Markus


1

1 हम पौलुस, जे परमेश्‍वरक इच्‍छा सँ मसीह यीशुक एक मसीह-दूत होयबाक लेल बजाओल गेल छी, और भाइ सोस्‍थिनेस सेहो, 2 ई पत्र अहाँ सभ केँ लिखि रहल छी, जे सभ कोरिन्‍थ नगर मे परमेश्‍वरक मण्‍डली छी। अहाँ सभ यीशु मसीह द्वारा पवित्र कयल गेल छी और परमेश्‍वरक अपन लोक होयबाक लेल बजाओल गेल छी, जहिना सभ ठामक ओ सभ लोक छथि जे अपना सभक प्रभु यीशु मसीहक नाम सँ प्रार्थना करैत छथि—ओ तँ हुनका सभक आ अपना सभक, दूनूक प्रभु छथि। 3 अपना सभक पिता परमेश्‍वर आ प्रभु यीशु मसीह अहाँ सभ पर कृपा करथि और अहाँ सभ केँ शान्‍ति देथि। 4 अहाँ सभक लेल हम सदिखन अपना परमेश्‍वर केँ धन्‍यवाद दैत छियनि, किएक तँ ओ मसीह यीशु द्वारा अहाँ सभ पर कृपा कयने छथि। 5 कारण, मसीहक सम्‍बन्‍ध मे जे गवाही अहाँ सभ केँ सुनाओल गेल, से अहाँ सभक बीच एहि बातक द्वारा सत्‍य प्रमाणित भेल जे मसीह मे अहाँ सभ हर क्षेत्र मे सम्‍पन्‍न भऽ गेल छी, अर्थात्‌ सभ बात व्‍यक्‍त करबाक गुण मे आ सभ बातक ज्ञान मे। 7 तेँ अहाँ सभ उत्‍सुकतापूर्बक अपना सभक प्रभु यीशु मसीहक फेर अयबाक बाट तकैत कोनो आत्‍मिक वरदानक अभाव मे नहि छी। 8 एतबे नहि, परमेश्‍वर अन्‍त धरि अहाँ सभ केँ मजगूत कयने रहताह, जाहि सँ अहाँ सभ अपना सभक प्रभु यीशु मसीहक फेर अयबाक दिन मे निर्दोष पाओल जाइ। 9 परमेश्‍वरे अपन पुत्रक संगति मे, अर्थात्‌ अपना सभक प्रभु यीशु मसीहक संगति मे, अहाँ सभ केँ बजौने छथि आ ओ विश्‍वासयोग्‍य छथि। 10 यौ भाइ लोकनि, अपना सभक प्रभु यीशु मसीहक नाम सँ हम अहाँ सभ सँ आग्रह करैत छी जे अहाँ सभ एकमत भऽ कऽ रहू जाहि सँ आपस मे फूट नहि होअय, बल्‍कि अहाँ सभक मोन आ विचार मे पूर्ण एकता होअय। 11 किएक तँ, यौ भाइ लोकनि, हमरा खलोएक घरक किछु लोक द्वारा एहि बातक जानकारी भेटल अछि जे अहाँ सभक बीच झगड़ा चलि रहल अछि। 12 हमर कहबाक मतलब ई अछि जे अहाँ सभ मे सँ केओ कहैत छी जे, “हम पौलुसक चेला छी”, केओ जे, “हम अपुल्‍लोसक”, केओ जे, “हम पत्रुसक,” आ केओ जे, “हम मसीहक चेला छी।” 13 तँ की मसीहक बटबारा कऽ देल गेल छनि? की अहाँ सभक लेल पौलुस केँ क्रूस पर चढ़ाओल गेल? की अहाँ सभ पौलुसक नाम सँ बपतिस्‍मा लेने छलहुँ? 14 हम परमेश्‍वरक धन्‍यवाद दैत छियनि जे अहाँ सभ मे सँ क्रिस्‍पुस आ गयुस केँ छोड़ि आरो किनको बपतिस्‍मा हम नहि देलहुँ। 15 आब केओ ई नहि कहि सकैत अछि जे ओ हमरा नाम सँ बपतिस्‍मा लेने अछि। 16 हँ, हम स्‍तेफनासक घरक लोक केँ सेहो बपतिस्‍मा देने छी। हमरा मोन नहि अछि जे हम हिनका सभ केँ छोड़ि आरो किनको बपतिस्‍मा देलहुँ। 17 किएक तँ मसीह हमरा बपतिस्‍मा देबाक लेल नहि, बल्‍कि शुभ समाचार सुनयबाक लेल पठौने छथि। आ सेहो सांसारिक ज्ञान सँ भरल शब्‍द सभक प्रयोग नहि कऽ कऽ, जाहि सँ ई नहि होअय जे मसीहक क्रूस परक मृत्‍युक प्रभाव खतम भऽ जाय। 18 विनाश भेनिहार लोक क्रूसक शिक्षा केँ मूर्खताक बात बुझैत अछि। मुदा अपना सभक लेल, जे सभ उद्धार पाबि रहल छी, क्रूसक शिक्षा परमेश्‍वरक सामर्थ्‍य अछि। 19 किएक तँ धर्मशास्‍त्र मे लिखल अछि जे परमेश्‍वर कहैत छथि, “हम ज्ञानी सभक ज्ञान केँ नष्‍ट कऽ देब 2 आ बुद्धिमान सभक बुद्धि केँ व्‍यर्थ कऽ देब।” 20 कतऽ अछि ज्ञानी सभ? कतऽ अछि विद्वान सभ? कतऽ अछि एहि संसारक तर्क-वितर्क करऽ वला सभ? की परमेश्‍वर एहि संसारक “ज्ञान” केँ मूर्खता नहि बना देने छथि? 21 परमेश्‍वरक बुद्धिपूर्ण योजना ई छलनि जे संसार अपन बुद्धि द्वारा हुनका नहि चिन्‍हि सकय। एहि लेल परमेश्‍वर केँ ई नीक बुझयलनि जे शुभ समाचारक प्रचारक “मूर्खता” द्वारा ओ विश्‍वास कयनिहार लोक सभक उद्धार करथि। 22 यहूदी सभ चमत्‍कार सभक माँग करैत अछि आ यूनानी सभ बुद्धिक खोज करैत अछि। 23 मुदा हम सभ क्रूस पर चढ़ाओल गेल मसीहक प्रचार करैत छी। ई यहूदी सभक लेल विश्‍वास करऽ मे बाधा वला बात आ आन जाति सभक लेल मूर्खताक बात अछि। 24 मुदा परमेश्‍वर जकरा सभ केँ बजौने छथि, ओ चाहे यहूदी होअय वा यूनानी, तकरा सभक लेल मसीह छथि परमेश्‍वरक सामर्थ्‍य आ परमेश्‍वरक ज्ञान। 25 किएक तँ जकरा परमेश्‍वरक “मूर्खता” बुझल जाइत अछि, से मनुष्‍यक ज्ञानक अपेक्षा अधिक ज्ञानवान अछि, आ जकरा परमेश्‍वरक “दुर्बलता” बुझल जाइत अछि, से मनुष्‍यक बलक अपेक्षा अधिक बलवान अछि। 26 यौ भाइ लोकनि, विचार करू, परमेश्‍वर अहाँ सभ केँ जहिया बजौलनि तहिया अहाँ सभ की छलहुँ? सांसारिक दृष्‍टिएँ अहाँ सभ मे सँ किछुए लोक ज्ञानी, सामर्थी वा खानदानी छलहुँ। 27 मुदा ज्ञानी सभ केँ लज्‍जित करबाक लेल परमेश्‍वर ओहन बात सभ केँ चुनलनि जे संसारक दृष्‍टि मे मूर्खताक बात अछि। सामर्थी सभ केँ लज्‍जित करबाक लेल ओ ओहन बात सभ केँ चुनलनि, जे संसारक दृष्‍टि मे निर्बल अछि। 28 जे बात सभ संसार मे नीच, तुच्‍छ आ नगण्‍य मानल जाइत अछि ओहन बात सभ केँ परमेश्‍वर एहि लेल चुनलनि जे ओ तेहन बात सभ केँ नष्‍ट कऽ देथि जे संसार मे महत्‍वपूर्ण मानल जाइत अछि, 29 जाहि सँ केओ परमेश्‍वरक सामने घमण्‍ड नहि करय। 30 परमेश्‍वरेक कारणेँ अहाँ सभ मसीह यीशु मे छी। प्रभु यीशु मसीह अपना सभक लेल परमेश्‍वर द्वारा देल गेल ज्ञान बनि गेल छथि। ओ स्‍वयं अपना सभक धार्मिकता, पवित्रता, आ पाप सँ छुटकारा भऽ गेल छथि। 31 तेँ जेना धर्मशास्‍त्र मे लिखल अछि, “जँ केओ घमण्‍ड करय तँ ओ प्रभु पर घमण्‍ड करय।”

1 Corinthians 2

1 यौ भाइ लोकनि, हम जखन अहाँ सभक ओतऽ परमेश्‍वरक विषय मे गवाही देबऽ अयलहुँ तँ शब्‍दक आडम्‍बर अथवा सांसारिक ज्ञानक संग नहि अयलहुँ। 2 हम निश्‍चय कयने छलहुँ जे हम अहाँ सभक बीच यीशु मसीह आ क्रूस पर भेल हुनकर मृत्‍यु केँ छोड़ि, कोनो आन विषय पर बात नहि करब। 3 हम कमजोर आ डेरायल आ थर-थर कँपैत अहाँ सभक बीच रहलहुँ। 4 हमर शिक्षा आ हमर प्रचार मे विद्वानक प्रभावशाली शब्‍दक आकर्षण नहि छल, बल्‍कि परमेश्‍वरक आत्‍माक सामर्थ्‍यक प्रदर्शन छल, 5 जाहि सँ अहाँ सभक विश्‍वास मनुष्‍यक ज्ञान पर नहि, बल्‍कि परमेश्‍वरक सामर्थ्‍य पर आधारित होअय। 6 ओना तँ जे लोक सभ आत्‍मिक रूप सँ बुझनिहार छथि तिनका सभक बीच हम सभ अवश्‍य ज्ञानक बात सुनबैत छी। मुदा ई ज्ञान ने तँ एहि संसारक अछि आ ने एहि संसारक शासन करऽ वला सभक, जे सभ समाप्‍त होमऽ पर अछि। 7 हम सभ परमेश्‍वरेक रहस्‍यमय ज्ञानक बात सुनबैत छी जे पहिने गुप्‍त राखल छल, आ जकरा परमेश्‍वर संसारक सृष्‍टि सँ पूर्वहिं अपना सभक महिमाक लेल निश्‍चित कयने छलाह। 8 एहि ज्ञान केँ संसारक शासन करऽ वला सभ मे सँ केओ नहि बुझि पौलक, नहि तँ महिमामय प्रभु केँ क्रूस पर नहि चढ़बितनि। 9 मुदा जेना कि धर्मशास्‍त्रक लेख अछि, “जे सभ परमेश्‍वर सँ प्रेम करैत अछि तकरा सभक लेल ओ जे किछु तैयार कयने छथि तकरा केओ कहियो देखलक नहि, केओ कहियो सुनलक नहि आ ने केओ तकर कल्‍पना कऽ पौलक।” 10 मुदा, परमेश्‍वर अपन पवित्र आत्‍मा द्वारा ई ज्ञान अपना सभ पर प्रगट कयने छथि, किएक तँ परमेश्‍वरक आत्‍मा सभ बातक, परमेश्‍वरक रहस्‍यमय बात सभक सेहो, थाह पाबि लैत छथि। 11 ककरो मोनक बात केँ कोन मनुष्‍य जानि सकैत अछि? खाली ओकर अपन आत्‍मा ओकर मोनक बात जनैत अछि। एही प्रकारेँ परमेश्‍वरक आत्‍मा केँ छोड़ि परमेश्‍वरक विचार केओ नहि जनैत अछि। 12 अपना सभ केँ संसारक आत्‍मा नहि, बल्‍कि परमेश्‍वरक दिस सँ आबऽ वला पवित्र आत्‍मा भेटल छथि जाहि सँ परमेश्‍वर अपन खुशी सँ अपना सभ केँ की सभ देने छथि तकरा जानि सकी। 13 हम सभ एहि बात सभक व्‍याख्‍या करैत काल मानवीय बुद्धि सँ प्रेरित शब्‍द सभक नहि, बल्‍कि पवित्र आत्‍मा द्वारा सिखाओल गेल शब्‍द सभक प्रयोग करैत छी, अर्थात् आत्‍मिक बात सभ आत्‍मिक तरीका द्वारा व्‍यक्‍त करैत छी। 14 मुदा जाहि मनुष्‍य मे परमेश्‍वरक आत्‍मा नहि रहैत छथि से परमेश्‍वरक आत्‍माक बात सभ केँ स्‍वीकार नहि करैत अछि, किएक तँ ओ ओहि बात सभ केँ मूर्खता मानैत अछि। ओ ओकरा बुझि नहि सकैत अछि, किएक तँ परमेश्‍वरक आत्‍मे द्वारा ओकर थाह पाओल जा सकैत अछि। 15 जाहि मनुष्‍य मे परमेश्‍वरक पवित्र आत्‍मा रहैत छथि से सभ बात जाँचि कऽ बुझैत अछि, मुदा ओ अपने कोनो मनुष्‍य द्वारा नहि बुझल जाइत अछि। 16 किएक तँ धर्मशास्‍त्र मे लिखल अछि जे, “प्रभुक सोच-विचार केँ के जनने अछि? हुनकर सल्‍लाहकार के भऽ सकल अछि?” मुदा अपना सभ केँ तँ मसीहक सोच-विचार भेटल अछि।

1 Corinthians 3

1 यौ भाइ लोकनि, हम अहाँ सभ सँ ओहि तरहेँ बात नहि कऽ सकलहुँ जाहि तरहेँ आत्‍मिक लोक सँ कयल जाइत अछि। हमरा अहाँ सभ सँ ओहि तरहेँ बात करऽ पड़ल जाहि तरहेँ सांसारिक व्‍यक्‍ति सभ सँ कयल जाइत अछि, मसीह मेहक छोट बच्‍चा सभ जकाँ। 2 हम अहाँ सभ केँ दूध पिऔने छलहुँ, अन्‍न नहि खुऔने छलहुँ, किएक तँ अहाँ सभ ओकरा पचा नहि सकैत छलहुँ। हँ, अहाँ सभ एखनो ओकरा पचा नहि सकैत छी। 3 किएक तँ अहाँ सभ एखनो सांसारिक छी। जखन अहाँ सभ मे डाह आ झगड़ा होइत अछि तँ की ई एहि बातक प्रमाण नहि अछि जे अहाँ सभ सांसारिक छी? की अहाँ सभक व्‍यवहार एहन लोकक व्‍यवहार जकाँ नहि अछि जकरा सभ मे पवित्र आत्‍मा नहि छथि? 4 जखन केओ कहैत अछि, “हम पौलुसक चेला छी” आ केओ जे, “हम अपुल्‍लोसक छी”, तँ की अहाँ सभ सांसारिक लोक नहि भेलहुँ? 5 तँ अपुल्‍लोस की छथि? आ पौलुस की अछि? हम सभ सेवक मात्र छी, जकरा द्वारा अहाँ सभ विश्‍वास कयलहुँ। हम सभ हर एक, बस, वैह काज कयलहुँ जे प्रभु हमरा सभ केँ जिम्‍मा देलनि। 6 हम बीया बाउग कयलहुँ, अपुल्‍लोस ओहि मे पानि पटौलनि, मुदा बढ़ौलनि ओकरा परमेश्‍वर। 7 ने तँ बाउग करऽ वलाक कोनो महत्‍व अछि आ ने पानि पटाबऽ वलाक, बल्‍कि ओकरा बढ़ाबऽ वला परमेश्‍वरे सभ किछु छथि। 8 बाउग करऽ वला आ पानि पटाबऽ वला एके लक्ष्‍य राखि कऽ काज करैत अछि आ प्रत्‍येक अपने परिश्रमक अनुरूप इनाम पाओत। 9 हम सभ परमेश्‍वरेक सेवा मे सहकर्मी छी; अहूँ सभ परमेश्‍वरेक खेत आ परमेश्‍वरेक भवन छी। 10 परमेश्‍वरक ओहि कृपा द्वारा जे हमरा प्रदान कयल गेल अछि हम कुशल राजमिस्‍तिरी जकाँ न्‍यो रखलहुँ आ केओ दोसर ओहि पर भवन बनबैत जा रहल अछि। मुदा प्रत्‍येक गोटे एहि बातक ध्‍यान राखय जे ओ भवनक निर्माण कोना कऽ रहल अछि। 11 किएक तँ जे न्‍यो राखल गेल अछि तकरा छोड़ि कोनो दोसर नहि राखल जा सकैत अछि आ ओ न्‍यो छथि यीशु मसीह। 12 जँ केओ एहि न्‍यो पर निर्माणक काज मे सोन, चानी, बहुमूल्‍य पाथर, काठ वा घास-फूस प्रयोग मे लाओत, 13 तँ ओकर ओ काज स्‍पष्‍ट देखाओल जायत किएक तँ न्‍यायक दिन ओहि काज केँ देखार कऽ देत। ओ दिन आगिक संग प्रगट होयत, आ ओ आगि प्रत्‍येक गोटेक काजक जाँच करत जे ओ केहन अछि। 14 जकर निर्माणक काज टिकल रहि जायत तकरा इनाम भेटतैक। 15 जकर काज भस्‍म भऽ जयतैक से इनाम पाबऽ सँ वंचित होयत। ओ अपने बाँचि जायत, मानू जेना आगि मे सँ जरैत-जरैत बाँचल होअय। 16 की अहाँ सभ नहि जनैत छी जे अहाँ सभ गोटे मिलि कऽ परमेश्‍वरक मन्‍दिर छी आ परमेश्‍वरक आत्‍मा अहाँ सभ मे वास करैत छथि? 17 जँ केओ परमेश्‍वरक मन्‍दिर केँ नष्‍ट करत तँ परमेश्‍वर ओकरा नष्‍ट कऽ देथिन, किएक तँ परमेश्‍वरक मन्‍दिर पवित्र अछि आ ओ मन्‍दिर अहाँ सभ छी। 18 केओ अपना केँ धोखा नहि दओ। जँ अहाँ सभ मे सँ केओ अपना केँ संसारक दृष्‍टि मे बुद्धिमान बुझैत होइ तँ असल बुद्धिमान बनबाक लेल अपना केँ “मूर्ख” बना लिअ, 19 किएक तँ एहि संसारक ज्ञान परमेश्‍वरक दृष्‍टि मे मूर्खता अछि, जेना धर्मशास्‍त्र मे लिखल अछि जे, “ओ बुद्धिमान सभ केँ ओकर सभक चतुराइ मे फँसबैत छथिन।” 20 और इहो लिखल अछि जे, “प्रभु बुद्धिमान सभक विचार केँ जनैत छथिन जे ओ व्‍यर्थ छैक।” 21 एहि लेल कोनो मनुष्‍य पर केओ घमण्‍ड नहि करय! किएक तँ सभ किछु अहाँ सभक अछि, 22 चाहे ओ पौलुस होअय, अपुल्‍लोस होथि अथवा पत्रुस होथि, चाहे संसार होअय, जीवन होअय वा मृत्‍यु होअय, चाहे आजुक बात होअय वा आबऽ वला समयक, सभ किछु अहाँ सभक अछि, 23 और अहाँ सभ मसीहक छी आ मसीह परमेश्‍वरक छथि।

1 Corinthians 4

1 एहि लेल लोक हमरा सभ केँ मसीहक सेवक बुझओ जकरा सभक जिम्‍मा मे पहिने गुप्‍त राखल परमेश्‍वरक रहस्‍यक बात सभ सौंपल गेल अछि। 2 जकरा सभक जिम्‍मा मे किछु सौंपल गेल अछि तकरा सभक लेल ई जरूरी छैक जे ओ सभ विश्‍वासयोग्‍य निकलय। 3 हमरा लेल एहि बातक कोनो महत्‍व नहि अछि जे अहाँ सभ अथवा मनुष्‍यक कोनो पंचायत हमर न्‍याय करय। हमहूँ अपन न्‍याय नहि करैत छी। 4 हमर मोन हमरा दोषी नहि ठहरबैत अछि, मुदा ई बात एकर कोनो प्रमाण नहि भऽ गेल जे हम निर्दोष छी। प्रभुए हमर न्‍यायकर्ता छथि। 5 एहि लेल समय सँ पहिने कोनो बातक न्‍याय नहि करू, अर्थात् जाबत धरि प्रभु नहि औताह ताबत धरि रूकल रहू। ओ अन्‍हार मे नुकायल सभ बात केँ इजोत मे लौताह आ लोकक भितरी मोनक अभिप्राय सभ केँ प्रगट करताह। तहिया प्रत्‍येक मनुष्‍य परमेश्‍वरे सँ अपन प्रशंसा पाओत। 6 यौ भाइ लोकनि, हम अपन आ अपुल्‍लोसक उदाहरण दऽ कऽ अहाँ सभक भलाइक लेल ई सभ बात लिखलहुँ अछि, जाहि सँ हमरा सभक माध्‍यम सँ अहाँ सभ ई सिखी जे “धर्मशास्‍त्र मे लिखल बातक अन्‍तर्गत रहू।” तखन अहाँ सभ घमण्‍ड सँ एक गोटेक पक्ष लेनाइ आ दोसर गोटे केँ तुच्‍छ माननाइ वला काज नहि करब। 7 कारण, के कहैत अछि जे अहाँ दोसर लोक सँ नीक छी? अहाँ लग की अछि जे अहाँ केँ नहि देल गेल? आ जँ अहाँ केँ देल गेल अछि तँ फेर घमण्‍ड किएक करैत छी जेना कि अहाँक अपने कयला सँ किछु प्राप्‍त भेल होअय? 8 एखने अहाँ सभ तृप्‍त भऽ गेल छी! एखने अहाँ सभ सम्‍पन्‍न भऽ गेल छी! अहाँ सभ राजा भऽ गेलहुँ, आ सेहो बिनु हमरा सभक! कतेक बढ़ियाँ होइत जे अहाँ सभ वास्‍तव मे राजा भऽ गेल रहितहुँ जाहि सँ हमहूँ सभ अहाँ सभक संग राजा बनि सकितहुँ! 9 हमरा एना बुझाइत अछि जे परमेश्‍वर हमरा सभ केँ, जे सभ मसीह-दूत छी, विजय-जुलूसक अन्‍त मे ओहि बन्‍दी सभ जकाँ रखने छथि जकरा सभ पर मृत्‍युदण्‍डक आज्ञा भऽ गेल होइक, किएक तँ हम सभ सम्‍पूर्ण सृष्‍टिक लेल, स्‍वर्गदूतो सभ आ मनुष्‍यो सभक लेल, तमाशा बनि गेल छी। 10 हम सभ मसीहक कारणेँ मूर्ख छी, मुदा अहाँ सभ मसीह मे ज्ञानवान छी! हम सभ दुर्बल छी मुदा अहाँ सभ बलवान छी! अहाँ सभ केँ आदर भेटि रहल अछि आ हमरा सभ केँ निरादर! 11 हम सभ एखनो तक भूखल-पियासल रहैत छी, फाटल-पुरान पहिरैत छी, मारि खाइत छी। हमरा सभ केँ रहबाक लेल कोनो घर नहि अछि। 12 हम सभ अपना हाथ सँ कठिन परिश्रम करैत छी। जखन हमरा सभक अपमान कयल जाइत अछि तँ हम सभ आशीर्वाद दैत छी। जखन हमरा सभ पर अत्‍याचार होइत अछि तँ हम सभ ओकरा सहैत छी। 13 जखन लोक हमरा सभक निन्‍दा करैत अछि तखन हम सभ नम्रतापूर्बक उत्तर दैत छी। आइओ तक हम सभ संसारक मैल आ समाजक कूड़ा-करकट बनल छी। 14 हम अहाँ सभ केँ लज्‍जित करबाक लेल ई नहि लिखि रहल छी, बल्‍कि अपन प्रिय बच्‍चा बुझैत चेतावनी दऽ रहल छी। 15 मसीह मे अहाँ सभ केँ हजारो देखनिहार किएक नहि होअय, मुदा पिता अनेक नहि अछि। अहाँ सभ हमरे सँ शुभ समाचार सुनि कऽ विश्‍वास कयलहुँ तेँ मसीह यीशु मे हमहीं अहाँ सभक पिता बनल छी। 16 एहि लेल हम एहि पर जोर दैत छी जे हम जेना करैत छी, तेना अहूँ सभ करू। 17 एही कारणेँ हम तिमुथियुस केँ, जे प्रभु मे हमर प्रिय आ विश्‍वासयोग्‍य बेटा छथि, अहाँ सभ लग पठौने छी। ओ अहाँ सभ केँ मोन पाड़ताह जे मसीह मे रहबाक कारणेँ हमर जीवन-शैली केहन अछि। हमर जीवन-शैली ओहि शिक्षा सँ मिलैत अछि जे सभ ठाम हम प्रत्‍येक मण्‍डली मे दैत छी। 18 अहाँ सभ मे सँ किछु लोक ई सोचि कऽ घमण्‍डी बनि गेल छी जे, पौलुस हमरा सभक ओतऽ नहि औताह! 19 मुदा जँ प्रभुक इच्‍छा होयतनि तँ हम अहाँ सभ लग जल्‍दिए आयब आ घमण्‍डी सभक गप्‍पे नहि, बल्‍कि ओकरा सभक सामर्थ्‍यक पता पाबि लेबैक। 20 किएक तँ परमेश्‍वरक राज्‍य गप्‍पक बात नहि, बल्‍कि सामर्थ्‍यक बात अछि। 21 अहाँ सभ की चाहैत छी? की हम लाठी लऽ कऽ अहाँ सभ लग आउ, वा प्रेम आ कोमलताक भाव लऽ कऽ?

1 Corinthians 5

1 एतऽ तक सुनऽ मे आयल जे अहाँ सभक बीच कुकर्म भऽ रहल अछि—एहन कुकर्म जे प्रभुक शिक्षा सँ अपरिचितो जातिक लोक सभ मे नहि पाओल जाइत अछि, अर्थात् केओ अपन पिताक स्‍त्री केँ राखि लेने अछि। 2 तैयो अहाँ सभ घमण्‍ड सँ फुलि गेल छी! अहाँ सभ केँ तँ शोक मनयबाक छल आ जे एहन कुकर्म कऽ रहल अछि तकरा मण्‍डलीक संगति सँ निकालि देबाक छल। 3 हम शारीरिक रूप सँ अनुपस्‍थित होइतो आत्‍मिक रूप सँ अहाँ सभक बीच उपस्‍थित छी। हम एहि कुकर्म कयनिहारक सम्‍बन्‍ध मे निर्णय दऽ चुकल छी, मानू हम वास्‍तव मे ओतऽ उपस्‍थित छी। 4 हमर निर्णय ई अछि जे जखन अहाँ सभ अपना सभक प्रभु यीशुक नाम मे हमर आत्‍माक उपस्‍थितिक संग आ अपना सभक प्रभु यीशुक सामर्थ्‍यक संग जमा होइ, 5 तखन एहि व्‍यक्‍ति केँ शैतानक हाथ मे सौंपि दिअ जाहि सँ ओकर पापी मानवीय स्‍वभाव नष्‍ट होइक, मुदा प्रभुक न्‍यायक दिन ओकर आत्‍मा उद्धार पबैक। 6 अहाँ सभक घमण्‍ड कयनाइ ठीक बात नहि अछि। की अहाँ सभ ई नहि जनैत छी जे कनेको खमीर सम्‍पूर्ण सानल आँटा केँ फुलबैत अछि? 7 अहाँ सभ पुरान “खमीर” फेकि कऽ शुद्ध भऽ जाउ जाहि सँ अहाँ सभ “बिनु खमीर वला नव सानल आँटा” बनि जाइ जे अहाँ सभ वास्‍तव मे छीहो, किएक तँ अपना सभक “फसह-पाबनिक बलि-भेँड़ा”, अथार्त मसीह केँ, चढ़ा देल गेल छनि। 8 एहि लेल अपना सभ पुरान “खमीर” सँ, अर्थात् दुष्‍टताक आ कुकर्मक “खमीर” सँ नहि, बल्‍कि निष्‍कपटता आ सत्‍य रूपी “बिनु खमीर वला रोटी” सँ “फसह-पाबनि मनाबी”। 9 हम अपना पत्र मे लिखने छलहुँ जे अनैतिक सम्‍बन्‍ध राखऽ वला लोक सभ सँ संगति नहि राखू। 10 एकर अर्थ ई नहि छल जे अहाँ सभ एहि संसारेक एहन लोक सँ संगति नहि राखू जे अनैतिक सम्‍बन्‍ध राखऽ वला, वा लोभी, वा धोखेबाज वा मूर्तिक पूजा कयनिहार सभ अछि। एना करबाक लेल तँ अहाँ सभ केँ संसारे केँ छोड़ि देबऽ पड़ैत। 11 हमर कहबाक मतलब ई अछि जे जँ कोनो व्‍यक्‍ति मसीही भाइ कहबैत अछि, मुदा ओ अनैतिक सम्‍बन्‍ध राखऽ वला, लोभी, मूर्तिक पूजा कयनिहार, गारि पढ़ऽ वला, पिअक्‍कड़ वा धोखेबाज अछि तँ ओकर संगति नहि करू; ओहन व्‍यक्‍तिक संग भोजन तक नहि करू। 12 किएक तँ हमरा बाहरक लोकक न्‍याय करबाक कोन काज? की अहाँ सभ केँ ताही लोक सभक न्‍याय नहि करबाक अछि जे सभ मण्‍डली मे अछि? 13 बाहरक लोक सभक न्‍याय परमेश्‍वर करताह। मुदा जेना धर्मशास्‍त्र मे लिखल अछि, “अहाँ सभ अपना बीच सँ ओहि अधर्मी व्‍यक्‍ति केँ बाहर निकालि दिऔक।”

1 Corinthians 6

1 जखन अहाँ सभक बीच आपस मे विवाद होइत अछि तँ तकर न्‍यायक लेल प्रभुक लोक सभक बदला अधर्मी सभक सामने जयबाक दुःसाहस अहाँ सभ कोना करैत छी? 2 की अहाँ सभ नहि जनैत छी जे एक दिन प्रभुक लोक सभ संसारक न्‍याय करताह? अहाँ सभक द्वारा जँ संसारक न्‍याय कयल जायत तँ की अहाँ सभ छोट-मोट विवाद सभक न्‍याय करबाक योग्‍य नहि छी? 3 की अहाँ सभ नहि जनैत छी जे अपना सभ स्‍वर्गदूत सभक न्‍याय करब? तखन की एहि जीवन सँ सम्‍बन्‍धित बात सभक न्‍याय कयनाइ कोनो बड़का बात अछि? 4 जँ अहाँ सभक बीच कोनो एहन विवाद अछि तँ की अहाँ सभ ओहन लोक सभ केँ पंच बनबैत छी जकरा सभ केँ मण्‍डली मे कोनो स्‍थान नहि छैक? 5 हम अहाँ सभ केँ लज्‍जित करबाक लेल ई बात कहि रहल छी। की ई सम्‍भव अछि जे अहाँ सभक बीच एको गोटे एहन बुद्धिमान नहि होइ जे भाइ-भाइक बीच फैसला कऽ सकी? 6 मुदा तकरा बदला मे एक विश्‍वासी भाइ दोसर भाइ पर मोकदमा करैत छी आ सेहो अविश्‍वासी सभक सामने! 7 वास्‍तव मे जखन अहाँ सभ एक-दोसर पर मोकदमा चलबैत छी, तँ ताहि सँ स्‍पष्‍ट होइत अछि जे अहाँ सभ एखने पूर्ण रूप सँ हारि गेल छी। तकर बदला मे अहाँ सभ अन्‍याय किएक नहि सहि लैत छी? अपन हानि किएक नहि होमऽ दैत छी? 8 मुदा अहाँ सभ तँ तकर विपरीत जा कऽ स्‍वयं अन्‍याय करैत छी आ दोसराक हक मारैत छी—सेहो अपन मसीही भाइ सभक! 9 की अहाँ सभ ई नहि जनैत छी जे अधर्मी लोक परमेश्‍वरक राज्‍य मे प्रवेश करबाक अधिकारी नहि होयत? अपना केँ धोखा नहि दिअ! अनैतिक शारीरिक सम्‍बन्‍ध रखनिहार, मूर्तिक पूजा कयनिहार, परस्‍त्रीगमन कयनिहार, वेश्‍या सनक काज कयनिहार पुरुष, समलैंगिक सम्‍बन्‍ध रखनिहार लोक, 10 चोर, लोभी, पिअक्‍कड़, गारि पढ़निहार आ धोखेबाज सभ परमेश्‍वरक राज्‍य मे प्रवेश करबाक अधिकारी नहि होयत। 11 आ से अहाँ सभ मे सँ किछु गोटे छलहुँ, मुदा अहाँ सभ आब प्रभु यीशु मसीहक नाम सँ आ अपना सभक परमेश्‍वरक आत्‍मा द्वारा धोअल गेलहुँ, पवित्र कयल गेलहुँ आ निर्दोष ठहराओल गेलहुँ। 12 “सभ किछु करबाक हमरा स्‍वतन्‍त्रता अछि”—मुदा सभ किछु हितकर नहि अछि। “सभ किछु करबाक हमरा स्‍वतन्‍त्रता अछि”—मुदा हम कोनो बातक गुलाम नहि बनब। 13 “भोजन पेटक लेल अछि आ पेट भोजनक लेल”—मुदा परमेश्‍वर दूनू केँ समाप्‍त कऽ देताह। शरीर अनैतिक सम्‍बन्‍धक लेल नहि, बल्‍कि प्रभुक सेवाक लेल अछि आ प्रभु शरीरक कल्‍याणक लेल। 14 परमेश्‍वर जहिना अपना सामर्थ्‍य सँ प्रभु यीशु केँ मृत्‍यु मे सँ जिऔलथिन तहिना ओ हमरो सभ केँ जिऔताह। 15 की अहाँ सभ ई नहि जनैत छी जे अहाँ सभक शरीर मसीहक अंग सभ अछि? तँ की हम मसीहक अंग लऽ कऽ तकरा वेश्‍याक अंग बना दिऐक? किन्‍नहुँ नहि! 16 की अहाँ सभ नहि जनैत छी जे वेश्‍याक संग जे केओ अपन शरीर जोड़ैत अछि से ओकरा संग एक शरीर भऽ जाइत अछि? किएक तँ धर्मशास्‍त्र कहैत अछि जे, “दूनू एक शरीर भऽ जायत।” 17 मुदा जे प्रभु सँ संयुक्‍त भऽ जाइत अछि से हुनका संग आत्‍मा मे एक बनि जाइत अछि। 18 अनैतिक सम्‍बन्‍ध सँ दूर रहू। आरो सभ पाप जे मनुष्‍य करैत अछि, से शरीर सँ हटल अछि, मुदा जे ककरो संग अनैतिक सम्‍बन्‍ध रखैत अछि से अपना शरीरेक विरुद्ध पाप करैत अछि। 19 की अहाँ सभ नहि जनैत छी जे अहाँ सभक शरीर परमेश्‍वरक पवित्र आत्‍माक मन्‍दिर अछि, जे आत्‍मा अहाँ सभ मे वास करैत छथि आ जे अहाँ सभ केँ परमेश्‍वर सँ प्राप्‍त भेल छथि? अहाँ सभ अपन नहि छी। 20 अहाँ सभ दाम दऽ कऽ किनल गेल छी। एहि लेल अपना शरीर द्वारा परमेश्‍वरक सम्‍मान करू।

1 Corinthians 7

1 आब ओहि बात सभक विषय मे जे अहाँ सभ पत्र मे लिखि कऽ पुछने छी—हँ, पुरुषक लेल स्‍त्री केँ नहि छुबी से नीक बात अछि। 2 मुदा एतेक अनैतिक सम्‍बन्‍ध चलि रहल अछि जे ताहि सँ बचबाक लेल प्रत्‍येक पुरुष केँ अपन स्‍त्री होअय आ प्रत्‍येक स्‍त्री केँ अपन पति। 3 पति अपना स्‍त्रीक प्रति अपन वैवाहिक कर्तव्‍य पूरा करय, आ तहिना स्‍त्री सेहो अपना पतिक प्रति। 4 स्‍त्री केँ अपना शरीर पर अधिकार नहि छैक; ओहि पर ओकर पतिक अधिकार छैक। आ तहिना पति केँ ओकर अपना शरीर पर अधिकार नहि छैक; ओहि पर ओकर स्‍त्रीक अधिकार छैक। 5 अहाँ सभ एक-दोसर केँ एहि अधिकार सँ वंचित नहि करू। जँ अपना केँ प्रार्थना मे समर्पित करबाक लेल से करबो करी तँ दूनूक सहमत सँ आ किछुए समयक लेल। तखन फेर पहिने जकाँ एक संग रहू जाहि सँ एना नहि होअय जे अहाँ सभ केँ अपना पर काबू नहि राखि सकबाक कारणेँ अहाँ सभ केँ शैतान प्रलोभन मे फँसाबय। 6 हमर कहबाक अर्थ ई नहि जे एक-दोसर सँ अलग रहबे करू, बल्‍कि जँ रही तँ कोना आ किएक। 7 हम ई चुनितहुँ जे सभ मनुष्‍य हमरा जकाँ अविवाहित रहय । मुदा प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति केँ परमेश्‍वरक दिस सँ अपन विशेष वरदान भेटल अछि—ककरो एक प्रकारक तँ ककरो दोसर प्रकारक। 8 हम अविवाहित सभ केँ आ विधवा सभ केँ ई कहैत छी जे हमरे जकाँ ओहिना रहनाइ अहाँ सभक लेल उत्तम बात होयत। 9 मुदा जँ अहाँ सभ अपना पर काबू नहि राखि सकैत छी तँ विवाह कऽ लिअ, किएक तँ काम-वासना सँ जरैत रहबाक अपेक्षा विवाह कयनाइ नीक अछि। 10 विवाहित सभक लेल हमर नहि, बल्‍कि प्रभुक ई आदेश अछि जे स्‍त्री अपन पति केँ नहि छोड़ि दओ। 11 आ जँ ओ छोड़िओ दय तँ ओकरा अविवाहित रूप मे रहऽ पड़त अथवा अपन पति सँ फेर मेल कऽ लेबाक अछि। पति सेहो अपन स्‍त्रीक परित्‍याग नहि करओ। 12 बाँकी लोक सभ सँ प्रभुक नहि, बल्‍कि हमर कथन अछि, जे जँ कोनो विश्‍वासी भायक स्‍त्री विश्‍वास नहि करैत होअय आ ओ ओहि भायक संग रहबाक लेल सहमत अछि तँ ओ भाय स्‍त्रीक परित्‍याग नहि करओ। 13 जँ कोनो स्‍त्री केँ एहन पति होअय जे विश्‍वास नहि करैत होअय आ स्‍त्रीक संग रहबाक लेल सहमत होअय तँ ओ पतिक परित्‍याग नहि करओ 14 किएक तँ अविश्‍वासी पति अपन स्‍त्री द्वारा पवित्र बनाओल गेल अछि आ तहिना अविश्‍वासी स्‍त्री अपन पति द्वारा पवित्र बनाओल गेल अछि। नहि तँ अहाँ सभक बाल-बच्‍चा अशुद्ध होइत, मुदा आब ओहो सभ पवित्र अछि। 15 मुदा जँ कोनो अविश्‍वासी अलग होमऽ चाहैत अछि तँ ओकरा अलग होमऽ दिऔक। एहन परिस्‍थिति मे विश्‍वास कयनिहार भाइ वा बहिन अपना पति वा स्‍त्रीक संग रहबाक बन्‍हन मे नहि अछि। परमेश्‍वर तँ अपना सभ केँ शान्‍तिक जीवन व्‍यतीत करबाक लेल बजौने छथि। 16 हे स्‍त्री, अहाँ की जानऽ गेलहुँ जे अहाँ अपन पतिक उद्धारक कारण बनब वा नहि बनब? वा हे पति, अहाँ की जानऽ गेलहुँ जे अहाँ अपन स्‍त्रीक उद्धारक कारण बनब वा नहि बनब? 17 तैयो प्रभु जकरा जाहि स्‍थिति मे रखने छथि, परमेश्‍वर जकरा जाहि स्‍थिति मे अपना लग बजौने छथि, से ताही प्रकारक जीवन बिताबय। सभ मण्‍डलीक लेल हम यैह आदेश दैत छी। 18 जँ बजाओल गेलाक समय मे ककरो खतना भऽ चुकल होइक तँ ओ तकरा नहि बदलओ। जँ बजाओल गेलाक समय मे ककरो खतना नहि भेल होइक तँ ओ खतना नहि कराबओ। 19 कारण, ने तँ खतना करयबाक कोनो महत्‍व अछि आ ने ओकर अभावक। महत्‍व अछि परमेश्‍वरक आज्ञा सभक पालन करबाक। 20 हरेक व्‍यक्‍ति जाहि स्‍थिति मे परमेश्‍वर द्वारा बजाओल गेल छल, ओ ताही मे रहओ। 21 की अहाँ बजाओल जयबाक समय मे ककरो गुलाम छलहुँ? कोनो चिन्‍ता नहि करू—ओना तँ जँ स्‍वतन्‍त्र भेनाइ सम्‍भव भऽ जाय तँ अवसर सँ फायदा लिअ। 22 हँ, कोनो चिन्‍ता नहि करू, किएक तँ जे गुलाम भऽ कऽ प्रभु मे अयबाक लेल बजाओल गेल से प्रभुक स्‍वतन्‍त्र कयल व्‍यक्‍ति भऽ गेल अछि। तहिना जे व्‍यक्‍ति स्‍वतन्‍त्र रहि कऽ बजाओल गेल से मसीहक गुलाम भऽ गेल अछि। 23 अहाँ सभ दाम दऽ कऽ किनल गेल छी, आब मनुष्‍यक गुलाम नहि बनू। 24 यौ भाइ लोकनि, अहाँ सभ प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति जाहि स्‍थिति मे प्रभु लग बजाओल गेलहुँ, परमेश्‍वरक संग ताही मे रहू। 25 कुमार और कुमारि सभक विषय मे प्रभुक दिस सँ हमरा कोनो आदेश नहि भेटल अछि, तैयो प्रभुक दया सँ विश्‍वासयोग्‍य रहि हम अपन विचार दऽ रहल छी। 26 हमर विचार अछि जे आइ-काल्‍हिक समयक कठिन परिस्‍थिति मे कोनो मनुष्‍यक लेल यैह नीक अछि जे ओ जाहि स्‍थिति मे अछि ताही स्‍थिति मे रहय। 27 की अहाँ केँ स्‍त्री छथि? अहाँ हुनका सँ मुक्‍त होयबाक प्रयत्‍न नहि करू। की अहाँ केँ स्‍त्री नहि अछि? तँ अहाँ विवाह करबाक प्रयत्‍न नहि करू। 28 मुदा जँ अहाँ विवाह करी तँ एहि मे कोनो पाप नहि अछि आ जँ कोनो कुमारि विवाह करय तँ ओ पाप नहि करैत अछि। मुदा जे सभ विवाह करत तकरा सभ केँ सांसारिक जीवन मे कष्‍ट सहऽ पड़तैक आ हम अहाँ सभ केँ ओहि सँ बँचाबऽ चाहैत छी। 29 यौ भाइ लोकनि, हमर कहबाक अर्थ ई अछि जे समय थोड़बे रहि गेल अछि। आब जकरा स्‍त्री अछि से एना रहओ जेना स्‍त्री नहि होअय। 30 जे कनैत अछि से एना रहओ जेना नहि कनैत होअय। जे आनन्‍द मनबैत अछि से एना रहओ जेना आनन्‍द नहि मनबैत होअय। जे चीज-वस्‍तु मोल लैत अछि से एना रहओ जेना ओ चीज ओकर नहि होइक। 31 जे संसारक चीज-वस्‍तुक उपभोग करैत अछि से एना रहओ जेना ओहि मे लिप्‍त नहि भऽ गेल होअय, किएक तँ ई संसार जे देखैत छी से समाप्‍त भऽ रहल अछि। 32 हम चाहैत छी जे अहाँ सभ चिन्‍ता-मुक्‍त रहू। अविवाहित पुरुष ई सोचैत प्रभुक सेवा मे व्‍यस्‍त रहैत अछि जे “प्रभु केँ कोना प्रसन्‍नता भेटतनि?” 33 मुदा विवाहित पुरुष ई सोचैत सांसारिक बात सभ मे व्‍यस्‍त रहैत अछि जे, “स्‍त्री केँ कोना प्रसन्‍न करी?” 34 एहन मनुष्‍यक मोन दू दिस लागल रहैत छैक। जकरा पति नहि छैक वा जे कुमारि अछि, से एहि इच्‍छा सँ प्रभुक बात पर ध्‍यान रखैत अछि जे अपना केँ पूर्ण रूप सँ, तन-मन सँ, प्रभु केँ अर्पण करी। मुदा विवाहिता केँ सांसारिक बात सभक चिन्‍ता रहैत छैक जे अपना पति केँ कोना प्रसन्‍न राखी। 35 हम अहाँ सभ केँ ई बात स्‍वतन्‍त्रता पर रोक लगयबाक लेल नहि कहि रहल छी, बल्‍कि अहाँ सभक भलाइक लेल, जाहि सँ अहाँ सभ उचित ढंग सँ रहैत बाधा सँ बाँचि कऽ पूरा मोन सँ प्रभुक सेवाक लेल समर्पित होइ। 36 मुदा जँ ककरो ई बुझाइत होइक जे विवाह नहि कयला सँ ओ अपन विवाहक लेल ठीक कयल गेल लड़कीक लेल उचित नहि कऽ रहल अछि आ आत्‍मसंयम कयनाइ सेहो कठिन भऽ रहल छैक, आ ई बुझैत होअय जे विवाह कयनाइ उचित होइत, तँ ओ जेना करऽ चाहैत अछि, तेना करय—ओ सभ विवाह कऽ लय। एहि मे पाप नहि अछि। 37 मुदा जकर मोन एहि विषय मे स्‍थिर भऽ गेल छैक, आ कोनो तरहेँ बाध्‍य नहि अछि, बल्‍कि अपन इच्‍छाक अनुसार चलबाक अधिकारी अछि, आ अपना लेल ठीक भेल कुमारिक संग विवाह नहि करबाक निश्‍चय कऽ लेने अछि, सेहो ठीक करैत अछि। 38 एहि तरहेँ जे अपना लेल ठीक भेल कुमारिक संग विवाह करैत अछि से ठीक करैत अछि, मुदा जे विवाह नहि करैत अछि से आरो ठीक करैत अछि। 39 जाबत धरि कोनो स्‍त्रीक पति जीवित अछि ताबत धरि ओ अपन पतिक संग विवाहक बन्‍हन मे बान्‍हल अछि। मुदा पतिक मृत्‍यु भऽ गेला पर ओ स्‍वतन्‍त्र भऽ जाइत अछि आ जकरा सँ चाहय विवाह कऽ सकैत अछि, मुदा आवश्‍यक ई अछि जे विवाह प्रभुक लोक सँ होअय । 40 तैयो जँ ओ ओहिना रहि जाय तँ आरो आनन्‍दित रहत। ई हमर विचार अछि, आ हमरा विश्‍वास अछि जे परमेश्‍वरक आत्‍मा हमरो संग छथि।

1 Corinthians 8

1 आब मूर्ति पर चढ़ाओल गेल बलिक माँसुक सम्‍बन्‍ध मे अहाँ सभक प्रश्‍नक उत्तर—अपना सभ गोटे केँ ज्ञान अछि से हमहूँ सभ मानैत छी। मुदा ज्ञान मोन केँ घमण्‍ड सँ फुलबैत अछि जखन कि प्रेम उन्‍नति करबैत अछि। 2 जँ केओ अपना बारे मे बुझैत अछि जे हमरा लग ज्ञान अछि तँ ओकरा एखन धरि असली ज्ञान सँ परिचय नहि छैक। 3 मुदा जे केओ परमेश्‍वर सँ प्रेम करैत अछि तकरा परमेश्‍वर जनैत छथिन। 4 तखन मुरुत पर चढ़ाओल बलिक माँसु खयबाक विषय मे—अपना सभ जनैत छी जे मुरुतक पाछाँ कोनो वास्‍तविकता नहि अछि आ एकेटा परमेश्‍वर केँ छोड़ि आन कोनो परमेश्‍वर नहि अछि। 5 आकाश मे आ पृथ्‍वी पर देवी-देवता कहाबऽ वला सभ होइतो, आ सत्‍य पुछल जाय तँ एहन “देवी-देवता” आ “प्रभु” बहुत अछि, 6 तैयो अपना सभक लेल एकेटा परमेश्‍वर छथि, अर्थात् पिता, जिनका सँ सभ किछु उत्‍पन्‍न भेल अछि आ जिनका लेल अपना सभ जीबैत छी। आ एकेटा प्रभु छथि, अर्थात् यीशु मसीह, जिनका द्वारा सभ किछु बनाओल गेल अछि आ जिनका द्वारा अपना सभ जीबैत छी। 7 मुदा सभ लोक केँ ई ज्ञान नहि अछि। किछु विश्‍वासी सभ बितल समय मे मुरुतक पूजाक अभ्‍यस्‍त होयबाक कारणेँ एखनो धरि जखन मुरुत पर चढ़ाओल वस्‍तु खाइत अछि तँ ओकरा प्रसाद मानैत अछि आ ओकर नीक-अधलाह बुझबाक ज्ञान कमजोर रहबाक कारणेँ ओकर मोन ओकरा अशुद्ध ठहरा दैत छैक। 8 भोजनक वस्‍तु अपना सभ केँ परमेश्‍वरक नजदीक नहि पहुँचा सकैत अछि। जँ ओकरा नहि खाइ तँ ताहि सँ कोनो हानि नहि होयत आ जँ ओकरा खाइ तँ ओहि सँ कोनो लाभ नहि होयत। 9 मुदा एकर ध्‍यान राखू, जे अहाँक स्‍वतन्‍त्रता कमजोर लोक सभक लेल ठोकर लगबाक कारण नहि बनि जाय। 10 कारण, जँ केओ, जकर नीक-अधलाह बुझबाक ज्ञान कमजोर छैक अहाँ केँ, जकरा एहि बात सभक ज्ञान अछि, देवताक मन्‍दिर मे भोजन करैत देखय तँ की मूर्ति पर चढ़ाओल बलिक माँसु खयनाइ गलत मानिओ कऽ तकरा खयबाक लेल उत्‍साहित नहि भऽ जायत? 11 एहि तरहेँ अहाँक ज्ञानक कारणेँ ओ कमजोर भाय, जकरा लेल मसीह मरलाह, नाश भऽ जाइत अछि। 12 जखन अहाँ सभ एना कऽ कऽ अपन भाय सभक कमजोर विवेक केँ हानि पहुँचबैत ओकर विरुद्ध अपराध करैत छी तखन मसीहक विरुद्ध अपराध करैत छी। 13 एहि लेल जँ हमर भोजनक वस्‍तु हमरा भाय केँ पाप मे खसाओत तँ हम फेर कहियो माँसु नहि खायब, जाहि सँ हम अपना भायक लेल खसबाक कारण नहि बनी।

1 Corinthians 9

1 की हम स्‍वतन्‍त्र नहि छी? की हम मसीह-दूत नहि छी? की हम अपना सभक प्रभु, यीशु, केँ नहि देखने छी? की अहाँ सभ प्रभुएक शक्‍ति द्वारा कयल हमर परिश्रमक परिणाम नहि छी? 2 दोसर सभक दृष्‍टि मे हम मसीह-दूत नहिओ होइ, मुदा अहाँ सभक लेल तँ अवश्‍य छी, किएक तँ अहाँ सभ अपने एहि बात केँ प्रमाणित करऽ वला “छाप” छी जे हम प्रभुक पठाओल मसीह-दूत छी। 3 हमरा सम्‍बन्‍ध मे पूछ-ताछ कयनिहार सभक लेल अपन सफाइ मे हमर यैह उत्तर अछि— 4 की हमरा सभ केँ खयबाक-पिबाक लेल खर्च पयबाक अधिकार नहि अछि? 5 की हमरा सभ केँ ई अधिकार नहि अछि जे हमहूँ सभ कोनो मसीही स्‍त्री सँ विवाह कऽ कऽ जतऽ जाइ ततऽ संग लऽ जाइ, जेना कि आन मसीह-दूत सभ आ प्रभु यीशुक भाय सभ और पत्रुस करैत छथि? 6 की हम आ बरनबास मात्रे अपन जीवन-निर्वाहक लेल काज करैत रहबाक लेल बाध्‍य छी? 7 एहन के अछि जे अपने खर्च सँ सेना मे सेवा करैत होअय? के अछि जे अंगूरक बगान लगा कऽ ओकर फल नहि खाइत होअय? के अछि जे भेँड़-बकरी सभ केँ चरबाही कऽ कऽ ओकर दूध नहि पिबैत होअय? 8 की हम मनुष्‍यक दृष्‍टिकोण सँ मात्र ई बात कहैत छी? की धर्म-नियम सेहो यैह बात नहि कहैत अछि? 9 किएक तँ मूसा केँ देल गेल धर्म-नियम मे लिखल अछि जे, “दाउन करैत बरदक मुँह मे जाबी नहि लगाउ।” की बरदे सभक लेल परमेश्‍वर चिन्‍ता करैत छथि? 10 की ओ अपना सभक लेल ई नहि कहने छथि? हँ, ई निश्‍चय अपने सभक लेल लिखल गेल अछि। किएक तँ ई उचित अछि जे हऽर जोतऽ वला आ दाउन करऽ वला अपन काज एही आशा मे करय जे हम उपजा-बाड़ीक हिस्‍सा पायब। 11 जखन हम सभ अहाँ सभक बीच आत्‍मिक बीया बाउग कयने छी तँ की अहाँ सभ सँ भोजन-वस्‍त्र रूपी फसिलक आशा कयनाइ कोनो बड़का बात भेल? 12 जँ दोसर लोक केँ अहाँ सभ सँ एहि तरहेँ सहयोग पयबाक अधिकार छनि तँ की हुनका सभक अपेक्षा हमरे सभ केँ बेसी अधिकार नहि अछि? तैयो हम सभ एहि अधिकारक उपयोग नहि कयने छी। तकरा बदला मे हम सभ केहनो बात सहैत छी जाहि सँ मसीहक शुभ समाचारक प्रभाव मे हमरा सभक द्वारा बाधा नहि पड़य। 13 की अहाँ सभ ई नहि जनैत छी जे मन्‍दिर मे सेवा कयनिहार लोक मन्‍दिर सँ भोजन पबैत छथि आ बलि-वेदीक कार्य कयनिहार लोक वेदी परक बलिक हिस्‍सेदार रहैत छथि? 14 एही तरहेँ प्रभु ई व्‍यवस्‍था कयलनि जे शुभ समाचारक प्रचार कयनिहार लोक शुभ समाचारक प्रचारक काज द्वारा अपन जीविका चलयबाक लेल खर्च पाबय। 15 मुदा हम एहि अधिकार सभ मे सँ एकोटाक प्रयोग नहि कयलहुँ। हम ई बात सभ एहि लेल नहि लिखि रहल छी जे आब हमरा लेल ई सभ कयल जाय। हम भलेही मरि जाइ, मुदा केओ हमरा एहि गौरव सँ वंचित नहि करय जे हम बिनु किछु पौने शुभ समाचार सुनौलहुँ। 16 हम एहि बात पर गौरव नहि करैत छी जे हम शुभ समाचारक प्रचार करैत छी। हमरा तँ सैह करबाक अछि। धिक्‍कार हमरा, जँ हम शुभ समाचारक प्रचार नहि करी! 17 जँ हम अपने सँ प्रचारक काज चुनि कऽ करितहुँ तँ हमरा पुरस्‍कारक आशा होइत। मुदा हम अपने इच्‍छा सँ नहि करैत छी, बल्‍कि हमरा जाहि काजक जिम्‍मा देल गेल अछि, बस, तकरे पूरा कऽ रहल छी। 18 तँ फेर की अछि हमर पुरस्‍कार? ओ यैह अछि जे हम प्रभु यीशुक शुभ समाचारक प्रचार बिनु पारिश्रमिक लऽ करी आ ओहि सँ सम्‍बन्‍धित अधिकार अपना लेल उपयोग मे नहि लाबी। 19 हम ककरो बन्‍हन मे नहि, स्‍वतन्‍त्रे छी, तैयो हम अपना केँ सभक गुलाम बना लेने छी जाहि सँ हम बेसी सँ बेसी लोक केँ प्रभु लग आनि सकी। 20 यहूदी सभक बीच हम यहूदी सनक बनि गेलहुँ जाहि सँ यहूदी सभ केँ प्रभु लग आनि सकी। जे लोक सभ मूसाक धर्म-नियमक अधीन अछि, तकरा सभक बीच हम धर्म-नियमक अधीन नहिओ रहैत स्‍वयं धर्म-नियमक अधीन सनक बनि गेलहुँ जाहि सँ धर्म-नियमक अधीन मे रहऽ वला लोक सभ केँ प्रभु लग आनि सकी। 21 जाहि समाजक लोक लग मूसाक धर्म-नियम नहि अछि तकरा सभ केँ प्रभु लग अनबाक लेल हम ओकरे सभ सनक बनि गेलहुँ, ओना तँ हम मसीहक नियमक अधीन रहबाक कारणेँ वास्‍तव मे परमेश्‍वरक नियम सँ स्‍वतन्‍त्र नहि छी। 22 हम दुर्बल सभक बीच दुर्बल बनि गेलहुँ जाहि सँ हम ओकरा सभ केँ प्रभु लग आनि सकी। हम सभक लेल सभ किछु बनि गेल छी जाहि सँ कोनो ने कोनो तरहेँ हम किछु लोक केँ बँचा सकी। 23 हम ई सभ बात शुभ समाचारक प्रभाव केँ बढ़यबाक लेल करैत छी जाहि सँ शुभ समाचारक आशिष मे हम सहभागी बनि जाइ। 24 की अहाँ सभ नहि जनैत छी जे दौड़ प्रतियोगिता मे सभ प्रतियोगी दौड़ैत अछि, मुदा पुरस्‍कार मात्र एके गोटे केँ भेटैत छैक? तेँ अहाँ सभ एहि तरहेँ दौड़ू जे पुरस्‍कार प्राप्‍त करी। 25 खेल प्रतियोगिता मे भाग लेबऽ वला खेलाड़ी सभ प्रत्‍येक बातक संयम रखैत अछि। ओ सभ ओहन जय-माला पयबाक लेल ई सभ करैत अछि जे टिकत नहि, मुदा अपना सभ अविनाशी मुकुट पयबाक लेल एना करैत छी। 26 एहि लेल हम एहन खेलाड़ी जकाँ छी जे सामने राखल लक्ष्‍य पर सँ नजरि नहि हटा कऽ दौड़ैत अछि। हम एहन मुक्‍केबाजीक खेलाड़ी जकाँ नहि छी जे हवे मे मुक्‍का मारैत अछि। 27 हम अपना शरीर केँ कष्‍ट दऽ कऽ वश मे रखैत छी। नहि तँ कतौ एना नहि भऽ जाय जे दोसर लोक केँ उपदेश देलाक बाद हम स्‍वयं पुरस्‍कार पयबाक लेल अयोग्‍य ठहरी।

1 Corinthians 10

1 तेँ, यौ भाइ लोकनि, हम चाहैत छी जे अहाँ सभ अपना सभक प्राचीन समयक पुरखा लोकनिक बारे मे बुझी जे, जे सभ मूसाक संग मिस्र देश सँ निकललाह ओ सभ गोटे ओहि मेघक छाया मे चललाह जे रस्‍ता देखबैत संग-संग चलैत छलनि, आ ओ सभ केओ लाल सागरक बीच बाटे पार भेलाह। 2 एहि तरहेँ बुझल जा सकैत अछि जे ओ सभ केओ ओहि मेघक छाया मे चलि कऽ आ मूसाक पाछाँ समुद्र मे जा कऽ एहि रूप मे “बपतिस्‍मा” स्‍वीकार करैत मूसा मे सहभागी बनलाह। 3 सभ केओ एके प्रकारक आत्‍मिक भोजन कयलनि, 4 आ एके प्रकारक आत्‍मिक जल पिलनि, किएक तँ ओ सभ ओहि आत्‍मिक चट्टान सँ बहऽ वला जल पिबैत छलाह जे हुनका सभक संग-संग चलैत छलनि, और ओ चट्टान छलाह मसीह। 5 ई सभ बात होइतो हुनका सभ मे सँ अधिकांश लोक सँ परमेश्‍वर अप्रसन्‍न भेलाह और ओ सभ निर्जन क्षेत्र मे नष्‍ट भऽ गेल। 6 ई घटना सभ अपना सभक लेल उदाहरणक रूप मे चेतावनी भेल जाहि सँ अपना सभ हुनका सभ जकाँ अधलाह बात सभक लालसा नहि करी। 7 हुनका सभ मे सँ किछु लोक जकाँ अहाँ सभ मूर्तिक पूजा कयनिहार नहि बनू, जिनका सभक विषय मे धर्मशास्‍त्र मे लिखल अछि जे, “लोक सभ खयबाक-पिबाक लेल बैसल आ मौज-मजा करबाक लेल उठल।” 8 अपना सभ अनैतिक शारीरिक सम्‍बन्‍ध नहि राखी, जेना कि हुनका सभ मे सँ किछु लोक कयलनि आ एके दिन मे तेइस हजार मरि गेलाह। 9 अपना सभ प्रभुक परीक्षा नहि करियनि, जेना कि हुनका सभ मे सँ किछु लोक कयलनि आ साँप सभक कटनाइ सँ मारल गेलाह। 10 अहाँ सभ कुड़बुड़ाउ नहि, जेना कि हुनका सभ मे सँ किछु लोक कयलनि आ विनाशक दूत द्वारा मारल गेलाह। 11 ई सभ घटना उदाहरणक लेल हुनका सभ पर बितलनि, आ अपना सभ केँ चेतावनी देबाक लेल लिखल गेल अछि जे सभ संसारक अन्‍त होमऽ-होमऽ वला समय मे जीबि रहल छी। 12 तेँ जे केओ अपना केँ मजगूत बुझैत अछि से सावधान रहओ जे कहीं खसि ने पड़य। 13 अहाँ सभ कहियो कोनो एहन परीक्षा मे नहि पड़लहुँ जे मनुष्‍य सभ केँ नहि होइत रहैत अछि। परमेश्‍वर विश्‍वासयोग्‍य छथि। ओ अहाँ सभ केँ एहन परीक्षा मे नहि पड़ऽ देताह जे अहाँ सभक सहनशक्‍ति सँ बाहर होअय। ओ परीक्षाक समय मे तकरा सहबाक साहस दैत अहाँ सभ केँ पार कऽ निकलबाक उपाय सेहो उपलब्‍ध करौताह। 14 तेँ, यौ हमर प्रिय भाइ लोकनि, अहाँ सभ मूर्तिक पूजा कयनाइ सँ दूर रहू। 15 हम अहाँ सभ केँ समझदार बुझि ई बात कहि रहल छी। हम जे कहैत छी तकर अहाँ सभ स्‍वयं जाँच करू जे ओ सही अछि वा नहि। 16 प्रभु-भोजक ओ आशिषक बाटी, जकरा लेल अपना सभ प्रभु केँ धन्‍यवाद दैत छी, की ताहि मे सँ पिबैत अपना सभ मसीहक बहाओल खून मे सहभागी नहि छी? आ ओ रोटी, जकरा अपना सभ तोड़ैत छी, की ताहि मे सँ खा कऽ अपना सभ मसीहक देह मे सहभागी नहि छी? 17 रोटी एकेटा अछि, एहि कारणेँ अपना सभ अनेक होइतो एक देह छी, किएक तँ अपना सभ ओहि एकेटा रोटी मे सँ खाइत छी। 18 इस्राएली समाजक बारे मे सोचू—की बलि-भोज खयनिहार लोक ओहि परमेश्‍वरक सेवा मे सहभागी नहि अछि जिनकर वेदी पर बलि चढ़ाओल गेल अछि? 19 तखन हम कहि की रहल छी? की ई जे मुरुत पर चढ़ाओल वस्‍तुक कोनो विशेषता अछि? वा की ई जे मुरुतक कोनो महत्‍व अछि? 20 नहि! हमर कहबाक अर्थ ई अछि जे, जे बलि मुरुत पर चढ़ाओल जाइत अछि से परमेश्‍वर केँ नहि, बल्‍कि दुष्‍टात्‍मा सभ केँ चढ़ाओल जाइत अछि, आ हम नहि चाहैत छी जे अहाँ सभ दुष्‍टात्‍मा सभक सहभागी बनू। 21 अहाँ सभ प्रभुक बाटी आ दुष्‍टात्‍मा सभक बाटी, दूनू मे सँ नहि पिबि सकैत छी। अहाँ सभ प्रभुक भोज आ दुष्‍टात्‍मा सभक भोज, दूनू मे सहभागी नहि बनि सकैत छी। 22 की अपना सभ प्रभुक मोन मे डाह उत्‍पन्‍न कराबऽ चाहैत छी? की अपना सभ हुनका सँ शक्‍तिशाली छी? 23 “सभ किछु करबाक स्‍वतन्‍त्रता अछि”—मुदा सभ किछु हितकर नहि अछि। “सभ किछु करबाक स्‍वतन्‍त्रता अछि”—मुदा सभ किछु लाभदायक नहि अछि। 24 सभ केँ अपन नहि, बल्‍कि दोसर लोकक हितक ध्‍यान रखबाक चाही। 25 बजार मे जे माँसु बिकाइत अछि तकरा अहाँ निश्‍चिन्‍ततापूर्बक खा सकैत छी। ओ माँसु चढ़ाओल अछि वा नहि तकर पूछ-ताछ नहि करऽ लागू, 26 किएक तँ धर्मशास्‍त्र मे लिखल अछि जे “पृथ्‍वी आ ओहि परक जे किछु अछि से सभ प्रभुक छनि।” 27 जँ अविश्‍वासी सभ मे सँ केओ अहाँ केँ निमन्‍त्रण दय आ अहाँ जाय चाही तँ जाउ आ ओतऽ जे किछु अहाँ केँ परसल जाइत अछि तकरा निश्‍चिन्‍ततापूर्बक बिनु कोनो प्रश्‍न कयने खाउ। 28 मुदा जँ केओ कहय जे, “ओ प्रसाद अछि,” तँ कहनिहारक हितक लेल आ जाहि सँ विवेक केँ हानि नहि पहुँचय ओ वस्‍तु नहि खाउ। 29 हमर कहबाक अर्थ अहाँक विवेक सँ नहि, बल्‍कि ओहि दोसर आदमीक विवेक सँ अछि। किएक तँ हमर स्‍वतन्‍त्रता दोसराक विवेकक अनुसार किएक दोषी ठहरय? 30 जँ हम धन्‍यवाद दऽ कऽ भोजन करैत छी तँ जाहि वस्‍तुक लेल हम परमेश्‍वर केँ धन्‍यवाद देने छी ताहि सँ हमर निन्‍दा किएक होअय? 31 अहाँ सभ खाइ वा पिबी वा जे किछु करी, सभ किछु एहि लेल करू जाहि सँ परमेश्‍वरक महिमा प्रगट होनि। 32 ककरो ठेस लगबाक कारण नहि बनू, ने यहूदी सभक लेल, ने आन जातिक लेल आ ने परमेश्‍वरक मण्‍डलीक लेल। 33 तहिना हमहूँ अपना हितक लेल नहि, बल्‍कि दोसर लोक सभक हित केँ ध्‍यान मे राखि कऽ सभ बात मे सभ लोक केँ प्रसन्‍न करबाक प्रयत्‍न करैत छी जाहि सँ ओ सभ उद्धार पाबि सकय।

1 Corinthians 11

1 जहिना मसीह जेना करैत छथि तेना हमहूँ करैत छी, तहिना हम जेना करैत छी तेना अहूँ सभ करू। 2 हम अहाँ सभक प्रशंसा करैत छी जे अहाँ सभ प्रत्‍येक बात मे हमर ध्‍यान रखैत छी आ हमरा सँ जे शिक्षा अहाँ सभ केँ भेटल अछि ताहि मे दृढ़ बनल रहैत छी। 3 मुदा हम चाहैत छी जे अहाँ सभ ई बुझी जे प्रत्‍येक पुरुषक ⌞प्रमुख, अर्थात्‌,⌟ “सिर”, मसीह छथि, स्‍त्रीक “सिर” पुरुष छथि आ मसीहक “सिर” परमेश्‍वर छथि। 4 कोनो पुरुष जे सिर झाँपि कऽ प्रार्थना करैत अछि वा परमेश्‍वर सँ भेटल सम्‍बाद सुनबैत अछि से अपन सिरक अपमान करैत अछि। 5 कोनो स्‍त्री जे सिर उघाड़ि कऽ प्रार्थना करैत अछि वा परमेश्‍वर सँ भेटल सम्‍बाद सुनबैत अछि से अपन सिरक अपमान करैत अछि किएक तँ ओ एहन बात होइत जेना ओ पूरा मूड़ीक केश छिलौने रहैत। 6 कारण, जँ स्‍त्री अपन सिर नहि झाँपय तँ ओ अपन केश कटबा लओ। मुदा जँ स्‍त्रीक लेल पूरा मूड़ीक केश कटौनाइ वा छिलौनाइ लाजक बात अछि तँ ओ अपन सिर झाँपओ। 7 पुरुष केँ अपन सिर नहि झँपबाक चाहिऐक, किएक तँ पुरुष परमेश्‍वरक प्रतिरूप आ हुनकर गौरव अछि। तहिना स्‍त्री पुरुषक गौरव अछि 8 किएक तँ स्‍त्री सँ पुरुष नहि बनाओल गेल, बल्‍कि पुरुष सँ स्‍त्री, 9 आ स्‍त्रीक लेल पुरुषक सृष्‍टि नहि भेल, बल्‍कि पुरुषक लेल स्‍त्रीक। 10 एहि कारणेँ, आ स्‍वर्गदूत सभक कारणेँ सेहो, स्‍त्रीगण सभ केँ अधिकारक चिन्‍ह केँ अपना सिर पर रखबाक चाही। 11 तैयो प्रभुक विधानक अनुसार स्‍त्री आ पुरुष दूनू एक-दोसर पर निर्भर रहैत अछि। 12 कारण, जहिना पुरुष सँ स्‍त्रीक सृष्‍टि भेल तहिना पुरुषक जन्‍म स्‍त्री सँ होइत अछि आ सभ बातक मूलस्रोत परमेश्‍वरे छथि। 13 अहीं सभ विचार करू—की ई उचित अछि जे स्‍त्री बिनु सिर झँपने परमेश्‍वर सँ प्रार्थना करय? 14 जे स्‍वभाविक बात सभ अछि, की ताहि सँ अहाँ सभ केँ ई शिक्षा नहि भेटैत अछि जे पुरुषक लेल लम्‍बा केश रखनाइ लाजक बात अछि? 15 मुदा स्‍त्रीक लेल लम्‍बा केश ओकर शोभा छैक। किएक तँ ओकर झापनक रूप मे ओकरा लम्‍बा केश देल गेल छैक। 16 मुदा जँ केओ एहि विषय मे विवाद करऽ चाहय तँ ओ ई जानि लओ जे ने तँ हमरा सभक बीच कोनो दोसर प्रथा प्रचलित अछि आ ने परमेश्‍वरक मण्‍डली सभ मे। 17 जाहि विषय मे हम आब आदेश देबऽ जा रहल छी ताहि विषय मे हम अहाँ सभक प्रशंसा नहि करैत छी, किएक तँ अहाँ सभक एक ठाम जमा भेनाइ सँ लाभ नहि, बल्‍कि हानि होइत अछि। 18 पहिल बात ई—हम सुनैत छी जे जहिया-जहिया अहाँ सभ मण्‍डलीक रूप मे जमा होइत छी तहिया-तहिया अहाँ सभक बीच दलबन्‍दी स्‍पष्‍ट भऽ जाइत अछि। हम किछु सीमा तक एहि बातक विश्‍वासो करैत छी। 19 अहाँ सभ मे फूट होयब एक प्रकार सँ आवश्‍यको अछि जाहि सँ ई स्‍पष्‍ट भऽ जाय जे अहाँ सभ मे सँ योग्‍य व्‍यक्‍ति के सभ छी। 20 अहाँ सभ जखन एक ठाम जमा होइत छी, तँ जाहि तरहेँ खाइत छी तकरा प्रभु-भोज नहि कहल जा सकैत अछि, 21 किएक तँ प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति झटपट दोसर सभ सँ पहिने अपने भोजन करऽ मे लागि जाइत छी। एहि तरहेँ केओ भूखल रहि जाइत अछि आ केओ पिबि कऽ माति जाइत अछि। 22 की खयबाक-पिबाक लेल अहाँ सभ केँ अपन-अपन घर नहि अछि? की अहाँ सभ गरीब सभ केँ नीचाँ देखा कऽ परमेश्‍वरक मण्‍डली केँ तुच्‍छ बुझैत छी? हम अहाँ सभ केँ की कहू? की एहि बातक लेल अहाँ सभक प्रशंसा करू? हम किन्‍नहुँ प्रशंसा नहि करब! 23 कारण, हम अहाँ सभ केँ जे शिक्षा सौंपि देलहुँ, से हम प्रभु सँ पौने छलहुँ, अर्थात्, जाहि राति प्रभु यीशु पकड़बाओल गेलाह, ओहि राति ओ हाथ मे रोटी लेलनि 24 आ परमेश्‍वर केँ धन्‍यवाद दऽ कऽ ओहि रोटी केँ तोड़लनि आ कहलनि, “ई हमर देह अछि जे अहाँ सभक लेल देल जा रहल अछि। ई हमर यादगारी मे करू।” 25 एही तरहेँ भोजनक बाद ओ हाथ मे बाटी लेलनि आ कहलनि, “एहि बाटी मे परमेश्‍वर आ मनुष्‍यक बीच नव सम्‍बन्‍ध स्‍थापित करऽ वला हमर खून अछि। जहिया-जहिया अहाँ सभ ई पिबी तहिया-तहिया से हमरा यादगारी मे करू।” 26 एहि तरहेँ जहिया कहियो अहाँ सभ ई रोटी खाइत छी आ ई रस पिबैत छी तँ प्रभुक अयबाक दिन धरि अहाँ सभ हुनकर मृत्‍युक प्रचार करैत छी। 27 तेँ जे केओ अनुचित रीति सँ प्रभुक ई रोटी खाइत अछि आ प्रभुक ई रस पिबैत अछि से प्रभुक देह आ खूनक सम्‍बन्‍ध मे दोषी ठहरत। 28 एहि लेल प्रत्‍येक मनुष्‍य अपना केँ जाँचओ, तकरबादे एहि रोटी मे सँ खाओ आ एहि बाटी मे सँ पिबओ। 29 किएक तँ जे केओ ई बात बिनु चिन्‍हने जे प्रभुक देह की अछि एहि मे सँ खाइत आ पिबैत अछि से खाइत-पिबैत अपना पर परमेश्‍वरक दण्‍ड लऽ अनैत अछि। 30 यैह कारण अछि जे अहाँ सभक बीच बहुतो लोक कमजोर आ रोगी अछि और किछु मरिओ गेल अछि । 31 जँ अपना सभ स्‍वयं अपना केँ ठीक सँ जँचितहुँ तँ दण्‍डक भागी नहि होइतहुँ। 32 मुदा प्रभु जखन अपना सभ केँ सजाय दैत छथि तँ अपना सभ केँ सुधारबाक लेल दैत छथि जाहि सँ अपना सभ संसारक संग दण्‍डक भागी नहि बनी। 33 एहि लेल, यौ हमर भाइ लोकनि, अहाँ सभ जखन भोजन करबाक लेल जमा होइत छी तँ एक-दोसराक लेल ठहरू। 34 जँ केओ भूखल होइ तँ अपना घरे मे खा लिअ जाहि सँ अहाँ सभक जमा भेनाइ दण्‍डक कारण नहि बनय। आरो बात सभक निपटारा हम अयला पर करब।

1 Corinthians 12

1 यौ भाइ लोकनि, हम चाहैत छी जे अहाँ सभ आत्‍मिक वरदान सभक विषय मे ठीक सँ बुझी। 2 अहाँ सभ केँ बुझले अछि जे जखन अहाँ सभ प्रभु सँ अपरिचित छलहुँ तखन कोनो ने कोनो तरहेँ प्रभावित भऽ अहाँ सभ बौक मुरुत सभक दिस भटकाओल जाइत छलहुँ। 3 एहि लेल हम अहाँ सभ केँ कहि दैत छी जे परमेश्‍वरक आत्‍माक प्रेरणा सँ बाजऽ वला केओ एना नहि कहैत अछि जे, “यीशु सरापित होओ” आ ने पवित्र आत्‍माक प्रेरणा बिना केओ ई कहि सकैत अछि जे, “यीशुए प्रभु छथि।” 4 वरदान विभिन्‍न प्रकारक अछि मुदा वरदान देबऽ वला पवित्र आत्‍मा एकेटा छथि। 5 सेवाक काज सेहो अनेक प्रकारक अछि मुदा एकेटा प्रभु छथि जिनकर सेवा कयल जाइत अछि। 6 काज अनेक तरीका सँ होइत अछि मुदा सभ लोक मे एकेटा परमेश्‍वर ओहि सभ काज मे क्रियाशील छथि। 7 सभक हितक लेल एक-एक व्‍यक्‍ति मे पवित्र आत्‍माक उपस्‍थिति कोनो ने कोनो रूप मे प्रगट कयल जाइत अछि। 8 पवित्र आत्‍मा द्वारा किनको बुद्धिपूर्ण बात बजबाक आ किनको ओही पवित्र आत्‍मा द्वारा ज्ञानक बात बजबाक वरदान भेटैत अछि। 9 किनको ओही पवित्र आत्‍मा द्वारा विशेष विश्‍वास आ किनको ओही पवित्र आत्‍मा द्वारा बिमार लोक केँ स्‍वस्‍थ करबाक वरदान सभ देल जाइत अछि, 10 किनको चमत्‍कारक काज सभ करबाक वरदान, किनको प्रभुक दिस सँ सम्‍बाद पयबाक आ सुनयबाक वरदान, किनको ई चिन्‍हबाक वरदान जे कोनो बात परमेश्‍वरक आत्‍माक दिस सँ अछि वा दोसर आत्‍माक दिस सँ, किनको अनजान भाषा बजबाक वरदान आ किनको ओहि भाषा सभक अर्थ बुझयबाक वरदान देल जाइत अछि। 11 ई सभ ओही एक पवित्र आत्‍माक काज छनि जे अपन इच्‍छाक अनुसार एक-एक व्‍यक्‍ति केँ वरदान बँटैत छथि। 12 जहिना मनुष्‍यक शरीर एक अछि, मुदा तैयो ओकर बहुत अंग होइत अछि आ सभ अंग अनेक होइतो एकेटा शरीर अछि, तहिना मसीह सेहो छथि। 13 किएक तँ, अपना सभ यहूदी होइ वा यूनानी, गुलाम होइ वा स्‍वतन्‍त्र, एके शरीर होयबाक लेल अपना सभ गोटे केँ एके पवित्र आत्‍मा द्वारा बपतिस्‍मा देल गेल अछि। सभ केँ एके पवित्र आत्‍मा पिआओल गेल छथि। 14 शरीर मे सेहो एक नहि, अनेक अंग अछि। 15 जँ पयर कहय, “हम हाथ नहि छी, एहि लेल हम शरीरक अंग नहि छी,” तँ की ओ एहि कारणेँ शरीरक अंग नहि भेल? 16 जँ कान कहय, “हम आँखि नहि छी, एहि लेल हम शरीरक अंग नहि छी,” तँ की एहि कारणेँ ओ शरीरक अंग नहि भेल? 17 जँ सम्‍पूर्ण शरीर आँखिए होइत तँ ओ सुनैत कोना? जँ सम्‍पूर्ण शरीर काने होइत तँ ओ सुँघैत कोना? 18 मुदा परमेश्‍वर अपन इच्‍छाक अनुसार प्रत्‍येक अंग केँ शरीर मे अपन स्‍थान पर राखि देने छथि। 19 जँ सभ एकेटा अंग रहैत तँ शरीर कोना होइत? 20 मुदा वास्‍तविकता ई अछि जे अंग अनेक अछि, तैयो शरीर एक अछि। 21 आँखि हाथ केँ नहि कहि सकैत अछि जे, “हमरा तोहर आवश्‍यकता नहि,” आ ने मूड़ी पयर केँ कहि सकैत अछि जे, “हमरा तोहर आवश्‍यकता नहि।” 22 उल्‍टे, शरीरक जे-जे अंग कम महत्‍वक बुझल जाइत अछि से सभ अत्‍यन्‍त आवश्‍यक अछि। 23 शरीरक जाहि-जाहि अंग केँ अपना सभ कम आदरक योग्‍य बुझैत छी तकरे सभ पर विशेष ध्‍यान दैत छी। जे-जे अंग अशोभनीय अछि तकरा झाँपि कऽ शोभनीय बनबैत छी 24 मुदा अपना सभक शोभनीय अंग सभक लेल एकर आवश्‍यकता नहि होइत अछि। परमेश्‍वर अपना सभक शरीरक अंग केँ एना कऽ जोड़ि देने छथि जाहि सँ कम आदरणीय अंग सभ केँ विशेष आदर भेटैक 25 आ शरीर मे फूट उत्‍पन्‍न नहि होअय, बल्‍कि शरीरक सभ अंग एक-दोसराक बराबरि-बराबरि चिन्‍ता करय। 26 जँ एक अंग केँ पीड़ा होइत छैक तँ ओकरा संग सभ अंग केँ पीड़ा होइत छैक। जँ एक अंग केँ सम्‍मान होइत छैक तँ ओकरा संग सभ अंग आनन्‍द मनबैत अछि। 27 एही तरहेँ अहाँ सभ मिलि कऽ मसीहक शरीर छी आ अहाँ सभ मे सँ प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति तकर एक अंग छी। 28 परमेश्‍वर मण्‍डली मे सभ केँ अपन-अपन स्‍थान पर राखि देने छथि—सभ सँ पहिल मसीह-दूत सभ केँ, दोसर, परमेश्‍वरक प्रवक्‍ता सभ केँ, तेसर शिक्षा देनिहार सभ केँ, तकरबाद चमत्‍कारक काज कयनिहार सभ केँ, स्‍वस्‍थ करबाक वरदान पौनिहार सभ केँ, दोसराक सहायता करऽ वला सभ केँ, अगुआइ करबाक वरदान पौनिहार सभ केँ और अनजान भाषा बजबाक वरदान पौनिहार सभ केँ। 29 की सभ केओ मसीह-दूत छथि? की सभ केओ परमेश्‍वरक प्रवक्‍ता छथि? की सभ केओ शिक्षा देनिहार छथि? की सभ केओ चमत्‍कारक काज कयनिहार छथि? 30 की सभ केओ स्‍वस्‍थ करबाक वरदान पौनिहार छथि? की सभ केओ अनजान भाषा बजनिहार छथि? की सभ केओ अनजान भाषा मे बाजल बातक अर्थ बतौनिहार छथि? 31 अहाँ सभ श्रेष्‍ठ वरदान सभ पयबाक लेल उत्‍सुक रहू। मुदा हम आब अहाँ सभ केँ सभ सँ उत्तम तरीका बुझाबऽ चाहैत छी।

1 Corinthians 13

1 जँ हम मनुष्‍य सभक आ स्‍वर्गदूत सभक भाषा सभ बाजी मुदा हम प्रेम नहि करी तँ हम टनटन करऽ वला घण्‍टा वा झनझन करऽ वला झालि मात्र छी। 2 जँ परमेश्‍वर सँ सम्‍बाद पयबाक और सुनयबाक वरदान हमरा भेटल होअय, जँ सभ रहस्‍य आ समस्‍त ज्ञान केँ जानि लेने होइ, आ हमर विश्‍वास एतेक परिपूर्ण होअय जे पहाड़ सभ केँ सेहो ओकर स्‍थान सँ हटा सकी, मुदा हम प्रेम नहि करी तँ हम किछु नहि छी। 3 जँ हम अपन सम्‍पूर्ण सम्‍पत्ति बाँटि कऽ दान कऽ दी आ अपन शरीर भस्‍म होयबाक लेल अर्पित करी, मुदा हम प्रेम नहि करी तँ हमरा कोनो लाभ नहि अछि। 4 प्रेम सहनशील आ दयालु होइत अछि। प्रेम डाह नहि करैत अछि, प्रेम अपन बड़ाइ नहि करैत अछि आ ने घमण्‍ड करैत अछि। 5 प्रेम अभद्र व्‍यवहार नहि करैत अछि, ओ स्‍वार्थी नहि अछि, जल्‍दी सँ खौंझाइत नहि अछि आ ने अपराधक हिसाब रखैत अछि। 6 प्रेम अधर्म सँ प्रसन्‍न नहि होइत अछि, बल्‍कि सत्‍य सँ आनन्‍दित होइत अछि। 7 प्रेम सभ बात सहन करैत अछि, सभ स्‍थिति मे विश्‍वास रखैत अछि, सभ स्‍थिति मे आशा रखैत अछि आ सभ स्‍थिति मे लगनशील रहैत अछि। 8 प्रेमक अन्‍त कहियो नहि होयत। परमेश्‍वरक दिस सँ सम्‍बाद पौनाइ समाप्‍त भऽ जायत, अनजान भाषा सभ बजनाइ बन्‍द भऽ जायत आ ज्ञान लुप्‍त भऽ जायत। 9 किएक तँ अपना सभक ज्ञान अपूर्ण अछि आ परमेश्‍वर सँ सम्‍बाद पौनाइ आ सुनौनाइ अपूर्ण अछि। 10 मुदा जखन पूर्णता आबि जायत तँ जे अपूर्ण अछि से लुप्‍त भऽ जायत। 11 जखन हम बच्‍चा छलहुँ तँ बच्‍चा जकाँ बजैत छलहुँ, बच्‍चा जकाँ सोचैत छलहुँ आ बच्‍चा जकाँ विचार करैत छलहुँ। मुदा पैघ भऽ गेला पर बचकानी बात सभ छोड़ि देलहुँ। 12 तहिना एखन अपना सभ केँ अएना मे धोनाह सन देखाइ दैत अछि, मुदा तखन प्रत्‍यक्ष देखब। एखन हमर ज्ञान अपूर्ण अछि, मुदा तखन ओही तरहेँ पूर्ण रूप सँ जानब जाहि तरहेँ परमेश्‍वर पूर्ण रूप सँ हमरा एखनो जनैत छथि। 13 आब विश्‍वास, आशा आ प्रेम, ई तीनू टिकैत अछि मुदा सभ सँ श्रेष्‍ठ अछि प्रेम।

1 Corinthians 14

1 अहाँ सभ प्रेमक प्रेरणाक अनुसार चलबाक लेल प्रयत्‍नशील रहू आ आत्‍मिक वरदान सभक प्राप्‍तिक लेल उत्‍सुक रहू, विशेष रूप सँ परमेश्‍वर सँ सम्‍बाद पयबाक आ सुनयबाक वरदानक लेल। 2 किएक तँ जे अनजान भाषा मे बजैत अछि से मनुष्‍य सभ सँ नहि, बल्‍कि परमेश्‍वर सँ बजैत अछि। वास्‍तव मे ओकर बात केओ नहि बुझैत अछि। ओ परमेश्‍वरक आत्‍मा द्वारा रहस्‍यक बात सभ कहैत अछि। 3 मुदा जे परमेश्‍वर सँ सम्‍बाद पाबि सुनबैत अछि से लोकक आत्‍मिक वृद्धिक लेल आ ओकरा सभ केँ प्रोत्‍साहन आ सान्‍त्‍वना देबाक लेल बजैत अछि। 4 अनजान भाषा बजनिहार अपनहि आत्‍मिक वृद्धि करैत अछि मुदा परमेश्‍वर सँ पाओल सम्‍बाद सुनौनिहार मण्‍डलीक आत्‍मिक वृद्धि करैत अछि। 5 हम चाहितहुँ जे अहाँ सभ मे सँ सभ केँ अनजान भाषा सभ बजबाक वरदान भेटय, मुदा ताहि सँ बेसी ई चाहितहुँ जे अहाँ सभ मे सँ सभ केँ परमेश्‍वर सँ सम्‍बाद पयबाक आ सुनयबाक वरदान भेटय। जँ अनजान भाषा बाजऽ वला स्‍वयं अपन कहल बातक अर्थ नहि बुझा सकैत अछि तँ ओकरा सँ श्रेष्‍ठ ओ व्‍यक्‍ति अछि जे परमेश्‍वर सँ भेटल सम्‍बाद सुनबैत अछि, जाहि सँ मण्‍डलीक आत्‍मिक वृद्धि होअय। 6 यौ भाइ लोकनि, जँ हम अहाँ सभक ओतऽ आबि कऽ अनजान भाषा मे बाजी तँ जा धरि अहाँ सभ केँ हम अपना पर प्रगट कयल कोनो सत्‍य नहि सुनाबी, आ ने कोनो ज्ञानक बात, वा परमेश्‍वर सँ पाओल कोनो सम्‍बाद वा कोनो शिक्षाक बात कही, तँ ओहि सँ अहाँ सभ केँ की लाभ होयत? 7 तहिना बाँसुरी वा वीणा सनक निर्जीवो बाजा सँ जँ स्‍पष्‍ट धुनि नहि निकलत तँ के कहि सकत जे ओहि सँ की बजाओल जा रहल अछि? 8 फेर जँ सेनाक बिगुल सँ स्‍पष्‍ट आवाज नहि निकलत तँ कोन सैनिक अपना केँ लड़ाइक लेल तैयार करत? 9 एही तरहेँ अहूँ सभ, जँ बुझऽ वला भाषा मे नहि बाजब तँ जे बात बाजि रहल छी तकर अर्थ के बुझत? एना कऽ कऽ अहाँ सभ तँ हवा मे बात कयनिहार बनि जायब। 10 एहि संसार मे नहि जानि कतेक प्रकारक भाषा अछि, आ ओहि मे सँ एकोटा बिनु अर्थक नहि अछि। 11 जँ हम ककरो बाजल शब्‍दक अर्थ नहि बुझि पबैत छी तँ हम बजनिहारक लेल परदेशी छी आ बजनिहार हमरा लेल परदेशी अछि। 12 एहि तरहेँ अहूँ सभ, जे पवित्र आत्‍माक वरदान सभ पयबाक लेल उत्‍सुक छी, एही बातक लेल विशेष रूप सँ प्रयत्‍नशील रहू जे अहाँ सभक वरदानक उपयोगिता सँ मण्‍डलीक आत्‍मिक वृद्धि होअय। 13 एहि कारणेँ अनजान भाषा बजनिहार अपन कहल बातक अर्थ सेहो बुझा सकय, तकरा लेल ओ प्रभु सँ विनती करओ। 14 किएक तँ जँ हम अनजान भाषा मे प्रार्थना करैत छी तँ हमर आत्‍मा तँ प्रार्थना करैत अछि मुदा हमर बुद्धि कोनो काजक नहि होइत अछि। 15 तखन हम की करी? हम अपन आत्‍मा सँ प्रार्थना तँ करब मुदा अपन बुद्धि सँ सेहो प्रार्थना करब। हम अपन आत्‍मा सँ स्‍तुति गायब मुदा अपन बुद्धि सँ सेहो स्‍तुति गायब। 16 जँ अहाँ मात्र आत्‍मे सँ, ⌞अर्थात्‌ अनजान भाषा मे,⌟ परमेश्‍वरक स्‍तुति कऽ रहल छी तँ ओतऽ उपस्‍थित लोक सभ मे सँ, जे केओ बुझऽ वला नहि अछि, से अहाँक धन्‍यवादक प्रार्थनाक बाद कोना कहत जे “हँ, एहिना होअय” किएक तँ ओ नहि जनैत अछि जे अहाँ की कहि रहल छी। 17 अहाँ तँ धन्‍यवाद बहुत बढ़ियाँ सँ दैत छी मुदा ओहि सँ दोसर व्‍यक्‍तिक आत्‍मिक वृद्धि नहि भऽ रहल अछि। 18 हम परमेश्‍वर केँ धन्‍यवाद दैत छियनि जे हम अहाँ सभ गोटे सँ बढ़ि कऽ अनजान भाषा मे बजैत छी। 19 तैयो मण्‍डली मे अनजान भाषा मे दस हजार शब्‍द बजबाक अपेक्षा दोसर लोक सभ केँ शिक्षा देबाक लेल पाँचेटा बुझऽ वला शब्‍द बाजब नीक बुझैत छी। 20 यौ भाइ लोकनि, बच्‍चा जकाँ सोच-विचार कयनाइ छोड़ि दिअ। हँ, अधलाह बात मे छोट बच्‍चा बनल रहू, मुदा सोचऽ-विचारऽ मे सेयान बनू। 21 धर्म-नियम मे लिखल अछि, “प्रभुक कथन छनि जे, ‘हम दोसर-दोसर भाषा बाजऽ वला आन देशक लोक द्वारा एहि लोक सभ सँ बात करब। मुदा तखनो ई लोक सभ हमर बात पर ध्‍यान नहि देत।’” 22 तहिना अनजान भाषा सभ बजबाक वरदान विश्‍वासी सभक लेल नहि, बल्‍कि विश्‍वास केँ अस्‍वीकार कयनिहार सभक लेल चिन्‍ह स्‍वरूप अछि। मुदा परमेश्‍वर सँ पाओल सम्‍बाद सुनौनाइ अविश्‍वासी सभक लेल नहि, बल्‍कि विश्‍वासी सभक लेल चिन्‍ह स्‍वरूप अछि। 23 जँ समस्‍त मण्‍डली एक ठाम जमा भऽ जाय आ अहाँ सभ केओ अनजान भाषा सभ बाजऽ लागी, आ किछु लोक जे प्रभुक बात सँ अपरिचित अछि वा अविश्‍वासी अछि, भीतर आबि जाय तँ की ओ सभ अहाँ सभ केँ पागल नहि बुझत? 24 मुदा जँ सभ केओ परमेश्‍वर सँ पाओल सम्‍बाद सुनबैत रही आ तखन कोनो अविश्‍वासी वा प्रभुक बात सँ अपरिचित व्‍यक्‍ति भीतर प्रवेश करय तँ ओकरा परमेश्‍वरक सम्‍बाद सुनौनिहार सभक बात द्वारा अपना पापक अनुभव होयतैक आ ओहि सभ बात द्वारा ओ अपना केँ दोषी बुझत। 25 एहि तरहेँ ओकरा हृदयक गुप्‍त बात सभ प्रकाश मे आबि जयतैक आ ओ दण्‍डवत कऽ परमेश्‍वरक आराधना करैत ई स्‍वीकार करत जे, “परमेश्‍वर वास्‍तव मे अहाँ सभक बीच उपस्‍थित छथि।” 26 यौ भाइ लोकनि, फेर एकर निष्‍कर्ष की अछि? जहिया-कहियो अहाँ सभ जमा होइत छी तँ केओ भजन सुनबैत छी, केओ शिक्षा दैत छी, केओ अपना पर प्रगट कयल कोनो सत्‍य बतबैत छी, केओ अनजान भाषा मे बजैत छी आ केओ तकर अर्थ बुझबैत छी। मुदा ई सभ मण्‍डलीक आत्‍मिक वृद्धिक लेल कयल जाय। 27 जँ केओ अनजान भाषा मे बाजय तँ दू वा बेसी सँ बेसी तीन गोटे बेरा-बेरी बाजओ, और केओ ओकर अर्थ बुझाबओ। 28 जँ कोनो अर्थ बुझौनिहार नहि होअय तँ अनजान भाषा बाजऽ वला मण्‍डली मे चुप रहओ। ओ अपने सँ आ परमेश्‍वर सँ बाजओ। 29 परमेश्‍वरक प्रवक्‍ता सभ मे सँ दू वा तीन गोटे बाजथि आ बाँकी लोक हुनकर सभक बात सभक जाँच करथि। 30 मुदा जँ ओतऽ बैसल लोक सभ मे सँ किनको पर परमेश्‍वर सँ कोनो सत्‍य प्रगट भऽ जाय तँ पहिने सँ बाजऽ वला व्‍यक्‍ति चुप भऽ जाथि। 31 अहाँ सभ बेरा-बेरी सभ केओ परमेश्‍वर सँ पाओल सम्‍बाद सुना सकैत छी जाहि सँ सभ केँ शिक्षा आ प्रोत्‍साहन भेटय। 32 परमेश्‍वरक प्रवक्‍ता सभ केँ अपन आत्‍मा पर नियन्‍त्रण छनि, 33 किएक तँ परमेश्‍वर द्वारा अव्‍यवस्‍था नहि उत्‍पन्‍न होइत अछि, बल्‍कि शान्‍ति। जहिना प्रभुक लोकक सभ मण्‍डली मे होइत अछि, 34 तहिना अहूँ सभक सभा सभ मे स्‍त्रीगण सभ केँ चुप रहबाक चाहियनि। हुनका सभ केँ बजबाक अनुमति नहि अछि, बल्‍कि धर्म-नियमक कथनानुसार ओ सभ अधीनता मे रहथु। 35 जँ ओ सभ कोनो बातक बारे मे बुझऽ चाहैत होथि तँ घर पर अपन-अपन पति सँ पुछथु, किएक तँ मण्‍डलीक सभा मे स्‍त्रीगण सभ केँ बजनाइ लाजक बात अछि। 36 आब कहू, की परमेश्‍वरक वचन अहीं सभ सँ शुरू भेल? वा की ओ अहीं सभ तक पहुँचल अछि? 37 जँ केओ अपना केँ परमेश्‍वरक प्रवक्‍ता वा आत्‍मिक वरदान सँ सम्‍पन्‍न बुझैत होअय तँ ओ ई स्‍वीकार कऽ लओ जे हम जे किछु अहाँ सभ केँ लिखि रहल छी से प्रभुक आदेश अछि। 38 मुदा जँ केओ एहि पर ध्‍यान नहि देत तँ ओकरो पर ध्‍यान नहि देल जयतैक। 39 एहि लेल, यौ भाइ लोकनि, परमेश्‍वर सँ सम्‍बाद पयबाक और सुनयबाक लेल उत्‍सुक रहू मुदा अनजान भाषा सभ मे बाजऽ वला सभ केँ रोकू नहि। 40 सभ किछु उचित आ व्‍यवस्‍थित ढंग सँ कयल जाय।

1 Corinthians 15

1 यौ भाइ लोकनि, आब हम अहाँ सभ केँ ओहि सुसमाचारक स्‍मरण करबैत छी जकर प्रचार हम अहाँ सभक बीच कयने छलहुँ, जकरा अहाँ सभ मानि लेलहुँ आ जाहि पर अहाँ सभक विश्‍वास आधारित अछि। 2 जँ अहाँ सभ ओहि वचन पर अटल रहैत छी जे हम अहाँ सभ केँ सुनौने छी, तँ एहि सुसमाचार द्वारा अहाँ सभक उद्धार अछि। नहि तँ अहाँ सभक विश्‍वास कयनाइ व्‍यर्थ भेल। 3 कारण, जे बात हमरा भेटल तकरा हम मुख्‍य सत्‍यक रूप मे अहाँ सभ लग पहुँचा देलहुँ, अर्थात्‌ ई जे, मसीह धर्मशास्‍त्रक भविष्‍यवाणीक अनुसार अपना सभक पापक प्रायश्‍चित्तक लेल मरलाह, 4 गाड़ल गेलाह, धर्मशास्‍त्रक भविष्‍यवाणीक अनुसार तेसर दिन जिआओल गेलाह 5 आ पत्रुस केँ देखाइ देलथिन आ तखन बारहो मसीह-दूतक समूह केँ सेहो। 6 तकरबाद ओ एके समय मे पाँच सय सँ बेसी भाइ सभ केँ देखाइ देलथिन। ओहि मे सँ अधिकांश आइओ जीवित अछि, ओना तँ किछु लोक मरिओ गेल अछि । 7 बाद मे ओ याकूब केँ आ फेर सभ मसीह-दूत लोकनि केँ देखाइ देलथिन, 8 आ अन्‍त मे हमरो देखाइ देलनि, मानू जे हम असमयक जन्‍मल लोक छी। 9 हम ई एहि लेल कहलहुँ जे हम मसीह-दूत सभ मे सभ सँ छोट छी आ मसीह-दूत कहयबा जोगरक सेहो नहि छी, कारण हम परमेश्‍वरक मण्‍डली पर अत्‍याचार कयने छी। 10 मुदा हम जे किछु छी से परमेश्‍वरक कृपा सँ छी आ हमरा पर जे हुनका द्वारा कृपा कयल गेल से व्‍यर्थ नहि भेल। हम आन सभ मसीह-दूत सँ बढ़ि कऽ परिश्रम कयलहुँ—ओना तँ हम नहि कयलहुँ, बल्‍कि ई परमेश्‍वरक ओहि कृपा द्वारा भेल जे हमरा पर रहल। 11 चाहे हम होइ वा ओ सभ होथि, हम सभ केओ एही सुसमाचारक प्रचार करैत छी आ एही पर अहाँ सभ विश्‍वास कयने छी। 12 मुदा जँ मसीहक विषय मे हम सभ प्रचार करैत छी जे ओ मृत्‍यु सँ जीबि उठाओल गेल छथि तँ अहाँ सभ मे सँ किछु व्‍यक्‍ति कोना कहैत छी जे मरल सभ केँ जिआओल नहि जायत? 13 जँ मरल सभ जिआओल नहि जायत तँ मसीहो नहि जिआओल गेल छथि। 14 आ जँ मसीह नहि जिआओल गेल छथि तँ हमरा सभक प्रचार कयनाइ व्‍यर्थ अछि और अहाँ सभक विश्‍वास कयनाइ सेहो व्‍यर्थ अछि। 15 तखन एतबे नहि, हम सभ परमेश्‍वरक विषय मे झुट्ठा गवाह सेहो ठहरि गेलहुँ, किएक तँ हम सभ परमेश्‍वरक सम्‍बन्‍ध मे ई गवाही देने छी जे ओ मसीह केँ फेर जीवित कयलथिन। मुदा जँ वास्‍तव मे मरल सभ फेर जिआओल नहि जाइत अछि तँ परमेश्‍वर मसीह केँ सेहो फेर जीवित नहि कयलथिन। 16 कारण, जँ मरल सभ जिआओल नहि जाइत अछि तँ मसीह सेहो नहि जिआओल गेल छथि। 17 जँ मसीह फेर जिआओल नहि गेल छथि तँ अहाँ सभक विश्‍वास बेकार अछि आ अहाँ सभ केँ पापक दोष एखनो लागले अछि। 18 एतबे नहि, तखन तँ ओहो लोक, जे सभ मसीह पर विश्‍वास करैत मरि गेल छथि, तिनको सभक विनाश भेल अछि। 19 जँ मसीह पर अपना सभक आशा मात्र एही जीवन तक सीमित अछि तँ समस्‍त मनुष्‍य जाति मे अपने सभक दशा सभ सँ खराब अछि। 20 मुदा मसीह निश्‍चय जिआओल गेल छथि। हँ, जे सभ मरि गेल छथि तिनका सभ मे सँ ओ “प्रथम फल” भेलाह। 21 किएक तँ जखन मृत्‍यु एक मनुष्‍य द्वारा संसार मे आयल तँ एक मनुष्‍ये द्वारा मुइल सभक जीबि उठनाइ सेहो अछि। 22 जाहि तरहेँ सभ लोक आदम सँ सम्‍बन्‍धित भऽ मरैत अछि ताही तरहेँ सभ लोक जे मसीह सँ संयुक्‍त अछि, जिआओल जायत। 23 मुदा हर एक निर्धारित क्रमक अनुसार अपन-अपन पार पर जिआओल जायत—सभ सँ पहिने मसीह, जे “प्रथम फल” छथि, तकरबाद जखन ओ फेर औताह तखन ओ सभ जे हुनकर लोक अछि। 24 तखन एहि संसारक अन्‍त भऽ जायत आ मसीह सभ प्रकारक शासन, अधिकार आ सामर्थ्‍य केँ समाप्‍त कऽ अपन राज्‍य पिता परमेश्‍वरक हाथ मे सौंपि देथिन। 25 किएक तँ जाबत तक मसीह अपन सभ शत्रु केँ पयरक तर मे नहि कऽ लेथि, ताबत तक हुनका राज्‍य कयनाइ आवश्‍यक छनि। 26 ओहि मे अन्‍तिम नष्‍ट होमऽ वला शत्रु अछि मृत्‍यु। 27 किएक तँ धर्मशास्‍त्रक कथन अछि जे, “ओ सभ किछु हुनकर पयरक तर मे कयने छथि।” जखन ई कहल गेल जे “सभ किछु” हुनकर अधीन कयल गेल अछि तखन एहि कथन मे निःसन्‍देह परमेश्‍वर केँ छोड़ि देल गेल छनि। वैह तँ सभ किछु मसीहक अधीन कयने छथिन। 28 जखन सभ किछु पुत्रक अधीन कऽ देल जायत तखन पुत्र स्‍वयं तिनकर अधीन भऽ जयताह जे सभ किछु पुत्रक अधीन कऽ देलनि, जाहि सँ सभ बात मे परमेश्‍वरे सभ किछु रहथि। 29 जँ ई सभ बात होमऽ वला नहि अछि तँ जे व्‍यक्‍ति सभ मरल सभक लेल बपतिस्‍मा लैत अछि से की करत? जँ मरल सभ जिआओले नहि जाइत अछि तँ फेर तकरा सभक लेल लोक बपतिस्‍मा किएक लैत अछि? 30 आ हमहूँ सभ किएक प्रति क्षण संकटक सामना करैत छी? 31 सभ दिन हम मृत्‍युक सामना करैत छी। हँ, यौ भाइ लोकनि, ई ततेक निश्‍चित अछि जतेक निश्‍चित इहो अछि जे अहाँ सभ अपना सभक प्रभु यीशु मसीह मे हमर गौरव छी। 32 जँ हम इफिसुस मे हिंसक पशु सभ सँ लड़लहुँ तँ मनुष्‍यक दृष्‍टिकोण सँ हमरा की लाभ भेल? जँ मरल सभ जिआओल नहि जायत तँ, “आउ, खाइ आ पिबी, किएक तँ काल्‍हि तँ मरहेक अछि।” 33 धोखा नहि खाउ—”अधलाह संगति नीक चरित्र केँ भ्रष्‍ट कऽ दैत अछि।” 34 सही काज करबाक लेल होश मे आउ आ पाप कयनाइ छोड़ि दिअ। अहाँ सभ मे किछु लोक परमेश्‍वरक सम्‍बन्‍ध मे एकदम अनजान छी। ई अहाँ सभक लेल लाजक बात होयबाक चाही। 35 मुदा आब केओ ई पुछत जे, “मरल सभ कोना जिआओल जायत? ओ सभ केहन शरीर धारण कऽ कऽ आओत?” 36 ई प्रश्‍नो मूर्खताक बात अछि! अहूँ जे कोनो बीया बाउग करैत छी से बिनु मरने कहाँ जीवित होइत अछि? 37 अहाँ जे बाउग करैत छी से बाद मे जाहि रूपक होयतैक ताहि रूप मे बाउग नहि करैत छी, बल्‍कि मात्र बीया बाउग करैत छी—ओ गहुमक होअय वा कोनो आन अनाजक। 38 मुदा परमेश्‍वर अपन इच्‍छाक अनुसार ओकरा कोनो रूप प्रदान करैत छथि—प्रत्‍येक बीया केँ ओकर अपन अलग रूपक गाछ होइत अछि। 39 सभ प्राणी केँ एक समानक शरीर नहि होइत अछि। मनुष्‍यक शरीर एक प्रकारक होइत अछि, पशुक शरीर दोसर प्रकारक, चिड़ै सभक फेर दोसर और माछ सभक दोसर प्रकारक होइत अछि। 40 स्‍वर्गिक शरीर होइत अछि आ पृथ्‍वी वला शरीर सेहो होइत अछि, मुदा स्‍वर्गिक शरीरक शोभा एक प्रकारक अछि आ पृथ्‍वी वलाक शोभा दोसर प्रकारक। 41 सूर्यक शोभा एक प्रकारक होइत अछि, चन्‍द्रमाक शोभा दोसर प्रकारक आ तरेगन सभक शोभा आन प्रकारक, एतऽ तक जे एक ताराक शोभा दोसर ताराक शोभा सँ भिन्‍न होइत अछि। 42 मरल सभक जीबि उठनाइ सेहो एहने बात अछि। जे शरीर मृत्‍यु द्वारा “बाउग कयल जाइत अछि” से मरऽ आ सड़ऽ वला अछि। जखन जिआओल जाइत अछि तँ मरैत आ सरैत नहि अछि। 43 अनादरपूर्ण दशा मे “बाउग कयल जाइत अछि,” महिमा सँ मण्‍डित भऽ जिआओल जाइत अछि। कमजोर दशा मे “बाउग कयल जाइत अछि”, जिआओल जा कऽ सामर्थी होइत अछि। 44 जे शरीर “बाउग कयल जाइत अछि” से प्राकृतिक वस्‍तु अछि आ जखन जिआओल जाइत अछि तँ ओ आत्‍मिक वस्‍तु अछि। जँ प्राकृतिक शरीर होइत अछि तँ आत्‍मिक शरीर सेहो होइत अछि। 45 धर्मशास्‍त्रक लेख सेहो यैह अछि जे, “पहिल मनुष्‍य, आदम, जीवित प्राणी बनि गेल।” “अन्‍तिम आदम”, अर्थात्‌ मसीह, जीवनदायक आत्‍मा बनलाह। 46 पहिने आत्‍मिक बात नहि, बल्‍कि प्राकृतिक बात आयल, तकरबादे आत्‍मिक बात। 47 पहिल मनुष्‍य माटिक बनल छल, पृथ्‍वी सँ छल, मुदा दोसर मनुष्‍य स्‍वर्ग सँ छथि। 48 पृथ्‍वी वला ओ मनुष्‍य जेहन छल तेहने ओ सभ लोक अछि जे पृथ्‍वी पर रहैत अछि आ स्‍वर्ग सँ आयल ओ मनुष्‍य जेहन छथि तेहने ओ सभ लोक होयत जे स्‍वर्ग मे रहत। 49 अपना सभ जहिना पृथ्‍वी वला मनुष्‍यक रूप धारण कयने छी तहिना स्‍वर्ग वला मनुष्‍यक रूप सेहो धारण करब। 50 यौ भाइ लोकनि, हमर कहबाक तात्‍पर्य ई अछि जे, माँसु आ खून वला शरीर परमेश्‍वरक राज्‍य मे प्रवेश करबाक अधिकारी नहि भऽ सकैत अछि। जे किछु विनाश होमऽ वला अछि से तकरा पयबाक अधिकारी नहि भऽ सकैत अछि जे अविनाशी अछि। 51 सुनू, हम अहाँ सभ केँ एकटा बात कहैत छी जे पहिने गुप्‍त राखल गेल छल—अपना सभ मे सँ सभ केओ नहि मरब, मुदा सभ बदलि देल जायब। 52 ई एक क्षण मे, पलक मारिते, धुतहूक अन्‍तिम आवाज होइते भऽ जायत। किएक तँ धुतहू बाजत, मरल सभ अविनाशी भऽ जीवित कयल जायत आ अपना सभ बदलि देल जायब। 53 ई आवश्‍यक अछि जे, जे सड़ऽ वला अछि से एहन रूप धारण करय जे नहि सरैत अछि, जे मरऽ वला अछि, से एहन रूप धारण करय जे नहि मरैत अछि। 54 जखन ई नाश होमऽ वला शरीर अविनाशी वला केँ, आ ई मरणशील शरीर अमरता केँ धारण कऽ लेत तखन धर्मशास्‍त्रक ई बात पूरा भऽ जायत जे, “मृत्‍यु पर विजय भऽ गेल अछि! ओ आब समाप्‍त भेल।” 55 “हे मृत्‍यु, तोहर विजय कतऽ छौक? 2 हे मृत्‍यु, कतऽ छौक तोहर डंक?” 56 पाप अछि मृत्‍युक डंक, आ पाप धर्म-नियमक आधार पर मृत्‍युक कारण बनैत अछि। 57 मुदा परमेश्‍वर केँ धन्‍यवाद होनि! ओ अपना सभक प्रभु यीशु मसीह द्वारा अपना सभ केँ विजय प्रदान करैत छथि। 58 एहि लेल, यौ प्रिय भाइ लोकनि, स्‍थिर और अटल बनल रहू। अपना केँ पूर्ण रूप सँ प्रभुक काजक लेल सदत समर्पित कयने रहू, किएक तँ अहाँ सभ जनैत छी जे अहाँ सभक परिश्रम प्रभु मे व्‍यर्थ नहि अछि।

1 Corinthians 16

1 आब प्रभुक लोकक लेल चन्‍दा जमा करबाक सम्‍बन्‍ध मे हम ई कहऽ चाहैत छी जे, अहूँ सभ ओहिना करू जेना हम गलातिया प्रदेशक मण्‍डली सभ केँ कहि देने छी। 2 सप्‍ताहक पहिल दिन मे प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति अपन कमाइक अनुसार किछु अलग कऽ कऽ जमा करैत जाय। एहि तरहेँ हमरा पहुँचला पर चन्‍दा जमा करबाक आवश्‍यकता नहि रहत। 3 जखन हम आयब तँ जकरा सभ केँ अहाँ सभ उपयुक्‍त बुझब तकरा सभ केँ हम परिचय-पत्र दऽ कऽ अहाँ सभ द्वारा जमा कयल दान यरूशलेम पहुँचयबाक लेल पठा देबैक। 4 आ जँ यैह उचित बुझायत जे हमहूँ जाइ तँ ओ सभ हमरा संग जायत। 5 हम मकिदुनिया प्रदेश दऽ कऽ अहाँ सभक ओतऽ आयब, कारण हमरा मकिदुनियाक यात्रा करबाक कार्यक्रम अछि। 6 सम्‍भव अछि जे हम अहाँ सभक संग विशेष दिन ठहरी वा जाड़क समय सेहो बिताबी, जाहि सँ ओतऽ सँ हमरा जाहिठाम जयबाक रहत ताहिठामक लेल अहाँ सभ हमरा जयबाक प्रबन्‍ध कऽ सकी। 7 हम अहाँ सभ सँ एखन रस्‍ते मे भेँट नहि करऽ चाहैत छी, बल्‍कि, जँ प्रभुक इच्‍छा होयतनि, तँ हमरा बेसी दिन तक अहाँ सभक संग रहबाक आशा अछि। 8 मुदा हम पेन्‍तेकुस्‍त पाबनि धरि इफिसुसे मे रहब, 9 किएक तँ एतऽ फलदायक काजक लेल हमरा आगाँ एक विशाल द्वारि खुजल अछि, आ बहुत विरोधी सभ सेहो अछि। 10 जँ तिमुथियुस अबथि तँ हुनकर ध्‍यान रखबनि जे अहाँ सभक बीच हुनका कोनो प्रकारक भय नहि होनि कारण हमरे जकाँ ओहो प्रभुक काज कऽ रहल छथि। 11 एहि लेल केओ हुनका तुच्‍छ नहि बुझनि। हुनका आशीर्वाद दऽ कऽ हमरा लग पठा देबनि। हम बाट ताकि रहल छी जे भाइ सभक संग ओ कहिया आबि जयताह। 12 आब भाइ अपुल्‍लोसक सम्‍बन्‍ध मे—हम हुनका बहुत आग्रह कयलियनि जे भाइ सभक संग ओ अहाँ सभ लग चल जाथि, मुदा एहि समय मे ओ नहि जाय चाहैत छथि। अवसर भेटला पर ओ जयताह। 13 सतर्क रहू, ओहि सिद्धान्‍त पर अटल रहू जाहि पर अहाँ सभक विश्‍वास आधारित अछि। साहसी आ मजगूत बनल रहू। 14 जे किछु करी से प्रेम सँ करू। 15 यौ भाइ लोकनि, अहाँ सभ स्‍तेफनासक घरक लोक सभ सँ परिचित छी जे ओ सभ अखाया प्रदेश मे पहिल व्‍यक्‍ति सभ छथि जे मसीहक विश्‍वासी भेलाह आ प्रभुक लोक सभक सेवा मे समर्पित छथि। 16 आब हम अहाँ सभ सँ आग्रह करैत छी जे एहन लोकक अगुआइ स्‍वीकार करू, आ आनो सभक जे सभ हिनका सभ जकाँ प्रभुक काज मे संग दऽ परिश्रम करैत छथि। 17 स्‍तेफनास, फूरतुनातुस आ अखइकुस केँ आबि गेला सँ हमरा बहुत प्रसन्‍नता अछि। अहाँ सभ हमरा संग नहि रहि कऽ जे सहायता नहि कऽ सकलहुँ ताहि कमी केँ ओ सभ पूरा कऽ देलनि। 18 ओ सभ हमरो आ अहूँ सभक मोन केँ प्रोत्‍साहित कऽ देलनि अछि। एहन लोक सभ केँ विशेष मान्‍यता दिअ। 19 आसिया प्रदेशक मण्‍डली सभक दिस सँ अहाँ सभ केँ नमस्‍कार। अक्‍विला आ प्रिस्‍किला आ हुनका घर मे जमा होमऽ वला मण्‍डली प्रभु मे अहाँ सभ केँ हार्दिक नमस्‍कार कहैत छथि। 20 एतुका सभ भाइ लोकनि अहाँ सभ केँ नमस्‍कार कहैत छथि। पवित्र मोन सँ एक-दोसर केँ सस्‍नेह नमस्‍कार करू। 21 हम, पौलुस, अपन नमस्‍कार अपने हाथ सँ लिखि रहल छी। 22 जँ केओ प्रभु सँ प्रेम नहि राखय तँ ओ सरापित होअय। हे प्रभु, आउ! 23 प्रभु यीशुक कृपा अहाँ सभ पर बनल रहय। 24 मसीह यीशु मे अहाँ सभ गोटे केँ हमर प्रेम। आमीन।



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