, पानि द्वारा बाँचल छल। 21 ई पानि बपतिस्माक दिस संकेत करैत अछि, जे आब अहाँ सभ केँ बचबैत अछि। बपतिस्माक अर्थ शरीरक मैल छोड़ौनाइ नहि, बल्कि शुद्ध हृदय सँ अपना केँ परमेश्वरक प्रति समर्पित कयनाइ अछि। ई बपतिस्मा यीशु मसीहक जीबि उठनाइ द्वारा अहाँ सभक उद्धार करैत अछि। 22 कारण, यीशु मसीह जीबि उठि कऽ स्वर्ग मे प्रवेश कयलनि आ आब परमेश्वरक दहिना कात विराजमान छथि। सभ स्वर्गदूत, अधिकारी आ शक्ति सभ हुनके अधीन मे अछि।
1 मसीह अपना शरीर मे दुःख भोगलनि। एहि लेल अहूँ सभ शस्त्र जकाँ ओही मनोभावना केँ धारण करू जे हुनका मे छलनि, किएक तँ जे केओ अपना शरीर मे दुःख भोगने अछि, से पाप सँ सम्बन्ध तोड़ि लेने अछि, 2 और एहि तरहेँ ओ आब अपन मनुष्य-स्वभावक अधलाह इच्छा सभक अनुसार नहि, बल्कि परमेश्वरक इच्छाक अनुसार अपन शेष जीवन बितबैत अछि। 3 अहाँ सभ बितल समय मे ओहन काज सभ जे सांसारिक लोक कयनाइ पसन्द करैत अछि, ताहि मे जतबा समय व्यतीत कयलहुँ सैह बहुत भेल—अर्थात्, निर्लज्जता वला विचार-व्यवहार कयनाइ, शारीरिक इच्छा सभ मे लीन रहनाइ, पिबि कऽ मातल भेनाइ, भोग-विलास आ मौज-मजा कयनाइ, आ मूर्तिपूजा वला घृणित काज कयनाइ। 4 विनाश मे लऽ जाय वला एहि दुराचारक बाट पर आब अहाँ सभ ओकरा सभक संग नहि दौड़ैत छी, तेँ ओकरा सभ केँ आश्चर्य लगैत छैक आ ओ सभ अहाँ सभक निन्दा करैत अछि। 5 मुदा एहन लोक सभ केँ अपन लेखा तिनका लग देबऽ पड़तैक जे जीवित सभक आ मरल सभक न्याय करबाक लेल तैयार छथि। 6 एहि लेल तकरो सभ केँ सुसमाचार सुनाओल गेल छलैक जे सभ एखन मरल अछि, जाहि सँ ओना तँ ओकरा सभक मरनाइ द्वारा ओ सभ शरीर मे वैह न्याय पौलक जे सभ मनुष्य केँ भेटैत छैक, तैयो आत्मा मे ओ सभ ओहन जीवन पाबय जेहन परमेश्वर केँ छनि। 7 सभ बातक अन्त नजदीक अछि। तेँ समझदार बनू और अपना पर काबू राखू जाहि सँ प्रार्थना कऽ सकी। 8 सभ सँ पैघ बात ई जे अहाँ सभ आपस मे अटूट प्रेम राखू, किएक तँ प्रेम असंख्य पाप केँ झाँपि दैत अछि। 9 बिनु कुड़बुड़ा कऽ एक-दोसराक अतिथि-सत्कार करू। 10 अहाँ सभ मे सँ प्रत्येक गोटे केँ परमेश्वर सँ वरदान भेटल अछि। आब परमेश्वरक विश्वस्त सेवक जकाँ हुनकर कृपाक विभिन्न गुणक वरदान सभ केँ एक-दोसराक सेवा मे लगाउ। 11 जे केओ उपदेश दैत छथि, से एना देथि जेना परमेश्वरेक बात सभ बाजि रहल छथि। जे दोसराक सहायता करैत छथि, से ओहि बल सँ करथि जे परमेश्वर दैत छथि, जाहि सँ सभ बात मे यीशु मसीहक माध्यम सँ परमेश्वरक स्तुति होनि। महिमा आ सामर्थ्य युगानुयुग परमेश्वरेक छनि। आमीन। 12 प्रिय भाइ लोकनि, अपन अग्नि-परीक्षा पर, जे अहाँ सभ केँ जँचबाक लेल भऽ रहल अछि, आश्चर्य नहि मानू, जेना कोनो असाधारण बात भऽ रहल होअय। 13 बल्कि आनन्द मनाउ जे अहाँ सभ मसीहक दुःख-भोग मे सहभागी छी। तखन जाहि दिन मसीह अपना महिमा मे फेर औताह, ताहि दिन अहाँ सभ आओर आनन्दित होयब। 14 जँ अहाँ सभक अपमान एहि लेल कयल जाइत अछि जे अहाँ सभ मसीहक लोक छी, तँ ई अहाँ सभक लेल सौभाग्यक बात अछि, किएक तँ एहि सँ स्पष्ट होइत अछि जे महिमाक आत्मा, जे परमेश्वरक आत्मा छथि, से अहाँ सभ मे वास करैत छथि। 15 एना नहि होअय जे अहाँ सभ मे सँ कोनो व्यक्ति हत्यारा, चोर वा आओर कोनो तरहक अपराधी बनि कऽ, वा दोसराक काज मे टाँग अड़यबाक कारणेँ दुःख भोगय। 16 मुदा जँ केओ मसीही होयबाक कारणेँ दुःख उठबैत छी तँ लज्जित नहि होउ, बल्कि परमेश्वरक स्तुति करू जे मसीहक लोकक रूप मे परिचित छी। 17 किएक तँ न्यायक समय आबि गेल अछि आ से परमेश्वरक परिवारे सँ शुरू भऽ रहल अछि। जँ न्यायक शुरुआत अपना सभ सँ भऽ रहल अछि, तँ तकरा सभ केँ की होयतैक जे सभ अनाज्ञाकारी भऽ परमेश्वरक शुभ समाचार केँ नहि मानैत अछि? 18 जेना लिखल अछि, “जँ धार्मिक लोक सभ मुश्किल सँ उद्धार प्राप्त करत, तँ अधर्मी आ पापी मनुष्य सभक दशा की होयतैक?” 19 एहि लेल जे सभ परमेश्वरक इच्छाक अनुसार दुःख उठा रहल छथि, से सभ अपना केँ विश्वासयोग्य सृष्टिकर्ताक हाथ मे सौंपि देथि आ उचित काज करैत रहथि।
1 अहाँ सभ मे जे मण्डलीक देख-रेख कयनिहार सभ छी, अहाँ सभ सँ हमर एकटा अनुरोध अछि। हमहूँ मण्डलीक एकटा देख-रेख कयनिहार छी, मसीहक कष्टभोगक गवाह छी आ भविष्य मे प्रगट होमऽ वला जे महिमा अछि, ताहि मे हमहूँ अहीं सभ जकाँ सहभागी रहब। 2 अहाँ सभ सँ हमर अनुरोध ई अछि जे, अहाँ सभक जिम्मा मे जे परमेश्वरक भेँड़ा रूपी झुण्ड अछि, तकर अहाँ सभ चरबाह जकाँ रखबारी करू। ओकर देखभाल करू, कोनो दबाब सँ नहि, बल्कि जहिना परमेश्वर चाहैत छथि, तहिना आनन्द सँ करू, और अनुचित लाभक दृष्टि सँ नहि करू, बल्कि सेवा करबाक मोन सँ। 3 जे लोक सभ अहाँ सभ केँ सौंपल गेल अछि, तकरा सभ पर अधिकार नहि जमाउ, बल्कि अपना झुण्डक लेल नमूना बनू। 4 तखन जहिया प्रधान चरबाह प्रगट भऽ जयताह, तहिया अहाँ सभ केँ महिमाक ओ मुकुट प्राप्त होयत जकर शोभा कहियो नहि घटत। 5 एहि तरहेँ, यौ जबान भाइ सभ, अहाँ सभ मण्डलीक देख-रेख कयनिहार सभक अधीन रहू। अहाँ सभ केओ नम्रता सँ एक-दोसराक सेवा करू, किएक तँ, “परमेश्वर घमण्डी सभक विरोध करैत छथि, मुदा नम्र लोक सभ पर कृपा करैत छथि।” 6 एहि लेल परमेश्वरक सामर्थी हाथक नीचाँ नम्र बनू, जाहि सँ ओ अहाँ सभ केँ उचित समय पर सम्मानित करथि। 7 अपन सम्पूर्ण चिन्ता हुनका पर राखि दिअ, किएक तँ हुनका अहाँ सभक चिन्ता छनि। 8 अहाँ सभ अपना पर काबू राखू आ सचेत रहू। अहाँ सभक दुश्मन शैतान गर्जैत सिंह जकाँ घुमैत-फिरैत एहि ताक मे रहैत अछि जे ककरा फाड़ि कऽ खा ली। 9 विश्वास मे दृढ़ रहि कऽ ओकर सामना करू आ मोन राखू जे पूरा संसार मे अहाँ सभक भाय सभ एही प्रकारक कष्ट सहि रहल छथि। 10 अहाँ सभ केँ कनेक काल धरि कष्ट सहन कऽ लेलाक बाद, परमेश्वर, जे सम्पूर्ण कृपाक स्रोत छथि, से अपने अहाँ सभ केँ सिद्ध, दृढ़, बलवन्त आ स्थिर करताह। ओ तँ यीशु मसीह मे अहाँ सभ केँ अपन अनन्त कालीन महिमा मे सहभागी होयबाक लेल बजौने छथि। 11 हुनके शक्ति युगानुयुग बनल रहनि। आमीन। 12 हम ई छोट पत्र सिलासक सहायता सँ लिखि रहल छी, जिनका हम अपन विश्वस्त भाय मानैत छिऐन। हम अहाँ सभ केँ प्रोत्साहित करैत एहि बातक विश्वास दिअबैत छी जे एहि मे जे लिखल अछि से परमेश्वरक असली कृपा अछि। एहि कृपा मे स्थिर रहू। 13 बेबिलोनक मण्डलीक सदस्य सभ, जे सभ अहीं सभ जकाँ परमेश्वर द्वारा चुनल गेल छथि, अहाँ सभ केँ अपन नमस्कार कहैत छथि। मरकुस, जे मसीह मे हमर बेटा अछि, सेहो नमस्कार पठबैत अछि। 14 मसीही प्रेम सँ एक-दोसर केँ सस्नेह नमस्कार करू। अहाँ सभ गोटे केँ, जे सभ मसीह मे छी, शान्ति भेटय।
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